कनॉट प्लेस के भव्य मेट्रो भवन के आठवें तल पर बने दफ्तर में दिल्ली मेट्रो के प्रबंध निदेशक मंगू सिंह खासे व्यस्त नजर आ रहे हैं. गहरे नीले रंग की बुकलेट ‘‘टुवर्ड्स न्यू होराइजन्स (नए क्षितिज की ओर)’’ को इस संवाददाता की तरफ बढ़ाते हुए कद्दावर सिविल इंजीनियर सिंह कहते हैं, ‘‘अब मेट्रो दिल्ली तक ही सीमित नहीं रही. देशभर में सुगबुगा रही 42 मेट्रो परियोजनाएं आखिर दिल्ली मेट्रो के डीएनए से ही तो जुड़ी हैं. दिल्ली मेट्रो तो अब बड़े भाई की भूमिका में आ गई है.’’
आप नाम गिनते जाइए मुंबई, चेन्नै, कोलकाता, पटना, लखनऊ, भोपाल, चंडीगढ़, जयपुर, नागपुर. क्या उत्तर, क्या दक्षिण हर तरफ के शहर को अपने लिए एक अदद मेट्रो ट्रेन चाहिए. भोपाल और पटना में मेट्रो के लिए अध्ययन चल रहा है, चंडीगढ़ की विस्तृत परियोजना रिपोर्ट (डीपीआर) तैयार हो रही है, जयपुर मेट्रो ट्रायल रन देख चुकी है और कोच्चि मेट्रो नए साल पर सफर शुरू करने की तैयारी में है. दिल्ली की तर्ज पर सभी को सस्ती, समय से चलने वाली और बड़े देश के नागरिक जैसा एहसास कराने वाली मेट्रो की एयरकंडीशंड यात्रा की जरूरत है.
इंडिया टुडे ने विकास का राजनैतिक मुहावरा बन चुकी मेट्रो के लिए शहर दर शहर उमड़ रहे उत्साह औैर इससे जुड़ी कहानियों को समेटने की कोशिश की. आज मेट्रो चलाना 16 साल पहले मेट्रो का ख्वाब देखने की तुलना में बहुत आसान है. मंगू सिंह याद करते हैं, ‘‘तब तक तो लोगों ने कलकत्ता मेट्रो के किस्से ही सुने थे, जिसे बनने में दो दशक लगे थे.’’ वे बताते हैं कि तब की मेट्रो में भर्ती के लिए कागजी डिग्रियों से कहीं ज्यादा मेट्रोमैन ई. श्रीधरन का भरोसा जरूरी था.
कैसे एक-एक आदमी छांटकर पहली टीम बनी. फिर आधी टीम यूरोप और आधी एशियाई देशों में मेट्रो को समझ्ने गई. देश में अपने किस्म का सबसे तेज निर्माण अभियान शुरू हुआ. और आज देश अपनी जरूरत की मेट्रो ट्रेनें बनाने में सक्षम है. विदेशी टेक्नोलॉजी पर पूरी तरह निर्भर रही मेट्रो के पास आज अपनी तकनीक है. भारतीय इंजीनियर सिविल इंजीनियरिंग का 100 फीसदी काम खुद संभाल रहे हैं. मेट्रो निर्माण अब इतना आसान हो गया है कि हर शहर जल्दी से जल्दी इसे बनाना चाहता है (देखें चार्ट) और हर शहर के पास अपनी-अपनी मेट्रो के दिलचस्प राजनैतिक अफसाने हैं.
लखनऊ मेट्रो‘‘मुस्कुराइए कि आप लखनऊ में हैं.’’ यह वह जुमला है जो खुद को व्यक्त करने के लिए नवाबों के शहर लखनऊ को सबसे ज्यादा पसंद है. लेकिन जब मई के महीने में 2014 लोकसभा चुनाव के नतीजे आए और सत्तासीन समाजवादी पार्टी के वजूद के लिए खतरा पैदा हो गया तो मुख्यमंत्री अखिलेश यादव को मेट्रो रेल में रामबाण उपाय दिखाई दिया. वैसे तो उन्होंने मार्च में ही लखनऊ मेट्रो के लिए 250 करोड़ रु. का शुरुआती बजट आवंटित कर दिया था, लेकिन हार के एक पखवाड़े के भीतर ही राज्य सरकार ने अमौसी ट्रांसपोर्ट नगर से चारबाग तक के पौने सात किमी लंबे रास्ते पर मेट्रो के खंभे खड़े करने के लिए जगह दे दी.
प्रदेश के मुख्य सचिव आलोक रंजन कहते हैं, ‘‘इस स्ट्रेच पर 2,000 करोड़ रु. खर्च होंगे.’’ मेट्रो के काम को तेज करने के लिए लालफीताशाही वाले नियमों को ताक पर धर व्यावहारिक नियम बनाने में भी वक्त नहीं लगा. यह भी तय हो गया कि परियोजना पर कुल 6,880 करोड़ रु. खर्च किए जाएंगे. 27 सितंबर को मेट्रोमैन श्रीधरन की मौजूदगी में मुख्यमंत्री ने फटाफट मेट्रो परियोजना का नारियल भी फोड़ दिया. साथ ही लखनऊ मेट्रो को निर्देश दिया कि दिसंबर 2016 तक हर हाल में मेट्रो चल जाए.
(लखनऊ में मेट्रो के शिलान्यास के मौके पर अखिलेश यादव और ई. श्रीधरन)
श्रीधरन भी कहते हैं, ‘‘एक माह के भीतर ट्रांसपोर्ट नगर से चारबाग के बीच मेट्रो का काम दिखने लगेगा.’’ दिखे भी क्यों न? आखिर फरवरी 2017 में विधानसभा चुनाव होंगे, उससे ठीक पहले मुख्यमंत्री की विकास वाली छवि निखरनी चाहिए. लेकिन इस सियासी फैसले का फायदा यह होगा कि पहले ही दिन करीब 1 लाख लखनऊवासी अपनी मेट्रो में साफ-सुथरा और तेज सफर करेंगे. वैसे 2018 में जब मेट्रो का दूसरा चरण भी काम करने लगेगा तो लखनऊ के 4.5 लाख लोग रोजाना इसमें सफर कर सकेंगे. इधर, यूपी के गाजियाबाद में भी मेट्रो और भीतर प्रवेश करने वाली है.
जयपुर मेट्रो गुलाबी शहर में मेट्रो का पहला प्रस्ताव सन् 2000 में आया था, यानी तकरीबन उसी वक्त जब दिल्ली मेट्रो का काम शुरू हुआ था. लेकिन तत्कालीन मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने इसे ‘‘शेखचिल्ली की डींग’’ कहकर खारिज कर दिया. 2004 में यानी जब दिल्ली में मेट्रो चालू हो गई, तत्कालीन मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे ने एक बार फिर इस प्रस्ताव को आगे बढ़ाया तो मेट्रो के तत्कालीन मुखिया श्रीधरन ने कहा कि अगले 15-20 साल तक शहर को मेट्रो की जरूरत नहीं है.
(गार्डन सिटी कहे जाने वाले बंगलुरू में दौड़ती मेट्रो)
लेकिन बाद में जब गहलोत दोबारा मुख्यमंत्री बने तो उन्होंने अपनी खास छाप छोडऩे के लिए मेट्रो पास करा ली. इस वक्त तक श्रीधरन की राय भी जयपुर मेट्रो को लेकर बदल गई और दिल्ली मेट्रो को ही जयपुर मेट्रो बनाने का जिम्मा सौंप दिया गया. गहलोत ने मेट्रो को तैयार करने के लिए दिसंबर 2012 की महत्वाकांक्षी समय सीमा तय कर दी. हालांकि यह समयसीमा तो पूरी नहीं हो सकी लेकिन नवंबर 2013 में प्रदेश में हुए विधानसभा चुनाव से ठीक पहले गहलोत ने मेट्रो का ट्रायल रन करा लिया. इसके बावजूद कांग्रेस विधानसभा चुनाव में बुरी तरह हार गई.
लेकिन वसुंधरा सरकार ने इस परियोजना को रोकने के बारे में नहीं सोचा. वजहरू महारानी को भी पता है कि मेट्रो का ख्वाब लोगों के दिल में उतर चुका है. इसीलिए अब मेट्रो शुरू करने की नई तारीख मार्च 2015 तय की गई है. शहर में मानसरोवर से चांदपोल तक के नौ किमी के रास्ते में 2,023 करोड़ रु. की लागत से मेट्रो ट्रैक बनकर तैयार हो चुका है.
अभी 25 किमी मेट्रो ट्रैक और बनना है. और लोग चाहते हैं कि मेट्रो बने क्योंकि शहर की यातायात व्यवस्था पूरी तरह लचर है. जो बसें बीआरटीएस कॉरिडोर के लिए आई थीं वे बीआरटी को बंद करने के तत्कालीन गहलोत सरकार के फैसले के कारण कंडम हो चुकी हैं. गुलाबी शहर अब मेट्रो के जरिए आसान यात्रा का गुलाबी ख्वाब देख रहा है. कभी परियोजना की आलोचना करती रहीं राजे भी इसी ख्वाब के सहारे इसे तेजी से पूरा करना चाहती हैं.
(इस साल मुंबई में शुरू हुई देश की पहली मोनोरेल)
पटना, भोपाल और चंडीगढ़पटना को भी अपनी मेट्रो चाहिए. इसीलिए सितंबर 2011 में तत्कालीन शहरी विकास मंत्री डॉ. प्रेम कुमार ने पीपीपी मॉडल पर शहर में मेट्रो सेवा शुरू करने का फैसला किया. लेकिन राजनैतिक अनिश्चितता के दौर में मामला लटकता रहा. प्रदेश में अगले साल चुनाव होने हैं और यूपी की तरह यहां भी सत्ताधारी जेडी(यू) को लोकसभा चुनाव में मुंह की खानी पड़ी है. इसलिए शहरी विकास मंत्री सम्राट चौधरी दावा करते हैं, ‘‘31 मार्च, 2015 से पहले यह प्रोजेक्ट जमीन पर आ जाएगा.’’
उन्हें भरोसा है कि 31 अक्तूबर तक 17,000 करोड़ रु. की परियोजना की डीपीआर तैयार हो जाएगी. पटना में पूर्व-पश्चिम रूट पर दानापुर और मीठापुर के बीच 14.5 किमी और उत्तर दक्षिण रूट पर दीघा से सचिवालय तक के 16.5 किमी रूट पर मेट्रो चलाई जाएगी.
अगर पटना को डीपीआर का इंतजार है तो चंडीगढ़ डीपीआर बनने के बावजूद दुविधा में है. चंडीगढ़ प्रशासन और हरियाणा तथा पंजाब की सरकार अब तक स्पेशल परपज व्हीकल के गठन में नाकाम रही हैं जो परियोजना के क्रियान्वयन के लिए जिम्मेदार होता है. इसीलिए 10,900 करोड़ रु. की लागत से बनने वाली चंडीगढ़ मेट्रो का जो काम अप्रैल 2013 में शुरू होकर 2018 में खत्म होना था, वह अभी तक शुरू नहीं हो सका है.
शहर की सांसद किरण खेर कहती हैं, ‘‘मैंने अधिकारियों के साथ बहुत-सी बैठकें कीं मगर यही सुनने को मिला कि जब तक शहर की परिधि पर बसे इलाकों को मेट्रो से नहीं जोड़ा जाता तब तक मेट्रो बहुत काम की साबित नहीं होगी.’’ हर रोज 200 नए वाहनों का रजिस्ट्रेशन दर्ज करने वाले चंडीगढ़ के ट्रैफिक को मेट्रो की जरूरत है. शहर की वरिष्ठ आर्किटेक्ट बंदना सिंह कहती हैं, ‘‘हम इस बात को लेकर डरते रहते हैं कि जैसे ही चंडीगढ़ के डिजाइन में कोई बदलाव किया जाएगा, पूरे देश में और विदेश से भी हल्ला मचने लगेगा, लेकिन यह तो देखना पड़ेगा कि क्या ला कार्बूजिये का चंडीगढ़ बदलते वक्त की जरूरतें पूरा कर पा रहा है?’’
अगर चंडीगढ़ उलझन में है तो मध्य प्रदेश उत्साह में. प्रदेश के शहरी विकास मंत्री कैलाश विजयवर्गीय भरोसा दिलाते हैं, ‘‘तीन साल में भोपाल और इंदौर में मेट्रो चालू हो जाएगी.’’ दोनों शहरों के लिए डीपीआर तैयार कर रहे रोहित एसोसिएट्स के मुताबिक, यहां पूरी तरह से ऑटोमेटिक और ड्राइवर रहित मेट्रो प्रणाली पर विचार किया जा रहा है.
(कोच्चि में मेट्रो को डीएमआरसी के हवाले करने की मांग करते केरल के वाम मोर्चा सांसद)
दक्षिण और पश्चिम में भी उत्साहमहाराष्ट्र चुनाव के नतीजे आने से पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में केंद्रीय कैबिनेट ने तीन बड़े फैसले किएरू डीजल की कीमतों को सरकारी नियंत्रण से मुक्त करना, प्राकृतिक गैस की कीमतों में वृद्धि और अहमदाबाद मेट्रो के लिए 10,500 करोड़ रु. का आवंटन. तीसरा फैसला बताता है कि प्रधानमंत्री अपने मशहूर गुजरात विकास मॉडल को एक अदद मेट्रो जोड़कर पूरा करना चाहते हैं.
पड़ोसी राज्य महराष्ट्र में मुंबई और पुणे दोनों शहरों को अपनी मेट्रो चाहिए. हालांकि मुंबई में तो मोनो रेल भी चल रही है.
दक्षिण में हैदराबाद, बंगलुरू, चेन्नै और कोच्चि, चारों शहरों में मेट्रो चलाने या उसका विस्तार करने की जल्दबाजी है. हैदराबाद में 72 किमी मेट्रो ट्रैक बनना है और मुख्यमंत्री के. चंद्रशेखर राव को उम्मीद है कि 2016 से मेट्रो चलने लगेगी. बंगलुरू अक्तूबर 2011 से मेट्रो से जुड़ा है और दूसरी लाइन इस साल शुरू होनी है. चेन्नै में भी काम जोरों पर है.
उधर, केरल में कोच्चि की स्थिति यह है कि खुद मुख्यमंत्री उम्मन चांडी बार-बार परियोजना का जायजा ले रहे हैं और मेट्रोमैन श्रीधरन इस परियोजना के मुखिया हैं. आखिर भगवान का अपना देश कहा जाने वाला केरल श्रीधरन का गृह प्रदेश जो ठहरा. चांडी का दावा है कि इस साल नव वर्ष की पूर्व संध्या पर मेट्रो चालू हो जाएगी.
यानी हर शहर जल्दी में है. 21वीं सदी के लोगों को लग रहा है कि जब तक उनके शहर में चमचमाती मेट्रो नहीं होगी, तब तक मॉडर्न लुक नहीं आएगा. तो कब तक चलता रहेगा यह मेट्रो रश? मंगू सिंह जवाब देते हैं, ‘‘हम पहले से ही 20 से 25 साल आगे चल रहे हैं. अभी तो बस चलते जाना है.’’
(-साथ में आशीष मिश्र, रोहित परिहार, लेमुअल लाल, असित जॉली और अशोक कुमार प्रियदर्शी.)