
युवा पाटीदार नेता हार्दिक पटेल की जुबानी कांग्रेस जो सुनना चाहती थी, आखिर वो उन्होंने कह ही दिया. हार्दिक ने कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी से मुलाकात किए बिना ही ‘पंजे’ के समर्थन का एलान कर दिया. हार्दिक और उनके नुमाइंदों से अभी तक कांग्रेस की ओर से पार्टी के गुजरात प्रभारी अशोक गहलोत, वरिष्ठ नेता और जानेमाने वकील कपिल सिब्बल ही बात कर रहे थे. कांग्रेस ने तय कर रखा था कि हार्दिक पहले ‘डील’ का एलान करें, तभी उनकी मुलाकात राहुल गांधी से कराई जाएगी.
हार्दिक की कोशिश यही रही कि ‘डील’ में कांग्रेस से ज्यादा से ज्यादा हासिल किया जाए. 1 नवंबर से हार्दिक कई बार डेडलाइन बढ़ाते रहे. आखिरकार 22 नवंबर को हार्दिक ने सारे गिले-शिकवे दूर होने के बाद कांग्रेस के समर्थन का एलान कर दिया.
दरअसल, कांग्रेस और हार्दिक पटेल दोनों की कोशिश रही कि BJP को ये कहने का मौका ना मिले कि हार्दिक कांग्रेस की गोद में खेल रहे हैं या हार्दिक कांग्रेस के ही एजेंट थे. इसीलिए सामान्य तरीके से या फिर हार्दिक को झुका कर समझौता करते नहीं दिखाना था. ऐसे में हार्दिक कांग्रेस के सामने ‘हार्ड बार्गेनिंग’ वाला रुख अपनाते दिखे.
हार्दिक BJP के विरोध की बात तो शुरू से करते रहे लेकिन साथ ही उन्होंने पाटीदार समुदाय के लिए कांग्रेस के सामने 5 मांगे रखीं जिनमें से कांग्रेस ने 4 मान लीं. बस आरक्षण का पेचीदा मसला रह गया.
संवैधानिक आधार पर आरक्षण का पेच फंसा था. स्थिति की गंभीरता को देखते हुए कांग्रेस ने संविधान के जानकार और वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल को आगे किया. कपिल सिब्बल ने सभी पहलुओं को ध्यान में रखकर फॉर्मूला सुझाया. इसे हार्दिक और उनकी टीम ने मान भी लिया. लेकिन ये सब होते हुए भी दोनों पक्षों में ‘तनातनी’ का संदेश लगातार दिया जाता रहा. कोशिश यही थी कि बाहर से यही दिखे कि हार्दिक अपने समुदाय के लोगों के हितों के लिए कांग्रेस से लड़ाई लड़ रहे हैं और अपनी शर्तों पर समझौता करने की तरफ कदम बढ़ा रहे हैं.
हर किसी को ये जानने में दिलचस्पी थी कि आखिर सिब्बल ने ऐसा कौन सा फॉर्मूला सुझाया जिसे हार्दिक के साथ ‘पाटीदार अनामत आंदोलन समिति’ (PASS) ने भी सहमति दे दी. ये रहा वो फॉर्मूला- SC/ST/OBC के 49 फीसदी आरक्षण में कोई बदलाव नहीं. संविधान के अनुच्छेद 31 ( c ) को ध्यान में रखते हुए संविधान के अनुच्छेद 46 के प्रावधान पर कांग्रेस की सरकार आने की स्थिति में बिल विधानसभा में पास कराया जाएगा.
-जिन समुदाय का अनुच्छेद 46 में जिक्र है और जिन्हें संविधान के अनुच्छेद 15(4) और 15(6) के तहत लाभ नही मिला, उन समुदायों को शिक्षा और सरकारी नौकरियों में समान न्याय देने के लिए स्पेशल कैटेगरी बनाई जाएगी ताकि उन्हें ओबीसी जैसे ही मिलने वाले तमाम लाभ मिल सकें.
-इस कानून के अंतर्गत स्पेशल केटेगरी में शामिल करने वाले समुदाय को निश्चित करने के लिए राज्य सरकार की ओर से तमाम हितधारकों (स्टेकहोल्डर्स) के साथ सलाह करके एक कमीशन का गठन किया जाएगा.
इसके अलावा आर्थिक रूप से पिछड़े लोगों को शिक्षा और आर्थिक उपार्जन के समान मौकों के लिए आयोग के गठन की बात भी एक पक्ष की ओर से कही गई है. जिन बातों पर सहमति बनी उन्हें कांग्रेस के चुनाव घोषणा पत्र में भी शामिल किया जाएगा.
कांग्रेस और हार्दिक का ‘हार्दिक तालमेल’ हो गया, लेकिन जैसे-जैसे इसमें पिछले कुछ हफ्ते से देरी हो रही थी बीजेपी हार्दिक पर अधिक हमलावर होती जा रही थी. इस बीच हार्दिक को भी ये जानने का मौका मिल गया कि उनके साथ के कितने पाटीदार नेता छिटक कर बीजेपी के पाले में जा मिलते हैं. मतदान से ठीक पहले ऐसा होता तो हार्दिक के लिए अधिक झटके वाली बात होती. यही वजह है कि हार्दिक ‘तेल देखो, तेल की धार देखो’ वाली नीति पर चलते रहे.
यही वजह है कि हार्दिक अपने समुदाय के कुछ लोगों की टिकटों को लेकर पेंच फंसाने लगे और कांग्रेस पर दबाव बनाने लगे. आखिरकार कांग्रेस ने घोषणा करने के बाद 4 उम्मीदवारों को बदल दिया. हार्दिक यहीं नहीं रुके इसके बाद एक बार फिर उन्होंने अपनी प्रेस कॉन्फ्रेंस टाल दी. इसके बाद कांग्रेस ने एक और उम्मीदवार बदला. तब जाकर हार्दिक ने बुधवार को प्रेस कॉन्फ्रेंस में वो एलान किया जिसे कांग्रेस सुनना चाहती थी. कांग्रेस की कोशिश यही थी कि राहुल गांधी के 24, 25 नवंबर को गुजरात दौरे पहले हार्दिक के एलान से माहौल बन जाए. दरअसल, कांग्रेस ने रणनीति के तहत राहुल को एक यात्रा में ओबीसी नेता अल्पेश ठाकोर से, एक में दलित नेता जिग्नेश मेवाणी से मिलाया. अगले दौरे में राहुल और हार्दिक के सार्वजनिक तौर पर साथ आने की संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता.
दरअसल, हार्दिक बीजेपी के विरोध में इतना आगे आ चुके थे कि यहां से मुड़ कर कहीं और जाने का उनके सामने रास्ता नहीं बचा था. हार्दिक और कांग्रेस दोनों ही अच्छी तरह जानते थे कि आपस में हाथ मिलाने में ही दोनों का फायदा है. बुधवार को एक दूसरे का हाथ थामने का आधिकारिक एलान भी हो गया.