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UP उपचुनाव में विपक्ष की परीक्षा, 11 सीटों पर 4 पार्टियां दिखा रहीं दम

उत्तर प्रदेश की 11 विधानसभा सीटों के उपचुनाव के लिए वोटिंग जारी है. सूबे की 11 सीटों पर हो रहे उपचुनाव को 2022 के विधानसभा चुनाव का सेमीफाइल माना जा रहा है. इसीलिए सत्ताधारी बीजेपी से लेकर कांग्रेस, सपा और बसपा चुनावी मैदान में किस्मत आजमा रही हैं.

अखिलेश यादव और मायावती अखिलेश यादव और मायावती
कुबूल अहमद
  • नई दिल्ली,
  • 21 अक्टूबर 2019,
  • अपडेटेड 10:37 AM IST

  • यूपी की 11 विधानसभा सीटों पर वोटिंग जारी
  • सपा-बसपा-कांग्रेस और बीजेपी चुनावी रण में

उत्तर प्रदेश की 11 विधानसभा सीटों के उपचुनाव के लिए वोटिंग जारी है. सूबे की 11 सीटों पर हो रहे उपचुनाव को 2022 के विधानसभा चुनाव का सेमीफाइल माना जा रहा है. इसीलिए सत्ताधारी बीजेपी से लेकर कांग्रेस, सपा और बसपा चुनावी मैदान में किस्मत आजमा रही हैं. उपचुनाव में सभी पार्टियों ने अपनी पूरी ताकत झोंक दी है, क्योंकि यह चुनाव सत्ताधारी बीजेपी से ज्यादा विपक्ष के लिए अग्निपरीक्षा माना जा रहा है.

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यूपी की लखनऊ (कैंट), बाराबंकी की जैदपुर, चित्रकूट की मानिकपुर, सहारनपुर की गंगोह, अलीगढ़ की इगलास, रामपुर, कानपुर की गोविंदनगर, बहराइच की बलहा , प्रतापगढ़, मऊ की घोसी और अंबेडकरनगर की जलालपुर विधानसभा सीट शामिल हैं. इन उपचुनावों में सबसे दिलचस्प मुकाबला सीट रामपुर की सीट पर है.

उत्तर प्रदेश की 11 विधानसभा सीटों पर हो रहे उपचुनाव में कुल 110 प्रत्याशी मैदान में हैं. उपचुनाव में बीजेपी, बसपा, सपा और कांग्रेस ने सभी सीटों पर अपने प्रत्याशी उतारे हैं. इन सीटों पर कुल 110 प्रत्याशी चुनाव मैदान में हैं. सबसे अधिक 13 प्रत्याशी लखनऊ कैंट और जलालपुर सीटों पर हैं. घोसी में 12 उम्मीदवार मैदान में हैं जबकि गंगोह, प्रतापगढ़ और बलहा में ग्यारह-ग्यारह प्रत्याशी हैं. गोविन्दनगर और मानिकपुर में नौ-नौ, रामपुर, इगलास और जैदपुर में सात-सात प्रत्याशी किस्मत आजमा रहे हैं.

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बता दें कि 2017 के विधानसभा चुनाव में इन 11 सीटों में से 8 पर बीजेपी और एक-एक पर समाजवादी पार्टी, बहुजन समाज पार्टी और अपना दल के विधायक जीते थे. घोसी को छोड़कर जिन विधानसभा सीटों पर उपचुनाव हो रहा है वे उन पर चुने गए विधायकों के पिछले लोकसभा चुनाव में विजय हासिल करने के बाद विधानसभा सदस्यता से इस्तीफा देने की वजह से खाली हुई हैं. घोसी सीट इस पर चुने गए विधायक फागू सिंह चौहान को बिहार का राज्यपाल बनाए जाने के बाद उनके इस्तीफे की वजह से खाली हुई है.

बीजेपी के सामने सभी सीटें जीतने की चुनौती

बीजेपी यूपी और केंद्र की सत्ता पर काबिज है. सूबे की जिन 11 विधानसभा सीटों पर उपचुनाव  हो रहे हैं, इनमें से 8 सीटों पर 2017 में बीजेपी ने कब्जा जमाया था. बीजेपी इस मौके को गंवाना नहीं चाहेगी और सभी सीटों पर जीत हासिल करना अपने वर्चस्व को बरकरार रखना चाहती है. 2019 के चुनाव से पहले लोकसभा की तीन सीटों उपचुनावों में जब बीजेपी को हार मिली थी, तब योगी आदित्यनाथ पर सवाल खड़े किए गए थे. हालांकि 2019 में सीएम प्रचार में जान लड़ा दी और बीजेपी की जीत में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई. इसी तरह से 11 सीटों पर हो रहे उपचुनाव के लिए भी अपनी पूरी ताकत झोंक दी है.

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कांग्रेस के सामने उपचुनाव से दोबारा खड़े होने मौका

कांग्रेस लंबे वक्त से यूपी की सत्ता से दूर है और इस बार के लोकसभा चुनावों में भी पार्टी को यूपी में करारी हार का सामना करना पड़ा. उत्तर प्रदेश की 11 विधानसभा सीटों पर उपचुनाव में कांग्रेस ने युवा और पार्टी के वफादार नेताओं को मैदान में उतारा है. प्रियंका गांधी के यूपी प्रभारी बनने के बाद दूसरी अग्निपरीक्षा है. लोकसभा चुनाव में हार के बाद उन्होंने सूबे के संगठन को नया तेवर के साथ गठन किया है. युवा नेता को पार्टी की कमान दी है. ऐसे में जिन 11 सीटों पर विधानसभा उपचुनाव हो रहे हैं, इनमें पार्टी के प्रदर्शन को बेहतर करने की चुनौती है.

मायावती के सामने बसपा को बचाने की चुनौती

मायावती जब 2007 में पूर्ण बहुमत के साथ सत्ता में आई थीं तब लगा था कि आने वाला वक्त उनका ही है. लेकिन इसके बाद तीन लोकसभा और दो विधानसभा चुनाव में बसपा का जनाधार लगातार कम हुआ है.  करीब 7 साल से बीएसपी यूपी की सत्ता से बाहर है. इस बार वो लोकसभा की 10 सीटें जीतने में भले ही कामयाब रही है, लेकिन आगे की राह काफी कठिन होती नजर आ रही है.

लोकसभा चुनाव के बाद ही बसपा ने सपा से नाता तोड़ लिया है और अकेले 11 सीटों पर उपचुनाव में उतरी है. 2009 के बाद पहली बार है कि बीएसपी विधानसभा उपचुनाव मैदान में उतरी है. ऐसे में बसपा लिए यह उपचुनाव काफी महत्वपूर्ण माना जा रहा है. इस चुनाव के नतीजे ही बसपा का सियासी भविष्य तय करेंगे. ऐसे में पार्टी के सामने अपनी जलालपुर सीटे के साथ-साथ दूसरी सीटों पर जीत दर्ज करने की चुनौती है.

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अखिलेश के सामने सपा का वजूद बचाने का संकट

समाजवादी पार्टी के प्रमुख अखिलेश यादव ने दो बार गठबंधन किए- पहले कांग्रेस और फिर बीएसपी के साथ, लेकिन दोनों में ही उन्हें असफलता हाथ लगी. यही वजह है कि समाजवादी पार्टी मौजूदा समय में काफी संकट के गुजर रही है. सपा का वोट फीसदी लगातार घटने के साथ-साथ लोकसभा चुनाव में परिवार की कई सीटें गवां दी है. मुलायम सिंह यादव की सेहत पहले जैसी नहीं है. यही वजह है कि अखिलेश के सामने सपा के वजूद को बचाए रखने की बड़ी चुनौती है.  सूबे की 11 सीटों पर हो रहे उपचुनाव सपा के लिए काफी महत्वपूर्ण माना जा रहा है, इसमें रामपुर सीट को बचाने के साथ-साथ दूसरी सीटों पर जीत दर्ज कर अपनी खोई हुई सियासत को वापस लाने का संकट है.

रामपुर सीट पर नजर

उत्तर प्रदेश में उपचुनावों में सबसे ज्यादा चर्चा में रामपुर सीट की है. बीजेपी आजम खान का किला ढहाने की पुरजोर कोशिश कर रही है. इस सीट पर समाजवादी पार्टी ने आजम खान की पत्नी ताजीन फातिमा को चुनाव मैदान में उतारा है. ताजीन फातिमा को बीजेपी की ओर से भारत भूषण गुप्ता टक्कर दे रहे हैं.

हालांकि ये लड़ाई भारत भूषण और ताजीन फातिमा के बीच नहीं बल्कि आजम खान और बीजेपी के बीच है. दोनों के लिए ही ये उपचुनाव नाक की लड़ाई है. रामपुर में कांग्रेस ने अरशद अली खान उर्फ गुड्डू को टिकट दिया है. जो पेशे से वकील हैं. वहीं, बीएसपी से जुबैर मसूद खान मैदान में हैं.

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