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जानें मोदी को कैसे घेरेगा तीसरा मोर्चा

चुनावों में एक के बाद एक मिल रही जीत से भले ही बीजेपी का हौसला सातवें आसमान पर हो, लेकिन एक खतरा दबे पांव उसकी ओर बढ़ रहा है. ये खतरा है भारतीय राजनीति में मजबूत सत्ता पक्ष को हमेशा हिलाता रहा जनता परिवार.

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी
aajtak.in
  • नई दिल्‍ली,
  • 20 अक्टूबर 2014,
  • अपडेटेड 2:25 PM IST

चुनावों में एक के बाद एक मिल रही जीत से भले ही बीजेपी का हौसला सातवें आसमान पर हो, लेकिन एक खतरा दबे पांव उसकी ओर बढ़ रहा है. ये खतरा है भारतीय राजनीति में मजबूत सत्ता पक्ष को हमेशा हिलाता रहा जनता परिवार. इस बार जेडीयू अध्यक्ष शरद यादव ने इसकी कमान संभाली है. वे लालू यादव, मुलायम सिंह यादव, ओम प्रकाश चौटाला, अजित सिंह और एच डी देवगौड़ा जैसे कई नेताओं को साथ लाकर एक नई पार्टी बनाना चाहते हैं. लेकिन पार्टी बनने से कहीं पहले वे राज्य सभा में बीजेपी की पार्टी बिगाड़ देंगे.

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क्या होगा राज्यसभा में
यहां बीजेपी के पास सिर्फ 43 सांसद हैं, वहीं अकेले कांग्रेस के पास 68 सांसद हैं. इसके अलावा जिन नेताओं को शरद यादव अपने साथ मिला रहे हैं उनकी राज्यसभा में कुल ताकत 24 है. ऐसे में अगर 11 सांसदों वाले वाम मोर्चे और 12 सांसदों वाली तृणमूल कांग्रेस ने इन लोगों का साथ दिया तो संसद में एक-एक बिल पास कराना सरकार के लिए मुसीबत हो जाएगा.

शरद यादव कहते हैं, ‘‘हम तो पहले से ही मुखर विरोध करते रहे हैं, बाकी भी करें तो अच्छा.’’ कुछ ऐसे ही तेवर समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय महासचिव नरेश अग्रवाल के हैं, ‘‘नेताजी से ज्यादा किसने बीजेपी का विरोध किया है.’’ हालांकि क्या मुलायम सिंह तीसरे मोर्चे में शामिल होंगे, इस सवाल पर अग्रवाल ने कहा, ‘‘ये तो नेताजी ही बताएंगे?’’ लेकिन ये संयुक्त तेवर रक्षा और उदारीकरण को लेकर नरेंद्र मोदी के महत्वाकांक्षी लक्ष्यों के पांव बांध सकते हैं. बहुत संभव है कि मतवाले हाथी की तरह चलने वाली बीजेपी बहुत जल्द सर्वदलीय बैठकों के भंवर में उलझती दिखे.

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दूरगामी असर
बीजेपी के तेज उभार के बाद इन सभी दलों के लिए वजूद का संकट पैदा हो गया है. ऐसे में शेर-बिल्ली भी एक घाट का पानी पीने को मजबूर हैं. जेडीयू सांसद अली अनवर अंसारी कहते हैं, ‘‘लालूजी और नीतीश जी तो एक दूसरे को पानी पी-पी कर कोसते थे, लेकिन अब साथ आ गए हैं न.’’ दरअसल खुद को बचाए रखने के लिए शरद यादव एक फिर इन पार्टियों को धर्मनिरपेक्षता की डोर से बांध रहे हैं. इस नई मुहिम की पहली परीक्षा अगले साल होने वाले बिहार विधानसभा चुनाव में होगी.

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