Advertisement

भोपाल गैस त्रासदी: भागते-भागते बेहोश हुए थे संजय, बहन मरी, बच्चे दिव्यांग

संजय उस खौफनाक मंजर को याद करते हुए कहते हैं, हम सोते रहे जब आंखों में ज्यादा ही जलन मची तो हम लोगों ने बाहर निकल कर देखा तो काफी भीड़ भाग रही थी, कोई चिल्ला रहा था कोई रो रहा था, सब कह रहे थे गैस निकल गई...गैस निकल गई तो हमने कहा कि ये गैस निकलना होता क्या है. जब सब भाग रहे थे तो सबको देखकर हम भी भागने लगे...भागते-भागते हम लोगों को चक्कर आ गया और हम बेहोश हो गए.

भोपाल गैस प्रभावितों का इलाज करते लोग (फाइल फोटो-Getty image) भोपाल गैस प्रभावितों का इलाज करते लोग (फाइल फोटो-Getty image)
aajtak.in
  • भोपाल,
  • 03 दिसंबर 2019,
  • अपडेटेड 11:04 AM IST

  • भोपाल गैस त्रासदी के 35 साल पूरे

  • बाद की पीढ़ियां भोग रही हैं दंश
  • हादसा यादकर सिहर जाते हैं लोग

भोपाल गैस त्रासदी को भले ही 35 साल बीत गए हैं लेकिन आज भी इसका दर्द लोगों की आँखों से बह रहा है. 2-3 दिसंबर 1984 की दरमियानी रात को यूनियन कार्बाइड कंपनी के कारखाने में जहरीली गैस मिथाइल आइसो साइनाइट (MIC) का रिसाव हुआ जिसने कुछ ही घंटे में भोपाल शहर को अपनी चपेट में ले लिया.  

Advertisement

सरकारी आंकड़े से कई गुना ज्यादा मौतें

मध्यप्रदेश की तत्कालीन सरकार ने इस हादसे से 3,787 लोगों के मरने की पुष्टि की थी. दूसरे अनुमान बताते हैं कि इस केमिकल हादसे में  8000 लोगों की मौत तो दो सप्ताह के अंदर हो गई थी और लगभग 8000 लोग गैस रिसने के बाद होने वाली बीमारियों से मारे गये थे. 2006 में एक शपथ पत्र में सरकार ने माना था कि जहरीली गैस के रिसाव से करीब  5 लाख से अधिक लोग सीधे तौर पर प्रभावित हुए थे. आज भी यूनियन कार्बाइड कंपनी के प्रांगण में जहरीला कचरा जमा है जिसने आस-पास के इलाकों का पानी दूषित कर दिया है. जिसके दुष्परिणाम आज के देखने को मिल रहे हैं.

...लगा मच्छर भगाने के लिए धुआं है

यूनियन कार्बाइड के सामने स्थित बस्ती जेपी नगर में संजय यादव का परिवार रहता है. ये परिवार भोपाल गैस त्रासदी का दंश आज भी झेल रहा है. जब इस कारखाने से गैस निकली थी उस वक्त संजय यादव की उम्र महज 12 से 13 साल थी.  उस खौफनाक मंजर को याद करते हुए संजय बताते हैं कि उस रात एकदम आंखों में जलन और खांसी हुई तो हम लोगों ने सोचा किसी ने मच्छरों को भगाने के लिए धुआं वगैरह किया होगा. संजय उस खौफनाक मंजर को याद करते हुए कहते हैं, "हम सोते रहे जब आंखों में ज्यादा ही जलन मची तो हम लोगों ने बाहर निकल कर देखा तो काफी भीड़ भाग रही थी, कोई चिल्ला रहा था, कोई रो रहा था, सब कह रहे थे गैस निकल गई...गैस निकल गई तो हमने कहा कि ये गैस निकलना होता क्या है. जब सब भाग रहे थे तो सबको देखकर हम भी भागने लगे...भागते-भागते हम लोगों को चक्कर आ गया और हम बेहोश हो गए."

Advertisement

बहन की मौत, बच्चे दिव्यांग

हादसे को याद करते हुए संजय यादव गमगीन हो जाते हैं और बताते हैं कि यह दूसरी पीढ़ी है जो गैस से प्रभावित हुई है . उनका कहना है कि गैस कांड में उनकी एक बहन की मौत हो गई थी. दूसरी पीढ़ी आई...हमारे बच्चे हुए हमें ऐसा लगा कि चलो अब सब ठीक हो जाएगा.  लेकिन दो बच्चे हुए और दोनों ही दिव्यांग हुए. हम लोगों ने डॉक्टर को दिखाया. तब से लेकर अब तक डॉक्टरों के चक्कर लगा रहे हैं और ऐसा दंश झेल रहे हैं जो भगवान किसी को ना दे. रोज तिल-तिल कर मरना हो रहा है. डॉक्टर के पास लेकर गए तो डॉक्टरों ने कहा इसका इलाज हमारे पास नहीं है. एक डॉक्टर ने हमें बताया कि गैस से जेनेटिक बदलाव हुआ है इसलिए यह बच्चे गलत तरीके से विकसित हो रहे हैं.

35 साल से दे रहा हूं इंटरव्यू

संजय यादव का कहना है कि सरकार की तरफ से उन्हें मुनासिब मुआवजा भी नहीं दिया. अब घर चलाना मुश्किल होता जा रहा है. संजय यादव और उनकी पत्नी को अब हर वक्त ये ही डर सता रहा है कि उनके जाने के बाद इन बच्चों की परवरिश कैसे होगी. इस परिवार का कहना है कि  35 सालों में टीवी पर इंटरव्यू दे-देकर उनकी उम्र निकल गई है लेकिन कुछ नहीं हुआ. संजय यादव का कहना है ये दुखभरी दास्तान किसी एक परिवार कि नहीं, बल्कि हजारों परिवारों की है.

Read more!
Advertisement

RECOMMENDED

Advertisement