
उर्दू शायर और लेखक फैज अहमद फैज की अमर रचना 'हम देखेंगे' के गैर हिंदू होने पर भारत में हो रहे विवाद पर उर्दू कवि की बेटी सलीमा हाशमी का कहना है कि यह पूरा विवाद अप्रांसगिक और फनी है.
इंडिया टुडे के साथ खास बातचीत में सलीमा हाशमी ने कहा कि यह बेहद फनी है कि कैसे 'हम देखेंगे' भारत विरोधी हो गया. बस इसलिए कि यह प्रदर्शन कर रहे छात्रों की ओर से गाया गया.
हाशमी ने कहा कि उनके पिता की कविता की आवाज उन सभी की आवाज थी जो ज़ुल्म के खिलाफ खड़े थे. उन्होंने आगे कहा कि फैज की कविता ने लोगों को आवाज और शब्द दिए. मेरा मानना है कि कविता का उद्देश्य ही यही होता है कि जो खुद न कह पाए उसकी आवाज बन जाए.
'उम्मीद है रॉयल्टी बढ़ रही'
सलीमा हाशमी का कहना है कि फैज की कविता हमेशा से मजबूत रही, लेकिन उन्होंने कभी भी इसे हिंदू विरोधी या मुस्लिम विरोधी नहीं माना. पिता फैज अहमद फैज की कविता पर जारी विवाद पर हंसते हुए सलीमा हाशमी ने कहा कि मुझे उम्मीद है कि रॉयल्टी बढ़ रही है.
जामिया मिलिया इस्लामिया में छात्रों और उनके समर्थकों ने नागरिकता संशोधन अधिनियम (सीएए) के खिलाफ विरोध प्रदर्शन के दौरान फैज अहमद फैज के 'हम देखेंगे' गाया था. इसके बाद आईआईटी-कानपुर में छात्रों की ओर से सीएए के खिलाफ किए गए प्रदर्शन के दौरान फैज की कविता के गाए जाने के बाद संस्थान ने हिंदू विरोधी संबंधी कई शिकायतें मिलने पर एक जांच समिति का गठन कर दिया और इसके बाद ही पूरा विवाद शुरू हुआ.
हालांकि कई लोगों का कहना है कि यह कविता फैज ने पाकिस्तान के तत्कालीन तानाशाह और शासक जिया-उल-हक के खिलाफ लिखी थी. इस विवाद पर कई कवि और लेखन पहले ही निंदा कर चुके हैं और उनका कहना है कि 'हम देखेंगे' को हिंदू विरोधी कहना 'हास्यास्पद' है.
फैज अहमद फैज की बेटी सलीमा हाशमी इसे बेहद फनी मानती हैं और कहती हैं कि उनके पिता की कविता पर यह विवाद अप्रासंगिक है. उन्होंने कहा कि यह पूरा विवाद उनकी प्राथमिकता सूची में नहीं है क्योंकि यह अधिक मजेदार है और एक समझदार दिमाग से परे है.
फैज की कविता धर्म विरोधीः सलीमा
उन्होंने कहा कि कवियों और लेखकों को उनकी लेखनी के लिए याद किया जाता है. उनकी लेखनी जरुरत के हिसाब से लिखी जाती है. फैज की कविता उस स्थिति के लिए प्रासंगिक थी जब इसे लिखा गया था और आज भी यह प्रासंगिक है. हालांकि यह कविता कभी भी हिंदू विरोधी या मुस्लिम विरोधी नहीं रही थी.
हाशमी ने कहा कि 'हम देखेंगे' को हिंदू विरोधी कहने की कोशिश करना और फिर उस पर जांच कराना संकीर्णता और फैज की कविता का उपहास करने का बहुत अफसोसजनक प्रयास है.
उन्होंने कहा कि मैं जानती हूं और यह विश्वास भी करती हूं कि फैज की रचना पहले की तरह आज भी लोगों का दिल जीतेगी.