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आतंक का नया चेहरा लिए सिमी

सिमी पर प्रतिबंध बरकरार होने के बावजूद इसका एक अति उग्र धड़ा फिर से सिर उठा रहा है, बोधगया बम धमाके और मोदी की पटना रैली में हुए हमले में इसका हाथ था.

राहुल त्रिपाठी
  • नई दिल्ली,
  • 12 अगस्त 2014,
  • अपडेटेड 3:24 PM IST

इराम लॉज, रांची, 15 अक्तूबर, 2013. बोधगया में महाबोधि मंदिर पर दुस्साहसी हमले के तीन महीने बाद 30 साल के अबू फैजल ने अपने दोस्त मुजीबुल्ला के फोन को खोलना शुरू किया. फैजल कभी इंदौर में होम्योपैथी का कोर्स कर रहा था और अब भगोड़ा घोषित हो चुका है. दोनों अपने दोस्तों के साथ एक कमरे में छिपे थे.

फोन को खंगालते हुए फैजल एक ऑडियो क्लिप पर रुका जिसे रांची के दरोंडा कॉलेज के मनोविज्ञान के छात्र हैदर अली, उर्फ ब्लैक ब्यूटी ने अपनी आवाज में तैयार किया था. क्लिप में उस साल 7 जुलाई को बोधगया में विस्फोटों की जिम्मेदारी ली गई थी. जैसा मुजीबुल्ला ने बाद में बताया, उन लोगों का इरादा इसे 'रिक्रूटमेंट मटीरियल’ के रूप में अपलोड करना था.

लेकिन यह इरादा छोडऩा पड़ा क्योंकि गोपनीय ढंग से काम कर रहा उनका ग्रुप आगे होने वाले हमलों को अंजाम देने तक अपनी पहचान उजागर नहीं करना चाहता था. इराम लॉज में उस दिन जमावड़े का मकसद अगले बड़े हमले की उलटी गिनती शुरू करना था, हालांकि जांच एजेंसियां बोधगया विस्फोटों पर अंधेरे में हाथ मार रही थीं.

वे लश्कर-ए-तय्यबा पर शक कर रही थीं क्योंकि इसके नेताओं ने म्यांमार के रोहिंग्या मुसलमानों के दुखों के साथ हमदर्दी जताई थी. फैजल और मुजीबुल्ला ने कुछ दिन बाद एक-दूसरे से विदा ली और अगला मिशन पूरा करने के बाद 28 अक्तूबर को उसी लॉज में मिलने का वादा भी किया.

27 अक्तूबर को पटना में नरेंद्र मोदी की रैली पर हमला किया गया. अलकायदा की इंस्पायर पत्रिका प्रचारित, एलबो आकार के कई बम गांधी मैदान में रैली स्थल के कई प्रवेश द्वारों पर लगाए गए. फैजल का पीछा पुलिस वैसे भी कर रही थी. डकैती के कुछ मामलों में खंडवा जेल में बंद फैजल वहां से भाग निकला था. उसने पुलिस को बताया कि वह विस्फोट के समय बिहार की राजधानी पटना में मौजूद था ही नहीं, न ही उसे इस योजना की जानकारी थी.

लेकिन नेशनल इन्वेस्टिगेशन एजेंसी (एनआइए) की पूछताछ का रिकॉर्ड इंडिया टुडे के हाथ लगा है, उसके मुताबिक फैजल विस्फोटक हमलों से कई हफ्ते पहले रांची के निकट एक गांव में हैदर से मिला था. वहां पटना हमलों का आरोपी इम्तियाज अली भी मौजूद था जिसे हमले के बाद घटनास्थल से ही गिरफ्तार कर लिया गया था. फैजल को दो महीने बाद 18 दिसंबर, 2013 को मध्य प्रदेश पुलिस ने गुलबर्गा जाते हुए गिरफ्तार कर लिया. वह अपने एक साथी से मिलने जा रहा था.

उनकी योजना 2002 के दंगों का बदला लेने के लिए बजरंग दल के दफ्तर पर हमले की थी. हैदर और मुजीबुल्ला के बारे में मिली जानकारी जांच एजेंसियों के लिए निर्णायक सिद्ध हुई, तब उन्हें एहसास हो गया कि शहर में एक नया आंतकी गुट जम गया है. अधिकारी इसे 'फ्रैश मॉड्यूल’ नाम भी देते हैं. वे लोग मान चुके थे कि हमले इंडियन मुजाहिद्दीन (आइएम) की करतूत थी जो देश में नई मुसीबत लाने की कोशिश कर रहा है.

लेकिन अधिकारियों का अनुमान इस बार भी गलत था. अगले पांच माह में यह साबित होना था कि हमले एक जाने-पहचाने संगठन ने किए हैं, लेकिन नए तरीके से. आतंकवादी प्रतिबंधित गुट स्टुडेंट्स इस्लामिक मूवमेंट ऑफ इंडिया (सिमी) की कोख से निकला उग्रवादी-क्रांतिकारी गुट था.

हालांकि घटना का ब्यौरा तो तभी मिलना शुरू हो गया था जब एनआइए ने 22 मई को हैदर और मुजीबुल्ला को रांची के निकट पकड़ा, उससे पहले ही एक बड़ी तस्वीर सामने आनी शुरू हो गई थी. पड़ताल एनआइए को सिमी के उग्रवादी गुट के प्रमुख विचारक सफदर नागौरी के करीब ले गई, जिसे नवंबर, 2008 को गिरफ्तार कर लिया गया था लेकिन हर नवीनतम घटना की उसे जानकारी रहती थी. ऐसे में फैजल की गिरफ्तारी महत्वपूर्ण साबित हुई.

नागौरी ने जो बताया, उससे रणनीति में बदलाव की पुष्टि हो गई. सिम (नागौरी ने दिल्ली में जांचकर्ताओं को बताया कि उनके गुट ने 'आइ’ हटा देने का फैसला किया है.) पहले यह गुट आतंकी गुट तैयार करने के लिए रणनीतिक मदद और जेहादी मुहैया करवाता था लेकिन अब इसने खुद हमले करने का जिम्मा ले लिया है, संभवत: बड़े नेताओं की हत्या करने का.

दिल्ली हाइकोर्ट की अध्यक्षता वाले पंचाट ने 30 जुलाई को अगले पांच साल तक फिर प्रतिबंध लगाने के फैसले को मंजूरी दे दी, एजेंसियां माथापच्ची कर रही थीं कि अब सिमी से जुड़ा कौन-सा नया गुट तैयार हो गया है. 16 मई को आम चुनाव के परिणाम वाले दिन भोपाल की एक अदालत में सिमी के गिरफ्तार आपरेटिव्स ने नारा लगाया, ''अबकी बार मोदी का नंबर.” बेशक सुरक्षा एजेंसियां सकते में आ गईं और बदहवासी से भावी प्रधानमंत्री के दिल्ली पहुंचने से पहले ही उनकी सुरक्षा व्यवस्था की समीक्षा में जुट गईं. एनआइए की पूछताछ पटना विस्फोट केस के आरोपपत्र का हिस्सा हो सकती है.

शुरुआत
दिल्ली पुलिस के स्पेशल सेल की पूछताछ में नागौरी ने बताया कि 2001 में प्रतिबंध लगने के बाद सिमी की सेंट्रल रिप्रेजेंटेटिव्स काउंसिल (सीआरसी) जिसे मजलिस-ए-शूरा भी कहते हैं, की बैठकों में फैसला लिया गया कि 'वैचारिक खुराक’ के अलावा शारीरिक प्रशिक्षण पर भी जोर दिया जाना चाहिए, जैसा राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) की शाखाओं में होता है. व्यक्तियों को निजी स्तर पर मार्शल आर्ट ट्रेनिंग जरूर करनी चाहिए.

नागौरी ने यह भी बताया कि एसआइएम उसी उग्रवादी गुट का उत्पाद है, जिसे उसने ही सिमी में शुरू किया था. सिमी में फूट के संकेत 2006 में ही सामने आने शुरू हो गए थे, जब सदस्यता की आयु सीमा 30 साल तय करने का फैसला किया गया, यह फैसला संगठन का युवा-छात्र चरित्र बनाए रखने के लिए किया गया. इस वजह से नागौरी की सदस्यता खत्म हो गई. लेकिन इस फैसले से खिन्न होकर नागौरी गुट ने जुलाई में उज्जैन के निकट एक फार्म हाउस में बैठक करने का फैसला किया.

अलग गुट की मांग पहले-पहल यहीं उठी और इसे उठाने वाला युवा छात्र एहतेशाम सिद्दीकी था, लेकिन गुट के दूसरे सदस्यों का मानना था कि इस सब के लिए अभी इंतजार किया जाना चाहिए. बैठक के तुरंत बाद ही सिद्दीकी को मुंबई विस्फोटों में कथित रूप से शामिल होने के आरोप में गिरफ्तार कर लिया गया. हालांकि वह बेकसूर होने का दावा करता है.

नागौरी ने जांचकर्ताओं को बताया कि गिरफ्तारी से पहले, दो कमेटियां गठित करने का फैसला किया गया, एक अखिल भारतीय इस्लामिक आंदोलन के लिए और दूसरी हमलों को अंजाम देने के लिए खूंखार आतंकी गुट की स्थापना व्यवस्था के लिए. इससे सिमी के एक अन्य अग्रणी संगठन-मुस्लिम स्टुडेंट्स फेडरेशन (एमएसएफ) का जन्म हुआ, इसे रांची निवासी हिदायतुल्ला ने गठित किया था. वह अब पटना विस्फोट मामले में एनआइए का गवाह है.

नागौरी का यह भी दावा है कि उसने सांप्रदायिक दंगों के दौरान हत्याओं का व्यक्तिगत रूप से बदला लेने और पेट्रोल बमों के इस्तेमाल का भी सुझाव दिया था, ''एसआइएम ने जेहाद को अपना मुख्य एजेंडा बनाया और मुल्ला उमर को 'इंटरनेशनल अमीर’ माना. समान मानसिकता वाले मुस्लिम संगठनों और मुस्लिम देशों से संवाद स्थापित करने के प्रयास किए गए. एसआइएम अफगानिस्तान में जेहाद की लड़ाई लडऩे, यहां तक कि तालिबान गुट के साथ विलय के लिए अपने कॉडरों को भेजने को तैयार था.

एसआइएम के अब्दुल सुभान को तालिबान के मुल्ला उमर से संपर्क करने का काम सौंपा गया. नागौरी का दावा है, ''मैंने भी यूएई में रह रहे पूर्व सिमी अध्यक्ष सीएएम बशीर से उमर से संपर्क करने को कहा.” उसका कहना है कि यदि उमर से संपर्क हो जाता तो उनका गुट 'हिजरत’ (जन्मभूमि से दूर जाना) के लिए तैयार था. ऐसा होने तक प्रतिशोध के लिए हत्याएं जारी रहेंगी.

धीरे-धीरे प्रशिक्षण के तरीके भी बदलते गए. नागौरी का कहना है कि उसने कई ट्रेनिंग माड्यूल आयोजित किए, जहां वैचारिक प्रोत्साहन अब भी सर्वोपरि था, लेकिन बाद में इसमें बदलाव किया गया. 2012 में हैदर और अन्य सदस्यों ने बम बनाने का प्रशिक्षण देना शुरू कर दिया. यहां तक कि उसने 'एक जैकेट बम’ बनाना भी सीख लिया था जिसे पटना विस्फोट में इस्तेमाल किया जाना था. इसे बनाने का तरीका उसने इंटरनेट से सीखा था.

शुरुआती हमले
फैजल से की गई पूछताछ से पता लगता है कि रणनीति में बदलाव की शुरुआत 2007-08 में हुई, जब गुट ने हमले करने शुरू कर दिए. हमले के शिकार बहुत बड़े नहीं लेकिन महत्वपूर्ण अवश्य थे. उदाहरण के तौर पर:

खंडवा से बीजेपी पार्षद प्रमोद तिवारी 2008: नागौरी की गिरफ्तारी के बाद फैजल और उसके साथियों ने तिवारी की हत्या का प्रयास किया जो नाकाम रहा. उसका दावा है कि तिवारी मुस्लिमों के खिलाफ दंगों में शामिल थे. फैजल का पूछताछ के दौरान कहना था, ''अक्तूबर 2008 में महबूब और अमजद के साथ मिलकर प्रमोद तिवारी को गोली मारी और वह बुरी तरह घायल हो गया.”

सतना जेल में जेलर संजय पांडे, 2009: फैजल का दावा है कि उसने हत्या की योजना बनाई लेकिन सफल नहीं हो सका. वह पांडे की हत्या करना चाहता था क्योंकि इंदौर जेल में पांडे ने सफदर (नागौरी) भाई और दूसरे साथियों को बहुत टार्चर  किया था.

हवलदार सीताराम, मध्य प्रदेश एटीएस, खंडवा, 2009: प्रतिशोध की एक और योजना बनाई गई. फैजल का कहना है कि इस बार वह सफल रहा, ''बकरीद के दिन हम सीताराम के घर की तरफ गए और उसका पीछा करना शुरू कर दिया. हमने उसकी मोटर साइकिल रोकी और तीन गोलियां मारीं. उसकी मौत मौके पर ही हो गई.”

शिव प्रताप सिंह, 2011, रतलाम: इस बार फैजल ने अपने साथी जाकिर को इस काम का जिम्मा सौंपा. इस बार कथित रूप से उसने सिंह की हत्या कर दी क्योंकि वह सिमी सदस्यों के परिवारों से गाली-गलौज करता था.

भैरू लाल तांग, स्थानीय विहिप नेता, नागदा, उज्जैन, 2011: तांग पर हमले के लिए दो सिमी कार्यकर्ताओं- शराफत और फरहत को तय किया गया. लेकिन फैजल का दावा है कि उसने यह जिम्मा खुद ही ले लिया, ''मैं फरहत और शराफत से मिलने नागदा गया. और अगले दिन उसे गोली मार दी. लेकिन तांग बच गए.” यह एक नाकाम प्रयास था.

सिमी और आइएम: अलग राह
भारत में किसी आतंकी संगठन को हर तरह की मदद देनी हो तो सिमी कैडर पहली पसंद मानी जाती है. इसलिए आइएम ऑपरेटिव्स कुछ जोशीले सिमी सदस्यों के साथ दोस्ती कर लेते हैं. उदाहरण के तौर पर तहसीन अख्तर को 2014 में गिरफ्तार किया गया था, वह आइएम के बिहार माड्यूल में शामिल था और विस्फोटक विशेषज्ञ समझ जाता था.

उसने पटना विस्फोट के मुख्य अभियुक्त हैदर अली के रांची स्थित घर में पनाह ली थी. एक अन्य सिमी कार्यकर्ता मंजर इमाम अब गिरफ्तार हो चुका है, उसने कथित तौर पर कई आइएम आपरेटिव्स को कर्नाटक और केरल में सुरक्षित ठिकाने तलाशने में मदद की.

आइएम ऑपरेटिव असादुल्ला अख्तर और यासीन भटकल और मिर्जा शादाब बेग के बीच इंटरनेट चैट रिकॉर्ड से काफी सबूत मिल जाते हैं. अख्तर और भटकल को पिछले साल गिरफ्तार कर लिया गया. मिर्जा शादाब बेग तब पाकिस्तान में था. एनआइए ने अख्तर के लैपटाप से चैट हासिल की, उसमें बेग आजमगढ़ निवासी अख्तर से शादाब समेत सिमी के दो सदस्यों से संपर्क करने को कहता है. उन्हें ट्रेनिंग के लिए पाकिस्तान भेजा जाना है.

लेकिन जैसा हैदर ने गिरफ्तारी के बाद बताया, कि सिमी ने अलग होने का फैसला किया क्योंकि यह कथित रूप से पाकिस्तान की आइएसआइ के नियंत्रण वाले एलईटी से किसी तरह संबंध नहीं रखना चाहता था. नागौरी से हैदर को लगातार यही संदेश आते रहे कि संगठन ने तालिबान और अलकायदा से संरक्षण की गुहार लगाई थी लेकिन फैजल का कहना है कि जब ऐसा नहीं हो सका तो दूसरे आंतकी गुटों के साथ संपर्क किया, जो अलकायदा और तालिबान से संबद्ध समझे जाते हैं, जैसे पाकिस्तान का जैश-ए-मोहम्मद (जेईएम). 2011 में सिमी के एक कार्यकर्ता एजाज को सऊदी अरब भेजा गया, लेकिन वह मिशन भी नाकाम रहा.

फैजल का कहना है, ''हमने एजाज को हज पर भेजने की योजना बनाई ताकि वह जैश-ए-मोहम्मद के कार्यकर्ताओं से मिल सके. जेईएम की वेबसाइट पर लिखा है कि हज पर जो भी मुजाहिदीन को कुर्बानी की खाल दे सकता है, वह वेबसाइट पर दिए नंबर पर संपर्क कर सकता है. मैंने यह नंबर एजाज को दिया और जेईएम से संपर्क करने को कहा. लेकिन जेईएम ने एजाज पर भरोसा नहीं किया और उसे ढाका जाने को कहा. एजाज वापस आ गया और बांग्लादेश में एक होटल में ठहर गया. एजाज ने जेईएम से संपर्क करने की कोशिश की लेकिन उसे चीन जाने को कहा गया. एजाज वहां नहीं जा पाया क्योंकि हमारे पास इसके लिए पैसे नहीं थे.”

लेकिन अब तक जिन हमलों की योजना बनाई गई और अंजाम दिया गया, उससे यह स्पष्ट हो जाता है कि देश में ही पनपा नया गुट बाहरी मदद के बिना खतरनाक भी है और संसाधनों से भरपूर भी. इसकी संख्या का सही अंदाज लगाना तो कठिन है लेकिन जांचकर्ताओं का कहना है कि इसके ऑपरेशन 12 राज्यों में फैले हैं (देखें ग्राफिक). इसके अलावा यह गुट युवा छात्रों को निशाना बनाता है और उद्देश्यों से परिचित करवाता है. जब रांची में हैदर की अध्यक्षता वाले माड्यूल का भंडाफोड़ हुआ तो सबसे कम उम्र का रिक्रूट एक नाबालिग था जिसने बोधगया हमले में कथित रूप से हिस्सा लिया था.

प्रतिबंध कारगर रहा?
आतंक के साए से नए सिमी का उदय फिर यही सवाल उठाता है कि क्या ऐसे गुटों पर प्रतिबंध उन पर नियंत्रण में मददगार होता है या उग्रवादी गुटों से मिलने वाले समर्थन से मजबूत होने के बाद प्रतिबंध बेअसर हो जाता है. जांच एजेंसियां ऐसे गुटों की गतिविधियों पर नियंत्रण न रख पाने के लिए राज्य सरकारों पर सारा दोष थोप देती हैं, तर्क का दूसरा पहलू यह है कि केंद्र के पास ऐसी व्यवस्था नहीं है कि विभिन्न राज्यों और जिलों से खबर जुटाकर ऐसी गतिविधियों की बड़ी तस्वीर तैयार कर सके.

दूसरी ओर कई सिमी कार्यकर्ताओं का प्रतिनिधित्व करने वाले वरिष्ठ वकील एमएस खान इस तरह के मामले उजागर करने की सचाई पर ही सवाल उठाते हैं, ''एजेंसियों ने प्रतिबंधों की आड़ में बेकसूर लोगों को गिरफ्तार कर लिया. उनका जीवन खतरे में है और परिवार भी खतरा महसूस कर रहे हैं.”

इंस्टीट्यूट ऑफ कांफ्लिक्ट मैनेजमेंट के अजय साहनी अलग राय रखते हैं, ''ये प्रतिबंध एजेंसियों को ग्रुप और संगठनों पर नियंत्रण रखने में मदद करते हैं. सिमी के मामले में यह प्रतिबंध कारगर रहा. संगठन की सदस्यता को अपराध माने जाने के बाद कई लोगों ने इससे दूरी बना ली है.” लेकिन साहनी भी मानते हैं कि ''जब सिर्फ सिमी का सदस्य होने की वजह से बेकसूर लोगों को गिरफ्तार किया जाता है तो कानून लागू करने में दिक्कत आती है.”

दिल्ली पुलिस के स्पेशल कमिश्नर एस.एन. श्रीवास्तव, जिन पर स्पेशल सेल निरीक्षण का कार्यभार है और जो इस तरह की पूछताछ में शामिल रहे हैं, उनका मानना है, ''सिमी पर प्रतिबंध लगने से इसकी गैर-कानूनी गतिविधियों पर नियंत्रण लग गया है.”

फिर भी सात साल तक सिमी एक क्रांतिकारी संगठन से हथियारों में प्रशिक्षित गुट में विकसित हो गया है. नागौरी ने खुलासा किया कि उसके सहयोगियों ने 2004-05 में ही कई स्थानीय ठिकाने तलाश लिए थे. तब तक उन्होंने कूट नामों (कोड नेम) का प्रयोग शुरू कर दिया था और हुसैन, मुशाबिर, सफवान, इकबाल और मुसाब जैसे छद्म नामों का इस्तेमाल करने लगे थे.

इस बदलाव को रोका नहीं जा सका. और यह मान लिया गया कि अगर कोई चीज असर दिखा रही है तो वह है आइएम. यह सब ऐसे दौर में हो रहा था जब सिमी पर प्रतिबंध लगा था और यह माना जा रहा था कि सिमी का दम निकल चुका है, लेकिन असल में वह मजबूत हो रहा था. अपना कैडर तैयार करने के बाद सिमी अब आतंक की दुनिया का नया सदस्य है. नए रूप में इसकी पहुंच बड़ी है और इरादे और भी बड़े हैं.


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