
उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव के सातों चरण समाप्त हो चुके हैं. गुरुवार को चुनावों के एग्जिट पोल भी आ चुके हैं. इंडिया टुडे-एक्सिस माइ इंडिया के एग्जिट पोल बताते हैं कि यूपी में बीजेपी का वनवास खत्म हो सकता है. इंडिया टुडे के मुताबिक प्रदेश में बीजेपी को 251 से 279 सीटें मिल सकती हैं. इंडिया टुडे के आंकड़ों से सबसे बड़ा झटका राज्य में सत्तारुढ़ समाजवादी पार्टी को लगा है. एग्जिट पोल सपा-कांग्रेस गठबंधन को 88 से 112 के बीच ही समेट रहे हैं.
आज हम बात करते हैं कि आखिर ऐसा क्या हुआ कि पांच साल पहले यूपी की जिस जनता ने अखिलेश को सत्ता के शिखर पर बिठाया था उसे इतनी जल्दी उतार क्यों दिया. आखिर वे क्या वजहें रहीं जिनकी वजह से यूपी में सत्ता की वापसी नहीं कर पाए अखिलेश. राहुल का साथ भी अखिलेश के काम क्यों नहीं आया...
खत्म नहीं हुई मोदी लहर
2014 के लोकसभा चुनावों में यूपी ने मोदी के पक्ष में एकतरफा वोट किया और संसद में सबसे ज्यादा सांसद पहुंचाए. चरणवार अगर हम एग्जिट पोल के आंकड़े देखें तो विधानसभा चुनावों में भी पहले चरण से लेकर अंतिम चरण तक बीजेपी लगातार लड़ाई में नजर आती है. साफ जाहिर है कि यूपी में मोदी लहर इन विधानसभा चुनावों में काम कर गई.
नहीं बोला अखिलेश का काम
चुनाव प्रचार के दौरान सबसे ज्यादा चर्चा अखिलेश के पक्ष में बने सपा के कैंपेन 'काम बोलता है' की हुई. लेकिन एग्जिट पोल के आंकड़े बता रहे हैं कि अखिलेश का काम सोशल मीडिया पर तो बोला लेकिन ईवीएम तक नहीं पहुंच पाया.
इस बार चली शाह की सोशल इंजीनियरिंग
2007 में सत्ता वापसी के लिए मायावती ने सोशल इंजीनियरिंग का दांव खेला था. इस बार चुनावी मैदान में उतरने से पहले बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह ने भी वही गुणा-भाग किया. एग्जिट पोल इशारा कर रहे हैं कि शाह की वही माथापच्ची बीजेपी के लिए काम कर गई.
समाजवादी दंगल से बिदक गए मुलायम समर्थक
सपा को 2012 में हुए विधानसभा चुनावों में कुल 29.29 फीसदी वोट मिले थे और कांग्रेस को 13.26 फीसदी जबकि एग्जिट पोल के मुताबिक इन चुनावों में गठबंधन को महज 30 फीसदी वोट मिले. मतलब साफ है कि इस बार यूपी की जनता ने सपा-कांग्रेस गठबंधन के पक्ष में कुछ कम मतदान किया. ऐसी उम्मीद की जा रही है कि कहीं न कहीं इसके पीछे समाजवादी दंगल जरूर रहा होगा. दरअसल तीसरे, चौथे और पांचवे चरण में सपा का पिछड़ना इस बात का साफ संकेत देता है.
बीजेपी का दमदार प्रचार अभियान
नोटबंदी के तुरंत बाद हुए इन चुनावों में शुरू से अंत तक बीजेपी का ही प्रचार नजर आता रहा. अखबारों में विज्ञापन हो या सोशल मीडिया या फिर जमीनी प्रचार हर तरफ बीजेपी ही नजर आई. सबसे ज्यादा चर्चा हुई वाराणसी में मोदी के अंतिम दौर के प्रचार अभियान की. हिंदी में एक कहावत है 'अंत भला तो सब भला' एग्जिट पोल उसी कहावत को सही साबित करता हुआ नजर आ रहा है.