Advertisement

उमा भारती किसे आदर्श बनाएं

उमा भारती हर बार आदर्श बनाने के लिए ऐसा गांव चुनती हैं, जो इस योजना के काबिल नहीं होता. उन्होंने इस बार जो गांव चुना है उसमें सात स्कूल, एक इंटर कॉलेज, पॉलीटेक्निक और तमाम सुविधाएं हैं, सवाल है कि ऐसे गांव में सांसद अब और क्या करेंगी.

aajtak.in
  • ,
  • 09 मार्च 2015,
  • अपडेटेड 6:28 PM IST

उमा भारती भारतीय जनता पार्टी की ऐसी तेजतर्रार नेता हैं कि अगर वे खामोश रहें तो भी विवाद उनका पीछा नहीं छोड़ते. मध्य प्रदेश की मुख्यमंत्री रह चुकीं उमा फिलहाल उत्तर प्रदेश की झांसी लोकसभा सीट से सांसद हैं और मोदी सरकार में केंद्रीय जल संसाधन एवं गंगा विकास मंत्री हैं. ताजा विवाद प्रधानमंत्री आदर्श ग्राम योजना को लेकर है जहां, हर बार आदर्श बनाने के लिए वे एक ऐसा गांव चुन लेती हैं, जो इस योजना के काबिल नहीं होता. आदर्श बनाने लायक गांव की उमा भारती की खोज अपने आप में एक ऐसा किस्सा बन गई है, जो पूरी योजना के हवाई चरित्र को उजागर कर देती है.

इससे पहले कि कुछ कहा जाए उमा भारती के मुंह से ही सुनिए कि आदर्श गांव वे कैसे खोज रही हैं. साध्वी कहती हैं, ''योजना की घोषणा होते ही मैंने ललितपुर जिले के महरौनी ब्लॉक के बेहद पिछड़े गांव सड़कौरा को प्रधानमंत्री की अपेक्षाओं के अनुरूप आदर्श गांव बनाने के लिए चुना.'' बकौल उमा, उन्होंने तीन महीने तक इस गांव को आदर्श बनाने का खाका तैयार किया. लेकिन जब काम शुरू करने का वक्त आया तो उन्हें बताया गया कि गांव की आबादी आदर्श गांव बनाने के लिए निर्धारित मानदंड से कम है. साथ ही यह सवाल भी उठा कि यह उनका पैतृक गांव है. इस सवाल पर वे कहती हैं, ''हां सात-आठ पीढ़ी पहले हमारे पुरखे इस गांव में रहते थे. मैंने खुद प्रधानमंत्री जी को यह बात बताई, तो उन्होंने कहा कि इससे फर्क नहीं पड़ता.'' वैसे भी उमा भारती का पैतृक निवास अब ललितपुर से सटे मध्य प्रदेश के टीकमगढ़ जिले में है और वे वहीं पली-बढ़ी हैं. इसलिए सड़कौरा पैतृक गांव होने की बजाए आबादी के मानदंड पर गच्चा खा गया.

फिर चर्चा आई कि उमा भारती ने झांसी शहर से सटे श्रीनगर गांव को आदर्श ग्राम के तौर पर गोद लिया है. झांसी के डीएम अनुराग यादव ने पुष्टि करते हुए कहा,''उमा भारती ने सबसे पहले श्रीनगर को ही चुना था, लेकिन महानगर क्षेत्र में आने के कारण इसे हटाना पड़ा.'' हालांकि श्रीनगर गांव की कहानी बयान करते हुए दीदी कहती हैं, ''आप तो जानते हैं कि श्रीनगर गांव कैंटोनमेंट इलाके में पड़ता है. सैनिक क्षेत्र में आने के कारण गांव का विकास नहीं हो सका है और गांव को जोड़ने वाली चारों सड़कें खराब पड़ी हैं. इसलिए इस गांव को मैंने ऐसे ही गोद ले लिया.'' इसका प्रधानमंत्री आदर्श गांव से कोई लेना-देना नहीं है. तो इस तरह दो गांवों के आदर्श बनने की कथा समाप्त हुई.

इसके बाद उमा भारती ने ठान लिया कि अब तो उसी गांव को आदर्श बनाया जाएगा, जो हर तरह से मानकों पर खरा उतरे. इस काम में अब उन्हें किसी तरह की हीला-हवाली मंजूर नहीं थी. तब जाकर उन्होंने ललितपुर जिले में तालबेहट कस्बे से सटा पवा गांव चुना. गंगा के उद्धार के लिए राजनीति करने का दम भरने वाली मंत्री ने कहा, ''इसके बाद मैंने ललितपुर जिले के जिलाधिकारी और पार्टी के जिलाध्यक्ष को सही गांव का चयन करने की जिम्मेदारी दे दी. इसके बाद ही पवा गांव का चयन किया गया. मैं न तो चुनाव प्रचार के दौरान इस गांव में गई और न योजना में चयन से पहले यह गांव देखा था.'' यहां आकर अगर आप सोच रहे हैं कि देर आयद दुरुस्त आयद, तो जरा सब्र करिए. असल कहानी तो पवा गांव से ही शुरू होती है.
ललितपुर जिले के तालबेहट कस्बे से सटा है जैन तीर्थ पवा. यह झांसी लोकसभा क्षेत्र के दायरे में आने वाले 1,200 गांवों में सबसे विकसित गांवों में से एक नजर आता है. इसे सन् 2000 में आंबेडकर गांव घोषित किया जा चुका है.

मायावती सरकार में आदर्श गांव को आंबेडकर गांव ही कहा जाता था और इसके लिए विशेष फंड जारी होते थे. बड़े-बड़े गांवों के कान काटते इस गांव में पहले से ही 7 सरकारी स्कूल हैं. इनमें से पांच प्राइमरी और दो जूनियर हाइ स्कूल हैं. इसके अलावा राज्य सरकार ने यहां इंटर कॉलेज को भी मंजूरी दे दी है. कॉलेज की इमारत का निर्माण जल्द शुरू होगा. गांव की सरहद पर एक पॉलीटेक्निक कॉलेज भी बना हुआ है. स्वास्थ्य सेवाओं के नजरिए से देखें तो गांव में एक एएनएम सेंटर है. लिहाजा प्रसव के लिए महिलाओं को गांव से बाहर नहीं जाना पड़ता. गांव की ए.एन.एम. लक्ष्मी तिवारी कहती हैं, ''मैं तो 24 घंटे लोगों की सेवा के लिए उपलब्ध हूं.'' गांव में ग्राम पंचायत सचिवालय है और सचिव गांव में ही रहें, इसके लिए उनका सरकारी आवास भी बना है. गांव में डाक खाना, वन विभाग की चौकी, सब्जी मंडी और आयुर्वेदिक चिकित्सालय भी है. गांव में तीन तालाब हैं और एक तालाब तो इतना बड़ा है कि सिंचाई विभाग ने इससे नहर निकाल रखी है. गांव में गरीबों के लिए पहले ही 80 इंदिरा आवास बन चुके हैं और 16 का निर्माण कार्य जारी है. तकरीबन सभी सड़कें पक्की हैं, हालांकि इनमें से कुछ की हालत खराब है. जैन तीर्थ होने के कारण यहां की बड़ी धर्मशाला में सैकड़ों लोगों के ठहरने का इंतजाम है.

अब इसी विकसित गांव को उमा भारती आदर्श गांव बनाने में जुटी हैं. ललितपुर के डीएम जुहैर बिन सगीर से जब पूछा गया कि उन्होंने उमा भारती को आदर्श बनाने के लिए चमचमाता हुआ गांव क्यों दिया, तो उन्होंने कहा, ''आदर्श गांव का चयन तो सांसद को ही करना होता है. मेरा काम तो मानदंडों के बारे में उन्हें सूचित करने भर का है.'' यानी सांसद और डीएम, दोनों ही आदर्श गांव के चयन की जिम्मेदारी से पल्ला झाड़ रहे हैं. इसके बाद जब डीएम से पूछा गया कि चलिए विकसित ही सही, लेकिन आदर्श ग्राम के तहत अब यहां नया क्या हो रहा है, तो उनका जवाब और दिलचस्प था, ''प्रधानमंत्री आदर्श ग्राम योजना के तहत गांव को अलग से कोई बजट नहीं दिया जाता. इसके तहत तो पहले से चल रही योजनाओं को और सक्रियता से लागू ही किया जा सकता है.'' जिलाधिकारी ने स्पष्ट किया कि इस योजना को प्रदेश में चल रही लोहिया ग्राम योजना की तरह न माना जाए. लोहिया ग्राम के तहत गांव के विकास के लिए अतिरिक्त पैसा दिया जाता है, आदर्श गांव में पैसे की अलग से कोई व्यवस्था नहीं है. ऐसे में ले-देकर प्रधानमंत्री आदर्श ग्राम के पास सांसद क्षेत्र विकास निधि का ही सहारा है. लेकिन जुहैर स्वीकारते हैं,''पवा के लिए सांसद निधि से कोई योजना मेरे माध्यम से पारित नहीं हुई.''

गांव की प्रधान विनीता रजक दुखड़ा रोती हैं, ''हम तो सोचते थे कि उमा दीदी ने गांव को चुना है, तो विकास के काम होंगे. लेकिन अब तक विकास का कोई काम तो हुआ नहीं, उलटा अफसरों की पलटन को चाय-नाश्ता करा-कराकर मैं थक गई हूं.'' प्रधानमंत्री आदर्श ग्राम योजना का विजन डॉक्यूमेंट पढ़ें तो लगता है कि यह योजना जैसे ही अमल में आएगी, गांव महात्मा गांधी के आत्मनिर्भर गांव में बदल जाएंगे. लेकिन यहां तो पूरी योजना ही एक मृग मरीचिका जैसी नजर आ रही है. उमा साफगोई की कायल हैं, इसलिए उन्होंने सच्ची कहानी बता दी, बाकी गांवों की आदर्श गाथा भी प्रधानमंत्री को शायद जल्दी ही सुनाई दे जाए.

Read more!
Advertisement

RECOMMENDED

Advertisement