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आतंकवाद ने पड़ोसी मुल्क पाकिस्तान में न सिर्फ खून बहाया है बल्कि वहां की अर्थव्यवस्था को इससे करोड़ों का नुकसान भी हुआ है. पाकिस्तान आर्थिक सर्वेक्षण से मिली जानकारी के मुताबिक, 2004-05 से 2014-15 के बीच करीब पाकिस्तान को 6.4 लाख करोड़ रुपये (करीब 100 अरब डॉलर) का नुकसान हुआ है.
साल 2014-15 की इस सर्वेक्षण रिपोर्ट का आंकड़ा बताता है कि यह राशि वर्तमान कैलेंडर वर्ष के आधार पर 134 साल के लिए पाकिस्तान के शिक्षा बजट के बराबर है. 2013-14 में देश को 6.63 अरब डॉलर नुकसान हुआ, जिसमें से 38 फीसदी नुकसान कर वसूली में हुआ और 30 फीसदी नुकसान विदेशी निवेश में गिरावट के कारण हुआ.
अफगानिस्तान की अस्थिरता बना कारण
पाकिस्तान का दावा है कि 11 सितंबर 2001 में अमेरिका के विश्व व्यापार केंद्र पर हुए हमले के बाद अफगानिस्तान में पैदा हुई अस्थिरता से देश में आतंकवाद बढ़ा है. अफगानिस्तान पर अमेरिकी हमले के कारण पाकिस्तान के कबायली इलाकों में शरणार्थियों का आगमन बढ़ा. आर्थिक सर्वेक्षण में इसे आतंकवादी गतिविधियों में वृद्धि का एक प्रमुख कारण बताया गया है. पाकिस्तान की विकास दर 2014-15 में 4.2 फीसदी थी.
मौत का आंकड़ा
नई दिल्ली के इंस्टीट्यूट ऑफ कनफ्लिक्ट मैनेजमेंट से जुड़े एक संस्थान साउथ एशिया टेररिज्म पोर्टल (एसएटीपी) के एक आंकड़े के मुताबिक 2005 से अब तक पाकिस्तान में आतंकवाद से संबंधित 54,960 मौतें हुई हैं. गत एक दशक में इन मौतों में 748 फीसदी वृद्धि दर्ज की गई है. सर्वेक्षण में कहा गया है कि आतंकवाद के कारण उत्पादन चक्र तहस-नहस हो गया है. निर्यात में व्यवधान पैदा हुआ है और कारोबारी लागत बढ़ी है. पाकिस्तानी उत्पाद प्रतिस्पर्धा में पिछड़ते जा रहे हैं.
सिडनी के थिंक टैंक इंस्टीट्यूट फॉर इकनॉमिक्स एंड पीस द्वारा प्रकाशित 2015 के वैश्विक शांति सूचकांक में 162 देशों पाकिस्तान को 154वां स्थान मिला है, जबकि भारत को 143वां स्थान दिया गया है. एसएटीपी के मुताबिक पश्चिमोत्तर पाकिस्तान का फेडरली-एडमिनिस्टर्ड ट्राइबल एरियाज (एफएटीए) देश के सबसे अधिक आतंकवाद प्रभावित क्षेत्र हैं. 2014 में आतंकवाद से संबंधित आधी मौतें इसी क्षेत्र में हुई.
सिंध और बलूचिस्तान की हिस्सेदारी
इन मौतों में सिंध की 21 फीसदी और बलूचिस्तान की 12 फीसदी हिस्सेदारी रही. इसी क्षेत्र से तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान (टीटीपी) का संचालन होता है, जिसकी स्थापना 2007 में हुई थी. मौलाना फजलुल्लाह अभी इसका प्रमुख है. यह अफगानिस्तान के तालिबान से अलग है, जिसकी स्थापना पाकिस्तान ने ही 1990 के दशक में की थी.
गत वर्ष पेशावर में एक सैन्य स्कूल में टीटीपी ने ही हमला किया था, जिसमें 130 से अधिक बच्चों की मौत हो गई थी. यह हमला पाकिस्तानी सेना द्वारा 15 जून 2014 को आतंवादियों के विरुद्ध शुरू किए गए जर्ब-ए-अज्ब अभियान के खिलाफ किया गया था. इस अभियान के तहत गत एक साल में 2,763 आतंकवादियों की मौतें हुई हैं.
अमेरिकी विदेश मंत्रालय के मुताबिक, हालांकि पाकिस्तान का यह अभियान टीटीपी जैसे आतंकवादियों के कुछ खास समूहों के विरुद्ध ही है, जबकि अफगान तालिबान और हक्कानी नेटवर्क के आतंकवादियों को इसमें निशाना नहीं बनाया जा रहा है. अमेरिकी रिपोर्ट में कहा गया है कि इस अभियान में भारत विरोधी लश्कर-ए-तैयबा को भी निशाना नहीं बनाया जा रहा है, जबकि आतंकवाद भारत और पाकिस्तान के बीच एक बड़ा मुद्दा है.
-इनपुट IANS से