
मुस्लिम औरतों के लिए पिछला साल खुशी की उम्मीद लेकर आया. लोकसभा में एक बार में तीन तलाक यानी तलाक-ए-बिद्दत के खिलाफ बिल पास हो गया है. यह बिल एक बार में तीन तलाक कहने, चिट्ठी भेजने, व्हाट्सअप को जुर्म मानता है. जहां इस बिल के पास होने पर मुस्लिम औरतों में खुशी की लहर है वहीं ऑल इंडिया वुमेन मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड की एडवोकेट डॉ. चंद्रा राजन इस बिल को लेकर कुछ सवाल उठा रही हैं.
डॉ. चंद्रा राजन का मानना है कि इस बिल में काफी कन्फ्यूजन है. जैसे इस बिल में यह साफ नहीं किया गया है कि एक बार में तलाक देने वाले शौहर को सजा मिलने के बाद औरत की स्थिति क्या होगी? वह तलाकशुदा ही मानी जाएगी या फिर तलाक रद्द माना जाएगा. दूसरा और अहम सवाल जो लगातार मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड भी उठा रहा है वह यह कि तीन तलाक देने को नॉन बेलेबल जुर्म करार दिया गया है. ऐसे में जब शौहर जेल में चला जाएगा तो पत्नी को मेंटेनेन्स कैसे और कौन देगा?
डॉ. राजन कहती हैं कि इस बिल के लिए हमने लंबी लड़ाई लड़ी है. आगे भी हम मुस्लिम महिलाओं के हक के लिए लड़ते रहेंगे. इस बिल का पास होना आजादी की तरफ बढ़ा हुआ मुस्लिम औरतों का पहला कदम है. लेकिन कानून बनते समय अगर खामियां रह जाती हैं तो अपराधी के लिए चोर दरवाजा भी साबित हो सकती हैं. पीड़ित को न्याय मिलने के लिए जरूरी है कि व्यवहारिक पक्षों की अच्छी तरह समीक्षा की जाए.
इस बिल की तीसरी कमजोर कड़ी यह है कि इसमें यह नहीं बताया गया है कि एक बार में तीन तलाक अगर खत्म हो गया है तो फिर तलाक की सही प्रक्रिया क्या होगी? शरीयत के अनुसार तीन महीने में तलाक मान्य होगा या नहीं? या फिर कोर्ट का दरवाजा तलाक के लिए खटखटाना होगा. क्योंकि इस अस्पष्टता की स्थिति का फायदा उठाकर कोई भी एक बार में तीन तलाक न कहकर तीन दिन में तीन तलाक कह सकता है, पंद्रह दिन में तीन बार तीन तलाक कहकर तलाक दे सकता है. ऐसा होने के इसलिए भी आसार हैं क्योंकि जब शरीयत में एक बार में तीन तलाक नहीं है बावजूद इसके मुस्लिम समुदाय ने इसे मान्यता दी तो फिर तलाक-ए-बिद्दत के खत्म होने पर दूसरा चोर दरवाजा खोजने की कोशिश के आसार ठोस रूप से हैं.
तीन तलाक के खिलाफ आए बिल पर उठ रहे सवालों के बीच वुमेन मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड की अध्यक्ष शाइस्ता अंबर कहती हैं कि यह बिल मुस्लिम महिलाओं को एक कदम आगे ले जाने वाला है लेकिन इसमें सुधार की गुंजाइश है. शाइस्ता अंबर ने प्रधानमंत्री को सुधार की गुंजाइश वाले बिंदुओं को लेकर एक खत भी लिखा है. दूसरी तरफ पर्सनल लॉ बोर्ड के प्रवक्ता शज्जाद नोमानी कहते हैं कि या मसला सामाजिक बुराई का है. हम कोशिश कर रहे हैं कि राज्यसभा में यह बिल पेश होने से पहले स्टैंडिंग कमेटी में भेजा जाए. इससे इस बिल की विस्तृत समीक्षा की जा सकेगी.