
पश्चिम बंगाल के 24 परगना जिले में एक निर्माणाधीन भवन में चल रहे अस्पताल में न तो अत्याधुनिक चिकित्सा का कोई उपकरण है और न ही वातानुकूलित परिवेश, फिर भी ये चर्चा में है. वजह है कि इसे बनाने वाले एक टैक्सी ड्राइवर हैं और यहां गरीब इलाज के लिए आते हैं. उन्होंने डोनेशन और सेविंग के पैसे से अस्पताल तैयार करवाया है.
सैदुल के बड़े सपने देखने और उसे साकार करने के जुनून से काफी लोग प्रभावित हुए हैं. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने 'मन की बात' कार्यक्रम में सैदुल के प्रयासों की सराहना की थी. 40 वर्षीय टैक्सी ड्राइवर ने कहा कि मोदी द्वारा अस्पताल के बारे में चर्चा करने से वह काफी उत्साहित हुए हैं.
आईएएनएस के मुताबिक, टैक्सी ड्राइवर सैदुल लश्कर ने 2004 में अपनी बहन मारुफा के असामयिक निधन के बाद गरीबों के इलाज के लिए अस्पताल बनाने का फैसला किया था. छाती में संक्रमण होने से महज 17 साल की उम्र में मारुफा की मौत हो गई थी. सैदुल के पास उस समय उतने पैसे नहीं थे कि वह दूर शहर जाकर बड़े अस्पताल में अपनी बहन का इलाज करवाते.
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कोलकाता से करीब 55 किलोमीटर दूर बरुईपुर के पास पुनरी गांव में मारुफा स्मृति वेल्फेयर फाउंडेशन के नवनिर्मित मरीजों के वेटिंग हॉल की दीवार के सहारे खड़े सैदुल ने कहा- मुझे ऐसा महसूस हुआ कि कुछ करना चाहिए ताकि मेरी बहन की तरह इलाज के साधन के अभाव में गरीबों को अपनी जान न गंवाना पड़े.
वे टैक्सी चलाते समय अपनी गाड़ी में बैठे पैसेंजर को अपने कागजात व लोगों से मिले दान की पर्चियां दिखाते, मगर अधिकांश लोग उनकी कोई मदद करने से इनकार कर देते थे.
हालांकि कुछ लोगों ने उनकी मदद भी की. उन्होंने कहा- पत्नी हमेशा मेरे साथ खड़ी रहीं. उन्होंने जमीन के वास्ते पैसे जुटाने के लिए मुझे अपने सारे गहने दे दिए.
आखिरकार, फरवरी 2017 को अस्पताल शुरू होने पर सैदुल का सपना साकार हुआ. अस्पताल जाते समय ई-रिक्शा चालक सोजोल दास ने बताया- हर तरफ अब चर्चा होती है और इलाके में अस्पताल के बारे में लोग बातें करते हैं.
अब इस अस्पताल को 50 बिस्तरों से सुसज्जित और एक्स-रे व ईसीजी की सुविधा से लैस बनाने की दिशा में काम चल रहा है. सैदुल ने कहा- वर्तमान में यह दोमंजिला भवन है लेकिन हमारी योजना इसे चार मंजिला बनाने की है.