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टाटा समूह में खेल अभी बाकी है

टाटा समूह की शीर्ष कंपनियों के अध्यक्ष पद पर साइरस मिस्त्री बरकरार, सत्ता संघर्ष जल्दी खत्म होने के आसार दिखते नहीं.

4 नवंबर, 2016 को इंडियन होटल्स कंपनी लिमिटेड की बोर्ड बैठक के लिए बॉम्बे हाउस आते हुए साइरस मिस्त्री 4 नवंबर, 2016 को इंडियन होटल्स कंपनी लिमिटेड की बोर्ड बैठक के लिए बॉम्बे हाउस आते हुए साइरस मिस्त्री
एम.जी. अरुण
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  • 23 नवंबर 2016,
  • अपडेटेड 6:14 PM IST

उस दिन माहौल में खासी सरगर्मी थी. प्रतिष्ठित ताज ग्रुप ऑफ होटल्स की मालिक टाटा समूह की कंपनी इंडियन होटल्स कंपनी लिमिटेड (आइएचसीएल) के बोर्ड निदेशकों की बैठक होने वाली थी. यह बैठक 140 अरब डॉलर के टाटा समूह के मुख्यालय मशहूर बॉम्बे हाउस में होनी थी. साइरस मिस्त्री, जिन्हें कुछ दिन पहले टाटा संस के अध्यक्ष पद से हटा दिया गया था, जब वहां पहुंचे, तो बाहर अफरा-तफरी मची थी. भीतर उम्मीद के विपरीत माहौल खासा मिलनसार था. मिस्त्री ने बैठक की अध्यक्षता की, जिसमें आइएचसीएल की दूसरी तिमाही के नतीजे रखे गए. बोर्ड के निदेशकों में सात स्वतंत्र निदेशक थे, जिनमें एचडीएफसी के चेयरमैन दीपक पारेख, हिंदुस्तान लीवर के पूर्व अध्यक्ष केकी दादीसेठ और उद्योगपति नादिर गोदरेज भी शामिल थे. बोर्ड ने वित्तीय नतीजों को मंजूरी दे दी. अकेले इस कंपनी ने समीक्ष्य तिमाही के लिए साल भर पहले के 7.12 करोड़ रुपए के घाटे के बरअक्स 27.65 करोड़ रुपए का मुनाफा दिखाया था.

लेकिन उसके बाद जो हुआ, उसने हरेक को ताज्जुब में डाल दिया. बॉम्बे स्टॉक एक्सचेंज को सौंपे गए एक बयान में आइएचसीएल के स्वतंत्र निदेशकों ने अपने अध्यक्ष मिस्त्री में श्पूरा विश्वास्य जाहिर किया और ''कंपनी को रणनीतिक दिशा और नेतृत्व प्रदान करने में उनके उठाए गए कदमों की तारीफ की." उन्होंने कहा कि उनके इस बयान से कंपनी की प्रतिभूतियों का कारोबार करने वाले निवेशक और आम लोग ''स्वस्थ फैसला ले पाने में" समर्थ होंगे. स्वतंत्र निदेशकों के इस कदम ने टाटा संस के उन आरोपों की हवा निकाल दी, जो 24 अक्तूबर को बोर्डरूम के भीतर एक तख्तापलट में उन्हें अध्यक्ष के पद से हटाते हुए लगाए गए थे. इन आरोपों में कहा गया था कि उनका कार्यकाल ''बार-बार समूह की संस्कृति और सदाचारों से भटकाव से भरा था", लेकिन यह साफ-साफ नहीं बताया गया था कि ये भटकाव क्या थे. इस कदम ने एक हद तक इस आम धारणा को भी दूर कर दिया कि मिस्त्री को अच्छा कामकाज नहीं कर पाने की वजह से हटाया गया था. इसने उन कुछ दलीलों को भी सही ठहराने में मदद की, जो बाहर का दरवाजा दिखाए जाने के बाद उन्होंने टाटा संस को लिखी चिट्ठी में सामने रखी थीं.

शेयरधारकों की वोटिंग पर सलाहकार कंपनी इनगवर्न रिसर्च सर्विसेज के संस्थापक और एमडी श्रीराम सुब्रमण्यन कहते हैं, ''(आइएचसीएल के निदेशकों का यह कदम) इसलिए अहम है क्योंकि यह बताता है कि भारत में कॉर्पोरेट गवर्नेंस विकसित हो गया है. यह पहला मौका है, जब स्वतंत्र निदेशकों के विचार सामूहिक तौर पर बाहर लाए जा रहे हैं." वे आगे कहते हैं, ''ये विचार प्रमोटर शेयरधारक टाटा संस से अलग और विरोधीभासी मालूम दे रहे हैं. टाटा संस को चाहिए कि वह साइरस मिस्त्री को अध्यक्ष के पद से हटाने की वजहों को सामने रखे." आइएचसीएल बोर्ड का बयान इसलिए और भी अहम है क्योंकि तिमाही नतीजों पर विचार करने के लिए मिस्त्री की अध्यक्षता वाली कुछ और बड़ी टाटा कंपनियों के बोर्ड की बैठक जल्दी ही होने वाली है और वे भी ऐसा ही बयान जारी कर सकते हैं. इस सबसे टाटा-मिस्त्री का मामला एक अच्छी-खासी मुठभेड़ में बदल सकता है और बहुत करीने से गढ़ी गई टाटा की छवि को तार-तार कर सकता है. मिस्त्री नमक से सॉफ्टवेयर तक बनाने वाले टाटा समूह की 26 सूचीबद्ध समूह संचालित कंपनियों में से सात के अध्यक्ष हैं.

म्यान से बाहर तलवारें
पूर्व सॉलिसिटर जनरल और टाटा समूह के एक सलाहकार मोहन पाराशरन ने आइएचसीएल के स्वतंत्र निदेशकों के कदम को ''एक लंबी लड़ाई का बहुत सोचा-समझा कदम" करार दिया. उन्होंने कहा, ''टाटा समूह को कुछ ठोस कदम उठाने होंगे." ये निदेशक अपने फैसले को जैसी हड़बड़ी में स्टॉक एक्सचेंजों तक ले गए, उस पर भी उन्होंने सवाल उठाए. हालांकि सुप्रीम कोर्ट के एक वकील एच.पी. रानिना ने कहा कि एक्सेचेंजों को जल्दी से बताने का फैसला तारीफ के लायक है और यह बताता है कि कंपनी के बोर्ड ने कॉर्पोरेट गवर्नेंस के ऊंचे मानकों का पालन किया है.

ज्यादातर लोगों का कहना है कि भरोसे लायक वजह बताए बगैर मिस्त्री को अचानक अनुचित ढंग से हटाना एक ऐसा तकलीफदेह मुद्दा है, जो टाटा के खिलाफ जाएगा. इंस्टीट्यूशनल इनवेस्टर एडवाइजरी सर्विसेज के एमडी अमित टंडन कहते हैं कि टाटा संस सूचीबद्ध कंपनी नहीं है और इसलिए शेयरधारकों के एक सीमित समूह के प्रति जवाबदेह है. तो भी इसके कार्यकलाप टाटा समूह की सभी कंपनियों पर और एक लिहाज से समूचे कॉर्पोरेट भारत पर असर डालते हैं. वे आगे कहते हैं, ''समूह में टाटा संस की अहमियत और शेयरधारकों के सभी हिस्सों में टाटा नाम की प्रतिष्ठा और सम्मान को देखते हुए टाटा संस के लिए यह बेहद जरूरी है कि उसने जितना बताया है, उससे ज्यादा का खुलासा करे." इंडियन स्कूल ऑफ बिजनेस, हैदराबाद में थॉमस ''मिडहाइनी सेंटर फॉर फैमिली एंटरप्राइजेज के प्रोफेसर और एग्जीक्यूटिव डायरेक्टर कविल रामचंद्रन कहते हैं, ''नेतृत्व के उत्तराधिकार का हस्तांतरण एक रिले रेस की तरह है और यह ठीक से संपन्न हो, इसके लिए जरूरी है कि दोनों धावकों के बीच बढिय़ा तालमेल बना रहे." वे आगे कहते हैं कि टाटा बोर्ड को, जिसमें ट्रस्टों के मनोनीत लोग भी शामिल हैं, मिस्त्री के साथ मिल-बैठकर छोटी और लंबी अवधि के कामकाज के वित्तीय और गैर-वित्तीय लक्ष्य तय करने चाहिए थे, जो टाटा समूह के मूल्यों और उसके दर्शन के दायरे में होते.

लेखक, व्याख्याता और सलाहकार मोर्जेन विट्जेल, जिन्होंने टाटाः दि इवॉल्यूशन ऑफ ए कॉर्पोरेट ब्रांड नाम की किताब लिखी है, कहते हैं, ''मुझे नहीं पता कि मिस्त्री को कौन-से लक्ष्य दिए गए थे. अध्यक्ष बनने से पहले वे कुछ समय के लिए बोर्ड के सदस्य थे. इसलिए अगर वे मूल्यों को नहीं समझे तो यह तो हैरानी की बात हुई." वे आगे कहते हैं, ''मुझे लगता है कि यह विवाद रणनीतिक दिशा को लेकर है, हालांकि टाटा में रणनीतिक दिशा और मूल्य बेशक नजदीकी से गुंथे हुए हैं."

मिस्त्री के लिए समर्थन
टाटा संस बोर्ड को अपनी पांच पन्नों की चिट्ठी में मिस्त्री ने कहा था कि टाटा ट्रस्ट्स के कंपनी विधान में किए गए संशोधनों ने और कंपनी के शेयरधारकों के बड़े हिस्से ने बड़े रोड़े पैदा किए और कायापलट करने की उनकी क्षमता को सीमित कर दिया. उन्होंने कुछ कंपनियों और प्रोजेक्ट का अलग से नाम भी लिया था. इनमें टाटा स्टील और उसकी यूरोपीय शाखा, जिसे अब बेचने का प्रस्ताव है, इंडियन होटल्स, टाटा कैपिटल और टाटा मोटर्स का नैनो प्रोजेक्ट शामिल थे. इसमें विस्तार से बताया गया था कि इन्हें ठीक करने की जरूरत क्यों है. उन्होंने आगाह किया था कि खराब निवेशों की वजह से समूह 18 अरब डॉलर का घाटा देने के करीब आ गया है.

मिस्त्री की अगुआई में टाटा समूह की कंपनियों के शेयरों की चाल देखकर तो यही लगता है कि निवेशकों ने मिस्त्री की हिमायत की है. जिन कंपनियों में मिस्त्री अध्यक्ष हैं, उनमें इंडियन होटल्स कामकाज के चार्ट में सबसे ऊपर है, जिसने उनके कार्यकाल में दिसंबर, 2012 से अक्तूबर, 2016 के बीच अपने बाजार पूंजीकरण में 21.3 फीसदी की सालाना बढ़ोतरी की है. उसके बाद टीसीएस (19.1 फीसदी), टाटा मोटर्स (17.1 फीसदी) और टाटा केमिकल्स (14 फीसदी) आती हैं. इससे समूह कंपनियों के अध्यक्ष पदों से मिस्त्री को हटाना और ज्यादा पेचीदा हो सकता है, जब तक कि टाटा संस उन्हें हटाने का ज्यादा भरोसे लायक कारण सामने नहीं रखता. बाजार नियामक सेबी के एक पूर्व कार्यकारी निदेशक जे.एन. गुप्ता कहते हैं, ''अध्यक्ष को नियुक्त करने या हटाने के टाटा संस के कानूनी अधिकार को लेकर संदेह नहीं है, लेकिन हटाने के लिए अपनाई गई प्रक्रिया भरोसेमंद नहीं."

इनगवर्न के सुब्रह्मण्यन कहते हैं, ''रतन टाटा को अंतरिम अध्यक्ष के तौर पर लाना बताता है कि समूह के भीतर सीनियर एक्जीक्यूटिव की नियोजित या अनियोजित विदाई के लिए कोई उत्तराधिकार योजना नहीं बनाई गई थी."

पहले के समय में टाटा संस का अध्यक्ष समूह कंपनियों का भी अध्यक्ष हो, इसमें कोई दिक्कत नहीं थी, क्योंकि सभी शेयरधारक और निदेशक उनकी पसंद के साथ एकमत दिखाई देते थे. लेकिन अब इन कंपनियों के कई बोर्ड सदस्यों के मिस्त्री के प्रति सहानुभूति जाहिर करने के साथ स्थिति बदल चुकी है. जब तक शेयरधारक मिस्त्री के खिलाफ वोट नहीं देते, तब तक टाटा संस के नए अध्यक्ष अपने आप सूचीबद्ध कंपनियों के अध्यक्ष नहीं बन सकेंगे.

यह लगातार साफ होता जा रहा है कि मिस्त्री का टाटा समूह की कंपनियों के बोर्डों से हटने का कोई इरादा नहीं है. और अधिकाधिक बोर्ड उनके नेतृत्व में अपना भरोसा जाहिर करने का रास्ता चुन सकते हैं. अगर बोर्डरूम में लड़ाई छिड़ती है तो संभावना यही है कि इनमें से हरेक कंपनियों के निदेशक—टाटा केमिकल्स में भास्कर भट और आर. मुकुंदन, टाटा स्टील में कौशिक चटर्जी और टी.वी. नरेंद्रन, टाटा मोटर्स में गुएंटर बुट्शेक, राल्फ स्पेथ, रवि पिशारोडी और सतीश बोरवंकर—मिस्त्री के साथ जाएंगे. ऐसे में ये स्वतंत्र निदेशक ही होंगे, जो अहम भूमिका अदा करेंगे (देखें बॉक्सः सत्ता के खिलाड़ी). टाटा पावर के नवशीर मिर्जा सरीखे कुछ लोगों ने सार्वजनिक तौर पर कहा कि मिस्त्री ''अच्छे" अध्यक्ष थे और इस भूमिका में उन्होंने बोर्ड और प्रबंधन में अच्छे मूल्यों का योगदान दिया है."

बोर्डरूम से शेयरधारकों तक
अगर स्वतंत्र निदेशक वाकई मिस्त्री के गिर्द एकजुट हो जाते हैं तो टाटा संस के पास इसके अलावा कोई और विकल्प नहीं बचेगा कि वह हरेक कंपनी की असाधारण आम सभा (ईजीएम) बुलाकर समूह की कंपनियों से मिस्त्री को बेदखल करने की कोशिश करे. ईजीएम निवेशकों को 21 दिनों का नोटिस देकर बुलाई जा सकती है और तीन दिनों के दौरान इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग के जरिए अध्यक्ष को हटाने की कोशिश की जा सकती है. टाटा संस खुद बड़ा शेयरधारक है और टाटा स्टील, टाटा मोटर्स और टाटा केमिकल्स में ही अकेले उसकी 30 फीसदी हिस्सेदारी है. इसको देखते हुए वे भारतीय जीवन बीमा निगम सरीखी वित्तीय संस्थाओं के साथ मिलकर नतीजों को अपनी तरफ झुका सकते हैं. लेकिन खुदरा निवेशकों की भी अहम आवाज हैः टाटा समूह में 39 लाख से ज्यादा खुदरा शेयरधारक हैं, जिनमें नौ लाख से ज्यादा निवेशकों के साथ टाटा स्टील सबसे आगे है. सुब्रह्मण्यन कहते हैं कि अगर इसमें ईजीएम की नौबत आती है तो उसमें बोर्ड की बहुत कम ही भूमिका होगी. वे कहते हैं, ''चूंकि ई-वोटिंग होती है, इसलिए शेयरधारकों का ईजीएम में विरोध करना महज एक नाटक है." अगर एक अलग कंपनी का बोर्ड टाटा संस से इत्तेफाक नहीं रखता तो वह सिफारिश कर सकता है कि शेयरधारक प्रस्ताव के खिलाफ वोट दें. मगर आखिरी फैसला शेयरधारकों का ही होता है—प्रस्ताव का फैसला वोट देने वाले शेयरों के बहुमत से होता है.

एक संभावना यह भी है कि अगर टाटा साइरस को अलग-अलग कंपनियों के बोर्ड से हटाने का प्रस्ताव लाते हैं तो वे संभवतः उनके पक्ष में वोट देने वाले स्वतंत्र निदेशकों को हटाने का भी प्रस्ताव लाएं. सूत्र कहते हैं कि केकी दादीसेठ से जुड़ी गतिविधियों पर तीखी नजर रखी जा रही है क्योंकि उन्होंने टाटा ट्रस्ट्स की दो कंपनियों में निदेशक होते हुए भी इंडियन होटल्स में मिस्त्री के पक्ष में वोट दिया.
टंडन कहते हैं कि टाटा समूह को यह साफ कर देना चाहिए कि मिस्त्री समूह की बड़ी कंपनियों के अध्यक्ष के पद पर बने रहेंगे या नहीं. और अगर नहीं तो बदलाव का तरीका क्या होगा. इतना ही नहीं, टाटा समूह के दोहरे सत्ता ढांचे की भी समीक्षा की जानी चाहिए, क्योंकि यह टाटा संस के अध्यक्ष और टाटा ट्रस्ट्स के अध्यक्ष, रतन टाटा के बीच टकराव पैदा कर सकता है. वे कहते हैं, ''ऐसा दोहरापन जवाबदेही की लकीरों को धुंधला कर देता है और निचले स्तर तक कर्मियों के बीच भ्रम पैदा करता है."

नए अध्यक्ष का चयन
संभावित उम्मीदवारों में कई नाम चर्चा में हैं जिनमें टाटा कंसल्टेंसी सर्विसेज के सीईओ और एमडी एन. चंद्रशेखरन, टाटा की रिटेल कंपनी ट्रेंट के अध्यक्ष नोएल टाटा, टीसीएस के पूर्व सीईओ एस. रामादुरै, और टाटा मोटर्स के एक हिस्से जगुआर लैंड रोवर के सीईओ राल्फ स्पेथ शामिल हैं. अगर अध्यक्ष के पद को बांटा जाता है तो चंद्रशेखरन के सीईओ बनने की संभावना है, खासकर टीसीएस में उनकी कामयाबी को देखते हुए, जिसका बाजार पूंजीकरण उनकी देखरेख में 2016 के वित्तीय साल में तिगुना बढ़कर 1.09 लाख करोड़ रुपए (16.5 अरब डॉलर) हो गया. फिर अध्यक्ष परिवार का ही कोई शख्स हो सकता है, या बाहर का शख्स भी हो सकता है, बशर्ते वह रतन टाटा के साथ घनिष्ट रूप से जुड़ा हो और उसके विचार उनके विचारों से मेल खाते हों.

रामचंद्रन कहते हैं, ''इस मोड़ पर टाटा समूह के नए मुखिया को लेकर कोई अनुमान लगा पाना बहुत मुश्किल है, केवल इतना कहा जा सकता है कि उस शख्स के लिए मैन्युफैक्चरिंग और सेवा व्यवसाय, दोनों का अच्छा अनुभव जरूरी होगा और ज्वाइनिंग से पहले वह सम्मान की नजर से देखा जाता हो." वे कहते हैं, ''उसे ट्रस्टीशिप के मूल्यों से मजबूती से ओतप्रोत होना चाहिए."

विट्जेल कहते हैं, ''नए अध्यक्ष के सामने दो प्रमुख काम होंगे—समूह और शेयरधारकों का भरोसा हासिल करना. यह सब करते हुए वह बाजारों (खासकर विदेशी) को भरोसा दिला सके कि पतवार पर उसके हाथ मजबूती से जमे हैं." वे आगे कहते हैं, ''ऐसा व्यक्ति भीतर का होगा या बाहर का, कह पाना मुश्किल है. हो सकता है आखिर में बात चरित्र और तजुर्बे पर आकर टिक जाए. जो इस चुनौतीपूर्ण भूमिका के लिए आगे आ सकता हो और ऐसा करते हुए वह इस पूरे दौरान सबसे अहम कोर वैल्यूज की हिफाजत कर सकता हो."

फिलहाल तमाम नजरें बेदखल कर दिए गए अध्यक्ष पर हैं और इस बात पर भी कि आने वाली बोर्ड बैठकों में वह कैसे निखरकर आते हैं. तमाम हलकों से मिस्त्री के लिए बढ़ते समर्थन को देखते हुए टाटा संस के अगले कदम पर भी गहरी नजर रखी जा रही है. तमाम इशारे तो यही कह रहे हैं कि टाटा समूह में नेतृत्व के संकट के जल्दी सुलझने के कोई आसार दिखाई नहीं दे रहे हैं.

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