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द न्यू यॉर्कर ने जुलाई 1968 में वूडी एलन का लघु नाटक डेथ नॉक्स प्रकाशित किया था. यह सिर्फ एक अंक वाला और एक घंटे का नाटक था, जिसमें डेथ नैट एकरमैंस की जिंदगी के लिए जिन रमी खेलता है. 1957 में इंगमार बर्गमैन की मील का पत्थर कही जाने वाली फिल्म द सेवेंथ सील जिसमें डेथ स्वीडन में शतरंज खेलता है, ने 1975 में एलन की दूसरी रचनाओं गॉड और डेथ को भी प्रेरित किया. इन दोनों को मिलाकर उन्होंने ब्रॉडवे पर बतौर डायरेक्टर दस्तक दी. उनके प्रारंभिक लेखन के तौर पर, हालांकि उसका मंचन बहुत बाद में हो सका था, यह नाटक उनके व्यंग्य नाटक के लिए एक तरह से पूर्व अभ्यास साबित हुआ. एलन ने मंच की पृष्ठभूमि के लिए कार्टून वाले कटआउटों का इस्तेमाल किया, जिन्हें हाथों से इधर-उधर किया जाता था. उनके नाटक में कुछ इस तरह की लाइनें हैं&“नैटरू मैं खत्म नहीं हुआ हूं. डेथरू भाई, मैं नहीं जानता तुम्हें यह कैसे बताया जाए...” अस्तित्ववाद को रेखांकित करने के लिए इससे बेहतर और क्या हो सकता है. उनके बाद के नाटकों डोंट ड्रिंक द वाटर, प्ले इट अगेन, सैम, और द फ्लोटिंग लाइट बल्ब के लिए यह प्रस्तावना के रूप में साबित हुआ. बाद के ये सभी नाटक ब्रॉडवे में जबरदस्त सफल रहे. एलन को एक फिल्मकार और लेखक के रूप में समझने के लिए यह एक प्रकार से भूमिका का काम करता है.
अभिनेत्री कल्कि केकलैं ने इसी तरह की संवेदनाओं को लेकर अपनी कविता का इस्तेमाल करते हुए थिएटर के लिए अपनी पहली निर्देशकीय प्रस्तुति पेश की है. इसके साथ ही उन्होंने अपनी थिएटर कंपनी लिट्ल प्रोडक्शंस शुरू की है और एलन की तरह ही डेथ को अपनी श्रद्धांजलि दी है. बहरहाल, यहां आकर कल्कि की मौजूदा रचना रोचक बन जाती है. मजे की बात है कि उन्होंने एलन की रंगमंचीय प्रस्तुतियों को न देखा है और न ही कभी पढ़ा है. फिर भी वे मानती हैं कि उनकी खास शैली का व्यंग्य जीवन भर प्रभावित करने वाला है. इसके बाद तो एलन के संदर्भ स्वाभाविक रूप से सहज और संयोगवश ही रह जाते हैं. कल्कि कहती हैं, “दरअसल, जब किसी ने मुझे बताया कि यह उन्हें एलन की याद दिलाता है तो मैंने फैसला कर लिया कि मैं इसके बाद उनका नाटक बिल्कुल नहीं पढ़ूंगी ताकि मेरे ऊपर कहीं से भी उसका प्रभाव न पड़ने पाए.” यही वजह है कि नतीजा शानदार रहा और एक प्रकार से वे मूल विरासत को आगे ले जाने में काफी सफल रही हैं.
जून के महीने की बरसाती दोपहर के समय मुंबई में अंधेरी के लक्ष्मी इंडस्ट्रियल स्टेट के वातानुकूलित स्टूडियो में यह पहली पूर्ण रिहर्सल है और कल्कि सफेद रंग की गंजी और जींस में बड़ी बेचैनी के साथ फर्श पर पद्मासन लगाती हैं. जो लोग कलर ब्लाइंड, हैमलेट&द क्लाउन प्रिंस और ट्रिवियल परसूट्स जैसे नाटकों में उनका अभिनय देख चुके हैं, उनके लिए मार्गरिटा, विद अ स्ट्रॉ में की उनकी शानदार भूमिका के तीन महीने बाद उनकी ऊर्जा को देखकर जरूर हैरत हुई होगी. उन्होंने डायरेक्टर के तौर पर अपनी प्रतिभा का लाजवाब परिचय दिया है.
उन्हें फिल्मों के सेट पर लोगों ने हमेशा ही शांत और विनम्र महिला के रूप में देखा है, लेकिन निर्देशक की भूमिका में आने के बाद वे काफी आक्रामक दिखाई देती हैं. वे हर किसी की गतिविधि पर नजर रखती हैं. अगर कोई ऐक्टर अपनी लाइन भूल जाता है तो उस पर गुस्सा भी करती हैं. निर्देशक के रूप में आने की वजह से उनकी बॉडी लैंग्वेज भी बदली हुई नजर आती है. इस तरह वे आखिरकार अपने स्वाभाविक रूप में नजर आती हैं.
उनके द लिविंग रूम (जुलाई में बेंगलूरू में दिखाया जाएगा) में गंभीर दिखने वाले नील भूपालम डेथ की भूमिका कर रहे हैं. उनका शरीर नीले रंग से रंगा है. यह रंग भारतीय पौराणिक कथाओं के पात्रों के लिए दिव्यता और अमरता का संकेत देने के लिए इस्तेमाल होता है. नील इस रंग और वेशभूषा में काफी हद तक फिल्मी कृष्ण जैसे दिखते हैं. वे मुक्ति के स्वामी के तौर पर कठोर स्वभाव वाले दिखाई देते हैं तो जिंदगी की खोज करने वाले के तौर पर हिचक से भरे और रहस्यमय स्वभाव वाले नजर आते हैं. यह नाटक शीबा चड्ढा, जो श्रीमती एना निल की भूमिका में हैं, के जागने के एक धैर्य भरे इंतजार के साथ खुलता है. एना घर की मालकिन हैं और सो रही हैं. डेथ उनके जागने का इंतजार करता है. जागने पर एना को पता चलता है कि उनका अंत निकट है. जिम सर्भ ने उनके पौत्र बार्न की भूमिका निभाई है.
भूपालम के संग शीबा चड्ढा की भूमिका इतनी खूबसूरती से तैयार की गई है कि कल्कि की इस प्रस्तुति को देखकर एलन को भी गर्व होता. श्रीमती एना की भूमिका में शीबा की नाटकीयता थोड़ी अतिरंजित जरूर है लेकिन अपना अंत करीब आने की दशा में वह तुरंत संयत हो जाती है. वे कल्पना करती हैं कि वे किसी रियलिटी टेलीविजन के शो में हिस्सा ले रही हैं. और इन दो पात्रों के पारस्परिक प्रभाव के जरिए कल्कि प्रासंगिकता के अपने अस्तित्ववादी सवालों को उठाती हैं.
कल्कि केकलैं अपने इस नाटक के माध्यम से यह बताना चाहती हैं कि इंसान मौत के भय को हल्के में ले सकता है. इस तरह से मंच पर कई तरह के प्रयोगों के साथ यह नाटक जटिल होने के साथ नयापन लिए हुए और काफी दमदार भी लगता है.
मार्गरिटा से ठीक पहले आखिरकार दो साल के बाद जब यह डिब्बे से बाहर निकली और रिलीज की अनुमति मिली तो कल्कि ने बांद्रा के इंबिस में जर्मन सॉसेज का मजा लेते हुए स्वीकार किया था कि वे एक निचोड़ लिए जाने वाले दौर से उबर रही थीं. 31 साल की होने पर उन्होंने एक बार कहा था, “आपकी उम्र बढ़ने के साथ सेक्स बेहतर होता जाता है.”
वे व्यावसायिक सफलता के लिए अपनी जरूरत, मुख्य भूमिकाओं, फैशन की अपनी इच्छाओं, अपनी कविताओं, अपने लेखन और अपनी कहानियों को प्रस्तुत करने की जरूरत के बीच संतुलन बनाने की कोशिश कर रही थीं. लेकिन पत्रकार उनके रचनात्मक कार्यों से ज्यादा यह जानने को उत्सुक लग रहे थे कि वे क्या हैं, उनका रिश्ता क्यों टूटा और अब पूर्व पति निर्देशक अनुराग कश्यप के साथ उनका संबंध कैसा है या फिल्म इंडस्ट्री उन्हें और उनके काम को लगातार कश्यप के संदर्भ में ही देखती रहेगी. अपने पुराने दुखदायी अनुभवों से गुजरने के बाद वे एक बार फिर नए अवतार में आने की कोशिश कर रही हैं.