
तेलंगाना की सियासी ज़मीन एकदम से नायाब है। यह सिर्फ इसलिए नहीं की भारत के इस सबसे नए राज्य में पहली बार चुनाव हो रहा है। वजह है यहां सियासत के पांच खिलाड़ी,सियासी पिच पर एक समय मे ही राजनीति के दो खेल, खेल रहे हैं।
जिन पांच राज्यों के विधान सभा चुनाव एक साथ घोषित हुए उनमे छत्तीशगढ़, मिजोरम और मध्य प्रदेश के चुनाव हो गए। राजस्थान और तेलंगाना में 7 दिसम्बर को वोट पड़ेंगे। तेलंगाना के अलावा बांकी के चार राज्यों में मुकाबला सत्ताधारी और मुख्य विपक्षी दल के बीच है। यह बात वैसे तो तेलंगाना पर भी लागू है लेकिन यहां का चुनाव अलग इसलिए है क्योंकि यहां के चुनाव नतीजे 2019 के लोकसभा चुनाव में मोदी के खिलाफ बनने बाले गठबंधन की न सिर्फ नीव रखेंगे, बल्कि उसकी ताकत और जोश का मुजायरा भी करेंगे। इस बात को भाजपा भी समझ रही है और, मोदी विरोधी सियासी दलों को भी यह बात अछी तरह समझ आ रही है।ये है सियासी खेल
तेलंगाना के मुख्यमंत्री के.चंद्रशेखर राव ने केंद्र में मोदी के खिलाफ तीसरा मोर्चा बनाने की पहल की थी। इसके लिए वो पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी से भी मुलाकात कर तीसरा मोर्चा बनाने का ऐलान किया था। बाद में जब आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री चंद्रबाबू नायडू ने भाजपा से नाता तोड़ लिया तो, चंद्रशेखर राव ने तीसरे मोर्चे की बात करनी छोड़ दी और मोदी के करीब आने लगे। राव ने समय से आठ महीना पहले तेलंगाना विधानसभा भंग कर दी और चुनाव में उतर गए। सूत्रों का कहना है, समय से पहले विधान सभा भंग करने का फैसला उन्होंने इसलिए लिया क्योंकि उनका आंकलन था कि राज्य में उनके खिलाफ सिर्फ कांग्रेस एक मुख्य विरोधी दल होगी। ऐसे में मजबूत विपक्ष के अभाव में वो एमआईएम (औवेसी की पार्टी) से समझौता कर बड़ा बहुमत हासिल कर लेंगे।
विधान सभा चुनाव निपटने के बाद उनके पास, एनडीए के साथ जाने में किसी तरह की दिक्कत नही है। चूंकि राज्य में मुस्लिमों की आबादी 14 फीसदी से अधिक है और राज्य के 40 विधानसभा सीटों पर मुस्लिमो का अच्छा प्रभाव है इस कारण विधान सभा चुनाव से पहले एनडीए के साथ जाने से उन्हें नुकसान होने का खतरा महसूस हो रहा था। दूसरी वजह यह थी कि यदि राव विधानसभा चुनाव से पहले एनडीए में जाते तो एमआईएम, कांग्रेस के साथ जा सकती थी ऐसे में राज्य में अपेक्षाकृत कमजोर विपक्ष(कांग्रेस) को मजबूती मिलती। लिहाज उन्होंने एनडीए में जाने का पत्ता खोले बिना, विधान सभा के चुनाव में जाने का फैसला कर लिया।
नायडू ने बिछाई बिसात
राव को इस बात का अंदाजा भी नही था विधानसभा भंग करने के फैसले के एक हफ्ते बाद ही उनके सामने बड़ी चुनोती आ खड़ी होगी। आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री चंद्रबाबू नायडू ने सप्ताह भर के अंदर ही, कट्टर विरोधी कांग्रेस के साथ मिलकर तेलंगाना में चुनाव लड़ने का ऐलान कर दिया। कांग्रेस ने भी हाथ मिलाया। फिर तेलंगाना जनसमिति और बामपंथी दल ने मिल कर टीआरएस के खिलाफ प्रजाकुटमी बना दिया। यह गठबंधन तेलंगाना में राव को मजबूत टक्कर दे रहा है। प्रजाकुटमी तेलंगाना में यह चर्चा करने में सफल हो रहा है कि टीआरएस, मोदी के साथ है। कांग्रेस के लोकसभा में नेता मल्लिकार्जुन खड़गे का कहना है कि 'टीआरएस, भाजपा की बी टीम है'।
शाह की शियासत
भाजपा के सबसे सफल रणनीतिकार, पार्टी अध्य्क्ष अमित शाह 2019 के लिहाज से तेलंगाना में अपने मुहरे चल रहे हैं। भाजपा नेता परोक्ष रूप से कहते हैं कि, तेलंगाना में हमारी ताकत इतनी नही की सरकार बना लें। ऐसे में हमारा दो मकसद है। पहला तो यह कि हम पिछली बार की 5 सीटों की संख्या बढ़ाकर 10 कर लें। यदि हुआ और टीआरएस को सरकार बनाने के लिए कुछ बिधायको की कमी हो तो भाजपा, सरकार बनाने में भूमिका निभा सकती है।
दूसरा यह कि, जो वोट भाजपा को नही मिलते है (मुस्लिम) वो वोट विरोधी दलों (कांग्रेस-टीडीपी) के पास जाने से, भाजपा के घोषित या परोक्ष मददगार (टीआरएस) को मिले। दूसरे लिहाज से तेलंगाना का मुस्लिम वोट भाजपा के माफिक जगह पर जाए इसका माहौल बन रहा है और भाजपा इसके लिए कोशिश भी कर रही है।कुल मिलाकर तेलंगाना के 1 सियासी पिच पर शियासत के 2 खेल, 5 खिलाड़ी (टीआरएस, टीडीपी, कांग्रेस, एमआईएम और भाजपा) 1 साथ खेल रही है। 11 दिसम्बर को चुनाव नतीजों के दिन पता चलेगा कि खेल क्या हो रहा था और जीता कोन।
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