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खास रपटः बच्चों का नहीं यह देश!

बच्चों के खिलाफ अपराध की बढ़ती घटनाओं ने देश में उनकी सुरक्षा का सूरते-हाल बयान किया, एनसीआरबी के आंकड़े भी चिंताजनक

बच्चों पर अत्याचार बच्चों पर अत्याचार
सरोज कुमार
  • ,
  • 05 जनवरी 2018,
  • अपडेटेड 4:46 PM IST

यह भी दिसंबर का एक भयानक दिन था. ठीक पांच साल पहले दिल्ली में 16 दिसंबर के चर्चित निर्भया सामूहिक बलात्कार वाले दिन की तरह. इस बार बस जगह बदल गई और रोंगटे खड़े कर देने वाली बात यह कि हैवानों के चंगुल में थी महज छह साल की मासूम. 9 दिसंबर, 2017 की रात को दिल्ली से करीब 200 किलोमीटर दूर हरियाणा के हिसार के उकलाना कस्बे की उस छह साल की बच्ची को घर से उठा लिया गया और कथित तौर पर बलात्कार के बाद निर्मम तरीके से हत्या कर दी गई. अगली सुबह खून से सनी उसकी लाश वहीं की एक गली में नग्न अवस्था में मिली. 

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दरिंदगी की हद कि उस बच्ची के गुप्तांग में करीब 24 सेंटीमीटर लंबी लकड़ी डाल दी गई थी. बच्ची का परिवार वहां की झुग्गी में करीब 10-12 साल से रह रहा था और मजदूरी करके गुजारा करता था. घटना वाली रात उसके पिता रमेश नाथ मजदूरी करने गुडग़ांव गए थे और बच्ची अपनी मां के साथ अपनी झुग्गी में सो रही थी. अपनी बच्ची की हालत याद करके रमेश तड़प उठते हैं, ''हम गरीब लोग हैं. हमारी बच्ची ने किसी का क्या बिगाड़ा था, जो उसके साथ ऐसा सलूक किया गया. उसके हत्यारों को मौत की सजा मिलनी चाहिए." हरियाणा में बच्चों के खिलाफ जघन्य अपराध का यह इकलौता मामला नहीं है. इसी साल 8 सितंबर को गुडग़ांव के रेयान इंटरनेशनल स्कूल के बाथरूम में ही सात वर्षीय प्रद्युम्न ठाकुर नामक छात्र की गला रेतकर हत्या कर दी गई.

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ठीक इसी तरह देशभर से बच्चों के खिलाफ अपराध की भयानक घटनाओं की खबरें लगातार आ रही हैं. बिहार के भागलपुर के झंडापुर में 25 नवंबर को रविदास टोले में 12 वर्षीय छोटू कुमार की उसके पिता समेत हत्या कर दी गई. उसकी बहन से कथित तौर पर बलात्कार और उसकी हत्या की कोशिश की गई. पीड़िता अब भी अस्पताल में जिंदगी और मौत से जूझ रही है. राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो की 2016 की रिपोर्ट के मुताबिक, देशभर में जहां बच्चों के खिलाफ कुल अपराध के मामलों में 13.5 फीसदी वृद्धि दर्ज की गई है, वहीं बिहार में इसमें 105 फीसदी की वृद्धि हुई है. यह आलम तब है जब मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने बच्चों को लेकर बाल-विवाह जैसी कुरीतियों के खिलाफ मुहिम छेड़ रखी है. हालांकि प्रदेश की आइजी (कमजोर वर्ग) मंजू झा का दावा है, ''बच्चों पर बढ़ते अपराध को रोकने की दिशा में कई काम किए जा रहे हैं."

बच्चों पर अपराध के मामले में उत्तर प्रदेश की हालत भी बेहद खराब है (देखें ग्राफिक्स). प्रदेश बच्चों के खिलाफ कुल अपराध, प्रोटेक्शन ऑफ चिल्ड्रेन फ्रॉम सेक्सुअल ऑफेंसेज ऐक्ट (पोक्सो) और बच्चों के किडनैपिंग व ऐबडक्शन के मामलों में सबसे आगे है.

बाल अधिकार कार्यकर्ताओं के मुताबिक, गरीबी, सरकारी भ्रष्टाचार, नैतिक मूल्यों का ह्रास, इंटरनेट और टीवी पर अपराधियों की कहानियां आदि बच्चों के खिलाफ अपराध को बढ़ावा देते हैं. उनका कहना है कि समाज में दो पीढिय़ां मनोवैज्ञानिक और सांस्कृतिक संक्रमण के दौर से गुजर रही हैं. गांव-गांव में मोबाइल पर सुलभ इंटरनेट पर परोसी जा रही अश्लीलता ने भी बच्चों के खिलाफ अपराध को बढ़ाया है (देखेः मेहमान का पन्ना). बिहार बाल संरक्षण आयोग की पूर्व अध्यक्ष निशा झा कहती हैं, ''बिहार जैसे राज्यों में आर्थिक-शैक्षणिक पिछड़ेपन और संस्कृति के कारण बच्चों के खिलाफ अपराध की घटनाएं लगातार बढ़ रही हैं. 

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लोग कॉर्पोरेट कल्चर और एजुकेशन के बदलते स्वरूप की खामियों की वजह से कुंठा के शिकार हो रहे हैं." पर बच्चों के लिए चिंताजनक स्थिति सिर्फ उत्तर प्रदेश और बिहार जैसे राज्यों तक सीमित नहीं है. पश्चिम बंगाल से लेकर असम, महाराष्ट्र, केरल और तमिलनाडु के आंकड़े भी चिंताजनक हैं. 2014 की तुलना में 2016 में बच्चों के खिलाफ अपराध की घटनाओं में करीब 20 फीसदी वृद्धि दिखाती है कि केंद्र सरकार भी इसे रोक पाने में नाकाम रही है. देश में बच्चों के साथ बलात्कार में भी पिछले साल के मुकाबले 82 फीसदी वृद्धि हुई है.

मध्य प्रदेश के भोपाल के पुराने इलाके में नवंबर, 2017 में एक 10 वर्षीय बच्ची के साथ सामूहिक बलात्कार का मामला सामने आया. बच्ची के पिता की मौत हो गई थी और उसकी मां मेहनत-मजदूरी करके किसी तरह गुजर-बसर कर रही थी. मां की गैर-हाजिरी में उस बच्ची को पड़ोस की एक महिला उसे लालच देकर ले जाती और उसे टॉफी देकर तीन मर्द उसे अपनी हवस का शिकार बनाते थे. बच्ची की मां कहती हैं, ''हमारी बच्ची के अकेलेपन का फायदा उन लोगों ने उठा लिया क्योंकि हम गरीब थे. उनके खिलाफ सख्त कारवाई होनी चाहिए." 

मध्य प्रदेश कुल बलात्कार के मामलों के अलावा बच्चों के बलात्कार के मामलों में भी देश में पहले पायदान पर है. ऐसे में आश्चर्य नहीं कि ''बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ" का विचार देने वाले राज्य में पिछले साल लड़कियों के सेकंडरी स्कूल में ड्रॉपआउट की दर 26 फीसदी हो गई. लेकिन प्रदेश के डीजीपी ऋषि कुमार शुक्ला बलात्कार से जुड़े आंकड़ों को पुलिस की उपलब्धि बताते हैः ''प्रदेश में बलात्कार की जानकारी मिलते ही मामला दर्ज कर लिया जाता है, जिसकी वजह से आंकड़े ज्यादा दिखते हैं."

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बच्चों के बलात्कार के बढ़ते मामले, लगातार होती आलोचना और अगले साल विधानसभा चुनाव को ध्यान में रखते हुए मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने 4 दिसंबर को विधानसभा में सर्वसम्मति से दंड विधि (मध्य प्रदेश संशोधन) विधेयक-2017 पारित करवाया है. इसमें 12 साल से कम उम्र की लड़कियों के बलात्कार के मामलों में फांसी तक की सजा का प्रावधान है. इसमें 14 साल की सश्रम कैद, उम्रकैद के अलावा सामूहिक बलात्कार के मामलों में सजा बढ़ाकर 20 साल करने का प्रवधान है. इसके अलावा छेड़छाड़ को गैर-जमानती बना दिया गया है.

हालांकि इस कानून को लेकर सामाजिक कायकर्ता आशंकित भी हैं. प्रदेश में सामाजिक मुद्दों पर काम करने वाली गैर-सरकारी संस्था विकास संस्था के राकेश मालवीय का कहना है कि आखिर सरकार इसे किस तरह लागू करेगी, यह सबसे बड़ा सवाल है. वे कहते हैं, ''इससे एक बड़ी आंशका यह भी उभरती है कि सबूत नष्ट करके फांसी की सजा से बचने के लिए अपराधी कहीं बलात्कार के बाद बच्चियों की हत्या ही न कर दें." ऐसे ही आशंका कैबिनेट की बैठक में शिवराज सिंह के कुछ मंत्रियों ने भी जाहिर की थी.

निशा झा का मानना है कि सामाजिक और शैक्षणिक जागरूकता बढ़ा कर ही बच्चों को सचेत किया जा सकता है और लोगों को भी संवेदनशील बनाया जा सकता है. नोबेल पुरस्कार प्राप्त बाल अधिकार कार्यकर्ता कैलाश सत्यार्थी भी इसी ओर संकेत करते हैं. लेकिन इसके साथ-साथ कानून के क्रियान्वयन को लेकर भी बड़ा सवाल उठता है. पुलिस की ओर से मामलों के निष्पादन और अदालती प्रक्रिया की खामियां भी उजागर होती हैं. 

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एक ओर जहां अपराध बढ़ रहे हैं, दूसरी ओर पुलिस की ओर से मामलों की चार्जशीट दाखिल करने की दर और कोर्ट की ओर से दोषी ठहराने की दर में कमी आई है. इसके अलावा दोनों के पास लंबित मामलों का बोझ बढ़ता जा रहा है (देखें ग्राफिक्स). भागलपुर के झंडापुर मामले पर काम कर रहे सामाजिक कार्यकर्ता विमल प्रकाश कहते हैं, ''हालात तब और बुरे हो जाते हैं जब पीड़ित गरीब या वंचित समुदाय के हों. वे आसानी से शिकार हो जाते हैं. तिस पर न तो उनकी पुलिस सुनती है, न सरकार और न ही अदालत में उनके मामले तेजी से निबटते हैं, यहां तक कि अमूमन उन्हें इंसाफ भी नहीं मिल पाता." सत्यार्थी का भी मानना है कि पुलिस और न्यायिक प्रक्रिया को बच्चों के प्रति संवेदनशील बनाए बगैर चीजें नहीं सुधरेंगी तथा एक राष्ट्रीय बाल प्राधिकरण के गठन की जरूरत है.

जाहिर है, सख्त कानून तो अपनी जगह हैं पर उनके क्रियान्वयन को सुधारे बगैर अपराध रोके नहीं जा सकते. 4 जुलाई, 2017 को हिमाचल प्रदेश के कोटखाई इलाके में 16 वर्षीय स्कूली छात्रा के बलात्कार और हत्या के मामले ने विधानसभा चुनाव के पहले कांग्रेस सरकार के खिलाफ लोगों में भारी आक्रोश पैदा करने में अहम भूमिका निभाई थी. नतीजतन हालिया चुनाव में उसे करारी हार झेलनी पड़ी. ठीक उसी तरह जैसे निर्भया सामूहिक बलात्कार के बाद दिल्ली में कांग्रेस सरकार बेदखल हो गई थी. जाहिर है, हुक्मरान अगर अब भी नहीं चेते और बच्चों के लिए बेहतर देश नहीं बनाया, हालात और बदतर होते जाएंगे.

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—साथ में शुरैह नियाजी और अशोक कुमार प्रियदर्शी

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