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यूपी लोक सेवा आयोग की परीक्षा के पेपर लीक की पूरी हकीकत

परीक्षा केंद्र से व्हॉट्सएप के जरिए लीक हुआ यूपीपीएससी का परचा. छात्रों और सॉल्वरों के मोबाइल में घूमते-घूमते जा पहुंचा एसटीएफ के अधिकारी के पास और इस तरह नकल के रैकेट का पर्दाफाश.

आशीष मिश्र
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  • 06 अप्रैल 2015,
  • अपडेटेड 11:34 AM IST

लखनऊ जिला मुख्यालय से नौ किमी दूर पश्चिम में आलमबाग के आजादनगर में मौजूद आदर्श भारतीय विद्यालय के प्रबंधक और श्रृंगारनगर, लखनऊ निवासी 28 वर्षीय विशाल मेहता को भरोसा था कि वह आयोग की परीक्षा का परचा लीक कर सकता है. मेहता का विद्यालय 'उत्तर प्रदेश लोक सेवा आयोग' (यूपीपीएससी) की 29 मार्च को होने वाली प्रारंभिक परीक्षा का केंद्र था. मेहता ने अपने विद्यालय के शिक्षक और हरदोई के माधवगंज निवासी 23 वर्षीय ज्ञानेंद्र कुमार को ऐसे परीक्षार्थियों को तलाशने का जिम्मा सौंपा, जिन्हें परीक्षा से पहले परचे देकर पैसे कमाए जा सकें. ज्ञानेंद्र को चूंकि खुद सीतापुर में प्रारंभिक परीक्षा देनी थी, इसलिए उसने कक्ष पर्यवेक्षक 26 वर्षीय जय सिंह वर्मा को भी अपने साथ जोड़ लिया.
27 मार्च की शाम पांच बजे आदर्श भारतीय विद्यालय के प्रबंधक कक्ष में प्रारंभिक परीक्षा के दोनों प्रश्नपत्रों को लीक करने का 'मिशन' तैयार हो गया. 29 मार्च की सुबह आठ बजे प्रश्नपत्र पहुंचते ही तीनों अपने 'मिशन' में जुट गए. मेहता ने अपने मोबाइल से सभी पन्नों की फोटो लेकर उसे सबसे पहले जय सिंह के मोबाइल पर व्हाट्सअप के जरिए भेजा. जय सिंह ने इसे ज्ञानेंद्र को व्हाट्सअप पर फॉरवर्ड करने के साथ उन अभ्यर्थियों को भी भेजा, जो प्रश्नपत्र खरीदना चाहते थे. कुछ ही देर में परीक्षा से पहले पहली पाली का प्रश्नपत्र एक से दूसरे मोबाइलों पर पहुंचने लगा. लेकिन जैसे ही यह स्पेशल टास्क फोर्स (एसटीएफ) के एक बड़े अधिकारी के मोबाइल पर पहुंचा तो हड़कंप मच गया. मोबाइल पर मिले प्रश्नपत्र का जब परीक्षा केंद्र में अभ्यर्थियों को बंटे प्रश्नपत्र से मिलान कराया गया तो हकीकत सामने आई.

यह पहला मौका है, जब आयोग की किसी परीक्षा का प्रश्नपत्र इस तरह आउट हुआ हो. पुलिस भर्ती में गड़बड़ी का आरोप लगाकर प्रदर्शनरत छात्र कुछ शांत हुए थे कि इस परीक्षा के बाद एक बार फिर अभ्यर्थियों का गुस्सा सातवें आसमान पर जा पहुंचा. प्रदेश में हर साल तकरीबन 15 लाख से ज्यादा परीक्षार्थी केंद्र और राज्य स्तरीय प्रतियोगी या भर्ती परीक्षाओं में शामिल होते हैं. प्रश्नपत्र लीक होने की इस घटना ने साफ कर दिया है कि कैसे प्रतियोगी परीक्षाएं नकल माफियाओं का शिकार बन रही हैं (देखें ग्राफिक्स). यही वजह है कि पिछले नौ महीनों के दौरान सात ऐसी घटनाएं सामने आ चुकी हैं जब प्रदेश में प्रतियोगी या अन्य प्रवेश परीक्षाओं की शुचिता में सेंध लगी हो (देखें बॉक्स).



निशाने पर आयोग की कार्यप्रणाली
प्रारंभिक परीक्षा का परचा लीक होते ही एक बार फिर आयोग के चेयरमैन डॉ. अनिल यादव परीक्षार्थियों के निशाने पर हैं. मैनपुरी के एक डिग्री कॉलेज में प्राचार्य रहे डॉ. अनिल यादव सपा मुखिया मुलायम सिंह यादव के पिछले कार्यकाल में दिसंबर, 2006 में आयोग के सदस्य नियुक्त हुए थे. सदस्य का कार्यकाल खत्म होने के चार माह बाद 2 अप्रैल, 2013 को सपा सरकार ने डॉ. यादव को आयोग के अध्यक्ष की कुर्सी सौंप दी. इसके बाद विवादों का सिलसिला शुरू हो गया. आयोग और डॉ. अनिल यादव के खिलाफ कानूनी लड़ाई लड़ रहे 'प्रतियोगी छात्र संघर्ष समित' के अध्यक्ष अयोध्या सिंह कहते हैं, "डॉ. यादव के अध्यक्ष बनने के बाद ही गड़बडिय़ों का सिलसिला शुरू हुआ है. इनकी और प्रारंभिक परीक्षा का परचा लीक होने की सीबीआइ जांच हो तो बड़ा घोटाला सामने आएगा"

इलाहाबाद में छात्रों ने पीसीएस-प्री की दोनों पालियों की परीक्षा रद्द करने, आयोग अध्यक्ष को हटाने जैसी कई मांगों को लेकर लंबी लड़ाई का बिगुल फूंक दिया है. हालांकि आयोग के सचिव रिजवानुर्रहमान आयोग और चेयरमैन पर लगने वाले आरोपों को खारिज करते हुए कहते हैं, "आयोग ने पीसीएस-2013 और पीसीएस-2014 की परीक्षा कराई है. इतनी जल्दी पीसीएस-2015 की परीक्षा हुई है. असामजिक तत्व आयोग को बदनाम करने की कोशिश कर रहे हैं."
अतिरिक्त प्रश्नपत्र बने जरिया
परीक्षा केंद्रों में भेजे जाने वाले अतिरिक्त प्रश्नपत्र नकल गिरोहों की कार्यप्रणाली की महत्वपूर्ण कड़ी होते हैं. कक्ष नियंत्रक इन्हें मूल प्रश्नपत्र में 'मिसप्रिंट' होने पर परीक्षार्थियों को देता है. आदर्श भारती विद्यालय में कुल 24 अतिरिक्त पेपर भेजे गए थे. संबंधित मजिस्ट्रेट ने ट्रेजरी से प्रश्नपत्रों को निकालकर सुबह आठ बजे कड़ी सुरक्षा के बीच पहुंचा दिया. जब इनके कक्षवार बंडल बन रहे थे, तभी विशाल मेहता ने इनमें से एक को दूसरे कमरे में ले जाकर व्हाट्सअप के जरिए परीक्षा केंद्र के बाहर पहुंचा दिया. 

खास बात यह है कि इन अतिरिक्त प्रश्नपत्रों की वापसी आयोग को नहीं करनी होती है. अगर मूल बंडल में कटे-फटे प्रश्नपत्र नहीं निकलते तो इन्हें लौटाने की बजाय आयोग को केवल इन्हें नष्ट किए जाने संबंधी रिपोर्ट भेज देता है. पेपर लीक कांड की जांच कर रही स्पेशल टास्क फोर्स (एसटीएफ) को यहीं से सुराग मिला. अतिरिक्त प्रश्नपत्रों को नीली मेज के ऊपर रखकर उसकी फोटो खींची गई थी. एसटीएफ ने सभी केंद्रों में नीली मेज की तलाश की. इसी क्रम में आदर्श भारती विद्यालय भी जांच के घेरे में आया. वर्ष 2000 से 2004 तक उत्तर प्रदेश लोक सेवा आयोग के चेयरमैन रहे प्रो. के.बी. पांडेय कहते हैं, "प्रश्नपत्र लीक होने से छात्रों का आयोग के प्रति विश्वास डगमगा गया है. आयोग को इस विश्वास की प्राण देकर भी रक्षा करनी चाहिए थी." यह पूरा मामला प्रशासनिक मजिस्ट्रेट के संज्ञान में न होना भी संदेह पैदा कर रहा है. 
प्रश्नपत्र लीक का 'आदर्श' केंद्र
आखिरकार आयोग ने लखनऊ के आदर्श भारतीय विद्यालय में ऐसी क्या खूबी देखी कि उसे इतनी महत्वपूर्ण परीक्षा का केंद्र बना दिया? बेसिक शिक्षा विभाग के दस्तावेजों में आलमबाग के आजादनगर में आदर्श भारतीय विद्यालय फर्जी ढंग से संचालित हो रहा है. जिला विद्यालय निरीक्षक कार्यालय की ओर से आयोग को भेजी गई प्रस्तावित केंद्रों की सूची में यह शामिल नहीं था. केंद्र निर्धारण के इस खेल के पीछे लखनऊ के अलीगंज स्थित आयोग कार्यालय में तैनात कुछ कर्मचारियों की मिलीभगत सामने आई है. आदर्श विद्यालय के प्रति आयोग के नरम रुख का संकेत उस वक्त भी मिला, जब प्रारंभिक परीक्षा का परचा लीक की रिपोर्ट मिलने के बाद भी आयोग ने इसे रद्द करने को लेकर अगले 32 घंटे तक ऊहापोह की स्थिति बनाए रखी. मुख्यमंत्री अखिलेश यादव के कहने के बाद कहीं जाकर परचा रद्द हुआ. अखिलेश यादव कहते हैं, "एसटीएफ और दूसरी जांच एजेंसियां इस मामले की तह तक जाकर रिपोर्ट देंगी. पेपर लीक होने से छात्रों का ही नुकसान होता है." 

मामले की कडिय़ां जोडऩे में जुटी एसटीएफ के निशाने पर राजस्थान, मध्य प्रदेश, हरियाणा, उत्तर प्रदेश, बिहार के तकरीबन दस गैंग हैं, जो पेपर लीक और सॉल्वर के जरिए परीक्षाओं में सेंध लगाते हैं. गैंग अपने 'क्रलोटिंग' सदस्यों के जरिए काम को अंजाम देते हैं (देखें बॉक्स). अब चुनौती सोशल नेटवर्किंग साइट्स के जरिए परचा लीक होने की बढ़ती वारदातें हैं. आइजी (एसटीएफ) सुजीत पांडेय कहते हैं, "गूगल, व्हॉट्सअप, वाइबर, हैंगआउट जैसे सोशल नेटवर्किंग साइट्स के सर्वर अमेरिका में हैं, जहां से डाटा ले पाना बेहद मुश्किल काम है."
बहरहाल जिस तरह से लोक सेवा आयोग जैसी महत्वपूर्ण संस्था की साख में गिरावट आई है उससे युवाओं को लुभाने में जुटी अखिलेश यादव सरकार की चुनौती और बढ़ गई है.

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