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मुस्लिम धर्मगुरू को कुर्ते-पायजामे में नहीं मिली एंट्री, राज्यपाल ने मांगी सफाई

मुस्लिम धर्मगुरू और जाने-माने शिक्षाविद कल्बे सादिक को ड्रेस कोड की वजह से लखनऊ के एक स्थानीय क्लब में एंट्री न देने का मामला विवाद के बाद अब एक बड़ी बहस की शक्ल लेता दिख रहा है. अब इस मुद्दे पर यूपी के गर्वनर राम नाइक ने सफाई मांगी है.

aajtak.in
  • नई दिल्ली,
  • 15 सितंबर 2015,
  • अपडेटेड 3:17 PM IST

मुस्लिम धर्मगुरू और जाने-माने शिक्षाविद कल्बे सादिक को ड्रेस कोड की वजह से लखनऊ के एक स्थानीय क्लब में एंट्री न देने का मामला विवाद के बाद अब एक बड़ी बहस की शक्ल लेता दिख रहा है. अब इस मुद्दे पर यूपी के गर्वनर राम नाइक ने सफाई मांगी है.

गेट से ही कल्बे सादिक को लौटाया
धर्मगुरू डॉक्टर कल्बे सादिक का नाम धर्म के बड़े जानकारों के अलावा विद्वान और शिक्षाविद के तौर पर दुनिया भर में जाना जाता है. मगर शनिवार को एक कार्यक्रम में मुख्य अतिथि के तौर पर बुलाए गए कल्बे सादिक को लखनऊ के एमबी क्लब के बाहर खड़े क्लब के स्टाफ ने सिर्फ इसलिए लौटा दिया क्योंकि वो सही ड्रेस कोड में नहीं थे.

सही ड्रेस कोड, यानी क्लब के नियमों के मुताबिक कुर्ता-पायजामा, चूड़ीदार, जीन्स, टी-शर्ट, चप्पल और सैंडल को छोड़कर कुछ और. कुल मिलाकर चूंकि कल्बे सादिक कुर्ता-पायजामा और अचकन पहने थे लिहाजा स्टाफ के रोकने और नोटिस दिखाने पर सादिक खुद-ब-खुद खामोशी से उल्टे पांव लौट गए.

इत्तेफाक की बात ये थी कि कार्यक्रम के आयोजकों में से कोई भी उस वक्त एंट्री गेट पर मौजूद नहीं था और इसीलिए क्लब का स्टाफ कल्बे सादिक को नहीं पहचान पाया. वाकया जब आम हुआ तो लोगों ने इसे एक जाने-माने विद्वान की बेइज्जती बताया और क्लब के मैनेजमेंट पर सवाल उठाए.

छोटी सी बात से बड़ा फायदा हो जाए तो क्या बुराई
कल्बे सादिक ने इस घटना के बाद बताया कि वो वहां बुलावे पर गए थे. जब गार्ड ने बोर्ड पढ़ने के लिए कहा तो हम पढ़ कर वापस लौट आये.  मगर अब जो ये बात आगे बढ़ गई की 67 वर्ष बाद भी हमारा अपना ड्रेस कोड नहीं है. यूपी के गवर्नर राम नाइक को जब इस बात की जानकारी मिली तो उन्होंने इस पर सफाई मांगी .

इससे बात आगे बढ़ गई. ये हमारा पर्सनल इशू नहीं है, ये नेशनल इश्यू है कि एक क्लब जो अंग्रेजों ने बनाया था. उसमे अपना ड्रेस कोड रखा, वो अब तक है. ये बात सही है की हमारा अपना एक ड्रेस कोड होना चाहिए. इस पर काफी चर्चा हो रही है. क्लब वाले भी पीछे हट रहे हैं. तो अगर एक छोटी सी बात से बड़ा फायदा हो जाए तो क्या बुराई है. 

हमारा देश बहुत चीजों में पीछे है. हम मुसलमान हैं, हम कसम खाते हैं की अगर अपनी मां के बाद हमें किसी चीज से प्यार है तो वो मारा देश है. हमको बहुत अफ़सोस हुआ की हम आज भी अंग्रेजों का लिबास पहन कर क्लब में जा सकते हैं.

राम नाइक ने सफाई मांगी

जाहिर है सवाल परम्परा पर है. आखिर भारतवासियों की ऐसी क्या मजबूरी है कि अंग्रेजों के जाने के 67 साल बाद भी उनके बनाए नियमों से बंधे रहें. और फिर अगर कोई पैंट और शर्ट पहन कर किसी क्लब या होटल में जा सकता है तो फिर धोती या फिर कुर्ता-पायजामा पहन कर क्यों नहीं? कल्बे सादिक भी अब इन्हीं सवालों को उठा रहे हैं. साथ ही कह रहे हैं कि इस मामले में किसी एक क्लब पर उंगली उठाने के बजाए इस मुद्दे पर बहस होनी चाहिए. दिलचस्प बात ये है कि इस बहस में उन्हें यूपी के राज्यपाल राम नाइक का साथ मिल गया है. जिन्होंने कल्बे सादिक को क्लब में एंट्री न दिये जाने की खबरें मीडिया में आने के बाद एमबी क्लब को चिट्ठी लिखकर उनसे सफाई मांग ली.

(अलीगढ़ से पंकज सारस्वत के साथ आमिर हक)

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