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'मिशन इंद्रधनुष' को सफल बनाने में जुटी UNICEF

'एक भी बच्चा नहीं छूटना चाहिए. लक्ष्य आसान नहीं है, लेकिन हासिल करना होगा.' इसी हौसले के साथ झारखंड के छह जिलों में यूनीसेफ अपने स्थानीय सहयोगियों के साथ मिलकर इस मुहिम को सफल बनाने में जुटी हुई है. 'मिशन इंद्रधनुष' में शामिल दो गांव का 8 मई को दौरा किया aajtak.in की टीम ने.

सिंगडा में टीकाकरण करते स्वास्थ्यकर्मी सिंगडा में टीकाकरण करते स्वास्थ्यकर्मी
सुरेश कुमार
  • मुचिरायडीह/सिंगडा (धनबाद),
  • 18 मई 2015,
  • अपडेटेड 3:11 PM IST

'एक भी बच्चा नहीं छूटना चाहिए. लक्ष्य आसान नहीं है, लेकिन हासिल करना होगा.' इसी हौसले के साथ झारखंड के छह जिलों में यूनीसेफ अपने स्थानीय सहयोगियों के साथ मिलकर इस मुहिम को सफल बनाने में जुटी हुई है. 'मिशन इंद्रधनुष' में शामिल दो गांव का 8 मई को दौरा किया aajtak.in की टीम ने.

गांव सिंगडा में
तकरीबन तीन हजार की आबादी होगी बाघमारा ब्लॉक के गांव सिंगडा की. सेंटर पर काफी चहल-पहल है. एएनएम एनी रंजीता अपने आशा कार्यकर्त्ता नाजरा बीवी के साथ बच्चों के टीकाकरण में व्यस्त है. मीडिया टीम के आने से वह थोड़ी सतर्क हो गई हैं. सेंटर के आसपास जगह-जगह 'मिशन इंद्रधनुष' के पोस्टर लगे हुए है. सेंटर पर वैक्सीनेशन कीट है और ड्यू सीट पर तकरीबन 12 से 14 बच्चों के नाम दर्ज है. इस गांव की आबादी तकरीबन तीन हजार के आसपास होगी.

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हिन्दु-मुसलिम दोनों समुदाय के लोग यहां रहते हैं. कुछ लोगों से हमारी बात होती है. वैक्सीनेशन को लेकर लगभग सभी लोग कहते हैं कि उन्हें जानकारी है और यहां जो मैडम काम करती हैं वह अच्छा काम कर रही हैं. इसी बीच एक वृद्ध महिला आकर कहती हैं कि उन्हें आयरन की गोली नहीं मिलती है केवल फ्लेरिया की दवा दे देते हैं. आप कहिए कि वो आयरन की गोली भी दें.

कुछ स्थानीय लोगों से बातें होती है. आंगनबाड़ी में बच्चों को काफी समय से खाना नहीं दिया जा रहा है. पहले बिस्कुट दिया जाता था, अब तो वह भी बंद है. जब बात बच्चों के वैक्सीनेशन की होती है तो सभी लोग इसकी जानकारी होने की बात कहते हैं. सेंटर पर काम करने वाली आशा और एएनएम घर पर बच्चों को वैक्सीनेशन देने के लिए भी आ जाती है. लोग सेंटर पर भी बच्चे को वैक्सीनेशन के लिए ले जाते हैं.

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अब हमारी टीम सिंगडा गांव से निकलकर दूसरे सेंटर मुचिरायडीह की ओर चल पड़ती है.

मुचिरायडीह में जो हमने देखा
'...ये क्या चीज का पोस्टर लगा है? इतने लोग यहां क्यों आए हैं?' यह सवाल उस महिला ने किया जिसके दरवाजे के ठीक सामने वाली दीवार पर 'मिशन इंद्रधनुष' का पोस्टर लगा था. उसके एक सवाल ने इस मिशन से जुड़ें तमाम स्थानीय अधि‍कारियों और सहयोगियों पर सवाल खड़े कर दिए थे. दरअसल, सारे पोस्टर मी‍डि‍या टीम के पहुंचने से ठीक पहले लगाए गए थे. स्थानीय लोगों के बीच जागरुकता कितनी फैली है इसका अंदाजा उस महिला के एक सवाल से लगाया जा सकता है.

दीवार और उस महिला के घर के बीच एक मंदिर था जहां एएनएम अहिल्या देवी बैठी थीं. वह कुछ अस्वस्थ सी दिख रही थीं. हमलोगों के पहुंचने के साथ ही सहिया गंगा पाठक भी पहुंची. साथ में मेड‍िकल ऑफिसर डॉ. मनीष कुमार थें जो जानकारी दिए जा रहे थें. उनकी बातों में वह सारी जानकारी सामने आ रही थी जो एक आदर्श परिस्थ‍ितियों में होती. जैसे कितने बच्चे अभी टीकाकरण में छूटे हुए हैं और उसे टीकाकरण में शामिल करने के लिए क्या कर रहे है, लेकिन वास्तविकता कुछ अलग ही थी.

उस सेंटर पर सिर्फ एक बच्चे का टीकाकारण किया गया था. सूची में शामिल अन्य बच्चे नहीं आए थें. पूछने पर पता चला कि गांव में वो सारे बच्चे नहीं हैं. बताया गया कि इस महीने में जो लक्ष्य दिया गया है उसे पूरा कर लिया जाएगा.

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मेडिकल ऑफ‍िसर डॉ. मनीष कुमार के अनुसार मुचिरायडीह में 20 हजार की आबादी है और 200 बच्चे टीकाकारण के लिए लिस्ट में शामिल हैं. उनके अनुसार एक एएनएम के लिए कई सेंटर पर जाना थोड़ा मुश्कि‍ल काम होता है. फिर भी सभी लोग बेहतर तरीके से इस काम को पूरा करने की कोश‍िश कर रहे हैं. स्थानीय सहयोगी 'मिशन इंद्रधनुष' को पूरा करने में जी-जान से लगे हुए हैं.

क्या कहा स्थानीय कार्यकर्ताओं ने

इस मिशन से जुड़े कुछ स्थानीय कार्यकर्ताओं से बात हुई. उनका कहना है था कि हमलोग अपने काम को पूरी ईमानदारी के साथ कर रहे हैं, लेकिन समय पर पारिश्रमिक नहीं मिल पाता है. जो वेतन पर हैं उन्हें भी समय पर उनका वेतन नहीं मिल पाता है. जिनका भुगतान डाइरेक्ट फंड ट्रांसफर के जरिए होता है या चेक के जरिए किया जाता है, एकाउंटेंट उसके बदले उनसे पैसे का डिमांड करते हैं. प्रति भुगतान 200 से 300 रुपये देने पड़ते हैं तब जाकर उनका पैसा उन्हें मिलता है. हालांकि यूनीसेफ की तरफ से मौजूद अधि‍कारी का कहना था कि भुगतान से संबंधि‍त मामला राज्य सरकार के अधीन है और वही इसे नियमित कर सकते हैं.

क्या है 'मिशन इंद्रधनुष'
भारत सरकार के स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय ने 25 दिसंबर, 2014 को 'मिशन इंद्रधनुष' का शुभारंभ किया था. यह मिशन 2020 तक सबको टीकाकरण कार्यक्रम के तहत टीके से वंचित और आंशिक रूप से टीकाकरण में शामिल किए जा चुके सभी बच्चों को टीके लगाने की विशेष राष्ट्रव्यापी पहल के रूप में आरंभ किया गया है.

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इस मिशन के तहत भारत में 2013 में 65 प्रतिशत बच्चों के पूर्ण टीकाकरण का विस्तार कर अगले पांच साल में कम से कम 90 फीसदी बच्चों को टीके लगाने पर ध्यान केंद्रित किया गया है. इस कार्यक्रम के तहत देशभर में सात खतरनाक बीमारियों से सुरक्षा के लिए टीके लगाने पर ध्यान दिया जाना है. यह बीमारियां हैं- गलघोंटू, जोर की खांसी, टिटनस, पोलियो, टीबी, खसरा और हेपेटाइटिस बी. इसके अतिरिक्त, चुने हुए जिलों/राज्यों में हेमोफिलस इन्फ्लुएंजा टाइप बी और जापानी इनसेफलाइटिस से बचाव के टीके भी लगाए जा रहे हैं.

'मिशन इंद्रधनुष' के तहत, स्वास्थ्य मंत्रालय ने देश भर में 201 जिलों की पहचान की है, जहां सबसे अधिक ध्यान दिया जा रहा है. सभी टीकाकरण वंचित या आंशिक टीकाकरण वाले बच्चों में से लगभग 50 फीसदी इन जिलों में हैं.

यूनीसेफ की कैसी द‍िखी तैयारी
बच्चों के लिए समर्पित संगठन के तौर पर यूनीसेफ काफी बेहतर काम करने का प्रयास कर रही है. इस काम में स्थानीय कार्यकर्त्ता तमाम कठिनाइयों के बावजूद काफी सहयोग कर रहे हैं. आदिवासी, मजदूर और पिछड़े इलाकों में ये लोग काफी सक्रिय हैं और 'मिशन इंद्रधनुष' को सफल बनाने में जुटे हुए हैं.

रांची स्थि‍त यूनीसेफ ऑफिस में मीडिया ब्रीफिंग के दौरान कई जानकारी मिली. 'मिशन इंद्रधनुष' को कैसे सफल बनाया जाए इसका पूरा रोड मैप वहां दिखा. कैसे इस मिशन से जुड़े सहयोगी कार्यकर्त्ता कठिनाईयों की परवाह किए बिना जंगलों के बीच से गुजरते हुए वैक्सीनेशन कीट सेंटर पर पहुंचा रहे हैं और कैसे एएनएम एवं सहिया उन बच्चों और औरतों के बीच काम कर रही हैं, यह सब कुछ जानने को मिला. यूनीसेफ एक बेहतरीन टीम के रूप में काम कर रही है. इससे जुड़े लोग एक विजन के साथ अपने लक्ष्य को हासिल करने की कोश‍िश कर रहे हैं.

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बहुत जरूरी है निगरानी
स्‍वास्‍थ्‍य एवं परिवार कल्‍याण मंत्रालय ने विश्‍व के सबसे बड़े टीकाकरण कार्यक्रमों में से एक इस कार्यक्रम की कड़ी निगरानी के लिए एक वृहत तंत्र स्‍थापित किया है, लेकिन धनबाद के जिस बाघमारा प्रखंड के मुचरियाडीह का दौरा मीडिया टीम ने किया वहां की अव्यवस्था देखकर यह अंदाजा लगाना मुश्कि‍ल हो गया‍ कि निगरानी की कोई कारगर व्यवस्था काम कर भी रही है या नहीं. कागजों पर आंकड़ें दिख रही है लेकिन हकीकत शायद उससे भी अलग है.

देवघर, धनबाद, गिरीडीह, गोड्डा, पाकुड़, साह‍िबगंज जिलों में टीकाकरण अप्रैल 2015 तक 67 फीसदी था. धनबाद में यह मात्र 50 फीसदी रहा जो कि इन छह जिलों के औसत से काफी कम है. 1139 सेशन में मात्र 9591 बच्चों का टीकाकरण किया गया, जबकि वहां ऐसे बच्चों की कुल संख्या 19292 थी. जाहिर सी बात है कि यहां टीकारकरण के इस सबसे बड़े अभि‍यान को उस गंभीरता से अंजाम नहीं दिया जा रहा है जो किया जाना चाहिए. घर-घर जाकर लोगों को इस अभ‍ियान की जानकारी देना इनकी प्राथमिकता में अभी शामिल नहीं हो पाया है.

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