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एक बंधक को छुड़ाने के लिए जान पर खेल गई थी यूपी पुलिस

आए दिन पुलिस पर कभी एक तरफा कार्रवाई का इल्जाम लगता है, तो कभी रिश्वत के आरोप. कभी पुलिस को अत्याचारी कहा जाता है, तो कभी निर्दयी. लेकिन ऐसे मामलों की भी कमी नहीं है, जिनमें पुलिस की वजह से जनता को इंसाफ भी मिला और सुरक्षा भी. बदमाशों का अंत भी हुआ और पुलिस की बहादुरी भी सामने आई. ऐसे ही मामलों को जनता के सामने लाने की कोशिश है जुर्म आज तक की श्रृंखला 'पुलिस फाइल से'.

मुठभेड़ के बाद मुक्त हुआ नीतेंद्र कुमार और एसपी समीर सौरभ मुठभेड़ के बाद मुक्त हुआ नीतेंद्र कुमार और एसपी समीर सौरभ
परवेज़ सागर
  • नई दिल्ली,
  • 27 अप्रैल 2016,
  • अपडेटेड 5:09 PM IST

आए दिन पुलिस पर कभी एक तरफा कार्रवाई का इल्जाम लगता है, तो कभी रिश्वत के आरोप. कभी पुलिस को अत्याचारी कहा जाता है, तो कभी निर्दयी. लेकिन ऐसे मामलों की भी कमी नहीं है, जिनमें पुलिस की वजह से जनता को न्याय भी मिला और सुरक्षा भी. बदमाशों का अंत भी हुआ और पुलिस की बहादुरी भी सामने आई. ऐसे ही मामलों को जनता के सामने लाने की कोशिश है जुर्म आज तक की श्रृंखला 'पुलिस फाइल से'. जिसमें उन मामलों को शामिल करने की कोशिश है जिनमें पुलिस के अफसरों या कर्मचारियों ने समझदारी और बहादुरी के साथ केस हल किए. कई बार ऐसे मामलों में उन्हें अपनी जान भी दांव पर लगानी पड़ी. ऐसी ही एक अपहरण की वारदात तीन साल पहले हुई थी, जिसमें पुलिस ने जान पर खेलकर बंधक को छुड़ाया था.

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लापता हो गया था युवक
घटना आज से तीन साल पहले की है. एटा के ब्रजपुर गांव के रहने वाले ब्रजेंद्र पाल सिंह जादौन का पुत्र नीतेंद्र कुमार सिंह आगरा की बैनारा पिस्टन फैक्ट्री में काम करता था. वह सिकंदरा थाना क्षेत्र में किराए के मकान में रहता था. 2 दिसंबर 2012 को वो रोज की तरह घर से काम पर जाने के लिए निकला था लेकिन लौटकर घर नहीं आया. घरवालों ने उसकी तलाश शुरू की लेकिन उसका कुछ पता नहीं चला. नीतेंद्र के परिजन परेशान होकर अगले दिन आगरा के सिकंदरा थाने पहुंचे और नीतेंद्र की गुमशुदगी दर्ज कराई. नीतेंद्र को लापता हुए चार दिन बीत चुके थे लेकिन अभी तक उसका कुछ अता पता नहीं था. मामला इलाके के डीएसपी समीर सौरभ के संज्ञान में आ चुका था.

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फिरौती के लिए कॉल
नीतेंद्र के घरवाले और पुलिस हर मुमकिन जगह पर उसे तलाश चुके थे. तभी 6 दिसंबर 2012 को नीतेंद्र के पिता ब्रजेंद्र पाल सिंह के मोबाइल पर एक फोन आया. फोन करने वाले ने उन्हें बताया कि उनका बेटा नीतेंद्र उसके पास है. उसकी 'पकड़' हो चुकी है. फोन करने वाले ने नीतेंद्र को छोड़ने की एवज में 15 लाख रुपये की फिरौती मांगी. बदमाशों ने पैसा धौलपुर के पास एक जगह पहुंचाने के लिए कहा था. घरवालों ने फौरन इस बात की ख़बर पुलिस को दी. हरिपर्वत सर्किल के सीओ/डीएसपी समीर सौरभ ने मामले की कमान अपने हाथ में ले ली. पुलिस ने गुमशुदगी के मुकदमे को अपहरण के मामले में तरमीम कर दिया था. एसपी समीर सौरभ बताते हैं कि पहले चार दिन तो पता ही नहीं था कि आखिर नीतेंद्र कहां चला गया. उसके रिश्तेदारों, साथियों और साथ काम करने वालों से भी पूछताछ की गई पर किसी को उसके बारे में कुछ नहीं पता था. लेकिन फिरौती की कॉल आने के बाद मामला साफ हो चुका था.

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रकम के लिए सौदेबाजी
नीतेंद्र के घरवालों की माली हालत इतनी मजबूत नहीं थी कि वो एक साथ 15 लाख रुपये नकद लाकर अपहरणकर्ताओं को दे सकें. इसलिए फोन पर ही उन्होंने अपहरणकर्ताओं से पैसा कम करने की मांग की. दोनों तरफ से बातचीत का सिलसिला चलता रहा. दिन बीतते जा रहे थे. नीतेंद्र के घरवाले बदमाशों से लगातार फिरौती की रकम कम करने की गुहार लगा रहे थे. इसी दौरान पुलिस उस नंबर की पड़ताल कर रही थी, जिससे अपहरणकर्ता नीतेंद्र के घरवालों को फोन कर रहे थे.

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लोकेशन बदल रहे थे बदमाश
डीएसपी समीर सौरभ को उनकी सर्विलांस टीम ने अपहरणकर्ताओं के नंबर की जांच करने के बाद बताया कि बदमाश लगातार अपनी लोकेशन बदल रहे हैं. वे किसी एक जगह पर ज्यादा देर नहीं रुक रहे थे. पुलिस लगातार नीतेंद्र के घरवालों के साथ संपर्क में बनी हुई थी. इसी दौरान फिरौती की रकम को लेकर बदमाशों और घरवालों के बीच बातचीत जारी थी. डीएसपी समीर सौरभ के मुताबिक वे बदमाशों की लोकेशन को साफ कर लेना चाहते थे. नीतेंद्र उनके कब्जे में था इसलिए समीर कोई रिस्क नहीं लेना चाहते थे. वो खुद लोकेशन की मॉनिटरिंग कर रहे थे.

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धौलपुर में बनी साझा टीम
नीतेंद्र का अपहरण हुए करीब एक माह हो चुका था. साल बदल चुका था. सब लोग नए साल के जश्न में डूबे थे. उधर नीतेंद्र के परिवार और अपहरणकर्ताओं के बीच साढ़े तीन लाख रुपये पर बात बन गई थी. डीएसपी समीर अब अपहरणकर्ताओं तक पहुंचाने की योजना पर काम कर रहे थे. अब पुलिस का एक जवान खुद नीतेंद्र का चाचा बनकर बदमाशों से बात कर रहा था. डीएसपी समीर ने योजना बना ली थी. वह अपनी टीम के साथ एक प्राइवेट बुलेरो गाड़ी से राजस्थान के धौलपुर पहुंच चुके थे. उनके साथ नीतेंद्र का चाचा भी था जो फिरौती की रकम साथ लेकर आया था. डीएसपी समीर सौरभ ने सारी घटना धौलपुर के पुलिस उपाधीक्षक दशरथ सिंह को बताई. दोनों ने मिलकर एक साझा टीम बनाई और अपहरणकर्ताओं के बताए स्थान की तरफ रवाना हो गए.

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चंबल नदी के किनारे छिपे थे अपहरणकर्ता
अपहरणकर्ता लगातार नीतेंद्र के चाचा के साथ फोन पर संपर्क में थे. पुलिस टीम धौलपुर के घुरैया खेड़ा गांव में पहुंची जहां अपहरणकर्ताओं ने पैसा लेकर नीतेंद्र के घरवालों को बुलाया था. लेकिन कुछ देर बाद अपहरणकर्ताओं ने फोन करके नीतेंद्र के चाचा को उसी जिले के पीपरीपुरा गांव में आने के लिए कहा. पुलिस टीम नीतेंद्र के चाचा को लेकर पीपरी गांव पहुंची तो अपहरणकर्ताओं ने उन्हें पैदल ही चंबल नदी के किनारे बुलाया. डीएसपी समीर सौरभ ने पूरी टीम को दो हिस्सों में बांट दिया. एक टीम का नेतृत्व वो खुद कर रहे थे और दूसरी टीम का धौलपुर के पुलिस उपाधीक्षक दशरथ सिंह. समीर सौरभ की टीम नदी के किनारे पहुंच चुकी थी. नीतेंद्र का चाचा पैसा लेकर आगे खड़ा था. दूसरी टीम कवर देने के लिए पीछे की तरफ छिपी हुई थी.

अंधेरे में हुई थी मुठभेड़
दिन ढ़ल चुका था. बदमाश नीतेंद्र को लेकर मौके पर पहुंचे और उसके चाचा से पैसा देने के लिए कहा. उनसे कुछ दूरी पर मौजूद डीएसपी समीर सौरभ और उनकी टीम स्थिति का आंकलन कर रहे थे. जैसे ही नीतेंद्र के चाचा ने पैसा देने के लिए आगे बढ़े. समीर सौरभ अपनी टीम के साथ निकलकर बाहर आ गए. बदमाशों ने उन्हें देखते ही फायरिंग शुरु कर दी. सबसे पहले डीएसपी समीर ने नीतेंद्र को सुरक्षित किया. उन्होंने अपने एक एसआई छोटे लाल को उसकी हिफाजत के लिए कहा. उसके बाद उन्होंने एके47 से फायर करते हुए बदमाशों से सीधे लोहा ले लिया. अंधेरे के बीच बदमाशों की एक गोली आकर सीधे समीर सौरभ के हाथ में लगी. इसके बावजूद वो पीछे नहीं हटे. नीतेंद्र के बचाने के चक्कर में एसआई छोटे लाल को भी चोट लगी. इसी बीच समीर सौरभ आगे होने की वजह से एक बार फिर बदमाशों की गोली का शिकार होते होते बचे और उनकी चार पसलियां टूट चुकी थी. लेकिन समीर सौरभ ने 25 राउंड गोलियां चलाकर बदमाशों को भागने पर मजबूर कर दिया. और इस तरह से नीतेंद्र को सकुशल बरामद कर लिया गया. फिरौती की रकम भी बचा ली गई.

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हनीट्रेप में फंसाकर किया था नीतेंद्र का अपहरण
डीएसपी समीर सौरभ और एसआई छोटे लाल को उपचार के लिए धौलपुर ले जाया गया. नीतेंद्र की हालत भी ठीक नहीं थी. उसे भी डॉक्टरों की निगरानी में वहीं रखा गया. उपचार के बाद समीर सौरभ को आराम की सलाह दी गई. लेकिन वो नहीं माने और अगले दिन सुबह वे नीतेंद्र को लेकर आगरा के लिए रवाना हो गए. आगरा में जब नीतेंद्र से पुलिस ने पूछताछ की तो पता चला कि एक लड़की ने उसके फोन पर एक बार मिस्डकॉल की थी. जब नीतेंद्र ने वापस उस नंबर पर फोन किया तो उस लड़की ने नीतेंद्र को अपने जाल में फंसा लिया. वो रोजाना उससे बातें करने लगी थी. और 2 दिसंबर 2012 को उस लड़की ने नीतेंद्र को मिलने के लिए धौलपुर आने के लिए कहा. उसकी बातों में आकर नीतेंद्र घर में काम पर जाने की कहकर धौलपुर चला गया. जहां नीतेंद्र की मुलाकात उस लड़की से हुई. लड़की नीतेंद्र को अपने कमरे पर ले गई और वहां उसे खाना खिलाया. जिसे खाकर नीतेंद्र बेहोश हो गया. और जब उसे होश आया तो उसने अपने आपको बदमाशों की पकड़ में पाया. दरअसल वो लड़की बदमाशों के गिरोह की सदस्य थी. जो फोनकॉल के जरिए लोगों को फंसाने का काम करती थी. नीतेंद्र को पाकर उसके घरवालों ने पुलिस की खूब प्रशंसा की.

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राष्ट्रपति पुरुस्कार के लिए अनुशंसा
इस मुठभेड़ के दौरान पसलियां टूट जाने की वजह से डीएसपी समीर सौरभ की तबीयत बिगड़ गई थी. और उन्हें एक महिने तक बिस्तर पर रहना पड़ा. उनके हाथ में गोली लगने से गहरा जख्म हो गया था. जिसे भरने में भी वक्त लगा. इस ऑपरेशन की कामयाबी के बाद राज्य सरकार ने बहादुरी के लिए डीएसपी समीर सौरभ का नाम राष्ट्रपति पुलिस पदक के लिए भेजने की तैयारी शुरू कर दी है. समीर सौरभ आगरा में तैनाती के वक्त ही पदोन्नती पाकर एसपी बन गए थे.

कौन हैं समीर सौरभ
पुलिस अधीक्षक समीर सौरभ 1994 बैच के पीपीएस अधिकारी हैं. वह मूल रूप से उत्तर प्रदेश के सैदपुर, गाजीपुर जिले के रहने वाले हैं. उन्होंने अपनी शिक्षा गाजीपुर के बाद लखनऊ विश्वविद्यालय से पूरी की. वकालत की पढ़ाई करते वक्त ही उनका चयन प्रादेशिक पुलिस सेवा के लिए हो गया था. एसपी समीर सौरभ अभी तक बांदा, उत्तरकाशी (अब उत्तराखंड में), मऊ, लखनऊ, बरेली, मेरठ, कानपुर नगर, आगरा जनपदों में तैनात रह चुके हैं. वर्तमान में वह बरेली में पुलिस अधीक्षक (नगर) के पद पर तैनात हैं.

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