अमरना राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआइए) और तेलंगाना पुलिस की संयुक्त टास्क फोर्स ने 29 जून की देर रात हैदराबाद में 11 लड़कों को गिरफ्तार किया. अगले दिन शहर में 10 जगहों पर छापे मारे जाने और तेजी से इस्लामिक स्टेट (आइएस) की खतरनाक योजना के खुलासे के बाद पांच और लड़कों को गिरफ्तार कर लिया गया. आइएस से जुड़े मॉड्यूल ने शहर भर में देसी बमों (आइईडी) से विस्फोट करने की योजना बना रखी थी. यह एक भयावह साजिश थी, जो शहर में अफरा-तफरी मचाने की इस्लामी चरमपंथियों की पहले की कोशिशों से एक कदम आगे की योजना थी.
आइएस का जाल अभी भारत में नहीं फैला है, फिर भी उसने उपमहाद्वीप के देशों में आतंकी हमले करने के लिए कुछ लड़कों को भर्ती किया है और मॉड्यूल बना लिए हैं. इसके लिए उसने सोशल मीडिया का इस्तेमाल किया है. अभी हाल तक उसकी कोशिश लड़कों को भर्ती करने और उन्हें इराक और सीरिया में अपने कब्जे वाले इलाकों में लड़ाई के लिए भेजने की थी. पिछले दो साल में भारतीय सुरक्षा एजेंसियों की ओर से की गई 49 गिरफ्तारियों—25 को एनआइए ने और 24 को तेलंगाना, महाराष्ट्र, दिल्ली और तमिलनाडु की पुलिस ने पकड़ा था—में से ज्यादातर आइएस से प्रेरित लड़के थे. वे दूसरों की भर्ती करने में लगे थे या तुर्की जाने की फिराक में थे, जहां से सरहद पार करके वे आइएस के इलाके में चले जाते. उस वक्त यह हमारे लिए ज्यादा बड़ा खतरा नहीं दिख रहा था. आइएस के इलाके में जाने वाले चार छात्रों में से जिंदा वापस लौटने वाला थाणे का सिविल इंजीनियर अरीब मजीद अकेला युवक था. उसे एनआइए ने गिरफ्तार किया था और ठाणे में उस पर मुकदमा चल रहा है.
खुफिया अधिकारी बताते हैं कि इस साल आइएस की योजना में बड़ा बदलाव देखा जा रहा है. सीरिया और इराक में आइएस के 'खिलाफत' (इस्लामी राज्य) पर अमेरिकी नेतृत्व वाली गठबंधन सेना की ओर से भारी हमले हो रहे हैं. इसके चलते आइएस के कब्जे वाला इलाका 20 फीसदी तक सिकुड़ चुका है और अब नए रंगरूटों के लिए सीरिया और इराक जाना बहुत दुश्वार हो गया है. इसलिए आइएस की ओर से सोशल मीडिया के जरिए लड़कों को भर्ती के लिए उकसाने वाले उन्हें अपने-अपने देशों में हमले करने के लिए कह रहे हैं. यह 'फ्रेंचाइजी मॉडल' अब बड़ा खतरा बन गया है. भारतीय सुरक्षा एजेंसियां चिंतित हैं, क्योंकि अब आइएस से प्रेरित संगठनों की ओर से खतरा बढ़ गया है. तेलंगाना पुलिस की ओर से अब तक जुटाई गई जानकारी से पता चलता है कि आइएस के पांच संदिग्धों को सीरिया से हैंडल करने वाला इंडियन मुजाहिदीन का 29 वर्षीय आतंकवादी शफी अरमार (जो कर्नाटक के भटकल का रहने वाला है) मॉड्यूल के कर्ताधर्ता 30 वर्षीय इब्राहीम यजदानी के लगातार संपर्क में था. इंजीनियरिंग ग्रेजुएट यजदानी ने भी तुर्की के रास्ते सीरिया जाने की कोशिश की थी, पर तुर्की के अधिकारियों ने उसे वीजा देने से मना कर दिया. हैदराबाद में यजदानी को आइएस के मॉड्यूल का 'अमीर' या मुखिया बनने में कुछ लोगों ने मदद की थी, जिनकी पहचान होनी अभी बाकी है.
खतरनाक फ्रेंचाइजी
ढाका में 1 जुलाई को आतंकी हमले ने बांग्लादेश स्थित इस्लामी आतंक और पश्चिम बंगाल तथा तेलंगाना के बीच संभावित संपर्कों के डर को ताजा कर दिया है. अक्तूबर 2014 में पश्चिम बंगाल में बर्दवान जिले के खगरागढ़ में हुए विस्फोट के मामले में 29 आरोपियों के संपर्क बांग्लादेश के कट्टरपंथी संगठन जमातुल मुजाहिदीन बांग्लादेश (जेएमबी) से थे और वे बम और हथगोले बना रहे थे. एनआइए ने पाया कि अवामी लीग सरकार की गलत नीतियों के कारण जेएमबी के समर्थक और उससे सहानुभूति रखने वाले लोग पूरे बंगाल में फैले थे. हैदराबाद की घटना से आइएस और मौजूदा आतंकी संगठनों के बीच संपर्क की बात साफ हो जाती है.
आइएस का मकसद इंडियन मुजाहिदीन (आइएम) जैसे संगठनों की बची-खुची ताकत को नई ऊर्जा देना है. आइएम ने 2007 और 2013 के बीच भारत के 10 शहरों में सीरियल धमाके किए थे. अरमार जैसे आतंकी नेता, जो भागकर विदेश चले गए थे, आइएस से जुड़े विभिन्न संगठनों जैसे अंसार-उत-तौहीद फी-बिलाद अल-हिंद (एयूटी, भारत में एकेश्वरवाद के समर्थक) के तहत दोबारा संगठित हो रहे हैं. वे पुराने नेटवर्कों और सहयोगियों को पुनर्जीवित करने तथा मौजूदा उग्रवादियों को अपने साथ जोडऩे पर भरोसा करते हैं. खासकर हैदराबाद आइएम की गतिविधियों का गढ़ रहा है. इस शहर का एक हिंसक अतीत रहा है.
हैदराबाद पुलिस अब बांग्लादेश और अफगानिस्तान के आतंकी संगठनों की ओर से इस शहर को अपना अड्डा बनाने के बारे में मिल रही चेतावनियों से जूझ रही है. हैदराबाद में सैकड़ों की संख्या में बांग्लादेशी प्रवासी अवैध रूप से रह रहे हैं. पुलिस उन्हें ईद के बाद देश से बाहर भेजने की योजना बना रही है.
यजदानी और उसके साथी किस वजह से आइएस के लिए काम करने को प्रेरित हुए, यह अभी स्पष्ट नहीं है, वैसे सभी पांच लड़के कट्टरपंथी थे. एक जांचकर्ता का कहना है कि लगता है, वे मॉड्यूल के केंद्र में थे, जो सहयोगी सिस्टम पर निर्भर रहता है. खतरनाक बात यह है कि विस्फोटक मंगाने और हमले की तैयारी करने के लिए कमांड की कड़ी तैयार करने में तीन महीने से भी कम वक्त लगा था.
सुरक्षा एजेंसियों को फिलहाल ऐसा कुछ नहीं मिला है जिससे पता चले कि आइएस से जुड़े ये संगठन पाकिस्तान स्थित लश्करे-तैयबा और जैश-ए-मुहम्मद जैसे संगठनों के मुकाबले ज्यादा बड़ा खतरा बन गए हैं. उनकी क्षमता इतनी ज्यादा नहीं है कि वे 26/11 के मुंबई हमले या गुरुदासपुर और पठानकोट जैसे हमले कर सकें, क्योंकि उनके पास ऊंचे दर्जे के प्रशिक्षित ऐसे कैडर नहीं हैं, जिन्हें सेना के स्तर का प्रशिक्षण, विस्फोटक और हथियार मिले हों. यही वजह है कि सुरक्षा के जानकार आइएस से जुड़े संगठनों को ज्यादा बड़ा खतरा नहीं मानते. नई दिल्ली स्थित इंस्टीट्यूट फॉर पीस ऐंड कान्फ्लिक्ट स्टडीज के कार्यकारी निदेशक अजय साहनी कहते हैं, ''साफ कहूं तो पहले से कुछ भी नहीं बदला है, न ही उनकी क्षमता के मामले में और न ही साधन या तकनीकी के मामले में. आइएस को लेकर बेवजह हो-हल्ला मचाया जा रहा है, जबकि हमें पता है कि आइएस की कथित इकाइयां दरअसल एयूटी जैसे मौजूदा संगठनों की शाखाएं हैं. '' लेकिन खुफिया एजेंसियां आइएस के खतरे को इतनी आसानी से खारिज करने के लिए तैयार नहीं हैं. एक खुफिया अधिकारी बताते हैं, ''हमारा पूरा सिस्टम इस समय पाकिस्तान से होने वाले आतंक की तरफ केंद्रित है, और निगरानी रखने वाले संपर्कों से मिली सूचनाओं पर भरोसा करता है, पर आइएस की इन नई इकाइयों पर निगरानी रखना ज्यादा कठिन है, क्योंकि वे देश में जगह-जगह फैली हुई हैं. '' हैदराबाद के आइएस मॉड्यूल का तरीका आइएम की कार्यप्रणाली से मिलता-जुलता है. अरमार ने हैदराबाद इकाई से कहा कि वह शहर में आतंकी हमले करने के लिए रात-दिन काम करके कई मॉड्यूल तैयार करे.
जांचकर्ता अब यजदानी की अगुआई वाले मॉड्यूल और जनवरी में पकड़े गए एक राष्ट्रीय स्तर के मॉड्यूल के बीच संबंधों का पता लगा रहे हैं, क्योंकि अरमार दोनों का संचालक था. उनका कहना है कि यजदानी मॉड्यूल ने महाराष्ट्र के नांदेड़ से 9 एमएम के दो पिस्तौल मंगाए थे, क्योंकि वह राजस्थान के अजमेर से इन्हें हासिल नहीं कर पाया था. माना जाता है कि अरमार के निर्देश पर मॉड्यूल के सदस्य इन दोनों जगहों पर गए थे. ये हथियार सिर्फ सहारे के लिए थे, जबकि मॉड्यूल के सदस्यों को आइईडी का ज्यादा से ज्यादा इस्तेमाल करने का निर्देश दिया गया था. एक वरिष्ठ खुफिया अधिकारी का कहना है, ''हम किसी हैंडलर की संभावना से इनकार नहीं कर सकते, जो दोनों ही मॉड्यूलों को विस्फोटकों की आपूर्ति के लिए एक ही कूरियर का इस्तेमाल कर रहा हो. ''
यजदानी उन लोगों में से एक है जिन्होंने मुस्लिम युवाओं पर ऑनलाइन नजर रखना शुरू किया है. कुछ 'एडवांस' मामलों में उनकी गैरकानूनी उग्र गतिविधियों के कारण भी उन्हें पहचान लिया जाता है. तेलंगाना पुलिस के एक वरिष्ठ अधिकारी कहते हैं, ''यह एक गंभीर खतरा है और अगर हम खुफिया सूचनाओं के आधार पर समय रहते कदम नहीं उठाते हैं तो यह हमले का रूप ले सकता है. ''
20 जून को पकड़े गए छह अन्य लड़कों की भूमिका ज्यादा गंभीर नहीं है. उनमें से तीन साइबर कैफे चला रहे थे. उन्होंने पुलिस के दिशानिर्देशों का पालन नहीं किया था, जिससे आतंकियों के लिए सोशल मीडिया का इस्तेमाल करना आसान हो सकता था. सभी साइबर कैफे के लिए पुलिस में रजिस्टर करना, ग्राहकों का आइडी रिकॉर्ड रखना और ग्राहकों का पता लगाने के लिए निगरानी कैमरे लगवाना अनिवार्य है ताकि लोग गैरकानूनी काम के लिए साइबर कैफे का इस्तेमाल करने से डरें.
वैसे आइएस से जुड़े लोगों की संख्या ज्यादा नहीं है, फिर भी पुलिस सूत्रों का कहना है कि सोशल मीडिया पर युवकों को भड़काकर सनसनीखेज वारदातों को अंजाम दिया जा सकता है. मुख्य रूप से हैदराबाद के मुसलमानों की पार्टी ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (एआइएमआइएम) उनके समर्थन में हर मौके की तलाश में रहती है और सियासी लाभ लेने की फिराक में है, खासकर उत्तर प्रदेश में, जहां वह अगला विधानसभा चुनाव लडऩे की योजना बना रही है. एआइएमआइएम के प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी ने घोषणा की है कि उनकी पार्टी उन लोगों को कानूनी मदद मुहैया कराएगी जिन्हें एनआइए ने गिरफ्तार किया है. वे कहते हैं, ''इसे मुद्दा क्यों बनाया जा रहा है. मैंने कुछ भी गलत नहीं किया है. जिन लोगों को गिरफ्तार किया गया है, उनके रिश्तेदार और माता-पिता मेरे पास आए और बताया कि आइएस से उनका कोई नाता नहीं है. '' अहम बात यह है कि ओवैसी कई बार आइएस के खिलाफ बोल चुके हैं. उधर आइएस भी अपने कई वीडियो में उन्हें गैर-मुस्लिम बता चुका है. वे कहते हैं, ''इसे सैनिक और वैचारिक रूप से कुचलने की जरूरत है. '' लेकिन गिरफ्तार किए गए लड़कों के समर्थन में उनके उतरने से बवाल खड़ा हो गया है और ओवैसी के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की मांग की जा रही है. विडंबना कि यह कट्टरता ऐसे वक्त में उभर रही है जब तेलंगाना के मुख्यमंत्री के. चंद्रशेखर राव ने शिक्षा और रोजगार को बढ़ावा देने के लिए कई कदम उठाए हैं.
पुलिस वामपंथी उग्रवाद से निबटने के अपने पूर्व अनुभवों को देखते हुए मानती है कि आतंकवाद से निबटने के लिए शिक्षा एक बेहतर उपाय है. एक खुफिया अधिकारी कहते हैं, ''इसका कारण यह है कि सीखने की उम्र में युवक अपना दिमाग सिर्फ सोशल मीडिया तक सीमित रखते हैं, क्योंकि वे कई घंटों तक इसमें लगे होते हैं. सोशल मीडिया पर ज्यादा समय लगाने से वे परिवार और समाज से कट जाते हैं. '' कट्टरपंथ से प्रभावित युवकों को समझाने की रणनीति के तहत पुलिस उनसे अलग-अलग बात करती है या फिर उनके परिजनों या करीबियों के जरिए. लेकिन इस रणनीति से सुरक्षा एजेंसियां ज्यादा सहमत नहीं हैं. उनका कहना है कि सोशल मीडिया से प्रभावित लोग दोबारा गलत राह पर जा सकते हैं, जैसा कि पूर्व माओवादियों के मामलों में देखा गया है. 2015 में सीरिया जाने की कोशिश में पकड़े गए कम से कम दो युवाओं में ऐसा ही देखा गया है, क्योंकि उन्हें 2014 में तेलंगाना मॉडल के जरिए समझाने की प्रक्रिया से गुजर चुके थे.
पुलिस के मुताबिक, मुस्लिम विद्वानों और विचारकों का सक्रिय न होना और इस्लाम की सही व्याख्या करने के लिए सोशल मीडिया पर उनकी मौजूदगी न के बराबर होने से कट्टरपंथियों को युवकों को बरगलाने का मौका मिल जाता है. यही वजह है कि बढ़ता कट्टरपंथ हैदराबाद को बारूद के ढेर पर खड़ा करता जा रहा है
—साथ में रोमिता दत्ता