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मोदी के 'मिशन 2019' के लिए कैसे मील का पत्थर साबित होगा OPS-EPS का मर्जर?

जयललिता की मौत के बाद पार्टी महासचिव बनीं के. शशिकला फिलहाल जेल में हैं. मगर दोनों गुटों के इस विलय के पीछ बीजेपी की रणनीति मानी जा रही है. राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि ईपीएस और ओपीएस गुट को एक करने में बीजेपी नेतृत्व ने अहम भूमिका निभाई है.

फाइल फोटो फाइल फोटो
जावेद अख़्तर
  • चेन्नई,
  • 21 अगस्त 2017,
  • अपडेटेड 4:14 PM IST

तमिलनाडु में पूर्व मुख्यमंत्री जे. जयललिता की मौत के बाद राजनीति में जो उफान आया था, उसमें सोमवार को बड़ा मोड़ आया. लंबी खींचतान रही और आखिरकार 6 महीने बाद ओ. पलानीसामी और ओ. पन्नीरसेल्वम एक मंच पर आ गए. मंच से दोनों ने विलय का ऐलान कर दिया.

चेन्नई में दोनों नेता एक साथ एक मंच पर आए. इसके बाद पूर्व मुख्यमंत्री ओ पन्नीसेल्वम ने नया नारा दिया और पार्टी की फूट को दूर कर दिया. पन्नीरसेल्वम ने एक मां, एक पार्टी, एक परिवार' का नारा देते हुए AIADMK के इतिहास में एक नया अध्याय जोड़ दिया.

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जयललिता की मौत के बाद पार्टी महासचिव बनीं के. शशिकला फिलहाल जेल में हैं. मगर दोनों गुटों के इस विलय के पीछे बीजेपी की रणनीति मानी जा रही है. राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि ईपीएस और ओपीएस गुट को एक करने में बीजेपी नेतृत्व ने अहम भूमिका निभाई है.

इसके पीछे कुछ वाजिब तर्क भी हैं. हाल ही में जब दक्षिण के नेता वेंकैया नायडू ने उपराष्ट्रपति पद की शपथ ली तो ई पलानीसामी और ओ पन्नीरसेल्वम दोनों को बुलाया गया. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने दोनों नेताओं से अलग-अलग मुलाकात भी की.

दोनों गुटों के एक साथ आने के पीछे पार्टी पर वर्चस्व को लेकर चल रही खींचतान भी एक बड़ी वजह बनी. शशिकला भ्रष्टाचार के केस में जेल गईं तो अपने भतीजे टीटीवी दिनाकरण को उप-महासचिव नियुक्त कर दिया. इसके बाद से ही पार्टी और सरकार संभाल रहे पलानीसामी से दिनाकरण का टकराव शुरू हो गया. पार्टी में वर्चस्व को लेकर गहरा घमासान देखने को मिला. अब विलय के बाद जहां ये संकट दूर हो गया, वहीं जेल में सजा काट रहीं शशिकाल को पार्टी से बाहर का रास्ता दिखाकर कलह की आशंकाओं को ही खत्म कर दिया गया. इस कदम के बाद ये स्पष्ट हो गया है कि AIADMK की कमान EPS और OPS के हाथ में आ गई. शशिकला के साथ उनका परिवार भी पॉलिटिकल गेम से आउट हो गया.

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वहीं पार्टी में गुटबाजी के बाद चुनाव आयोग ने उनके विभाजन को तो मान्यता दे दी थी, लेकिन दोनों गुटों के दावे के बाद एआईएडीएमके के चुनावी चिह्न "दो पत्तियों" को ज़ब्त कर लिया था. अब विलय के बाद दोनों गुट समझौता कर चुनाव चिन्ह भी आसानी से वापस हासिल कर सकते हैं. माना जा रहा है कि एआईडीएमके की अंदरूनी लड़ाई ने बीजेपी को तमिलनाडु में राजनीतिक गेम खेलने का मौका दिया.

ये कहा जा रहा है कि इस विलय के बाद AIADMK का NDA में विलय हो जाएगा. जिससे तमिलनाडु में महज ढाई फीसदी वोट हासिल करने वाली बीजेपी को सियासी फायदा मिलेगा. बीजेपी ने 2019 लोकसभा चुनाव के लिए 350 से ज्यादा सीटों का लक्ष्य रखा है, जो तमिलनाडु जैसे बड़े राज्य में दखल के बिना मुमकिन नजर नहीं आता. साथ ही फिलहाल कांग्रेस के बाद सबसे ज्यादा सांसद AIADMK के पास हैं, ऐसे में विलय के बाद अगर एनडीए में एआईएडीएमके का गठबंधन हो जाता है तो मोदी सरकार को संसद में भी मजबूती मिलेगी. बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह भी तमिलनाडु के दौरे पर जाने वाले थे, मगर उन्होंने राजनीतिक घटनाक्रम को देखते हुए अपना दौरा रद्द कर दिया था.

पहले भी NDA का हिस्सा रही AIADMK

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इससे पहले भी AIADMK एनडीए सरकार का हिस्सा रह चुकी है. साथ ही बाहर से भी एनडीए का समर्थन कर चुकी है. 1998-1999 में अटल बिहारी वाजपेयी के वक्त एआईएडीएमके एनडीए का हिस्सा थी. इसके बाद 2004-2006 तक भी वो NDA का हिस्सा रही.

 

 

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