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2 साल, 18 सुनवाई के बाद तीन तलाक से मुक्त हुआ भारत, पढ़ें पूरा ब्योरा

सुप्रीम कोर्ट की पांच सदस्यीय संविधान पीठ दो के मुकाबले तीन के बहुमत से फैसला दिया कि तीन तलाक के जरिए तलाक देना अमान्य, गैरकानूनी और असंवैधानिक है और यह कुरान के मूल सिद्धांतों के खिलाफ हैं.

सुप्रीम कोर्ट ने तीन तलाक पर फैसला सुनाया सुप्रीम कोर्ट ने तीन तलाक पर फैसला सुनाया
BHASHA
  • नई दिल्ली,
  • 22 अगस्त 2017,
  • अपडेटेड 5:31 PM IST

तीन तलाक पर मंगलवार को सुप्रीम कोर्ट ने मुस्लिम महिलाओं के पक्ष में फैसला सुनाया. सुप्रीम कोर्ट की पांच सदस्यीय संविधान पीठ ने दो के मुकाबले तीन के बहुमत से फैसला दिया. कोर्ट ने तीन तलाक के जरिए तलाक देना अमान्य, गैरकानूनी और असंवैधानिक माना है. साथ ही कहा कि यह कुरान के मूल सिद्धांतों के खिलाफ हैं. इस फैसले को आने में 2 साल लग गए. अक्टूबर 2015 में पहली बार सुप्रीम कोर्ट में इस पर सुनवाई हुई थी.

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16 फरवरी 2017 को फैसला सुनाया की तीन तलाक , निकाह हलाला और बहुविवाह को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर पांच जजों की संविधान पीठ सुनवाई करेगी.

तीन महीने बाद सुप्रीम कोर्ट ने कहा एआईएमपीएलबी ने सुप्रीम कोर्ट से कहा कि तीन तलाक पिछले 1,400 वर्षों से आस्था का मामला हैं. जबकि केंद्र ने सुप्रीम कोर्ट को बताया कि तीन तलाक ना तो इस्लाम का अनिवार्य हिस्सा है और ना ही यह अल्पसंख्यक बनाम बहुसंख्यक का मामला है, बल्कि यह मुस्लिम पुरुषों और वंचित महिलाओं के बीच अंतर सामुदायिक संघर्ष का मामला है जिसके बाद यह अहम फैसला लिया गया. हालांकि कोर्ट का ये आदेश सिर्फ 6 महीनों के लिए है. कोर्ट ने इस दौरान केंद्र से नया कानून बनाने को कहा है.

इस दौरान हुए सुप्रीम कोर्ट में तीन तलाक पर हुई सुनवाई के कालक्रम:

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16 अक्तूबर 2015 : सुप्रीम कोर्ट की पीठ ने हिंदू उत्तराधिकार से संबधित एक मामले की सुनवाई करते हुए प्रधान न्यायाधीश से उचित पीठ का गठन करने के लिए कहा ताकि यह पता लगाया जा सकें कि क्या तलाक के मामलों में मुस्लिम महिलाएं लैंगिक भेदभाव का सामना करती हैं.

5 फरवरी 2016 : सुप्रीम कोर्ट ने तत्कालीन अटॉर्नी जनरल मुकुल रोहतगी से तीन तलाक, निकाह हलाला और बहुविवाह की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर शीर्ष अदालत की मदद करने के लिए कहा था.

28 मार्च 2016 : सुप्रीम कोर्ट ने महिलाओं और शादी, तलाक, संरक्षण, वारिस और उत्तराधिकार से संबंधित कानूनों पर ध्यान केंद्रित करने के साथ पारिवारिक कानूनों के आकलन पर उच्च स्तरीय पैनल की रिपोर्ट दायर करने के लिए केंद्र से कहा था. सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले पर स्वत: संग्यान लेकर ऑल इंडिया मुस्लिम पसर्नल लॉ बोर्ड एआईएमपीएलबी समेत विभिन्न संगठनों को पक्षकार बनवाया था.

29 जून 2016 : सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि मुस्लिम समाज में तीन तलाक को संवैधानिक रूपरेखा की कसौटी पर परखा जाएगा.

7 अक्तूबर 2016 : भारत के संवैधानिक इतिहास में पहली बार केंद्र ने सुप्रीम कोर्ट में इन प्रथाओं का विरोध किया और लैंगिक समानता तथा धर्मनिरपेक्षता जैसे आधार पर इस पर विचार करने का अनुरोध किया था.

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9 दिसंबर 2016 : इलाहाबाद हाई कोर्ट ने एक फैसले में, मुस्लिम कानून को संवैधानिक रुप से खारीज करते हुए तीन तलको के अभ्यास को बंद करवा दिया था, लेकिन बाद मे उन्होंने कहा कि वे व्यक्तिगत परेशनियों के लिए किसी भी आम आदमी को कानून संवैधानिक रुप से दिए गए व्यक्तिगत अधिकारों को खारीज नहीं सकता हैं.

14 फरवरी 2017 : सुप्रीम कोर्ट ने विभिन्न याचिकाओं पर मुख्य मामले के साथ सुनवाई करने की अनुमति दी थी.

16 फरवरी 2017 : सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि तीन तलाक, निकाह हलाला और बहुविवाह को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर पांच जजों की संविधान पीठ सुनवाई करेंगी और फैसला सुनाएंगी.

27 मार्च 2017 : एआईएमपीएलबी ने सुप्रीम कोर्ट को बताया कि ये मुद्दे न्यायपालिका के क्षेत्राधिकार के बाहर है इसलिए ये याचिकाएं विचार योग्य नहीं हैं.

30 मार्च 2017 : सुप्रीम कोर्ट ने अपनी इस सुनवाई में कहा कि ये मुद्दे बहुत महत्वपूर्णं हैं साथ ही इनमें भावनाएं जुड़ी हुई है और संविधान पीठ 11 मई से इन पर सुनवाई शुरू करेगी.

11 मई 2017 : सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि वह इस मुद्दे पर विचार करेगी कि क्या मुस्लिमों में तीन तलाक की प्रथा उनके धर्म का मूल सिद्धान्त हैं.

12 मई 2017 : सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि तीन तलाक की प्रथा मुस्लिमों में शादी तोड़ने का सबसे खराब और गैर जरुरी तरीका हैं.

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15 मई 2017 : केंद्र ने सुप्रीम कोर्ट से कहा कि अगर तीन तलाक खत्म हो जाता है तो वह मुस्लिम समुदाय में शादी और तलाक के लिए नया कानून लेकर आएगा. शीर्ष अदालत ने कहा कि वह संविधान के अनुच्छेद 25 के तहत यह देखेगा कि क्या तीन तलाक धर्म का मुख्य हिस्सा हैं.

16 मई 2017 : एआईएमपीएलबी ने सुप्रीम कोर्ट से कहा कि आस्था के मामले संवैधानिक नैतिकता के आधार पर नहीं परखे जा सकते है उसने कहा कि तीन तलाक पिछले 1,400 वर्षों से आस्था का मामला रह चुका है तीन तलाक के मुद्दे को इस आस्था के बराबर बताया कि भगवान राम का जन्म अयोध्या में हुआ था.

17 मई 2017 : सुप्रीम कोर्ट ने एआईएमपीएलबी से पूछा कि क्या एक महिला को निकाहनामा के समय तीन तलाक को ना कहने का विकल्प दिया जा सकता हैं. केंद्र ने सुप्रीम कोर्ट को बताया कि तीन तलाक ना तो इस्लाम का अनिवार्य हिस्सा है और ना ही यह अल्पसंख्यक बनाम बहुसंख्यक का मामला है बल्कि यह मुस्लिम पुरुषों और वंचित महिलाओं के बीच अंतर सामुदायिक संघर्ष का मामला हैं.

18 मई 2017 : उच्चतम न्यायालय ने तीन तलाक पर फैसला सुरक्षित रखा.

22 मई 2017 : एआईएमपीएलबी ने सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा दायर करते हुए कहा कि वह दूल्हों को यह बताने के लिए काज़ियों को एक परामर्श जारी करेगा कि वे अपनी शादी तोड़ने के लिए तीन तलाक का रास्ता ना अपनाए. एआईएलपीएलबी ने सुप्रीम कोर्ट में विवाहित दंपतियों के लिए दिशा निर्देश रखे. इनमें तीन तलाक देने वाले मुस्लिमों का सामाजिक बहिष्कार करना और वैवाहिक विवादों को हल करने के लिए एक मध्यस्थ नियुक्त करना भी शामिल था.

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अप्रैल 21 2017 : दिल्ली हाई कोर्ट ने मुसलमानों से शादी करने वाली हिंदू महिलाओं पर तीन तलाकों को रोकने के लिए एक याचिका को खारिज की.

22 अगस्त 2017 : सुप्रीम कोर्ट की पांच सदस्यीय संविधान पीठ दो के मुकाबले तीन के बहुमत से फैसला दिया कि तीन तलाक के जरिए तलाक देना अमान्य, गैरकानूनी और असंवैधानिक है और यह कुरान के मूल सिद्धांतों के खिलाफ हैं.

 

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