चेन्नै का मरीना बीच तमिलनाडु की सियासत में द्रविड़ आंदोलन के नायकों का समाधि स्थल है. यहां सी.एन. अन्नादुरै से लेकर एम.जी. रामचंद्रन और हाल में परलोक सिधारीं पूर्व मुख्यमंत्री जे. जयललिता दफन हैं आंदोलन ने अपने नायकों को दफनाने के लिए यह जगह चुनी है और यहां बने उनके स्मारकों ने कालांतर में ताकतवर प्रतीकों की शक्ल में काडरों को आंदोलित करने का काम किया है. यहीं मौजूद जयललिता की कब्रगाह 7 फरवरी की रात उनकी उत्तराधिकारी वी.के. शशिकला के खिलाफ अप्रत्याशित बगावत की गवाह बन गई, जो शशिकला का पहला सियासी इम्तिहान भी है. अंतरिम मुख्यमंत्री ओ.
पन्नीरसेल्वम यहां देर शाम पहुंचे, पालथी मारकर आधे घंटे से ज्यादा वक्त तक ध्यान में बैठे रहे, उसके बाद उन्होंने शशिकला के खिलाफ बगावत का परचम तान दिया, जिन्हें एआइएडीएमके ने निर्विरोध भावी मुख्यमंत्री चुना था. पन्नीरसेल्वम का आरोप था कि बतौर मुख्यमंत्री उन्हें अपमानित किया गया और 48 घंटे पहले राज्यपाल एस. विद्यासागर राव को अपना इस्तीफा सौंपने पर मजबूर किया गया.
शाश्वत अंतरिम मुख्यमंत्री से एक बागी के रूप में पन्नीरसेल्वम का यह रूपांतरण चौंकाने वाला हो सकता है, ठीक वैसे ही जैसे परदे से पीछे की खिलाड़ी शशिकला का पार्टी की तानाशाह के रूप में उभरना. हो सकता है कि उन्हें इसमें कोई आश्चर्य न दिखा हो, लेकिन वे इस मौके को गंवाने के लिए तैयार नहीं थीं.
रात 10.30 बजे चेन्नै के अभिजात्य पोएस गार्डेन इलाके में स्थित जयललिता के आलीशान बंगले वेद निलयम् से फोन जाने शुरू हो गए, जो आज शशिकला का घर है. शशिकला के करीबी लोगों ने एआइएडीएमकेके 134 विधायकों में से 119 को तुरंत फोन लगाकर उनके आवास पर इकट्ठा होने का फरमान सुना डाला था. आधी रात के बाद एआइएडीएमके की मुखिया ने एक बयान जारी करके पन्नीरसेल्वम को पार्टी के कोषाध्यक्ष पद से हटा दिया. अगली दोपहर उन्होंने अपने राजनैतिक करियर का दूसरा सियासी भाषण दिया (उनका पहला भाषण पार्टी का महासचिव पद ग्रहण करने के दो दिन बाद 31 दिसंबर को पार्टी कार्यकर्ताओं के बीच हुआ था जो 20 मिनट का था).
अबकी घंटे भर चले अपने भाषण में शशिकला ने एमजीआर और जयललिता को याद करते हुए इस बगावत के पीछे डीएमके के अदृश्य हाथ का हवाला दिया. पहले से लिखा हुआ भाषण पढ़ते हुए उन्होंने कहा, ''ओपीएस विपक्ष के साथ मिले हुए हैं. लेकिन अम्मा ने हमें रास्ता दिखाया था. ओपीएस ने पिछले दिनों जो कदम उठाए हैं, उनसे हर पार्टी कार्यकर्ता और अम्मा की बदनामी हुई है. यह अम्मा के दिखाए रास्ते से विचलन है. मैं ऐसा नहीं होने दूंगी.''
दिन में इससे पहले पन्नीरसेल्वम ने कहा था कि वे जयललिता की मौत की जांच का सवाल उठा रहे हैं क्योंकि उनकी लंबी बीमारी और निधन से जुड़े कई सवालों के जवाब अधूरे हैं. एआइएडीएमके के अंदरूनी लोगों का कहना है कि पन्नीरसेल्वम की योजना 89 सीटों वाली विपक्षी डीएमके के समर्थन से बागी विधायकों को लेकर सरकार बनाने की है. तमिलनाडु की 234 सीटों वाली विधानसभा में बहुमत की सरकार बनाने के लिए 118 विधायकों की जरूरत होती है. इस खबर के प्रेस में जाते वक्त शशिकला राज्यपाल से मिलने के बाद सरकार बनाने का दावा कर रही थीं. इससे पहले पन्नीरसेल्वम राज्यपाल से मिलकर खाली हाथ लौटे थे. उन्हें तब तक छह विधायकों का समर्थन हासिल था.
पन्नीरसेल्वम ने युवाओं के बीच अपनी ताजा लोकप्रियता के दम पर यह दांव खेला है. ध्यान रहे कि पिछली 21 जनवरी को उन्होंने जलीकट्टू को मंजूरी दिलवाने के लिए केंद्र से एक अध्यादेश को पारित करवाने में कामयाबी हासिल की थी. इस खेल को सुप्रीम कोर्ट ने 2011 में प्रतिबंधित किया था.
इस दौरान शशिकला अपने विधायकों को टूटने से बचाने में लगी हुई हैं और जल्द से जल्द राज्य की 12वीं मुख्यमंत्री की शपथ लेना चाहती हैं. उनके सामने हालांकि कुछ गंभीर दीर्घकालिक चुनौतियां मौजूद हैं. तमिलनाडु में खेती और औद्योगिक क्षेत्र पानी और बिजली की गंभीर समस्या से जूझ रहे हैं. उसके अलावा जातिगत हिंसा राज्य के सामाजिक तानेबाने के लिए खतरा बनी हुई है.
सीएम-इन-वेटिंग कई अदालती मामलों में भी फंसी हुई हैं. सुप्रीम कोर्ट की एक खंडपीठ फरवरी मध्य तक एक मामले में फैसला सुना सकती है, जो आय से ज्यादा संपत्ति के मामले में उन्हें बरी किए जाने के खिलाफ की गई अपील पर है. इस मामले में शशिकला और जयललिता, दोनों को ही 2014 में जेल हुई थी. मामला 1995 में हुई उनके भतीजे सुधाकरन की भव्य शादी का है.
बमुश्किल एक पखवाड़े पहले मद्रास हाइकोर्ट ने 1995 और 1996 में प्रवर्तन निदेशालय द्वारा उनके खिलाफ फेरा प्रावधानों के उल्लंघन के तीन मामलों में दायर मुकदमों से उन्हें बरी करने से इनकार कर दिया था. उन्हें एक और मामले में सुनवाई झेलनी पड़ेगी, जो मलेशिया में एक जानकार से अवैध विदेशी मुद्रा हासिल करने से जुड़ा है. इस पैसे से उन्होंने अपनी ननद जे. इलावारसी के साथ मिलकर नीलगिरि की पहाडिय़ों में कोडनाड टी एस्टेट खरीदा था. मई 2015 में एग्मोर के अतिरिक्त मुख्य मेट्रोपोलिटन मजिस्ट्रेट ने इस मामले से उन्हें बरी कर दिया था लेकिन प्रवर्तन निदेशालय की पुनरीक्षा याचिका पर हाइकोर्ट ने उनके खिलाफ सुनवाई शुरू करने का निर्देश दे दिया है.
फेरा उल्लंघन का एक मामला जया टीवी के लिए ट्रांसपॉन्डर और अपलिंकिंग सुविधाएं लेने के बदले विदेशी फर्मों को अमेरिकी और सिंगापुरी डॉलर में भुगतान करने से जुड़ा हैं. शशिकला जया टीवी की अध्यक्ष थीं. इसके अलावा शातिर सौदेबाजी और समझौतों से फल- फूल रहे कारोबारों पर कब्जा जमाने में उनके विस्तारित मन्नारगुड़ी कुनबे की कथित भूमिका भी शशिकला को सताएगी.
यही वह कुनबा है जिसने पन्नीरसेल्वम को शशिकला के उत्तराधिकार की राह का रोड़ा बनाकर पेश किया है. एक चुनिंदा समूह की मदद से यही कुनबा नौकरशाही को अपनी जेब में रखता है और आगे भी यह काम आसानी से करता रहेगा, क्योंकि मुख्यमंत्री कार्यालय से उन तमाम अफसरों को हटाया जा चुका है, जो जयललिता को राजकाज चलाने में मदद करते थे.
इस दौरान बीजेपी की इच्छा यह है कि एआइएडीएमके को बिखरने न दिया जाए और उसके 134 विधायकों और 49 सांसदों की ताकत का पूरा लाभ उठाकर इस साल तय राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति के चुनाव के लिए समर्थन जुटा लिया जाए.
राज्य में विपक्ष शशिकला के सत्ता में आने पर सवाल खड़ा कर रहा है. डीएमके के कार्यकारी अध्यक्ष और विपक्ष के नेता एम.के. स्टालिन ने कहा, ''लोगों ने 2016 में एआइएडीएमके को वोट इस उम्मीद में दिया था कि जयललिता मुख्यमंत्री होंगी, न कि पन्नीरसेल्वम या उनके घर से कोई और. हम इस मुद्दे पर जनतांत्रिक तरीके से प्रतिक्रिया देंगे. हम चुनाव सिर्फ 1.1 फीसदी वोट से हारे हैं.''
ऐसे राज्य में जहां हकीकत और परदे के बीच का फर्क हमेशा से धुंधला रहा हो, वीडियो कैसेट किराए पर देने वाली एक दुकान की मालकिन से फोर्ट सेंट जॉर्ज से निकलने वाली सत्ता की लगाम थामने तक शशिकला का सफर असाधारण रहा है. तीन दशक से ज्यादा वक्त तक वे एआइएडीएमके की सुप्रीमो जयललिता की परछाई बनकर उनका ख्याल रखती रहीं और उन्होंने कभी किसी राजनैतिक पद में कोई दिलचस्पी नहीं दिखाई. जयललिता के निधन के ठीक 60 दिन बाद हालांकि वे अचानक प्रकाश में आईं और बड़ी सहजता से उन्होंने उनका चोला ओढ़कर 20 दिसंबर को पार्टी के महासचिव का पद ग्रहण किया और फिर 5 फरवरी को विधायक दल की नेता चुन ली गईं. दोनों पदों पर एक साथ काबिज रहना दरअसल एमजीआर और जयललिता की ही परंपरा को आगे बढ़ाना था.
जयललिता की पहचान रही हरी साड़ी और ब्लाउज में पार्टी के विधायकों को संबोधित करते हुए भावुक शशिकला ने कहा, ''मैंने पार्टी का महसचिव पद हमारे नेताओं के लगातार जिद करने के कारण स्वीकार किया है. मैं ऐसा करने के मूड में नहीं थी. अब, आपकी भावनाओं की कद्र करते हुए कि एक ही व्यक्ति को महासचिव और मुख्यमंत्री के पद पर होना चाहिए, मैं आपकी मांग को स्वीकार करती हूं. मुझे यह जिम्मेदारी इसलिए स्वीकार करनी पड़ी क्योंकि यह अपील अम्मा के प्यारे बच्चों की ओर से थी.'' शशिकला एक ऐसे एकल कमान की तरह हैं जो विधायकों को बांधकर रखेंगी. पन्नीरसेल्वम की कैबिनेट में दो मंत्रियों का कहना था कि उनका सीएम बनना तो पहले से तय था, ''हालांकि वे अम्मा जैसी शख्सियत नहीं बन सकतीं.''
जयललिता को राजनीति में लगातार सीढिय़ां चढ़ता देख शशिकला को इतना अनुभव हो चुका है कि यह सब उनके लिए आसान जान पड़ता है. कुछ राजनैतिक विश्लेषकों का दावा है कि 2016 के विधानसभा चुनावों से काफी पहले शशिकला और तमिलनाडु सरकार में अफसर रहे उनके पति एम. नटराजन ने अंदाजा लगा लिया था कि जयललिता के दिन अब गिने-चुने ही बचे हैं, तभी उन्होंने मुख्यमंत्री की कुर्सी हथियाने की योजना बना ली थी. उस वक्त तक किडनी की बीमारी और नियमित डायलिसिस के चलते जयललिता का मधुमेह काफी बढ़ चुका था. फर्क बस इतना है कि शशिकला में जयललिता जैसा तेज दिमाग नहीं है जो पार्टी में एकजुटता के साथ-साथ अपने करिश्माई व्यक्तित्व का जादू कायम रख सके.
शशिकला अगर कामयाब रहीं, तो इसकी एक वजह उनकी मामूली पृष्ठभूमि और तेज उभार होगा. आज वे साठ साल की उम्र पार कर चुकी हैं और कभी तंजावुर जिले का हिस्सा रहे तिरुतुरैपुंडी कस्बे से निकलकर 1973 में नटराजन से शादी करने के बाद काफी लंबा सफर तय कर चुकी हैं.
नटराजन ने उन्हें 1980 के दशक में चेन्नै के माइलापुर में वीडियो कैसेट किराए पर देने और रिकॉर्डिंग करने वाली एक दुकान विनोद वीडियो विजन खोलने के लिए प्रेरित किया था. उस जमाने में राजनैतिक घटनाओं की वीडियो फिल्म बनाने का चलन शुरू हो चुका था. निर्णायक मोड़ तब आया जब दक्षिणी आरकोट के तत्कालीन जिला कलेक्टर वी.एस. चंद्रलेखा ने उन्हें कुड्डलूर में आयोजित एआइएडीएमके की रैली के दौरान राजनीति में जयललिता के औपचारिक प्रवेश को फिल्माने का मौका दिया.
शशिकला ने जयललिता पर ऐसा सकारात्मक असर डाला कि दोनों की दोस्ती फलने लगी. एमजीआर के गुजरने के एकाध साल बाद शशिकला और नटराजन, दोनों ही जयललिता के पोएस गार्डेन स्थित आवास का हिस्सा बन गए. जल्द ही इस दंपती के राजनैतिक दखलअंदाजी के आरोपों के चलते नटराजन को उन्होंने वहां से बाहर निकाल दिया लेकिन शशिकला वहीं बनी रहीं. जयललिता जब पहली बार 1991 में मुख्यमंत्री बनीं, उसके बाद आरोप लगे कि शशिकला और उनके रिश्तेदार संविधानेतर भूमिका निभा रहे हैं. इसके बावजूद उन्होंने शशिकला को अपने साथ बनाए रखा. इतना ही नहीं, जयललिता ने शशिकला के भतीजे वी.एन. सुधाकरन की शादी का भी आयोजन किया. दोनों की परस्पर निर्भरता मजबूत होती गई और जब फेरा उल्लंघन के मामले में शशिकला को गिरफ्तार किया गया, तब जयललिता का कहना था कि उन्हें ''बफादारी की सजा'' दी जा रही है.
इन सबसे विचलित हुए बगैर शशिकला ने उन्हीं दिनों से अपना एक विस्तारित और भरोसेमंद कुनबा विकसित करना शुरू किया जिसे मन्नारगुड़ी समूह कहा जाता है. इसने जयललिता के पीठ पीछे एआइएडीएमके पर जबरदस्त पकड़ बनाए रखी. शशिकला को केवल जयललिता की कार्यशैली आती है और कुछ मामलों में तो वे उसकी जनक भी रही हैं. अब वे एक नया मुख्यमंत्री कार्यालय बनाने जा रही हैं जहां वे उन लोगों को रखेंगी जिन्हें उनके कुनबे और पति का भरोसा प्राप्त है. इसके साथ ही वे मंत्रियों के विभाग बदलेंगी, असरदार नेताओं को पार्टी के आला पदों पर नियुक्त करेंगी और संभावित असहमतियों को पनपने से रोकने की कोशिश करेंगी. नाम न छापने की शर्त पर एक पूर्व नौकरशाह कहते हैं, ''उनका राजनैतिक नजरिया साधारण हैः लोगों में लोकप्रियता बनाए रखो और अपने दफ्तर के लाभ अपने कुनबे, कुछ पार्टी सहयोगियों और कुछ नौकरशाहों के साथ बांटो.''
शशिकला को एक और जगह से विरोध झेलना पड़ सकता है. जयललिता की भतीजी दीपा जयकुमार जिन्होंने जयललिता के जन्मदिन 24 फरवरी के दिन को उनकी राजनैतिक विरासत पर दावे की आखिरी समयसीमा के रूप में तय किया है. वे राज्य में एक प्रचार दौरा करने के बाद हो सकता है कि शशिकला से असंतुष्ट नेताओं के समूह का नेतृत्व करें.
मुख्यमंत्री बने रहने के लिए शशिकला को छह माह के भीतर कहीं से चुनाव लडऩा होगा. जाहिर है, वे चेन्नै की आर.के. नगर सीट को नहीं चुनेंगी, जहां से जयललिता चुनी गई थीं और जिस पर दीपा के खड़े होने की योजना है. वे कावेरी डेल्टा स्थित अपने गृहक्षेत्र की सीट भी शायद न चुनें. डीएमके शशिकला को निशाना बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ेगी. इसीलिए शशिकला ऐसी आसान सीट को चुन सकती हैं जो राज्य के दक्षिणी इलाके में हो, संभवतः मदुरै की उसिलमपट्टी या तेनि जिले की अंदीपट्टी सीट जहां प्रभावी थेवर समुदाय का दबदबा है.