
संसद के शीतकालीन सत्र के दौरान भाजपा के साथ बेहतर तालमेल बिठाने को लेकर सहयोगी दल परेशानी महसूस कर रहे हैं. झारखंड के चुनाव में भाजपा के दो अहम सहयोगी जदयू और लोजपा एनडीए के बैनर के बाहर जाकर चुनाव लड़ रहे हैं तो भाजपा की सबसे पुरानी सहयोगी शिवसेना एनडीए से बाहर निकल चुकी है और संसद के दोनों सदनों में विपक्षी खेमे में बैठेगी.
सूत्रों का कहना है लोजपा और जदयू की असली दिक्कत यह है कि दोनों ही दल झारखंड में भाजपा के खिलाफ चुनाव मैदान में डटे हैं. झारखंड में चुनाव प्रचार चल रहा है. इसी बीच संसद का शीतकालीन सत्र भी चलेगा. ऐसे में संसद के अंदर भाजपा के साथ हर मुद्दे पर दिखने से चुनाव में नुकसान हो सकता है.
शिवसेना के भाजपा का साथ छोड़ने को लेकर भी पार्टी के दूसरे सहयोगी यह महसूस कर रहे हैं कि यदि एनडीए का कोई संयोजक होता तो शायद, शिवसेना, भाजपा की दोस्ती खत्म होने से बच सकती थी. लोजपा प्रमुख चिराग पासवान ने सार्वजिनक रूप से बेहतर तालमेल के लिए एनडीए संयोजक बनाने की जरूरत बताई है.
बिहार में अगले साल विधानसभा का चुनाव होना है. जेडीयू नेता अनौपचारिक रूप से यह कहते हैं कि, विधान सभा चुनाव के दौरान गठबंधन रहेगा या नहीं यह अभी तय नहीं है. तय गठबंधन के बाद भी जिस तरह महाराष्ट्र में बहुमत के बाद भी भाजपा-शिवसेना सरकार नहीं बना सकी और दोनों अलग हो गए यह काफी महत्वपूर्ण है.
किसी भी गठबंधन के लिए यह चिंता की बात है क्योंकि मजबूत गठबंधन के बाद भी यदि लोगों में यह संदेश जाता है कि चुनाव के बाद भी गठबंधन टूट सकता है तो फिर, वोट विरोधी खेमें में जा सकता है.
चूंकि बिहार में अगले साल चुनाव होने हैं और वहां मुस्लिम कई सीटों पर निर्णायक भूमिका में हैं. इसलिए, भाजपा के ज्यादा करीब दिखने का नुकसान जेडीयू को हो सकता है. जेडीयू के एक नेता कहते हैं कि, "अयोध्या पर आए फैसले, ट्रिपल तलाक और जम्मू-कश्मीर में अनुच्छेद 370 को निष्प्रभावी बनाने के फैसले के बाद यह देखना होगा कि कहीं पार्टी की छवि भाजपा की बी टीम की न बने. इसके लिए संसद में जेडीयू को हर मुद्दे पर अपने विचार स्पष्ट रूप से रखना पड़ सकता है भले वह भाजपा के खिलाफ ही क्यों न जाता हो."
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