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हिंदुस्तान के भावी नेता किस किस्म की सियासत करेंगे? क्या वे पहचान से ऊपर उठेंगे, जाति की परछाई से दूर हटेंगे, आकांक्षाओं पर जोर देंगे, सभी को साथ लेकर चलने की जबान बोलेंगे? या वे अपने पूर्ववर्ती नेताओं की तरह पहचान की वही पतनशील सियासत करेंगे जो सामाजिक बंटवारों को और गहरा करती है और बेहूदा लोकप्रियतावादी जोड़-तोड़ पर टिके वोट बैंक बनाने पर निर्भर करती है? यहां पांच तेज-तर्रार युवा सियासतदां इंडिया टुडे टीवी के मैनेजिंग एडिटर राहुल कंवल से मुखातिब हैः
हार्दिक पटेल
गुजरात में पाटीदार आंदोलन के नेता
''हम किसी का विरोध नहीं करते. हम किसी के खिलाफ नहीं हैं. मैं सहमत हूं कि जब हम एक ही समुदाय की बात करते हैं तो यह कुछ लोगों को अच्छा नहीं लग सकता. मगर हम केवल युवाओं के लिए नौकरियां और तालीम और किसानों के हक मांग रहे हैं.
बाकी हिंदुस्तान की तरह गुजरात में भी शिक्षा में भ्रष्टाचार है, नौकरियां नहीं हैं, किसान दिन भर काम करते हैं पर उन्हें अपनी फसलों के सही दाम नहीं मिलते.
कोई चाहे किसी भी समुदाय से आता हो, उसे अपने अधिकार मांगने का हक है. किसी ने कभी नहीं पूछा, ''हार्दिक, तुम आरक्षण क्यों मांग रहे हो?" किसी ने आरक्षण की हमारी मांग के पीछे की वजहों को कभी जानना नहीं चाहा. हर किसी ने बस इतना कहा, ''तुम पटेल हो, तुम ऊंची जाति से आते हो, तुम्हारे समुदाय में हीरों के कारोबारी हैं, तुम्हारे पास बड़ी-बड़ी जमीनें हैं, फिर भी तुम आरक्षण मांग रहे हो?"
हम यह नहीं कह रहे हैं कि आरक्षण से हमारी सारी मुश्किलें हल हो जाएंगी, मगर नौकरियों के लिए मची चीख-पुकार को सुनिए, देखिए कि लोग कैसे खुदकुशी कर रहे हैं, देखिए कि स्कूल कैसे बंद हो रहे हैं. हम अपना काम करते हैं और बड़े गर्व से करते हैं. हम कुछ भी छिपाते नहीं हैं. अगर कोई सोचता है कि हम जाति की सियासत की बात करते हैं, तो हां, हमें जाति की सियायत पसंद है."
कन्हैया कुमार
जेएनयू छात्र संघ के पूर्व अध्यक्ष
''पहचान क्या है? अगर आप मुझसे पूछें तो सबसे पहले मैं इनसान हूं, उसके बाद मैं एशियाई हूं, फिर मैं हिंदुस्तानी हूं, फिर मैं बिहारी हूं, फिर मैं बेगूसराय से हूं. दिक्कत कहां है?"
''हमारे संविधान का पहला वाक्य है, ''हम भारत के लोग", पर इसमें यह ''हम" बहुत अमूर्त है, इसे और स्पष्ट करें तो आशय है अलहदा जातियों, मजहबों, संस्कृतियों के
लोग इसमें रहते हैं." ''भारत को बदलता भारत बनाना है. हम एक न्यायपूर्ण समाज के लिए लड़ रहे हैं. हम सबके लिए बराबरी और इंसाफ के हक में हैं."
''हमने संवैधानिक शपथ की जो इबारत अपने स्कूल में पढ़ी थी ''हम भारत के लोग - हमें इसे समझने, विश्लेषण करने का हक है."
शुभ्रास्था
कमेंटेटेर और इंडिया फाउंडेशन में फेलो
''अगर पाटीदार नेता का सियासी इरादा सचमुच अंधाधुंध बेरोजगारी पर लगाम लगाना होता, तो क्या उन्हें हार्दिक पटेल की बजाए हार्दिक हिंदुस्तानी के बैनर तले सियासत नहीं करनी चाहिए थी?"
रोहित चहल
मीडिया प्रभारी, भारतीय जनता युवा मोर्चा
''वाम नेताओं की पहचान की राजनीति त्रिपुरा में भाजपा की जीत के साथ ही अब देश में दफन हो गई है" ''मुझे यह कहते हुए गर्व है कि मेरा नाता उस पार्टी के साथ है जिसके लिए देश सबसे पहले है, पार्टी दूसरे नंबर पर और हम खुद तीसरे नंबर हैं."
शेहला रशीद
जेएनयू छात्र संघ की पूर्व उपाध्यक्ष
''आज इस सरकार की बदौलत हवाओं में बौद्धिकता का इतना ज्यादा विरोध है कि इसकी तुलना नाजियों के किताबें जलाने से की जा सकती है. यहां तक कि उनके मंत्री कहते हैं कि डार्विन का सिद्धांत गलत था."
''हमें आजादी मिली, तभी से संसद में महिलाओं का प्रतिशत कितना है? कभी 10-12 फीसदी से ज्यादा नहीं रहा. हम इसे ''पुरुष पहचान की सियासत" नहीं कहते. मगर आज अगर औरतें आरक्षण मांगती हैं, तो यह पहचान की सियासत हो जाती है."
''जाति की पहचान की सियासत हमारी पीढ़ी ने शुरू नहीं की, पर मुझे उम्मीद है कि हमारी पीढ़ी इस जातिवाद को खत्म करेगी."
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