यह ऐसी कायराना हरकत है, जिसे विकृत मानसिकता वाले ही अंजाम दे सकते हैं जो मैदान में जंग करने की बजाए आसान निशानों पर हमला करते हैं. ये बच्चे फौज की 11वीं कोर के अफसरों और फौजियों के बच्चे थे, जो पेशावर में तैनात हैं, और उत्तरी वजीरिस्तान में फौजी कार्रवाइयों में लगे हैं.
पाकिस्तानी फौज सशस्त्र बलों के बच्चों के लिए देश भर में आर्मी पब्लिक स्कूल चलाती है, जिसका एक ही पाठ्यक्रम है, ताकि जब फौजियों का एक जगह से दूसरी जगह तबादला हो, तो बच्चों की तालीम के बारे में फिक्र न करना पड़े. पेशावर में यह ऐसा ही स्कूल था, और सशस्त्र बलों के परिवारों के बच्चों के साथ कई आम नागरिकों के बच्चे भी वहां पढ़ रहे थे.
मैं पहली बार पाकिस्तानी कौम को असलियत में दहशतगर्दी के खिलाफ एकजुट देख रहा हूं. इस वारदात ने हमें पूरी तरह झकझोर दिया है और हमारा वजूद हिल उठा है. मैं तहेदिल से उम्मीद करता हूं कि राजनैतिक नेतृत्व ने पेशावर में कत्लेआम के एक दिन बाद बुधवार को सर्वदलीय बैठक में जो वादे देश और कौम से किए, उस पर पुख्ता अमल किया जाएगा.
यकीनन, पहले भी पाकिस्तान ऐसे संकटों के दौर से गुजर चुका है. फिदायीन हमलावर बेकसूर महिलाओं और बच्चों को कई बार, हमारे कई शहरों में निशाना बना चुके हैं. हालात ऐसे हैं कि आए दिन कोई न कोई मर्सिया पढ़ा जाता है और लोग अपने अजीजों को खोकर हाथ मलते रह जाते हैं. लेकिन यह कत्लेआम तो सबसे अधिक दर्दनाक है और अब तो मानो इंतिहा हो गई है.
ऐसा कत्लेआम पहले नहीं हुआ. स्कूल में निहत्थे बच्चों को चुन-चुनकर मारने जैसी वारदात और वह भी इस पैमाने पर कभी नहीं हुई. मेरी खबर यह है कि दहशतगर्द स्कूल में दाखिल हुए और जब वे ऑडिटोरियम में पहुंचे, तो उन्होंने बच्चों से खुद की पहचान बताने के लिए कहा, कि वे फौजियों के परिवारों के हैं या नहीं. इसके बाद उन्होंने फौजियों के बच्चों को अलग किया और उनके सिर में गोली मारी. पहले एक-एक कर मारा और बाद में धुआंधार गोलियां बरसाने लगे.
मुझे पक्का यकीन है कि इन भीषण हमलों से पाकिस्तानी फौज का संघीय प्रशासन वाले कबाइली इलाकों (फाटा) में फौजी कार्रवाई जारी रखने और दहशतगर्दों का पूरी तरह सफाया करने का इरादा और मजबूत हुआ है. हर फौजी के मन में बच्चों के कत्लेआम के गम के साथ गुस्सा भी उफन रहा है कि उन्हें अपने बच्चों की मौत का बदला लेना चाहिए.
अब दहशतगर्दों के खिलाफ और तेज जंग छेड़ी जाएगी. इस वारदात की हर तरह के सियासी वर्ग में सख्त प्रतिक्रिया हुई है. फौजी और सियासी हलकों में इस पुख्ता इरादे का संदेश साफ है कि अब किसी को बख्शा नहीं जाएगा, न तालिबान को, न लश्कर-ए-तैयबा को, न हक्कानी नेटवर्क को.
हम हक्कानी नेटवर्क के पीछे भी वैसे ही पड़ेंगे, जैसे तालिबान के खिलाफ जंग छेड़ी जाएगी. मैं जानता हूं कि हिंदुस्तान में इस तरह के बहुत मजबूत जज्बात हैं कि पाकिस्तान उन दहशतगर्दों के खिलाफ कार्रवाई करने से रुक जाता है, जो हिंदुस्तान पर हमले करते हैं, जैसे कि लश्कर-ए-तैयबा और हक्कानी नेटवर्क. यह याद रखें कि हक्कानी नेटवर्क का एक बड़ा अड्डा उत्तरी वजीरिस्तान में है, और फौज की कार्रवाई वहीं चल रही है. हम उन्हें छोड़ेंगे नहीं.
लेकिन मेरा यह भी मानना है कि अब वक्त आ गया है, जब दोनों देशों को संजीदगी और ईमानदारी से दहशतगर्दी और अलगाववाद के बारे में सरकारी और सियासी स्तर पर बात करनी चाहिए. हमें एक-दूसरे की फिक्र को दूर करना होगा. हमारी फिक्र यह है कि आप बलुचिस्तान में दखल दे रहे हैं और यहां तक कि तालिबान की भी मदद कर रहे हैं.
और आप की फिक्र है कि हम उन दहशतगर्द जमातों की मदद कर रहे हैं और उन्हें पनाह दे रहे हैं, जो हिंदुसतान पर हमले करते हैं. हमें एक दूसरे को सुनना शुरू करना होगा. मैं आपको बता सकता हूं कि पाकिस्तानी फौज बैठने और बात करने को तैयार हो जाएगी.
हां, पाकिस्तानी फौज पर ‘‘अच्छे’’ और ‘‘हुरे’’ तालिबान में फर्क करने का इल्जाम है, जो फौज को चुनौती देते हैं, उन दहशतगर्द गुटों को खत्म करने और हिंदुस्तान पर हमला करने वाले गुटों को बनाए रखने और उनका बचाव करने का इल्जाम है. हां, यह सही है, एक वक्त में ऐसा हुआ था. लेकिन अब वे हालात बदल गए हैं.
मैं आपको यह समझना चाहता हूं कि हम अपनी जिंदगी, अपने भविष्य और अपने वजूद के लिए लड़ रहे हैं. आज यह एहसास है कि जो बोया था, वही काटा जा रहा है. यह कि जिन्हें हमने महफूज रखा था, अब वे पलट रहे हैं, हमें डस रहे हैं. यह सच है कि अगर हमें जीवित रहना है, तो हमें अपने और इन दहशतगर्द गुटों के बीच की डोर को काटना होगा. और मैं आपको बताना चाहता हूं कि हम इसे काट देंगे.
जो कीमत हमने अफगान जेहाद के लिए चुकाई थी, हम आज भी उसे भुगत रहे हैं, जब हम अफगानिस्तान में सोवियत संघ के खिलाफ अमेरिकी जंग में अगली कतार के देश थे... हम, पाकिस्तानियों ने, सोवियत संघ के खिलाफ इस जंग में मजहब का इस्तेमाल किया था, और हमने इसकी कीमत चुकाई है...अमेरिका तो चलता बना, और हमें कीचड़ में छोड़ गया... कोई शक नहीं, बाद के बरसों में और बातें भी हुई हैं.
मैं यह भी कहना चाहूंगा कि भारतीय हुक्मरानों को यह भी सोचना चाहिए कि हम किस दौर से गुजरे हैं. मेहरबानी करके हम पर बुरी नजर न डालें और यह न कहें कि ‘‘हमने आपको बताया था.’’ आइए बैठकर बात करते हैं...पेशावर हमले के मद्देनजर आपके प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी के अल्फाज मेरे कानों में शहद घोल रहे थे.
(महमूद अली दुर्रानी पाकिस्तान के पूर्व राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार हैं.)