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अब 2019 में जीत के लिए यूपी भाजपा की यह है रणनीति

भाजपा की प्रदेश कार्य समिति की बैठक में तय हुआ 2019 में जीत हासिल करने का एजेंडा.

भाजपा प्रदेश कार्यसमिति की बैठक में शीर्ष पार्टी नेता भाजपा प्रदेश कार्यसमिति की बैठक में शीर्ष पार्टी नेता
आशीष मिश्र
  • लखनऊ,
  • 16 मई 2017,
  • अपडेटेड 1:33 PM IST

लखनऊ के 5 कालिदास मार्ग स्थित मुख्यमंत्री आवास के सभागार में 2 मई की शाम सात बजे भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह एक शिक्षक की भूमिका में थे. उनके सामने उत्तर प्रदेश में डेढ़ महीने पुरानी भाजपा सरकार के मंत्री थे. शाह सभी मंत्रियों से उनके विभाग में बीते 40 दिनों में किए गए ''होमवर्क" की जानकारी ले रहे थे. पार्टी के जनकल्याण संकल्प-पत्र में मौजूद वादों की जानकारी देने में जब कुछ मंत्री लडख़ड़ाए तो शाह की त्योरियां चढ़ गईं.

उन्होंने मंत्रियों की लक्ष्मण रेखा खींचनी शुरू की. शाह बोले, ''मंत्री अपने आसपास साफ छवि वाले लोगों को ही रखें. अगर रिश्तेदार पर भी भ्रष्टाचार के आरोप लगे तो संबंधित मंत्री को भी नहीं बख्शा जाएगा." प्रदेश में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की सरकार के कार्यभार संभालने के बाद पहली बार राजधानी लखनऊ आए अमित शाह को आने वाली चुनौतियां साफ दिख रही थीं. अपने सहयोगियों के साथ लोकसभा चुनाव में 80 में से 73 सीटें और विधानसभा चुनाव में 403 में से 325 सीटें जीतने वाली भगवा पार्टी के स्वर्णिम प्रदर्शन को 2019 के लोकसभा चुनाव में भी बरकरार रखने की बेहद कड़ी चुनौती सामने है. 2014 का लोकसभा चुनाव और 2017 का विधानसभा चुनाव भगवा पार्टी ने प्रदेश में विपक्ष में रहते हुए लड़ा लेकिन सत्ता में आने के बाद भगवा लहर को बकरार रखना आसान काम कतई नहीं होगा.

इन्हीं चुनौतियों ने प्रदेश में सत्ता संभालने के बाद पहली बार लखनऊ के साइंटिफिक कन्वेंशन सेंटर में 1 मई से शुरू हुई भाजपा प्रदेश कार्यसमिति की दो दिवसीय बैठक को तड़क-भड़क से दूर रखा था. शहर में होर्डिंग और पोस्टरों का जाल देखने को नहीं मिला. बाहर से आने वाले राष्ट्रीय और प्रदेश पदाधिकारियों के लिए होटल के लग्जरी कमरे बुक नहीं थे. ऐसे सभी पदाधिकारियों को प्रदेश सरकार के मंत्रियों और विधायकों के आवासों में ठहराया गया था. राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह ने स्वयं पार्टी के प्रदेश कार्यालय में रात गुजारी. पूर्व प्रधानमंत्री और लखनऊ के सांसद रहे अटल बिहारी वाजपेयी की सांसद निधि से बने कन्वेंशन सेंटर को विचारक और संगठनकर्ता पंडित दीनदयाल उपाध्याय के चित्र वाले पोस्टरों से सजाया गया था. ''लक्ष्य अंत्योदय, प्रण अंत्योदय, पथ अंत्योदय्य के सूत्र वाक्य से कार्यसमिति में आने वाले हर पदाधिकारी को एक बार फिर राजनैतिक संगठन की सबसे निचली इकाई बूथ तक पहुंचने का संदेश दिया गया. पार्टी कार्यकर्ता सत्ता के मद में चूर न हों, इससे बचने के लिए कार्यसमिति ने एक गहन कार्यक्रम की रूपरेखा भी तय कर दी.
विस्तारकों पर दारोमदार

प्रदेश में सत्ता संभालने के बाद भाजपा की चुनौती अपने कार्यकर्ताओं को दिशाहीन होने से बचाने की है. इसके लिए पार्टी ने कार्यकर्ताओं को संगठनात्मक कार्यक्रमों में व्यस्त रखने की योजना बनाई है (देखें बॉक्स). इसके लिए अल्पकालिक और दीर्घकालिक विस्तारक तैयार किए गए हैं. अल्पकालिक विस्तारक वे 20,000 कार्यकर्ता हैं जो पंडित दीनदयाल उपाध्याय जन्मशती वर्ष के कार्यक्रमों में शिरकत करेंगे. प्रदेश महामंत्री विजय बहादुर पाठक बताते हैं, ''ये 20,000 विस्तारक प्रदेश के सभी जिलों के 13,000 से अधिक सेक्टरों में जाकर बैठकें करेंगे. इनमें से 16,000 विस्तारक बूथ समितियों की बैठक कर लोगों को भाजपा से जोडऩे का काम  करेंगे."

इस कार्यक्रम में संशोधन करते हुए राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह ने सभी 16,000 विस्तारकों को कम से कम पांच बूथों पर प्रवास करने का सुझाव दिया है. इससे 80,000 बूथों पर पहुंचकर पार्टी कार्यकर्ता वहां दलितों और वंचितों के बीच भाजपा की नीतियों का प्रचार-प्रसार कर सकेंगे. विधानसभा चुनाव में चुनाव सहायक के दायित्व का सफलतापूर्वक निर्वाह करने वाले कार्यकर्ताओं को दीर्घकालिक विस्तारक बनाया गया है. इन 137 विस्तारकों के लिए पार्टी ने साल भर के कार्यक्रम तय किए हैं. प्रदेश भाजपा के संगठन मंत्री सुनील बंसल बताते हैं, ''इनमें से 116 विस्तारक सभी 75 जिलों में जाएंगे और दो दर्जन से ज्यादा कार्यक्रमों की योजना को पूरा करेंगे." दीर्घकालिक विस्तारकों को अभी एक वर्ष का कार्यक्रम सौंपा गया है लेकिन इसके बाद भी लोकसभा चुनाव तक इनकी सेवाएं ली जाएंगी. एक प्रदेश पदाधिकारी बताते हैं, ''संभव है इन दीर्घकालिक विस्तारकों को जिले में एक तरह से संगठन मंत्री का दायित्व सौंपकर लोकसभा चुनाव के संभावित उम्मीदवारों के बारे में फीडबैक जुटाया जाए."

निकाय चुनावों की चुनौती

नगर निगम, नगर पालिका परिषद और नगर पंचायतों के चुनाव इस लिहाज से भाजपा की परीक्षा लेंगे क्योंकि वर्ष 2000 के बाद यह पहला मौका है जब प्रदेश में सत्तारूढ़ दल के रूप में भाजपा चुनावों में हिस्सा लेगी. 2012 में प्रदेश में कुल 12 नगर निगम थे, जिसमें से 10 पर भाजपा ने कामयाबी हासिल की थी. इलाहाबाद में बहुजन समाज पार्टी समर्थित अभिलाषा गुप्ता नंदी मेयर बनी थीं और बरेली में समाजवादी पार्टी के आइ.एस. तोमर जीते थे. विधानसभा चुनाव से पहले अभिलाषा भाजपा में शामिल हो गई थीं. सो फिलहाल, 12 में से 11 नगर निगमों पर भाजपा का कब्जा है. दो महीने बाद होने वाले निकाय चुनाव में दो नए नगर निगम सहारनपुर और फिरोजाबाद भी शामिल होंगे. कुल 14 नगर निगमों के लिए होने वाले चुनाव में इस बार सपा और बसपा अपने चुनाव चिन्ह पर मैदान में कूदने की तैयारी में हैं. काशी हिंदू विश्वविद्यालय में प्रोफेसर अजित कुमार कहते हैं, ''इस बार के नगर निगम चुनाव भाजपा के लिए आसान नहीं होंगे. पिछली बार पार्टी को किसी भी नगर निगम में बहुमत नहीं मिल पाया था. हर जगह भाजपा के कुल सदस्यों की संख्या संबंधित नगर निगम सदन के कुल सदस्यों की संख्या के आधे से भी कम थी. सपा और बसपा के चुनाव मैदान में होने से भाजपा की राह कठिन होगी." इसी साल सितंबर में शुरू होने वाले सहकारी संस्थाओं के चुनाव भी भाजपा के जनाधार की परीक्षा लेंगे. अभी तक इन संस्थाओं में सपा का वर्चस्व है और इसे तोडऩे के लिए पार्टी को एक कारगर व्यूह रचना करनी पड़ेगी. भाजपा के  प्रदेश मंत्री और सहकारिता प्रभारी विद्यासागर सोनकर बताते हैं, ''सहकारी संस्थाओं के चुनाव के लिए क्षेत्रीय स्तर पर पांच-पांच सदस्यों की टीम बनाई गई है. हर जिले में सहकारिता प्रभारी नियुक्त किए जाएंगे."

हारी हुई सीटों पर फोकस

लखनऊ में कार्य समिति की बैठक में प्रदेश भाजपा अध्यक्ष और उपमुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य ने अपने अध्यक्षीय भाषण में दावा किया, ''दो वर्ष बाद होने वाले लोकसभा चुनाव में भाजपा प्रदेश की सभी 80 सीटें जीतेगी." पिछले लोकसभा चुनाव में सहयोगियों के साथ 73 सीटें जीतने वाली पार्टी के अध्यक्ष का दावा भले ही अतिशयोक्तिपूर्ण हो लेकिन विधानसभा चुनाव के नतीजों ने एक संकेत तो दिया ही है. आजादी के बाद यह पहला मौका है जब भाजपा ने कांग्रेस का गढ़ माने जाने वाले रायबरेली और अमेठी में विजय पताका लहराई है. दोनों जिलों की कुल 10 में से 6 विधानसभा सीटों पर भाजपा ने कब्जा जमाया है. इसी सफलता को ध्यान में रखते हुए भाजपा ने उन 7 लोकसभा सीटों पर ध्यान जमाया है जिन पर 2014 के लोकसभा चुनाव में पार्टी को मोदी लहर के बावजूद मुंह की खानी पड़ी थी.

इन 7 सीटों पर पार्टी को मजबूत करने का जिम्मा वरिष्ठ नेताओं को सौंपा गया है. अमेठी से पिछला लोकसभा चुनाव कांग्रेस के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष राहुल गांधी से हारने वालीं केंद्रीय कपड़ा मंत्री स्मृति ईरानी अमेठी में अपनी सक्रियता बरकरार रखे हुए हैं. विदेश राज्यमंत्री जनरल (रिटायर्ड) वी.के. सिंह को रायबरेली की जिम्मेदारी दी गई है. समाजवादी पार्टी के गढ़ मैनपुरी लोकसभा सीट पर भगवा लहराने के लिए केंद्रीय ग्राम्य विकास राज्यमंत्री रामकृपाल यादव को भेजा गया है. यादव ने 21 अप्रैल को मैनपुरी में सेक्टर स्तरीय कार्यकर्ताओं के साथ बैठक कर अपना मिशन शुरू कर दिया है. सपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव की पत्नी और सांसद डिंपल यादव के संसदीय क्षेत्र कन्नौज में केंद्रीय ग्राम्य विकास मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर, सपा के संरक्षक मुलायम सिंह यादव के संसदीय क्षेत्र आजमगढ़ में बिहार के सांसद आर.के. सिंह, फिरोजाबाद में भाजपा सांसद और महामंत्री अनिल जैन, बदायूं में मध्य प्रदेश के सांसद लक्ष्मीनारायण यादव ने प्रवास शुरू कर पार्टी की रणनीति पर अमल शुरू कर दिया है.

लोकसभा और विधानसभा चुनावों में स्वप्निल सफलता पाने वाली भाजपा के लिए अगले लोकसभा चुनाव में इस प्रदर्शन को दोहराना एक कठिन चुनौती है. कार्यसमिति में प्रदेश पार्टी अध्यक्ष मौर्य ने अपने अध्यक्षीय भाषण के अंत में राष्ट्रकवि रामधारी सिंह ''दिनकर" की चंद पंक्तियां कहकर कार्यकर्ताओं में जोश भरने की कोशिश की. ''पथरीली ऊंची जमीन है? तो उसको तोड़ेंगे, समतल पीटे बिना समर की भूमि नहीं छोड़ेंगे."

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