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लोकसभा चुनाव: पांचवां चरण निपटते ही फिर शुरू हुई तीसरे मोर्चे की कवायद, मिशन पर निकले KCR

इस दिशा में पहले कदम के तहत तेलंगाना के मुख्यमंत्री और टीआरएस नेता के. चंद्रशेखर राव ने तिरुवनंतपुरम में केरल के मुख्यमंत्री और माकपा नेता पिनरई विजयन से रात के खाने पर मुलाकात की. केसीआर ने विजयन के साथ ताजा राजनीतिक घटनाक्रम पर चर्चा की.

के. चंद्रशेखर राव ने पिनरई विजयन से मुलाकात की (फोटो-PTI) के. चंद्रशेखर राव ने पिनरई विजयन से मुलाकात की (फोटो-PTI)
जावेद अख़्तर
  • नई दिल्ली,
  • 07 मई 2019,
  • अपडेटेड 11:04 AM IST

लोकसभा चुनाव 2019 की जंग के पांच राउंड पूरे हो गए हैं, अब अंतिम दो मुकाबले बाकी हैं. कुल 543 लोकसभा सीटों में से 425 के लिए मतदान हो चुका है और महज 118 सीटें शेष रह गई हैं. ऐसे में पार्टियों के भीतर चुनावी नतीजों को लेकर भी अनुमान लगाए जाने लगे हैं. एक तरफ जहां प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी विपक्ष को चारों खाने चित बता रहे हैं, वहीं कांग्रेस के मुताबिक बीजेपी का जाना तय है. हालांकि, इन दोनों प्रमुख दलों में वार-पलटवार के बीच गैर-बीजेपी व गैर-कांग्रेस दलों का अनुमान है कि इन दोनों प्रमुख दलों की हवा निकल गई है. शायद यही वजह है कि चुनाव खत्म होने से पहले ही तीसरे फ्रंट की कोशिश शुरू हो गई है. इस मिशन पर जुटे हैं तेलंगाना के मुख्यमंत्री के. चंद्रशेखर राव.

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इस दिशा में पहले कदम के तहत तेलंगाना के मुख्यमंत्री और टीआरएस नेता के. चंद्रशेखर राव ने तिरुवनंतपुरम में केरल के मुख्यमंत्री और माकपा नेता पिनरई विजयन से रात के खाने पर मुलाकात की. केसीआर ने विजयन के साथ ताजा राजनीतिक घटनाक्रम पर चर्चा की. लोकसभा चुनाव के लिए 11 अप्रैल को मतदान शुरू होने के बाद किसी गैर-भाजपा और गैर-कांग्रेस नेता से केसीआर की पहली मुलाकात है.

इस मुलाकात के बाद केसीआर चेन्नई का रुख करेंगे और डीएमके अध्यक्ष एम.के स्टालिन से मिलेंगे. तेलंगाना के मुख्यमंत्री कार्यालय की तरफ से जानकारी दी गई है कि डीएमके अध्यक्ष एम.के. स्टालिन से केसीआर 13 मई को चेन्नई में मिलेंगे. हालांकि, एक तथ्य यह है कि डीएमके और कांग्रेस गठबंधन में मिलकर चुनाव लड़े हैं. ऐसे में स्टालिन से केसीआर की चर्चा बहुत ज्यादा महत्वपूर्ण है.

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स्टालिन की तरह ही कांग्रेस के एक और सहयोगी भी केसीआर के टच में हैं. कर्नाटक के मुख्यमंत्री और जनता दल सेकुलर के नेता एचडी कुमारस्वामी ने सोमवार को केसीआर से फोन पर बात की और केरल व तमिलनाडु के बारे में चर्चा की.

हालांकि, केसीआर ने अभी तक समाजवादी पार्टी, बहुजन समाज पार्टी, बीजू जनता दल व वाईएसआर कांग्रेस से बात की है या नहीं, इसे लेकर कोई जानकारी सामने नहीं आई है. लेकिन जैसे-जैसे चुनाव अपने अंजाम तक पहुंच रहा है, इन दलों के बयान जरूर केसीआर की कोशिशों को बल देते हुए दिखाई दे रहे हैं.

समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव कह चुके हैं कि क्षेत्रीय दल बहुत मजबूती से लड़ रहे हैं और इस चुनाव में उनकी बहुत बड़ी भूमिका है. अखिलेश तो यह भी दावा कर चुके हैं कि अगली सरकार किसकी होगी और कौन प्रधानमंत्री बनेगा, इस बात का फैसला सपा-बसपा-आरएलडी का गठबंधन करेगा. यूपी में मजबूती से लड़ रहा यह गठबंधन न सिर्फ बीजेपी के खिलाफ खुलकर चुनावी मैदान में है, बल्कि गठबंधन के नेता कांग्रेस को भी हर दिन खरी-खोटी सुना रहे हैं.

दूसरी तरफ, सीटों से लिहाज देश के तीसरे सबसे बड़े राज्य पर एकछत्र राज करने वाली तृणमूल कांग्रेस अध्यक्ष ममता बनर्जी का रोल भी बेहद अहम माना जा रहा है. हालांकि, वो खुद कोलकाता में सभी बीजेपी विरोधी दलों को एक मंच पर ला चुकी हैं, जिसके बाद प्रधानमंत्री पद के लिए भी उनके नाम पर चर्चा होने लगी थी.

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फिलहाल, मौजूदा लोकसभा चुनाव की एक बड़ी तस्वीर ये भी है कि चुनाव से पहले लंबे वक्त कांग्रेस बीजेपी विरोधी दलों को साथ लाने का बीड़ा उठाती रही है और नरेंद्र मोदी को हराने का दम भरती रही. लेकिन चुनाव आते-आते अलग-अलग राज्यों में कांग्रेस का क्षेत्रीय दलों से गठजोड़ नहीं हो पाया, जिसका नतीजा ये हुआ कि महागठबंधन का स्वरूप रचने वाले सभी दल चुनाव में अलग-थलग दिखाई दिए.

ऐसे में के. चंद्रशेखर राव ने पांचवें चरण की वोटिंग के बाद क्षेत्रीय दलों से मुलाकात करने का जो कदम उठाया है वो काफी मायने रखता है, क्योंकि उन्होंने ही पिछले साल मार्च में संघीय मोर्चे का विचार पेश किया था और भाजपा व कांग्रेस दोनों का एक विकल्प प्रदान करने की पहल शुरू की थी.

इस कड़ी में केसीआर ने तृणमूल कांग्रेस, बीजू जनता दल, समाजवादी पार्टी, जनता दल (सेकुलर) और डीएमके के नेताओं से मुलाकात की थी. उन्होंने वाईएसआर कांग्रेस पार्टी को भी प्रस्तावित मोर्चे में शामिल होने के लिए आमंत्रित किया था. ऐसे में अब देखना होगा कि 23 मई को आ रहे नतीजे क्या फिर से बीजेपी की सत्ता में वापसी कराते हैं या ऐसे परिणाम आते हैं जो गैर-बीजेपी व गैर-कांग्रेस दलों को एक साथ ले आते हैं.

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