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ग्राउंड रिपोर्ट, देखें चीन बॉर्डर पर कैसी है भारत की तैयारियां

ऐसा ही ख़राब हाल अरुणाचल में रेल का है. भालुक पौंग रेलवे स्टेशन अरुणाचल का आखिरी रेलवे स्टेशन है. अगस्त 2015 में गृहराज्य मंत्री किरन रिजीजू ने इसका उद्घाटन किया था.

आज तक की ग्राउंड रिपोर्ट आज तक की ग्राउंड रिपोर्ट
मंजीत नेगी
  • गंगटोक,
  • 29 जून 2017,
  • अपडेटेड 2:22 PM IST

पहली बार सिक्किम सरहद पर चीन अपनी दादागिरी पर उतरा हुआ है, लेकिन एक कड़वी हकीकत यह है कि गोवाहाटी से उत्तर पूर्व की ज्यादातर सड़के खस्ताहाल हैं. मसलन तवांग पहुंचने में सेना के जवानों को दो दिन लगते हैं. गोवाहाटी से तवांग तक जाने के लिए सिर्फ एक रोड है और वह भी खस्ता हाल है. खासतौर से भालुक पौंग से लेकर तवांग तक पहुंचने वाली सड़क पर लैंड स्लाइड के कारण जगह-जगह सेना की गाड़ियों के काफिले फंस जाते हैं. आजतक ने ग्राउंड ज़ीरो पर सरहद पर खस्ताहाल इंफ्रास्ट्रक्चर का जायजा लिया.

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ऐसा ही ख़राब हाल अरुणाचल में रेल का है. भालुक पौंग रेलवे स्टेशन अरुणाचल का आखिरी रेलवे स्टेशन है. अगस्त 2015 में गृहराज्य मंत्री किरन रिजीजू ने इसका उद्घाटन किया था. इसके आगे पटरियों की रफ़्तार रुक गयी है. हालांकि लंबे समय से चीन से लगने वाली सरहद तक रेल पहुंचाने की योजना है, लेकिन अभी तक रफ़्तार नहीं पकड़ पाई. हमनें अरुणाचल के इस आखिरी स्टेशन का जायजा लिया. स्टेशन मास्टर पीके गोस्वामी ने बताया कि यहां पर पूरे दिन में एक ट्रेन आती है.

चीन से निपटने के लिए बॉर्डर इंफ्रास्ट्रक्चर सुधार जरूरी

अरुणाचल प्रदेश के लगभग 90,000 वर्ग किलोमीटर भी भारत-चीन के बीच लगातार विवाद का विषय रहा है. अरुणाचल प्रदेश के इस क्षेत्र को चीन दक्षिण तिब्बत से जुड़े होने का दावा करता है. इसके अलावा जम्मू-कश्मीर का कुछ क्षेत्र भी विवाद में है. भारत के मुताबिक 1962 के युद्ध के बाद चीन ने उत्तरी जम्मू-कश्मीर के अक्साई चिन क्षेत्र के लगभग 30,000 वर्ग किलोमीटर पर अवैध रुप से कब्जा कर लिया है. सेना के आला अधिकारियों के मुताबिक चीन से निपटने के लिए बॉर्डर इंफ्रास्ट्रक्चर में सुधार सबसे जरुरी है.

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गुवाहाटी से तवांग तक वैकल्पिक रोड

चीन के खिलाफ तैयारी के तहत गुवाहाटी से तवांग तक एक और वैकल्पिक रोड चाहिए. बारिश के मौसम में भालुक पोंग से तवांग तक रास्ता बंद हो जाता है, जिसके लिए बाईपास सडकें बननी चाहिए. तवांग ब्रिगेड के कमांडर ब्रिगेडियर डीएस कुशवाहा ने कहा कि चीन भारत से लगने वाली सरहद पर छह हवाई अड्डों के अलावा सैन्य विमान एवं समर्थन प्रणाली के विस्तार में लगा है. इसमें हवा से हवा में ईंधन भरने की क्षमता, हवाई अग्रिम चेतावनी प्रणाली, सेंसर, एयर डिफेंस सिस्टम और मिसाइल शामिल हैं.

इसके जवाब में भारत ने अरुणाचल प्रदेश के तवांग, मेचुका, विजयनगर, तूतिंग, पासीघाट, वालांग, जाइरो में एडवांस लैंडिंग ग्राउंड बनाने का काम शुरू किया है. इन लैंडिग ग्राउंड बनाने में 720 करोड़ रुपये की लागत आएगी. इसके साथ ही वायुसेना असम के चाबुआ और तेजपुर हवाई अड्डों पर सुखोई-30 एमकेआई विमान तैनात कर रहा है. सुखोई-30 एमकेआई कम से कम 15 मिनट में चीन सरहद की दूरी तय कर सकते है. हाल के सालों में भारत ने कैसे मूलभूत सुविधाओं का विकास तेज किया है.

साल 1962 की जंग में 862 सैन्य कर्मी हुए थे शहीद

चीन से लगने वाली सरहद पर तवांग से 100 किलोमीटर पहले न्युकमाडोंग में साल1962 में एक बड़ी जंग लड़ी गई थी. 18 नवंबर 1962 को ब्रिगेडियर होशियार सिंह के नेतृत्व में हुई जंग में चीन के साथ लड़ते हुए 862 जवान और ऑफिसर शहीद हुए थे. इनकी याद में न्युकमाडोंग में स्मारक बनाया गया है. नगा रेजिमेंट के लेफ्टिनेंट कर्नल विमलेश कुमार ने बताया कि गुवाहाटी से तवांग जाने के रास्ते में लगभग 12,000 फीट की ऊंचाई पर बना जसवंत युद्ध स्मारक भारत और चीन के बीच साल 1962 में हुए युद्ध में शहीद हुए महावीर चक्र विजेता सूबेदार जसवंत सिंह रावत के शौर्य व बलिदान की गाथा बयां करता है. उनकी शहादत की कहानी आज भी यहां पहुंचने वालों के रोंगटे खड़े करती है और उनसे जुड़ी किंवदंतियां हर राहगीर को रुकने और उन्हें नमन करने को मजबूर करती हैं.

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जसवंत सिंह तीन दिन तक अकेले ही चीनी सेना को चटाते रहे धूल

साल 1962 के युद्ध में वीरगति को प्राप्त हुए जसवंत सिंह की शहादत से जुड़ी सच्चाई बहुत कम लोगों को पता हैं. उन्होंने अकेले 72 घंटे चीनी सैनिकों का मुकाबला किया और विभिन्न चौकियों से दुश्मनों पर लगातार हमले करते रहे. जसवंत सिंह से जुड़ा यह वाकया 17 नवंबर 1962 का है, जब चीनी सेना तवांग से आगे निकलते हुए नूरानांग पहुंच गई. इसी दिन नूरानांग में भारतीय सेना और चीनी सैनिकों के बीच लड़ाई शुरू हुई और तब तक परमवीर चक्र विजेता जोगिंदर सिंह, लांस नायक त्रिलोकी सिंह नेगी और राइफलमैन गोपाल सिंह गोसाईं सहित सैकड़ों सैनिक वीरगति को प्राप्त हो चुके थे.

गढ़वाल राइफल की चौथी बटालियन में तैनात जसवंत सिंह रावत ने अकेले नूरानांग का मोर्चा संभाला और लगातार तीन दिनों तक वह अलग-अलग बंकरों में जाकर गोलीबारी करते रहे और उन्होंने अपनी लड़ाई जारी रखी. सूबेदार कुलदीप सिंह बताते हैं कि जसंवत सिंह की ओर से अलग-अलग बंकरों से जब गोलीबारी की जाती तो चीनी सैनिकों को लगता कि यहां भारी संख्या में भारतीय सैनिक मौजूद हैं. इसके बाद चीनी सैनिकों ने अपनी रणनीति बदलते हुए उस सेक्टर को चारों ओर से घेर लिया. तीन दिन बाद जसवंत सिंह चीनी सैनिकों से घिर गए.

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भारत ने चीन से निपटने को तैनात की ब्रह्मोस मिसाइल

चीन कभी शांत नहीं रहा है. वह अपनी कोई न कोई हरकत करके इस मुद्दे को गर्म रखता है. सीमा पर चीन की चुनौती से निपटने के लिए भारत ने अरुणाचल प्रदेश में ब्रह्मोस मिसाइल तैनात करने का फ़ैसला करना पड़ा. यह चीन के खिलाफ़ भारत की पहली आक्रामक और रणनीतिक तैनाती मानी गई. इसके बाद 290 किलोमीटर दूर निशाने को भेदने वाली ब्रह्मोस को तिब्बत इलाके में भारतीय सेना की पहुंच आसान करने और चीनी मिसाइलों का मुकाबला करने के लिए तैनात किया गया. चीन को इस पर भी बहुत एतराज था.

 

 

 

 

 

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