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क्या इस फॉर्मूले के जरिए विपक्ष होगा एकजुट, रोकेगा मोदी रथ?

कैराना लोकसभा सीट उपचुनाव में साझा विपक्ष की जीत ने जहां बीजेपी को झटका दिया है वहीं कांग्रेस और तमाम विपक्षी दलों को ये भरोसा दिया है कि एकजुट होकर मोदी-शाह की जोड़ी को पटखनी दी जा सकती है. 

पीएम नरेंद्र मोदी पीएम नरेंद्र मोदी
कुमार विक्रांत/खुशदीप सहगल/मोनिका गुप्ता
  • नई दिल्ली,
  • 31 मई 2018,
  • अपडेटेड 8:34 PM IST

कैराना लोकसभा सीट उपचुनाव में साझा विपक्ष की जीत ने जहां बीजेपी को झटका दिया है, वहीं कांग्रेस और तमाम विपक्षी दलों को ये भरोसा दिया है कि एकजुट होकर मोदी-शाह की जोड़ी को पटखनी दी जा सकती है. कांग्रेस से जुड़े सूत्रों का मानना है कि मौजूदा हालात में और कैराना की सफलता के बाद देशभर में नरेंद्र मोदी के खिलाफ एक सीट एक उम्मीदवार के फॉर्मूले को अपनाना बेहतर हो सकता है.

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सूत्रों के मुताबिक, फूलपुर और गोरखपुर से सबक लेते हुए कांग्रेस ने विपक्षी एकता के पीछे खड़े होने का फैसला किया. अब कांग्रेस को लगता है कि इसी तर्ज पर पूरे देश में एक सीट एक विपक्षी उम्मीदवार के फार्मूले पर आगे बढ़ा जा सकता है.

कांग्रेसी रणनीतिकारों के मुताबिक सोनिया गांधी और राहुल गांधी अपने करीबियों से देश भर में इस फॉर्मूले को अमलीजामा पहनाने की सियासी राह टटोलने को कह चुके हैं. कैराना के बाद अब उत्साहित रणनीतिकार देश भर में इसी फॉर्मूले पर सफलता की संभावनाएं तलाशने में जुट गए हैं. कांग्रेसियों को लगता है कि ये राह बेशक कठिन हो सकती है. साथ ही पूरे देश में इस पर अमल करना मुश्किल हो सकता है लेकिन जिस हद तक भी ऐसा किया जा सकता है, उसकी कोशिश की जानी चाहिए. इसका फायदा पूरे विपक्ष को होगा.

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सूत्रों का कहना है कि, जिस तरह कैराना में समाजवादी पार्टी की तबस्सुम हसन को आरएलडी के टिकट पर विपक्ष का उम्मीदवार बनाया गया, ऐसे ही प्रयोग बड़े पैमाने पर भी किये जा सकते हैं. साथ ही इसी तरह के तमाम एडजेस्टमेंट भी किये जा सकते हैं, जिससे फार्मूला चल पड़े.

दरअसल, कांग्रेस के लिए उत्तर भारत में तो फॉर्मूले को अंजाम देना कमोबेश आसान दिखता है, लेकिन तमिलनाडु, केरल, बंगाल, आंध्र प्रदेश और तेलंगाना में उसको इस फॉर्मूले पर चलने में मुश्किलें ही मुश्किलें हैं. इस पर कांग्रेसी रणनीतिकार अलग अलग राज्य के लिए अलग-अलग सियासी गणित बताते हैं.

तमिलनाडु

तमिलनाडु में इस वक़्त कई दल हैं, लेकिन सबसे मजबूत गठजोड़ डीएमके-कांग्रेस है. बाकी बीजेपी का खुद राज्य में ज़्यादा वजूद नहीं है.

केरल

केरल में मुख्य लड़ाई कांग्रेस की अगुआई वाले यूडीएफ और सीपीएम के नेतृत्व वाले एलडीएफ के बीच है, बीजेपी वहां अभी बड़ी ताकत नहीं है, इसलिए इस राज्य में ज़्यादा दिक्कत नहीं है.

पश्चिम बंगाल

पश्चिम बंगाल में कांग्रेस की मुश्किल तृणमूल कांग्रेस और लेफ्ट हैं. हालांकि कांग्रेस के रणनीतिकारों का कहना है कि, बंगाल में ममता के साथ जाने पर केरल में भी लेफ्ट के सामने लड़ा जा सकता है. वैसे भी बंगाल में लेफ्ट सिमट कर रह गया है और अब पहले जैसी ताकत नहीं रहा है.

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आंध्र प्रदेश

सबसे बड़ी दिक्कत आंध्र प्रदेश में है, यहां चंद्रबाबू नायडू की टीडीपी और जगन रेड्डी की वाईएसआर कांग्रेस आमने सामने हैं, लेकिन ऐसे में कांग्रेस किसी एक के साथ जाने की तैयारी में है, जो अभी तक खासा मुश्किल नज़र आता है.

तेलंगाना

तेलंगाना में कांग्रेस के सामने टीआरएस है वहीं राज्य में बीजेपी ज़्यादा मजबूत नहीं है. ऐसे में तेलंगाना से ज़्यादा दिक्कत नहीं है. साथ ही जनता के बीच ये संदेश ना जाए क़ि विपक्ष सिर्फ सत्ता पाने के लिए चुनाव में समझौता कर रहा है. ऐसे में एक कॉमन मिनिमम प्रोग्राम भी तैयार किया जा सकता है. ‘एक सीट. एक विपक्षी उम्मीदवार’ के फार्मूले के सवाल पर कांग्रेस नेता आरपीएन सिंह ने कहा कि, कई प्रदेशों से आये नतीजों के जरिए सियासी दलों को यही संकेत दिया जा रहा है.

कुल मिलाकर कैराना ने विपक्षियों को सुखद सपना तो दिखा दिया है, लेकिन 2019 में उसको धरातल पर उतारने की राह खासी कठिन है. साथ ही इस विपक्षी एकता का मुखिया कौन होगा?  क्या उस पर सब तैयार होंगे. ये भी एक सवाल है, जिसका जवाब कांग्रेस को खोजना होगा, जो विपक्षी एकता की छतरी को 2019 लोकसभा चुनाव से पहले बड़ी से बड़ी करना चाहती है.

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