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यूपी में बेहाल किसान, खेतों में मिट्टी के मोल बिक रहीं सब्जियां

सिर्फ टमाटर और तरबूज ही नहीं भिंडी, तुरई, मूली जैसी सब्जियां भी कौड़ियों के मोल बिक रही हैं. इन सब्जियों का दाम मिलना तो दूर मुफ्त में भी कोई उठाने को तैयार नहीं है.

यूपी में सब्जियों की खेती करने वाले किसान परेशान (वीडियो से कैप्चर तस्वीर) यूपी में सब्जियों की खेती करने वाले किसान परेशान (वीडियो से कैप्चर तस्वीर)
कुमार अभिषेक
  • लखनऊ,
  • 05 जून 2020,
  • अपडेटेड 1:44 PM IST

  • मंडियों में पहले से सब्जियों की भरमार
  • खेतों में 1 से 2 रुपये किलो बिक रहा टमाटर

कोरोना संकट के इस दौर में जब लॉकडाउन खत्म हुआ और अनलॉक शुरू हुआ तो सबसे ज्यादा मार उन किसानों पर पड़ी है, जो अपने खेतों में सब्जी को सड़ने देने पर मजबूर हैं या फिर इन सब्जियों को चारे के तौर पर अपने मवेशियों को खिलाने को मजबूर हैं.

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उत्तर प्रदेश के बाराबंकी के कई किसान इसलिए परेशान हैं, क्योंकि खेतों में टमाटर, तरबूज, भिंडी, खरबूजा और तुरई जैसी सब्जियां मिट्टी के मोल बिक रही हैं. जो टमाटर बाजार में 20 से 30 रुपये किलो मिल रहा है, वह किसानों के खेत में 1 से 2 रुपये किलो बिक रहा है.

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तरबूज के इस मौसम में जब तरबूज किसान 7 से 8 रुपये किलो में बेचते थे वह इस वक्त खेतों में सड़ रहा है और 1 से 2 रुपये किलो में भी कोई नहीं खरीद रहा है. मंडियों में सब्जी की भरमार हो रही है, इसलिए इसे मंडी भी नहीं ले रही. आलम ये है कि किसानों ने खेतों में ही सब्जियों को काटकर गिरा दिया है, ताकि ये सब्जियां कम से कम जानवरों के चारे के काम आ सकें.

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कैरेट के मिलते थे 700, अब मिल रहे 90 रुपये

बाराबंकी के पीठापुर गांव की रामकमल के खेत में सैकड़ों किलो टमाटर बिखरा पड़ा है. व्यापारी इन टमाटर में से कुछ जो अच्छी क्वॉलिटी के हैं वे चुनकर खरीद रहे हैं, लेकिन सिर्फ 2 से 3 रुपये किलो. जिस कैरेट का उन्हें कभी 600-700 रुपये मिलते थे वह इस साल 80 से 90 मिल रहे हैं. 28 किलो का 1 कैरेट होता है जो मिट्टी के मोल दिख रहा है. परेशान किसान इस बार लागत निकालना तो दूर कर्ज में भी डूबने को मजबूर दिखाई दे रहे हैं.

सिर्फ टमाटर और तरबूज ही नहीं भिंडी, तुरई, मूली जैसी सब्जियां भी कौड़ियों के मोल बिक रही हैं. बाराबंकी जिले के दूसरे गांव करौरी गौसपुर में किसान बेहद परेशान हैं, क्योंकि भिंडी, तुरई, मूली जैसे सब्जियों का दाम मिलना तो दूर मुफ्त में भी कोई उठाने को तैयार नहीं, क्योंकि लॉकडाउन में बाहर के खरीदार नहीं आए और मंडियों में सब्जियां इतनी पहुंची हैं कि रखने की जगह नहीं बची.

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जो भिंडी, तुरई या मूली कम से कम 5 से 6 रुपये किलो और कभी-कभी तो 15 से 18 रुपये किलो हर साल इस मौसम में मंडियों तक जाता था उसे खेतों से उठाने वाला भी कोई नहीं है. 1 से 2 रुपये भी अगर मिल जाए तो गनीमत है.

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बहरहाल सबसे बड़ी वजह है कि लॉकडाउन में बाहर के व्यापारी नहीं आ पाए. स्थानीय बाजार और मंडियां सब्जियों से भरी पड़ी हैं. ऐसे में इन सब्जियों का खरीदार कोई बचा नहीं है. ऐसे में इस बार ये किसान लागत की आधी रकम भी मुश्किल से ही निकाल पाएंगे.

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