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सीरिया मिसाइल हमले में अब तक चुप क्यों है भारत, US या रूस किसे करेगा समर्थन?

दो विश्व युद्धों की विभीषिका के बाद दुनिया को तीसरे गुट यानी गुट निरपेक्ष देशों की राह दिखाने वाले भारत ने फिलहाल इस विवाद से दूरी बनाई हुई है. भारत की विदेश मंत्री सुषमा स्वराज के ट्विटर पेज पर शनिवार को कोई भी प्रतिक्रिया देखने को नहीं मिली.

मोदी और ट्रंप (फाइल फोटो) मोदी और ट्रंप (फाइल फोटो)
भारत सिंह
  • नई दिल्ली,
  • 14 अप्रैल 2018,
  • अपडेटेड 7:39 AM IST

सीरिया पर अमेरिका और उसके मित्र देशों के हमले के बाद से दुनिया भर के देशों में दो गुट बने नजर आ रहे हैं. सीरिया पर हमला करने वाले अमेरिका, ब्रिटेन, फ्रांस  जैसे देश इस हमले के समर्थन में हैं तो रूस, चीन, ईरान जैसे देशों ने इस हमले का विरोध किया है. दो विश्व युद्धों की विभीषिका के बाद दुनिया को तीसरे गुट यानी गुट निरपेक्षता की राह दिखाने वाले भारत ने फिलहाल इस विवाद से दूरी बनाई हुई है.

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सुषमा और मोदी ने बनाई दूरी

भारत की विदेश मंत्री सुषमा स्वराज के ट्विटर पेज पर शनिवार को सीरिया हमले को लेकर कोई भी प्रतिक्रिया देखने को नहीं मिली. उन्होंने आखिरी ट्वीट 13 अप्रैल को किया था. भारत की विदेश नीति निर्धारित करने में उत्सुक नजर आने वाले, इसमें अग्रणी भूमिका निभाने वाले और शीर्ष विदेशी नेताओं को जन्मदिन की बधाई देने में आगे रहने वाले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी इस अंतरराष्ट्रीय विवाद से दूरी बनाए रखी. उन्होंने शनिवार को पूरे दिन अंबेडकर जयंती, बैशाखी और कॉमनवेल्थ गेम्स में मेडल जीतने वाले भारतीय खिलाड़ियों की तारीफ वाले ट्वीट ही किए.

हमलों पर चुप्पी, लेकिन शांति की अपील

विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता ने कहा है कि भारत इस मामले पर बारीकी से नजर बनाए हुए है. उन्होंने कहा, अगर सीरिया में रसायनिक हथियारों का इस्तेमाल हुआ है तो यह निंदनीय है. हम इसकी निष्पक्ष जांच की मांग करते हैं और तब तक सभी पक्षों को शांति बनाए रखनी चाहिए. यह मामला बातचीत से हल होना चाहिए. इस मामले में अंतरराष्ट्रीय कानूनों और यूएन के चार्टर का पालन होना चाहिए. सीरियाई लोगों के दुखों का अंत शीघ्र होना चाहिए.

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बदल गया है भारत का एजेंडा

मौजूदा समय में भारत का एजेंडा दूसरे विश्व युद्ध के बाद के दौर की तरह दुनिया को गुट निरपेक्षता का नारा देना या दुनिया में अमन-चैन का पैगाम देना नहीं है. न ही, इस समय भारतीय नेतृत्व में अपने पीछे तमाम देशों को एकजुट कर इन देशों का अगुवा बनने की चाह दिखती है. भारत के इस विवाद से दूर रहने की अलग वजहें हैं. भारत इस समय दुनिया का सबसे बड़ा हथियार आयातक देश है. इस वजह से उसकी अमेरिका, ब्रिटेन, फ्रांस, इस्राइल के साथ ही रूस से भी दोस्ती है. यही नहीं, अब वह खुद को भी एक हथियार निर्यातक देश के तौर पर देखता है और दक्षिण एशिया में छोटे देशों को उसने हथियार सप्लाई शुरू भी कर दी है.

तब और अब के भारत में है अंतर

गुट निरपेक्ष देशों के एकजुट होने के समय भारत का करीबी देश रूस था. इस समय भारत अमेरिका के ज्यादा करीब है. भारत-अमेरिका के बीच रिश्तों की गर्माहट 1990 के दशक यानी उदारीकरण के दौर के बाद से दर्ज की जाती है. ऐसा नहीं है कि आज भारत ने रूस से संबंध खत्म कर लिए हैं, लेकिन अमेरिका के साथ कारोबारी, राजनयिक और रक्षा संबंधों के मजबूत होने के साथ ही रूस के साथ उसकी साझेदारी पार्श्व में चली गई है. जबकि दूसरे विश्व युद्ध के बाद भारत की पंचवर्षीय योजनाओं का खाका हो, संतुलित उद्योगीकरण की नीति हो या फिर तत्कालीन भारतीय नेतृत्व का देश निर्माण के लिए कोई और कदम, वह रूस के ज्यादा करीब दिखाई देता था.

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अमेरिका की नाराजगी मोल नहीं ले सकता भारत

इस समय भारत अमेरिका को नाराज करने का खतरा मोल नहीं ले सकता है. अगर इन देशों में तनाव बढ़ता है तो भारत की स्थिति ऐसी भी नहीं है कि वह बीचबचाव करते हुए शांति के दूत की भूमिका निभाए. हां, जंग से दूसरे देशों की तरह उसे भी अंतरराष्ट्रीय बाजार को होने वाले नुकसान के दुष्परिणाम उठाने पड़ सकते हैं. ऐसे में भारत संयुक्त राष्ट्र के जरिए इस विवाद का हल निकालने का पक्षधर है.

क्या है हमले पर सीरिया की प्रतिक्रिया

हालांकि, भारत में सीरिया के राजदूत डॉ. रियाद अब्बास ने कहा कि अमेरिकी हमला गंभीर नहीं है. उन्होंने इंडिया टुडे से खास बातचीत में कहा कि यह छोटा हमला था और उनके देश की सेना इस हमले से निपटने में सक्षम है. उन्होंने कहा कि उन्हें अपने सहयोगी देशों की मदद पर भरोसा है, पर अभी सीरिया ने किसी देश से मदद नहीं मांगी है. उन्होंने अपने सहयोगी देशों में रूस के साथ ही ब्रिक्स देशों का भी नाम लिया, जिसमें भारत भी शामिल है. उन्होंने कहा कि शनिवार को 150 अमेरिकी मिसाइलों ने दमिश्क पर हमला किया, लेकिन इसका ज्यादा नुकसान नहीं हुआ. उन्होंने कहा कि सीरिया के आतंकियों के खिलाफ कार्रवाई करने पर उसपर केमिकल अटैक का आरोप लगाया जाता है.

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दोनों गुट हैं आमने-सामने

अमेरिका और उसके मित्र देशों का तर्क है कि उन्होंने सीरिया पर जो मिसाइल हमले किए हैं, वे हमले सीरिया में पिछले हफ्ते हुए रसायनिक हमलों का जवाब हैं. वहीं, इस मामले में सीरिया, चीन और रूस ने इन हमलों को अंतरराष्ट्रीय कानूनों का घोर उल्लंघन बताया है. रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने अमेरिका और उसके दोस्त देशों के हवाई हमले को उकसावे की कार्रवाई बताया है. रूस और ईरान ने इस हमले के नतीजे सामने आने की चेतावनी दी है. वहीं, ट्रंप ने मिसाइल हमले के बाद कहा है कि उनका मिशन कंप्लीट हुआ है. फ्रांस ने इस हमले के बाद अपने राफेल विमानों का वीडियो जारी करके उनकी मारक क्षमता का प्रचार भी किया है. ब्रिटेन ने भी कहा है कि उसके मिसाइल हमले सफल रहे हैं. जर्मनी, इस्राइल, कनाडा, तुर्की, और यूरोपीय संघ ने भी इन हमलों को जायज ठहराया है. संयुक्त राष्ट्र ने दोनों गुटों से संयम बनाने की अपील की है.

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