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इन लोगों ने योग में डाली नई जान

अब हवा में झूलकर, सर्फबोर्ड पर उछलकर या अपने साथी के कंधे पर खड़े होकर आसन कीजिए. नए दौर के योगियों ने इस प्राचीन विद्या को दिया एक ताजगी भरा मौजूं मोड़.

सुहानी सिंह
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  • 22 जून 2015,
  • अपडेटेड 3:15 PM IST

हर इतवार सुबह 8 बजे से दोपहर तक प्रदीप मेहता और उनके शिष्य बेंगलूरू के कदर्बन पार्क में अनोखा नजारा पेश कर देते हैं. उन्हें 10 फुट ऊंचा पिरामिड बनाते देखा जा सकता है, जिसमें तीन लोग एक-दूसरे के संतुलन के सहारे खड़े होते हैं या एक-दूसरे के कंधे पर हाथ के सहारे लटके होते हैं. कुछ आने-जाने वाले अपने मोबाइल में उनकी तस्वीरें उतारने में मशगूल होते हैं तो कुछ इसी जिज्ञासा में खड़े हो जाते हैं कि आखिर चल क्या रहा है. अक्सर ये सवाल उछलते हैं, “क्या यह सर्कस है?”, “आप लोग कर क्या रहे हो?”, “क्या यह स्टंट है?” मेहता तमाशबीनों को धीरे से समझाते हैं कि यह एक्रो-योग है यानी योग, एक्रोबेटिक और स्वस्थकारी कलाओं का मिला-जुला रूप. मेहता अपनी इस नई विद्या के प्रति उभरती जिज्ञासाओं से खासे खुश हैं, जिसका अभ्यास कराना उन्होंने महज पांच महीने पहले ही शुरू किया था. मेहता दिल्ली में भरत ठाकुर से कलात्मक योग में प्रशिक्षण ले चुके हैं और एक्रो योग में ट्रेनर का सर्टिफिकेट हासिल कर चुके हैं. वे गोवा तथा बर्लिन में सम्मानित हो चुके हैं. उन्होंने एचआर की अपनी नौकरी छोड़कर भारत में अपना स्कूल योग आर्ट खोला. 2003 में जैसन नेमर और जेनी सॉर क्लाइन ने इस नई विधा को ईजाद किया था और मेहता भारत में इस विधा के कुछेक ट्रेनरों में एक हैं. अभी तक 34 वर्षीय मेहता एक्रो योग का प्रसार हैदराबाद, मैसूरू, अहमदाबाद और मुंबई में कर चुके हैं.

एक्रो-योग का सत्र आपकी भुजाओं और हथेली को मजबूत करने वाले अभ्यास के साथ शुरू होता है. इस विधा के लिए हाथों में ताकत जरूरी है. इसका अभ्यास करने वाले अलग-अलग भूमिकाओं में हो सकते हैं. मसलन, “बैठकी” वाले (सिटर) और “उड़ने वाले” फ्लायर) तथा ध्यान रखने वाले (स्पॉटर). जब बैठकी या उड़ान वाले आसन कर रहे होंगे तो स्पॉटर यह ख्याल रख रहे होंगे कि वे गिरें नहीं. मेहता कहते हैं, “वे (ध्यान रखने वाले) सबसे अहम होते हैं, क्योंकि वे उड़ने वाले का ख्याल रखते हैं.” मेहता पावर योग भी सिखाते हैं और गरबा तथा डांडिया स्पर्धाओं में जज की भूमिका भी निभाते हैं. एक्रो-योग को पार्टनर योग के रूप में भी देखा जाता है. इसमें एकाग्रता और एक्रोबैटिक्स के अलावा टीमवर्क और भरोसे का भी बड़ा योगदान होता है. डांसर, एक्रोबैट, जिमनास्ट और फिटनेस वाले एक्रो-योग आसानी से कर सकते हैं लेकिन मेहता का मानना है कि यह हर कोई कर सकता है, ऐसे लोग भी जिन्होंने कभी कोई अभ्यास नहीं किया है. कब्बन पार्क में मेहता से प्रशिक्षण लेने वाले ज्यादातर लोग 40 साल से ज्यादा उम्र के नहीं हैं. वे कहते हैं, “युवा ज्यादा खुले दिमाग के होते हैं और नई चीजों को आजमाने को तैयार रहते हैं.”

मेहता के शिष्यों को आप कलाबाज समझने की गलती कर सकते हैं तो मुंबई के सांताक्रुज में सर्फसेट फिटनेस स्टुडियो में अभ्यास करने वालों को सर्फर समझने की गलती कर सकते हैं. स्टुडियो में 13 रिपसर्फर एक्स बोर्ड स्थायी गेंदों पर ऐसे फिट किया गया है ताकि आपको पानी पर फिसलते सर्फबोर्ड पर खड़े होने का एहसास हो. सर्फसेट योग बोर्ड पर संतुलन साधने के कठिन अभ्यास के साथ शुरू होता है. ट्रेनर एलिशा मिस्त्री कहती हैं, “आप योग सीखना शुरू करते हैं तो पहले कोई खास भंगिमा बनाने का अभ्यास करें. फिर अपनी आंखें बंद करके संतुलन साधें. यह सर्फबोर्ड पर करना एकदम अलग किस्म का है. इससे आपको अपनी ताकत बढ़ाने, बांहों तथा पैरों को मजबूत करने और खुद में ध्यान केंद्रित करने में मदद मिलती है.”

24 वर्षीय एलिशा चार साल से योग ट्रेनर हैं. उन्होंने सांताक्रुज के योग इंस्टीट्यूट में शास्त्रीय पतंजलि योग का प्रशिक्षण लिया है. वे कहती हैं, “मैं बुनियादी सिद्धांतों को मानती हूं और आसान-सी मुद्राओं से अधिकतम लाभ लेने पर फोकस करती हूं.” जो अष्टांग आसन या पॉवर योग में दिलचस्पी रखते हैं, मिस्त्री उन्हें अपने स्टुडियो में प्रशिक्षण देने को तैयार रहती हैं.

सर्फसेट योग को भारत में इसी साल अपने स्टुडियो में 35 वर्षीय काजल तेजसिंहानी और उनके पति 37 वर्षीय दीपक ने शुरू किया. सर्फसेट योग की मूल प्रेरणा फिटनेस के एक अन्य तरीके पैडलबोर्ड योग से मिली है, जो 2009 से अमेरिका में लोकप्रिय है. काजल तेजसिंहानी कहती हैं, “पैडलबोर्ड योग किसी झील या बेहद शांत समुद्र में 10 फुट के पैडलबोर्ड पर किया जाता है, जो पारंपरिक सर्फबोर्ड से ज्यादा बड़ा होता है और पानी पर आसानी से तैरता रहता है. सर्फसेट बोर्ड को ईजाद करने वालों ने इस पर योग करने का नहीं सोचा था लेकिन यह ट्रेंड शुरू हुआ तो वे बोले, “क्यों नहीं?” यहां मुंबई में आप कोई सर्फबोर्ड लेकर जुहू बीच पर नहीं जा सकते हैं पर सर्फसेट बोर्ड ज्यादा बेहतर है.”

सर्फसेट योग में आपको पानी पर फिसलने का एहसास हो सकता है लेकिन मुंबई के बांद्रा में टैंजेरिन आर्ट्स स्टुडियो में एरियल सिल्क और ऐंटी-ग्रेविटी योग में आप हवा में झूलने का एहसास कर सकते हैं. इसका पहला कदम यह है कि आप अपने पैरों में सिल्क का कपड़ा फंसाइए और उसी से लटककर विभिन्न आसन कीजिए. जाहिर है, इसके सभी आसनों में पैर जमीन से ऊपर उठ जाता है. 25 वर्षीया ट्रेनर लारा सलूजा कहती हैं, “यह एकदम अलग किस्म का अनुभव है. ऐसा लगता है कि आप धरती से उठ गए हैं और पंख उग आए हैं. इसमें आपको उड़ने जैसा एहसास होता है.”

सलूजा को ओडिसी, लिरिकल जाज और आधुनिक नृत्य शैलियों में प्रशिक्षण मिला है. उन्होंने एरियल सिल्क की शुरुआत नाट्य नेक्टर डांस कंपनी की सदस्य होने के दौर में की. इस कंपनी में भारतीय शास्त्रीय नृत्य कलाओं में एक्रो-योग, युद्ध कला और एरियल सिल्क पद्धतियों का मिश्रण किया जाता है. सलूजा शरीर को मजबूत और संतुलित बनाने के लिए ऐंटी-ग्रेविटी की ओर मुड़ीं. टैंजेरिन आर्ट्स में सलूजा शरीर में ताकत और लचीलेपन को बढ़ाने के तरीके सिखाती हैं. उनके मुताबिक, इसका मकसद लोगों को सिर्फ योगाभ्यास कराना नहीं, बल्कि मंचीय प्रदर्शन में माहिर बनाना भी है. सलूजा कहती हैं, “यह कठिन है लेकिन काफी मजेदार है. आप सिर्फ योग के लाभ ही हासिल नहीं कर रहे हैं, बल्कि एक नई कला भी सीख रहे हैं.” जिन्हें ऊपर हवा में उठने से डर लगता है, वे इससे आश्वस्त हो सकते हैं कि हर अभ्यासकर्ता को ट्रेनर का यथासंभव सहयोग प्राप्त होता है. स्टुडियो में ट्रेनर-अभ्यासकर्ता का अनुपात इसी हिसाब से रखा जाता है. महीने भर पहले ही दिल्ली से मुंबई को ठिकाना बनाने वाली सलूजा 20-30 फुट ऊंची छत वाली जगह देख रही हैं, जो उनके योग कला के लिए जरूरी है.

सलूजा की ही तरह योगालेट्स इंस्ट्रक्टर 28 वर्षीय रश्मि रमेश का मूल प्रशिक्षण भी नृत्य में ही है. दोनों ने बेंगलूरू के अत्ताक्कलारि सेंटर फॉर मूवमेंट आर्ट्स से शिक्षा पाई है. 2011 में रश्मि ने योग और पाइलेट्स को मिलाकर योगालेट्स शुरू कर दिया, हालांकि यह दुनियाभर पहले से प्रचलित था. अत्ताक्कलारि में बैले डांसर तथा पाइलेट्स ट्रेनर क्लेयर कोलमैन से पाइलेट्स में प्रशिक्षण पाने के बाद रश्मि अपने ज्ञान को योग की ओर मोड़ना चाहती थीं. उन्होंने बेंगलूरू में आर्ट ऑफ लिविंग और हिमालय में शिवानंद योग वेदांत केंद्र में टीचर ट्रेनिंग के दो कोर्स किए. अपने घर मुंबई लौटने पर उन्होंने अपना अभ्यास शुरू किया. तब उन्हें एहसास नहीं था कि वे योगालेट्स कर रही हैं. वे कहती हैं, “मैं हर रोज दो घंटे योग और पाइलेट्स का मिला-जुला अभ्यास करती क्योंकि मुझे एहसास होता कि यह मेरी देह को भा रहा है. फिर मैं जान गई कि दोनों को जोड़ा जा सकता है और दोनों विधियां एक-दूसरे की पूरक हो सकती हैं और यह मिश्रण कारगर हो सकता है.”

यह कारगर साबित हुआ. रश्मि ने 2012 में डीवीडी जारी की और कॉर्पोरेट ट्रेनिंग प्रोग्राम भी किए. अपनी इस विधा के बारे में रश्मि कहती हैं, “योगालेट्स आसन के साथ-साथ पाइलेट्स विधि से शरीर को गतिशील बनाने की प्रक्रिया है. इसमें मूल मांसपेशियों को स्थिर रखकर धीरे-धीरे सांस ली जाती है. योगालेट्स आपकी चेतना को सांस से जोड़ता है और आपके शरीर पर बाह्य असर पैदा करता है.” बकौल रश्मि, इससे शरीर ताकतवर और लचीला बनता है तथा पेट की मांसपेशियों को मजबूती मिलती है.

रश्मि के प्रभादेवी स्टुडियो से कुछ दूर दीपिका मेहता बांद्रा के टेंपरेंस स्टुडियो में पारंपरिक और समकालीन शैलियों में नाजुक संतुलन बनाने की कोशिश करती हैं. मैसूरू में अष्टांग योग शैली के पुरोधा दिवंगत के. पट्टाभी जोएस और उनके पोते शरत जोएस की शिष्या 37 वर्षीय मेहता जोएस की शैली की जानी-मानी योग शिक्षक हैं. लेकिन उन्हें नृत्य और योग के फ्यूजन “डांस ऑफ प्राण” के लिए भी जाना जाता है, जिसे वे “गतिशील ध्यान की शैली” कहती हैं. अक्तूबर 2013 में न्यूयॉर्क के टेड टॉक में इसका प्रदर्शन करने के बाद योग शिक्षक मेहता ने हाल ही में जून में चीन के चेंग्दू में भारत-चीन योग महोत्सव में इसका प्रदर्शन किया है.

मेहता कहती हैं, “योग और नृत्य हमेशा ही मेरे लिए ईश्वर की साधना के माध्यम रहे हैं. “डांस ऑफ प्राण” आसनों की प्रैक्टिस शरीर को खोलने, रीढ़ और मस्तिष्क में ऊर्जा को प्रवाहित करने तथा इसके साथ-साथ नृत्य कला के जरिए आत्मबोध प्राप्त करने का माध्यम है.” मेहता इसे देह और दिमाग, दोनों को रुकावटों से मुक्त करने का तरीका मानती हैं. मेहता पूरब (आध्यात्मिक पहलू) और पश्चिम (जिसका जोर वैज्ञानिक, भौतिक और रासायनिक पहलुओं पर है) के श्रेष्ठ तत्वों का संगम योग में कराना चाहती हैं.

योग की स्वस्थकारी और परिवर्तनकारी शक्तियों का एहसास मेहता से बेहतर भला कौन जान सकता है. 1997 में एक चट्टान की चढ़ाई के दौरान 40 फुट नीचे गिरने के बाद मेहता ने आखिर योग को अपने जीवन का आधार बनाया. डॉक्टरों ने तो कह दिया था कि वे कभी चल-फिर नहीं सकतीं. लेकिन मेहता ने कुछ और ही राह अपनाई. पहले वे केरल में शिवानंद योग वेदांत धन्वंतरि आश्रम में गईं. वहां उन्होंने टीचर ट्रेनिंग कोर्स किया और उसके बाद जोएस के यहां अष्टांग योग का प्रशिक्षण लिया. योग की सबसे अधिक लोकप्रिय शिक्षक के नाते मेहता को अक्सर वर्कशॉप और सेमिनार-सम्मेलनों के लिए विदेश दौरे पर जाना पड़ता है. वे कहती हैं, “योग से मुझे प्रेरणा, शांति, स्वास्थ्य, चुस्ती और ईश्वर से संपर्क की अनुभूति होती है.”

मुंबई के योग 101 स्टुडियो में आपको इन सारे एहसास के साथ काफी पसीना बहाना और दर्द उठाना पड़ सकता है. अविनाश शर्मा के कोर कार्डियो योग क्लास में पेट और पीठ पर ज्यादा ध्यान दिया जाता है और फिर शरीर के दूसरे हिस्सों की ओर धीरे-धीरे बढ़ा जाता है. शर्मा कहते हैं, “मैं कठिन व्यायाम पर जोर देता हूं. मैं उन्हें चीखते हुए देखना चाहता हूं.” हफ्ते में एक बार लगने वाली इस क्लास का फल आखिरकार मीठा होता है. जो लोग सिक्स पैक पेट की चाहत रखते हैं, वे शर्मा के कड़ी मेहनत वाले व्यायाम से नहीं हिचकते. ऐसा ही करते हुए स्टुडियो की मालकिन और शर्मा की शिष्या रिंकू सूरी घंटे भर में हाफने लगीं. सूरी हंसते हुए कहती हैं, “यह किसी दुःस्वप्न की तरह था. इसमें योग जैसा कुछ नहीं है.” इसी वजह से वहां हिप-हॉप और ईडीएम संगीत बजता रहता है, ताकि शरीर की थकान और खिंचाव को आप भूल सकें.
भरत ठाकुर के कलात्मक योग के शिष्य शर्मा आसनों के साथ मूल व्यायाम और कार्डियो ट्रेनिंग का इस्तेमाल करते हैं, ताकि शारीरिक ताकत और क्षमता बढ़ सके. शर्मा बताते हैं, “एक आसन 20 अलग-अलग तरीकों से किया जा सकता है.” नतीजा यह होता है कि एक ही क्लास में 700 कैलोरी तक नष्ट हो जाती है. शर्मा गले, बांह, कंधों, पैर के व्यायाम से शुरू करते हैं और उसे बढ़ाते जाते हैं. कोई चाहे तो अधिकतम लाभ के लिए देर तक यह कर सकता है. वे कहते हैं, “आपको अपनी सीमा पहचाननी है.”
(साथ में, मोईना हलीम)

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