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हिंदुस्तान की बेमिसाल ताकत की मिसाल है ये पनडुब्बी

आईएनएस सिंधु कीर्ति पनडुब्बी को दस साल बाद एक बार फिर नौसेना के बेड़े में शामिल किया गया है. आजतक की टीम ने बंगाल की खाड़ी से हिंद महासागर तक समंदर की निगरानी करने वाली पनडुब्बी में 8 घंटे तक सफर किया.

आईएनएस सिंधु कीर्ति पनडुब्बी आईएनएस सिंधु कीर्ति पनडुब्बी
मुकेश कुमार/मंजीत नेगी
  • नई दिल्ली,
  • 24 नवंबर 2015,
  • अपडेटेड 4:08 PM IST

नौसेना के पूर्वी कमान मुख्यालय विशाखापत्तनम पोर्ट में सीना तान कर खड़ी एक पनडुब्बी हिंदुस्तान की बेमिसाल ताकत की मिसाल है. जी हां, हम बात कर रहे हैं आईएनएस सिंधु कीर्ति पनडुब्बी की, जिसे दस साल बाद एक बार फिर नौसेना के बेड़े में शामिल किया गया है. आजतक की टीम ने बंगाल की खाड़ी से हिंद महासागर तक समंदर की निगरानी करने वाली पनडुब्बी में 8 घंटे तक सफर किया. सिंधु कीर्ति अब पहले से बेहद ताकतवर होकर आई है.

पनडुब्बी के अंदर जाने वाले रास्ते को कॉनिंग टावर कहते हैं. यहां मौजूद ढक्कन यानि अपर लिड के बंद होने के बाद पनडुब्बी में मौजूद 80 नौसैनिक डेढ़ महीने के लिए बाहरी दुनिया से पूरी तरह कट जाते हैं. पनडुब्बी में प्रवेश करने के बाद हमारी टीम प्रेशर हॉल की तरफ बढ़ी. समंदर में तीन सौ मीटर नीचे जाने से पहले प्रेशर हॉल में जाकर सतह पर सारी तैयारियों का जायज़ा लिया जाता है. पनडुब्बी की सारी मशीनरी को ठीक से चेक किया जाता है.

कमांडर विकास गौतम ने बताया कि बंगाल की खाड़ी में समंदर की उफनती लहरों पर सवार आईएनएस सिंधु कीर्ति कुछ ही देर में पानी की सतह से गायब हो जाता है. पाताल में जाते ही ये अपने मिशन पर लग जाता है. आईएनएस सिंधु कीर्ति को समंदर का शिकारी कहते हैं. शिकारी इसलिए कि ये समंदर में 300 मीटर नीचे छिपकर दुश्मन के इलाके में निगरानी करता है. खतरा नज़र आते ही दुश्मन को तबाह कर देता है.


चीन की पनडुब्बियों नजर रखेगी सिंधु कीर्ति
नौसेना के मुताबिक चीनी नौसेना बंगाल की खाड़ी से हिन्द महासागर तक करीब तीन हजार किलोमीटर लम्बी समुद्री सीमा में घुसपैठ की कोशिशें करती रही है. आईएनएस सिंधु कीर्ति अब चीन की परमाणु पनडुब्बियों पर नजर रखेगी. समंदर में खतरों का अंदाजा लगाना बेहद मुश्किल होता है. निगाहें जो कुछ नहीं देख पाती हैं, वो आईएनएस सिंधु कीर्ति की पैनी निगरानी में कैद हो जाता है. ऐसे ही एक दुश्मन को इस पनडुब्बी ने देख लिया.

कुछ ही पलों में करना होता है फैसला
समंदर की गहराइयों में निगरानी करते हुए पनडुब्बी को जब भी कोई खतरा नजर आता है. तो वक्त बहुत कम होता है. हमला करना है या बचना है. इसके लिए कुछ ही पलों में फैसला करना होता है. हमारी टीम जिस वक्त INS सिंधु कीर्ति में मौजूद थी, उसी समय एक ऐसा ही खतरनाक लम्हा आया. उसके बाद जो कुछ हुआ, वो आपने शायद ही पहले कभी देखा हो. सिन्धु कीर्ति समंदर में अपने मिशन पर आगे बढ़ रही थी.

पहले फ्लोर पर बना है कंट्रोल रूम
पनडुब्बी में पहला फ्लोर कंट्रोल रूम होता है. यहीं से पनडुब्बी के पूरे सिस्टम समेत समंदर में चारों तरफ़ नजर रखी जाती है. कंट्रोल रूम से तमाम तरह के मैसेज और कमांड दिए जाते हैं. पनडुब्बी से जुड़े सारे मैसेज यहां रिसीव भी होते हैं. पाताल की गहराइयों में पनडुब्बी की आंख और कान का काम करता है सोनार सिस्टम. पनडुब्बी के अन्दर सोनार के अलावा संचार का कोई दूसरा सिस्टम काम नहीं कर पाता.

सोनार सिस्टम से होती है मॉनिटरिंग
समंदर के अंदर ये पता लगाना बेहद मुश्किल होता है कि आप दुश्मन की सीमा के कितने करीब हैं. इसके लिए लगातार सोनार पर मॉनिटरिंग होती है. अचानक हमें बताया गया कि सोनार ने दुश्मन के एक टारगेट को पहचान लिया है. सोनार की मॉनिटरिंग में जो कुछ नजर आया, उसके बाद पनडुब्बी का सबसे अहम हिस्सा सक्रिय हो गया. इसे कहते हैं टॉरपीडो डेक. इस पर पनडुब्बी का सारा हथियार और मिसाइल सिस्टम तैनात होता है.

ऐसे ध्वस्त हो जाते हैं दुश्मन के जहाज
दुश्मन को पहचानने के बाद टॉरपीडो मिसाइल उसके युद्धपोत पर हमले के लिए पूरी तरह तैयार हो गई. कमांडर के एक आदेश पर ये मिसाइल दुश्मन के जहाज के टुकड़े-टुकड़े दर देगी. और ठीक ऐसा ही हुआ. एक कमांड मिली और दुश्मन का जहाज़ दो टुकड़ों में तब्दील हो गया. इस शानदार हमले के बाद पनडुब्बी में नौसैनिकों के बीच जश्न मनाया जाने लगा. मिशन पूरा होने के बाद दुश्मन के इलाके से बाहर निकलने की तैयारी की जाती है.

कई मायनों में खास हैं टारपीडो मिसाइल
इस ऑपरेशन को कामयाबी के साथ अंजाम देने के बाद पनडुब्बी को वापस ले जाने की कार्यवाही होती है. अब आपको टॉरपीडो मिसाइल के कुछ खास पहलू से रू-ब-रू करवाते हैं. समंदर में 25 से 30 किलोमीटर तक मार करने वाली ये टारपीडो मिसाइल कई मायनों में खास हैं. इसकी लम्बाई 10 मीटर है और इसका वजन 2 टन है. 500 किलोग्राम विस्फोटक के साथ के टारपीडो मिसाइल दुश्मन के बड़े से बड़े युद्धपोत को ख़त्म कर सकती है.

एक चूक से पनडुब्बी डूबने का होता है खतरा
पनडुब्बी के तीसरे कम्पार्टमेंट में नौसैनिकों के रहने और खाने का सारा इंतजाम होता है. रेलवे कम्पार्टमेंट से भी छोटे केबिन में एक बार में आठ से नौ नौसैनिक रहते हैं. 6 घंटे की नींद और 3-3 घंटे की ड्यूटी के बीच ये नौसैनिक मिलजुल कर रहते हैं. कहा जाता है कि पनडुब्बी में काम करने वाला हर नौसैनिक बेहद अहम है. क्योंकि एक नौसैनिक की छोटी सी गलती से पूरी पनडुब्बी डूबने का खतरा रहता है.

ऐसे जान बचाने में कामयाब होते हैं नौसैनिक
लेफ्टिनेंट कमांडर प्रदीप के ने बताया कि किसी दुर्घटना या हमले के वक्त पनडुब्बी से नौसैनिकों के निकलने के लिए सबसे निचले हिस्से में रास्ता बनाया गया है. यहां से पनडुब्बी में पानी भरने और निकाला जाता है. पनडुब्बी में बचाव के तीन रास्ते हैं. इसमें टारपीडो ट्यूब के जरिये बाहर निकला जा सकता है. इसके लिए खास तरह की ड्रेस पहनाई जाती है. इसको पहनकर नौसैनिक पानी के नीचे प्रेशर के बीच तैरकर अपनी जान बचाने में कामयाब होते हैं.

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