
केंद्र की मोदी सरकार ने सवर्ण जातियों को आर्थिक आधार पर आरक्षण देने का फैसला किया है. केंद्रीय कैबिनेट की सोमवार को हुई बैठक में फैसला लिया गया कि आर्थिक रूप से कमजोर सवर्ण जातियों को 10 फीसदी आरक्षण दिया जाएगा. लेकिन दलित मसलों पर मुखर राय रखने वालों का मानना है कि भारतीय जनता पार्टी ने निराशा में यह कदम उठाया है. इसका उसे राजनीतिक लाभ मिलने नहीं जा रहा है.
वरिष्ठ पत्रकार और दलित-आदिवासी मुद्दों पर लिखने वाले अनिल चमड़िया कहते हैं, 'पांच राज्यों में हुए हालिया विधानसभा चुनावों में मिली शिकस्त से बीजेपी निराशा की स्थिति में है. इन राज्यों में बीजेपी की हार को सवर्णों की नाराजगी के तौर पर प्रचारित-प्रसारित किया गया. बहुजन समाज के 2 अप्रैल 2018 को देशव्यापी विरोध प्रदर्शन के बाद अनुसूचित जाति, जनजाति अत्याचार निवारण अधिनियम (एससी/एसटी एक्ट) के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर मोदी सरकार को मजबूरी में कदम उठाना पड़ा. मोदी सरकार ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले को पलटा और कानून की पुरानी स्थिति को बहाल किया.'
अनिल चमड़िया कहते हैं, लेकिन बीजेपी इस फैसले को लेकर दुविधा की स्थिति में रही है क्योंकि उसके वोट का आधार सवर्ण जातियों में है. कई जगह सवर्ण जातियों ने एससी/एसटी एक्ट के खिलाफ अपना विरोध भी दर्ज कराया. इस लिहाज से देखा जाए तो इन हालातों से अपने को उबारने के लिए मोदी सरकार ने यह संविधान विरोधी फैसला लिया है.
वह यह भी कहते हैं, भगवा पार्टी हमेशा बहुजन समाज को बांटने का काम करती है. एक तरफ संवैधानिक तौर पर मिले आरक्षण को विभिन्न हिस्सों में बांटकर बहुजनों में विभाजन पैदा करती है तो दूसरी तरफ सवर्ण आरक्षण का शिगूफा छोड़कर अपने वोट बैंक को ठोस बनाने की कोशिश कर रही है. अनिल चमड़िया कहते हैं कि बीजेपी 1991 के बाद से ही बहुजन एकता को तोड़ने की कोशिश करती रही है. आरक्षण को निष्क्रिय करने के लिए ही बीजेपी और दूसरे हिन्दूवादी संगठनों ने मंदिर आंदोलन को हवा दी.
बीजेपी के निराशा में कदम उठाए जाने की अनिल चमड़िया की राय से दलित नेता देवाशीष जरारिया भी सहमति जताते हैं. जरारिया ने कहा कि अभी तमाम आलोचनाओं से घिरी बीजेपी के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार ने पूरे सियासी नैरेटिव को बदलने के लिए यह फैसला लिया जो कि संविधान विरोधी है. संविधान में आर्थिक नहीं बल्कि आर्थिक, सामाजिक, शैक्षिक रूप से पिछड़ी जातियों के लिए आरक्षण का प्रावधान है.
बहुजन समाज पार्टी से जुड़े रहे और अब कांग्रेस में शामिल हो चुके देवाशीष जरारिया कहते हैं कि मोदी सरकार ने विपक्ष को भरोसे में लिए बिना यह फैसला किया है, जो बताता है कि उसकी नीयत में खोट है. लोकसभा चुनाव नजदीक हैं और सदन का सत्र कल खत्म हो रहा है. ऐसे में सरकार के इस फैसले पर कोई भी अंतिम निर्णय नहीं लिया जा सकता है, क्योंकि इसे कानूनी रूप देने के लिए संविधान में संधोधन करना होगा और इसके लिए सदन की बैठक जरूरी होती है.