
आजकल सोशल मीडिया पर एक तस्वीर को लेकर लोगों के बीच बहस छिड़ी हुई है. तस्वीर दीवार पर लगे एक विज्ञापन की है जिसमें बेटियों को गर्भ में ना मारने का संदेश दिया गया है. इसमें एक लड़की रोटी बनाते हुए दिखाया गया है और लिखा है कि, 'कैसे खाओगे उनके हाथ की रोटियां, जब पैदा ही नहीं होने दोगे बेटियां.'
इसपर लोगों का कहना है कि क्या बेटियों का काम सिर्फ रोटी बनाना होता है? आज के युग में बेटियां, बेटों से आगे निकल रही हैं. हर क्षेत्र में कड़ी टक्कर दे रही हैं. अभी हाल ही में आए सीबीएसई की परीक्षा के नतीजों में भी एक बेटी ने ही टॉप किया है. ऐसे में बेटियों को सिर्फ घरेलू कामकाजी के रूप में देखना हमारी पितृसत्तात्मक सोच के अलावा कुछ नहीं है.
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हालांकि कुछ लोगों का यह भी कहना कि, यह ऐड उन लोगों को ध्यान में रखकर लिखा गया है जो कम पढ़े-लिखे हैं और आसानी से बात समझ सकते हैं. लोगों का मानना है कि इसी बहाने शायद वे बेटियों को इस दुनिया में आने का मौका दें. बेटी अगर पैदा होगी तो ही बदलाव की गुंजाइश है.
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लेकिन यह तर्क, एक कुतर्क के अलावा कुछ नहीं है. हर गर्भ में पल रही बेटी का अधिकार है जन्म लेना, किसी की रोटी बनाने के लिए नहीं बल्कि ससम्मान जीवन जीने के लिए. बेटी का पैदा होना ना शर्म की बात है ना गर्व की बात होनी चाहिए. यह बिल्कुल सामान्य है. इस तरह के ऐड से ना केवल पितृसत्तात्मक सोच को बढ़ावा मिलता है बल्कि ऐसे ऐड बेटियों को हतोत्साहित भी करते हैं.