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मेहता का उलटा चश्मा की दया भाभी उर्फ दिशा वाकाणी की रियल लाइफ कहानी

तारक मेहता...में दया भाभी के कॉमिक किरदार को जीकर दिशा ने दर्शकों के दिलों में बनाई जगह. स्क्रीन से उलट यह अभिनेत्री असल जीवन में बेहद शर्मीली

नरेंद्र सैनी
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  • 20 जुलाई 2015,
  • अपडेटेड 2:00 PM IST

बात 1980-90 के गुजरात के अहमदाबाद में एक सामान्य-से मध्यवर्गीय परिवार की है. इस घर के मुखिया भीम वाकाणी थिएटर कंपनी चलाते थे और हाइ स्कूल में टीचर भी थे. वे रंगमंच पर अपने जौहर दिखाते तो उनकी बिटिया पापा के रंगमंचीय कौशल पर करीब से नजर रखती. बच्ची की ऑब्जर्वेशन पावर गजब की थी. वह अक्सर अपने पिता को अपने नाटकों की हीरोइनों के लिए परेशान होते देखती. लड़कों को लड़कियां बनना पड़ता था क्योंकि उस दौर में गुजराती लड़कियों का थिएटर में आने का चलन नहीं था. उस लड़की ने उसी दिन सोच लिया कि वह अपने पिता के नाटकों की हीरोइन बनेगी. वह पिता को अक्सर कहते सुनती कि जिस समय जो काम करो, पूरा फोकस उसी पर रखो. बस, उसने यह बात गांठ बांध ली. उसने 12वीं की और फिर ड्रामेटिक्स में डिप्लोमा. फिर वह दिन भी आया जब उसने अपने पिता के थिएटर में बतौर नायिका काम किया. वह छोटी बच्ची आज परदे का बड़ा नाम बन चुकी है. यह लड़की तारक मेहता का उलटा चश्मा की दया भाभी उर्फ दिशा वाकाणी हैं. 36 वर्षीया दिशा कहती हैं, “मैंने जो सीखा उसमें परिवार की अहम भूमिका रही. पापा कभी मेरे दोस्त बन जाते तो कभी मेरे टीचर.”

दिशा का जन्म और पालन-पोषण अहमदाबाद में हुआ. उनसे बड़ा एक भाई (मयूर वाकाणी) और छोटी बहन खुशहाली है. बहन-भाई पढ़ाई भी करते और पिता के साथ थिएटर में उनका मन खूब रमता. वे चार-पांच साल की उम्र से ही नाटक करने लगीं. उनके बड़े भाई मयूर (तारक मेहता... में वे उनके छोटे भाई सुंदर का किरदार निभा रहे हैं) बताते हैं कि बच्चों के नाटक में 80 साल की बुढिय़ा का निभाया दिशा का किरदार उन्हें आज भी याद है. उनके शब्दों में, “दिशा की ऑब्जर्वेशन पावर गजब है. मेरे साथ एक मजेदार वाकया हुआ. मेरी पत्नी हेमाली अलग ढंग से “न” कहती है. मैंने कभी गौर नहीं किया. एक दिन दिशा का नाटक देखने गया तो उसे स्टेज पर अलग अंदाज में उस कैरेक्टर को निभाते देखा. जैसे ही वह आई, मैंने कहा कि तुम्हारा बोलने का अंदाज तो कमाल था बहना. मैंने पूछा, तुमने कहां से सीखा? तो वह हंसते हुए बोली, भाई, भाभी ऐसे ही बोलती है.”

उन्होंने फिल्मी दुनिया के लिए अपना संघर्ष 1997 से शुरू किया. उन्होंने देवदास (2002), मंगल पांडेः द राइजिंग (2005) और जोधा अकबर (2008) जैसी फिल्मों में छोटे-मोटे रोल किए. लेकिन किस्मत को कुछ और मंजूर था. 2008 में एक दिन उनकी सहेली ने उन्हें बताया कि प्रोडक्शन हाउस नीला टेलीफिल्म्स तारक मेहता... के लिए ऑडिशन ले रहा है. दिशा तुरंत वहां पहुंच गई और ऑडिशन दे आईं. सीरियल के प्रोड्यूसर असित कुमार मोदी बताते हैं, “कई लड़कियों ने ऑडिशन दिए. दिशा को देखकर लगा कि वही यह किरदार निभा पाएंगी. जब उन्होंने दयाबेन की आवाज निकाली और हंसीं तो उस समय मुझे पूरी तरह से यकीन हो गया.”
अपनी अलग आवाज और हंसी का श्रेय वे अपने मिमिक्री के गुण को देती हैं. दिशा कहती हैं, “रंगमंच के मेरे अनुभव और मिमिक्री ने इस कैरेक्टर में जान डालने में मदद की.” इस तरह सफर शुरू हो गया. शो के शुरू होने पर दिशा को एक ही तरह की आवाज रोज निकालनी पड़ती थी. वे बताती हैं, “रोज एक तरह की आवाज निकालना आसान नहीं था. मुझे नमक और हल्दी से गरारे करने पड़ते थे.” अब सात साल और 1,700 एपिसोड हो चुके हैं, और वे इन सब बातों की अभ्यस्त हो चुकी हैं.
यही नहीं, उनके गरबा के दीवानों की भी कमी नहीं है. इससे उनका नाम गरबा क्वीन पड़ गया है. सलमान खान तो दिशा के साथ गरबा में हाथ भी दिखा चुके हैं. वे मुस्कराते हुए कहती हैं, “गरबा के कुछ स्टेप कोरियोग्राफर के हैं तो कुछ मेरे अपने हैं. जैसे पिकॉक स्टेप मेरा खुद का है.”

असल में परदे पर हंसमुख या लोगों से तुरंत घुलने-मिलने वाली दया असल जिदंगी में उससे एकदम अलग हैं. वे बहुत ही संजीदगी से बात करती हैं. शर्मीली हैं और अगर लोगों के बीच बैठी हों तो अपनी मौजूदगी का एहसास नहीं होने देतीं. लेकिन कैमरे के सामने आते ही जैसे उन्हें पंख लग जाते हैं. दिशा भी मानती हैं कि लोगों से घुलने-मिलने में उन्हें थोड़ा समय लगता है. असल जिंदगी वे कितनी भी संजीदा हों लेकिन दयाबेन होने की वजह से लोग उन्हें देखकर ही मुस्कराने लगते हैं. कई बार ऐसा होता है कि बात करने से पहले ही तेजी से हंसने लगते हैं. दिशा बताती हैं, “आज के मुश्किल भरे माहौल में आप किसी के चेहरे पर बिना कुछ कहे हंसी ला दें इससे बड़ी सफलता क्या हो सकती है. कई मौकों पर तो लोग पूछने लगते हैं कि टप्पू (उनका ऑनस्क्रीन बेटा) का एडमिशन हो गया? यह भी कि पोपट की शादी कब होगी?”
पिछले सात साल में मिली कामयाबी को दया ने सिर नहीं चढऩे दिया है. वे इतना ही कहती हैं कि इनसान चाहे कितना भी बड़ा क्यों न हो जाए, उसकी भूख तो दाल-रोटी से ही मिटती है. तारक मेहता...में उनके पति जेठा लाल का रोल कर रहे दिलीप जोशी कहते हैं, “वे डाउन टू अर्थ हैं. आम तौर पर मैंने देखा है कि जब ऐक्टर फेमस हो जाता है तो उनके अंदर नखरे आ जाते हैं. पहले दिन से आज सात साल हो गए हैं, दिशा ने कभी नाज-नखरे नहीं दिखाए.”

अक्सर जेठा लाल के लिए गुजराती पकवान बनाने वाली दिशा हेल्दी फूड खाना ही पसंद करती हैं. यही वजह है कि पिछले सात साल में उनके लुक में रत्ती भर बदलाव नहीं आया है. वे कहती हैं, “मैं योग जरूर करती हूं. और फल और मेवे बहुत खाती हूं.” पढऩा उनकी हॉबी है. फुरसत मिलने पर वे फिल्में भी देखती हैं. अगर मन किया तो गुनगुना भी लेती हैं.

जितनी सीधी-सादी वे खुद हैं उतने ही सादगी भरे उनसे जुड़े किस्से हैं. एक बार हुआ यूं कि उन्हें शूटिंग के लिए अंधेरी जाना था. जमकर बारिश हो रही थी. ड्राइवर आया नहीं और उन्हें गाड़ी चलानी आती नहीं थी. बहुत भटकीं लेकिन टैक्सी भी नहीं मिली और सड़कों पर टैक्सी के लिए यूं भटकते हुए उन्हें जबरदस्त गुस्सा आया और उसी दिन उन्होंने कार चलाना सीखने का प्रण कर लिया. और तो और, सादगी भरी दिशा जब दया बन जाती हैं तो काफी खतरनाक भी हो जाती हैं. सेट पर अक्सर ऐसा होता है. एक बार तो उनका बेलन जेठा लाल की नाक के पास से ...सांय से गुजर गुया था. लेकिन सेट पर ऐसे किस्से होते रहते हैं.

दिशा जल्द विवाह बंधन में बंधने जा रही हैं. पर पर्सनल सवाल आने पर एकदम खामोश हो जाती हैं. इस तरह परदे पर नजर आने वाली दया गायब हो जाती है और असल जिंदगी की दिशा सामने आ जाती है.

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