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यूरोप का दरवाजा था तुर्की, इस्लामोफोबिया से लड़ने के बहाने पाक कट्टरपंथ से मिलाया हाथ

तुर्की को एशिया और यूरोप के बीच का दरवाजा कहा जाता था. माना जाता है कि यह ऐसा देश था, जिसके संस्कार इस्लामी थे, लेकिन कट्टरता इस मुल्क को छू नहीं पाई. यहां का मिजाज आधुनिक था और लोग दूसरी संस्कृतियों को खुले दिल से गले लगाते थे. तुर्की को पूरब और पश्चिम मूल्यों का मिलन बिंदू भी कहा जाता है. लेकिन हाल के वर्षों में तुर्की की सरकार ने अपने पुराने संस्कारों को त्यागते हुए कट्टरपंथ की ओर हाथ बढ़ाया है.

इमरान खान के साथ एर्दोआन और महाथिर मोहम्मद (फोटो-twitter/ImranKhanPTI) इमरान खान के साथ एर्दोआन और महाथिर मोहम्मद (फोटो-twitter/ImranKhanPTI)
पन्ना लाल
  • नई दिल्ली,
  • 01 अक्टूबर 2019,
  • अपडेटेड 7:40 PM IST

  • तुर्की को पूरब और पश्चिम मूल्यों का मिलन बिंदू भी कहा जाता है
  • पाकिस्तान से तुर्की की दोस्ती इसी बदलते तेवर का प्रतीक है

तुर्की को एशिया और यूरोप के बीच का दरवाजा कहा जाता था. माना जाता है कि यह ऐसा देश था, जिसके संस्कार इस्लामी थे, लेकिन कट्टरता इस मुल्क को छू नहीं पाई. यहां का मिजाज आधुनिक था और लोग दूसरी संस्कृतियों को खुले दिल से गले लगाते थे. तुर्की को पूरब और पश्चिम मूल्यों का मिलन बिंदू भी कहा जाता है. लेकिन हाल के वर्षों में तुर्की की सरकार ने अपने पुराने संस्कारों को त्यागते हुए कट्टरपंथ की ओर हाथ बढ़ाया है.

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पाकिस्तान से तुर्की की दोस्ती इसी बदलते तेवर का प्रतीक है. इस लीग में शामिल होकर मलेशिया भी कट्टरपंथ की उस धुरी में शामिल हो गया है, जिन्होंने इस्लामोफोबिया से लड़ने का आडंबर रचा है. दरअसल इनकी मंशा इस्लामिक दुनिया का नया मसीहा बनने की है. इनकी गोलबंदी भारत के लिए दक्षिण एशिया में मुश्किलें खड़ी करने वाली है.

भारत के खिलाफ तुर्की की आक्रामक विदेश नीति

तुर्की की सरकार ने कुछ सालों से भारत के खिलाफ आक्रामक विदेश नीति का रुख अख्तियार किया है. इसके लिए तुर्की भारत के खिलाफ पाकिस्तान का अंतरराष्ट्रीय मंचों पर समर्थन कर रहा है. तुर्की के राष्ट्रपति तैयब एर्दोआन ने संयुक्त राष्ट्र में अपने भाषण के दौरान भी कश्मीर का मुद्दा उठाया था. तुर्की ने जम्मू-कश्मीर का विशेष दर्जा खत्म करने के भारत के कदम का भी विरोध किया था. एर्दोआन ने कहा कि वे वैश्विक प्लेटफॉर्म पर कश्मीर का मुद्दा उठाते रहेंगे.

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तुर्की में कुर्दों का दमन

तुर्की ने न सिर्फ भारत के आतंरिक मामलों में दखल दी है. सीरिया में मानवाधिकारों को कुचलने में तुर्की ने कोई कसर नहीं छोड़ी है. भारत को कश्मीर पर ज्ञान देने वाले तुर्की ने खुद सीरिया में सैन्य बलों की संख्या बढ़ा दी है. यही नहीं अपने देश के अंदर चल रहे कुर्द आंदोलन का दमन करने में तुर्की ने सैन्य ताकत का इस्तेमाल किया है. कुर्द तुर्की में अपनी स्वायत्तता के लिए लड़ाई लड़ रहे हैं. तुर्की में कुर्दों की आबादी 15 से 20 फीसदी है. सालों से तुर्की में इनके साथ शत्रुतापूर्ण व्यवहार होता रहा है.

इस्लामोफोबिया से लड़ने का दंभ

बता दें कि संयुक्त राष्ट्र महासभा की सालाना मीटिंग के दौरान इन तीनों देशों के नेताओं ने एक साथ मीटिंग की है. इस मीटिंग में इन देशों ने कथित इस्लामोफोबिया का मुकाबला करने के लिए बीबीसी टाइप अंग्रेजी न्यूज चैनल शुरुआत करने का ऐलान किया है. इजरायल ने इस कोशिश पर तंज कसा है. यरुशलम पोस्ट के एक लेख में पाकिस्तान को लताड़ते हुए कहा गया है कि एक ऐसा देश जहां पर ईश निंदा के लिए मौत की सजा है वो इस्लामोफोबिया के खिलाफ अभियान शुरू करने की बात कर रहा है.

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पाकिस्तान के बहकावे में मलेशिया

अंतरराष्ट्रीय कूटनीति में कोई भी देश किसी के साथ भी जाने को स्वतंत्र है, लेकिन इस मेलजोल के पीछे मंशा का ध्यान रखना जरूरी है. कश्मीर पर पाकिस्तान के बहकावे में आकर मलेशिया के पीएम महाथिर मोहम्मद ने बेहद गैरजिम्मेदराना बयान दिया है. संयुक्त राष्ट्र में महाथिर मोहम्मद ने कहा कि भारत ने कश्मीर पर हमला कर कब्जा किया है.  हाल में मलेशिया के कई कदम धार्मिक कट्टरपंथ को बढ़ावा देने वाले रहे हैं.

बता दें कि भारत में धार्मिक उन्माद फैलाने का आरोपी जाकिर नाइक इस वक्त मलेशिया में ही शरण लेकर रह रहा है . गौरतलब है कि इस्लाम पर जाकिर नाइक की गलत व्याख्या से प्रभावित होकर ही कुछ आतंकियों ने बांग्लादेश में हमला किया था. इस्लाम की पहरेदारी करने का दावा करने वाला मलेशिया बड़ी बेशर्मी के साथ जाकिर नाइक को शरण दिए हुए है. मलेशिया के पीएम खुले आम खुद को यहूदी विरोधी कहते हैं और इसे अपनी बोलने की आजादी करार देते हैं.

दरअसल आतंरिक मोर्चे पर जूझ रहा पाकिस्तान देश की समस्याओं से लोगों का ध्यान हटाने के लिए इस्लामोफोबिया और भारत विरोध का प्रोपेगैंडा रच रहे हैं. एर्दोआन और महाथिर मोहम्मद भी घरेलू ऑडियंस को खुश करने को बेकरार हैं, लेकिन इन तीनों नेताओं को कोशिश भारत समेत दुनिया के मुश्किलें खड़ी कर सकती हैं.

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