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दिल्ली के जाम की कीमत हर साल 90 हजार करोड़ रुपए!

स्टडी में एक और बात सामने आई हैं वो ये कि जो सड़कें दिल्ली को एनसीआर के दूसरे शहरों से जोड़ती हैं, उनमें ट्रैफिक जाम दूसरी सड़कों की अपेक्षा हर वक्त ज्यादा होता है. CSE ने पिछले साल की गई अपनी एक और स्टडी का जिक्र करते हुए ये भी कहा कि राजधानी में एनसीआर से आने वाली कारों की तादाद दिल्ली में साल 2014-15 में रजिस्टर्ड कारों की संख्या से भी ज्यादा थी.

CSE ने जारी किए आंकड़े CSE ने जारी किए आंकड़े
रोशनी ठोकने
  • नई दिल्ली,
  • 11 जुलाई 2017,
  • अपडेटेड 6:38 AM IST

राजधानी दिल्ली में बढ़ती भीड़भाड़ और वाहनों की बड़ी तादाद के चलते सड़कों पर जाम लगना आम बात है. लेकिन अब सड़कों पर लगने वाले जाम की वजह से वीक डेज के मुकाबले वीकेंड पर भी राजधानी में भारी  ट्रैफिक होता है और गाड़ियों की रफ्तार बेहद सुस्त होती है. इतना ही ट्रैफिक जाम की वजह से दिल्ली की आबो-हवा भी काफी खतरनाक हो गई. राजधानी की सड़कों पर लगने वाला जाम सालाना 7 फीसदी बढ़ता ही जा रहा है.

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यह चौंकाने वाले आंकड़े सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरमेंट ने हाल ही में गूगल मैप के जरिए लिए गए डाटा के आधार पर निकालें हैं. स्टडी में जो चौंकाने वाली बातें सामने आई हैं.

1. राजधानी की 13 सड़कें जो मुख्य सड़कों से इलाकों को जोड़ती है उनकी औसतन ट्रैफिक स्पीड निर्धारित स्पीड से 50-60 फीसद कम बनी हुई है.

2. प्रमुख सड़कों पर कोई पीक आवर्स अब नहीं है, क्योंकि पीक और नॉन पीक ऑवर्स में ट्रैवल के लिए लगने वाले समय में कोई अंतर नहीं देखा गया.

3. वीकेंड में ट्रैफिक की स्पीड और जाम के हालात वीक डेज से भी खराब हैं.

4. ट्रैफिक जाम की वजह से वायु प्रदूषण बढ़ा है, नाइट्रोजन डाईऑक्साइड का स्तर 38 फीसदी तक बढ़ गया है.

5. इसके उलट, लुटियन्स दिल्ली की सड़कें पीक और नॉन पीक ऑवर्स में मुख्य सड़कों को इलाकों से जोड़ने वाली सड़कें नहीं होने के बावजूद समय की बचत करने वाली हैं और यहां ट्रैफिक की स्पीड बेहतर है.

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अब आपको बताते हैं कि वो कौन सी सड़कें हैं जहां लोगों को रोजाना ट्रैफिक जाम से जुझना पड़ता है.

1. महात्मा गांधी रोड (रिंग रोड): सरदार पटेल मार्ग स्टेशन से आजादपुर फ्लाईओवर (मॉडल टाउन)

2. महात्मा गांधी रोड (रिंग रोड): इंदिरा गांधी स्टेडियम कॉम्प्लेक्स से मजनू का टीला

3. गुरग्राम रोड: डीएलएफ साइबर सिटी से दिल्ली विश्वविद्यालय

4. आउटर रिंग रोड: आईआईटी दिल्ली से जामिया मिलिया इस्लामिया

5. शकरपुर रोड: नारायणा औद्योगिक क्षेत्र से वजीरपुर

6. आउटर रिंग रोड:  स्वरूप नगर से वजीराबाद

7. अणुव्रत मार्ग: अर्जन गढ़ से अहिंसा स्थल

8. आउटर रिंग रोड: जहांगीरपुरी से पीरागढ़ी

9. महरौली बदरपुर रोड: बदरपुर बॉर्डर से लाडो सराय

10. माल रोड: आजादपुर से कश्मीरी गेट                        

11. श्री अरविंदो मार्ग: लाडो सराय से किदवई नगर

12. मौलाना आजाद-अकबर रोड-तिलक मार्ग: नेशनल म्यूजिम से सुप्रीम कोर्ट

13. लाल बहादुर शास्त्री मार्ग: मस्जिद अंबेडकर नगर से सेंट्रल मार्केट, लाजपत नगर

इस पूरी स्टडी में एक और बात सामने आई हैं वो ये कि जो सड़कें दिल्ली को एनसीआर के दूसरे शहरों से जोड़ती हैं, उनमें ट्रैफिक जाम दूसरी सड़कों की अपेक्षा हर वक्त ज्यादा होता है. CSE ने पिछले साल की गई अपनी एक और स्टडी का जिक्र करते हुए ये भी कहा कि राजधानी में एनसीआर से आने वाली कारों की तादाद दिल्ली में साल 2014-15 में रजिस्टर्ड कारों की संख्या से भी ज्यादा थी.

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स्टडी में जिन 13 सड़कों का जिक्र किया गया है उन्हें यूनिफाइड ट्रैफिक एंड ट्रांसपोर्टेशन इंफ्रास्ट्रक्चर स्ट्रीट डिजाइन गाइडलाइन्स के तहत अर्बन रोड्स के अंर्तगत इसलिए बनाया गया था ताकि इनके जरिए सड़क पर 50 से 70 किमी प्रति घंटे की ड्राइविंग स्पीड हासिल की जा सके. जबकि निर्धारित स्पीड 40 से 55 किमी प्रति घंटा तय की गई. लेकिन गूगल मैप के जरिए करीब एक महीने तक दिल्ली की इन 13 सड़कों के स्पीड को ऑब्जर्व करने पर मालूम पड़ा कि इन सड़कों पर पीक आवर्स पर स्पीड 26 किमी/घंटा और नॉन पीक ऑवर्स पर 27 किमी/घंटा है जो कि निर्धारित स्पीड से करीब 50 से 60 फीसद कम है.

दिल्ली में सुबह 8 बजे से शाम के 8 बजे के बीच 12 घंटों में करीब 75 फीसदी समय ट्रैफिक की स्पीड 25 से 30 किमी/घंटा रहती है. जबकि 17 फीसदी समय औसतन स्पीड 20 से 25 किमी/घंटा के बीच रहती है. पूरे दिन में सिर्फ 8 फीसद मौके ऐसे आते हैं जब ट्रैफिक की रफ्तार 30 किमी/घंटा या उससे ज्यादा रहती है. कुल मिलाकर देखें तो पीक ऑवर्स में दिल्ली की औसतन रफ्तार करीब 27.7 किमी/घंटा है, तो वहीं नॉन पीक ऑवर्स में ये 30.8 किमी/घंटा है.

आईआईटी मद्रास ने भी दिल्ली के जाम पर लगने वाली लागत पर एक स्टडी की है. स्टडी के मुताबिक साल 2013 में ट्रैफिक जाम से निपटने के लिए दिल्ली की लागत करीब 54,000 करोड़ रुपये थी, जो कि साल 2030 तक करीब 90,000 करोड़ हो जाएगी. आपको बता दें कि दिल्ली में गाड़ियों के रजिस्ट्रेशन की संख्या एक करोड़ को पार कर चुकी है, ऐसे में आने वाले दिनों में हालात और बुरे होने की आशंका है.

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