
झांसीः 'मैं भाजपा में उस सबसे कठिन समय में आई थी जब बीजेपी के दो सांसद थे. जो भयंकर मेहनत वाला दौर था उस समय तो मुझे ऐसा दौड़ाया गया गधे की तरह. रात-दिन.. रात - दिन.. कोई भी आंदोलन हो बीजेपी का 1984 से 2004 तक, जब तक सरकार नहीं बनाली मध्य प्रदेश में. वो भी एक आंदोलन था कि सरकार बनाकर दिखाओ.'
केन्द्रीय मंत्री उमा भारती का यह बयान उस समय आया है जब मध्य प्रदेश विधानसभा चुनाव के फायनल मुकाबले से कुछ ही माह पहले दो सीटों पर उपचुनाव चल रहा है. उमा ने रविवार को झांसी में अपने सधे हुए अंदाज में पार्टी के लिए काम करने की इच्छा जारी रखी तो वहीं यह भी जता दिया कि उनका मंत्रालय बदले जाने से लेकर आज तक वह अपनी पुरानी हनक के साथ खुद को एडजस्ट नहीं कर पाईं हैं.
मध्य प्रदेश में चुनाव शुरू होने के पहले उमा ने अपने बयान के जरिए पार्टी को अपनी मेहनत के साथ यह भी जताने की कोशिश की है कि मध्य प्रदेश में कांग्रेस का चक्रब्यूह तोडक़र भगवा क्रांति लाने वाली योद्धा वे ही हैं. सो उन्होंने इसी बहाने मध्य प्रदेश में सक्रिय होने के लिए यह भी कह दिया कि वे पार्टी के लिए कैंपेनर की भूमिका में रहीं हैं. मध्य प्रदेश उनका ही प्रदेश है और वे यहां प्रभावी चुनाव प्रचार कर सकती हैं. यह संकेत मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान का टेंशन बढ़ाने के लिए काफी है.
दरअसल, उमा भारती को एक तेज तर्रार बीजेपी लीडर के तौर पर जाना जाता है, लेकिन बीते साल प्रधानमंत्री ने अपनी कैबिनेट में बदलाव कर उमा भारती का सबसे अहम गंगा सफाई एवं नदी विकास मंत्रालय छीन लिया था.
पहले उनसे इस्तीफा लिए जाने की खबरें थीं, लेकिन बाद में उनका मंत्रालय बदल दिया गया और उन्हें पेयजल मंत्रालय की जिम्मेदारी दे दी गई. इस बदलाव के बाद उमा कुछ हद तक नाखुश भी नजर आने लगीं.
फिर भी उन्होंने खुलकर सरकार के खिलाफ कोई बयान नहीं दिया, लेकिन अब उमा के तेवर बदल रहे हैं और वह पार्टी के प्रति अपने योगदान को गिनाकर दबाव बनाने की कोशिश में हैं.
मध्य प्रदेश की राजनीति में सक्रिय होने के संकेत
झांसी में उमा भारती ने जिस तर्ज पर पत्रकारों के बीच खुलकर अपने संघर्ष की बातें दोहराते हुए यह कहा कि लंबे समय से मध्य प्रदेश में कांग्रेस की जमी जमाई जड़ों को उखाड़ने के लिए भाजपा ने उन्हें ही सबसे बड़ी जिम्मेदारी सौंपी थी. उनसे कहा गया कि जाओ तुम मध्य प्रदेश में सरकार बनाकर दिखाओ. असंभव था सरकार बनाना वहां पर.
यह उनके लिए एक आंदोलन जैसा ही था.इसमें कांग्रेस को सत्ता से बाहर कर दिया गया. यहां उन्होंने कई कार्य किए हैं. यहां आज भी बीजेपी की सरकार है और इस बार फिर वह मध्य प्रदेश में स्टार कैंपेनर के रूप में काम करना चाहती हैं, लेकिन वह सीएम का चेहरा नहीं बनेंगीं. सिर्फ पार्टी के लिए ही कार्य करेंगी.
शिवराज और उमा में है अनबन
मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान किसी भी सूरत में मध्य प्रदेश में उमा भारती का दखल नहीं चाहते. शिवराज जानते हैं कि यदि उमा भारती को पार्टी की ओर से पॉवर लाइन मिली तो वह यहां अपना प्रभाव दोबारा जमाने से नहीं चूकेंगीं. यह उनके लिए खतरनाक हो सकता है.
यही कारण है कि बुन्देलखण्ड में ही दो सीटों कोलारस और मुगावली में चल रहे उपचुनाव में प्रचार के लिए शिवराज सिंह ने पूरी ताकत झोंकने के बाद भी उमा भारती को यहां प्रचार करने का न्यौता नहीं दिया है. जबकि, यहां लोध वोटर भी कुछ हद तक हार जीत पर प्रभाव डालने की हैसियत में हैं और लोध वोटरों पर उमा भारती का प्रभाव है.
इसके पहले केन बेतवा लिंक परियोजना पर मध्य प्रदेश सरकार की ओर से एनओसी नहीं दिए जाने पर उमा भारती और शिवराज सिंह चौहान के बीच मतभेद सामने आए थे. बाद में उमा की तरफ से यह भी कहा गया था कि उन्होंने शिवराज से बात करना बंद कर दिया है. इसके साथ ही हल ही में उमा भारती ने बुंदेलखंड के छतरपुर में अपने प्रवचन के 50 साल और दीक्षा के 25 साल कार्यक्रम में राम जन्म भूमि न्यास के अध्यक्ष नृत्य गोपालदास को बुलाकर काफी भीड़ जुटाई थी.
उमा के मुकाबले दूसरा लोध नेता खड़ा करने की कोशिश में हैं शिवराज
हाल ही के मंत्रीमंडल विस्तार में शिवराज सिंह चौहान ने दमोह से सांसद प्रहलाद पटेल के विधायक भाई जालम सिंह को मंत्री बनाया है. ऐसा इसलिए किया गया क्योंकि प्रहलाद पटेल लोध समाज से आते हैं और उनका अपने इलाके में प्रभाव भी है.
लोध कई सीटों पर निर्णायक हैसियत में हैं और यदि उमा भारती ने शिवराज को कमजोर करने की ठान ली तो यह बीजेपी के लिए मुश्किल सबब हो सकता है. इसी को ध्यान में रखकर शिवराज सिंह भी अपनी कुर्सी को मजबूत रखने के लिए सियासी और जातीय पत्ते फेंट रहे हैं.
उमा ने सांसद के रूप में खुद को बताया फेल, मंत्री के रूप में पास
उमा भारती ने पहली बार खुलकर यह स्वीकार कर लिया है कि वह बतौर सांसद अपने कार्यकाल से खुश नहीं हैं. इसके लिए उन्होंने अपने स्वास्थ्य को वजह बताया है.
उमा ने कहा ' मैं एक सांसद की हैसियत से बिल्कुल संतुष्ट नहीं हूं. स्वास्थ्य ठीक नहीं रहने के कारण मैं पहले ही चुनाव नहीं लडऩा चाहती थी, लेकिन बाद में मुझे झांसी से लड़ा दिया गया. यहां की जनता का उपकार है कि उन्होंने मुझसे कभी भी शिकायत नहीं की, लेकिन मैं अपने ही काम से संतुष्ट नहीं हूं. हां मंत्री के रूप में सफल रहीं हूं. '
***