
उत्तर प्रदेश में पिछले एक हफ्ते से बे’बस’ मजदूरों के लिए बस के इंतजाम पर सियासी तलवारें खिंची हुई हैं. जिन मजदूरों के जिक्र और फिक्र में दिल्ली से लेकर लखनऊ तक चिट्ठियों का आदान-प्रदान और बसों को लेकर खींचतान जारी है, वो गरीब तपती दोपहरी में सड़क पर सैकड़ों किलोमीटर पैदल चलने या ट्रक जैसे वाहनों पर सामान की तरह लदकर अपनी जान जोखिम में डालने को मजबूर हैं. पार्टियों की सियासी भूख श्रमिकों की पेट की भूख पर हावी है.
ये मुद्दा तब शुरू हुआ जब उत्तर प्रदेश की सड़कों पर हजारों की संख्या में मजदूर निकल पड़े और यूपी आने वाले रास्ते के हर बॉर्डर पर प्रवासी श्रमिकों का हुजूम दिखा. ट्रकों और प्राइवेट कॉमर्शियल वाहनों पर लदीं मजबूर महिलाएं और बच्चे दिखे.
सपा-बसपा और कांग्रेस समेत तमाम राजनीतिक पार्टियों ने सरकार को इस मुद्दे पर घेरना शुरू किया. यूपी में सरकार ने दावा किया कि उसने उत्तर प्रदेश परिवहन की हजारों बसें मजदूरों को उनके शहरों तक पहुंचाने के लिए लगा दी हैं लेकिन हकीकत कुछ और ही थी. सरकार के दावों से अलग मजदूर सड़कों पर थे और बाहर के राज्यों से हजारों रुपये किराया देकर जान जोखिम में डाल कर यूपी में अपने शहर जाने के लिए मजबूर थे.
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योगी ने अधिकारियों को दिए निर्देश...
हालात भांपकर यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने मजदूरों से अपील की कि वे किसी भी हालत में सड़कों पर पैदल सफर ना करें, सरकार उन्हें घर पहुंचाने का इंतजाम कर रही है लेकिन मजबूर श्रमिकों को ना तो प्रशासन ने इस बात की ताकीद की और ना अपने स्तर पर बॉर्डर पर ऐसी कोई व्यवस्था की कि हजारों मजदूर सैकड़ों मील पैदल घरों की तरफ ना बढ़ें.
ये मुद्दा सुलग ही रहा था कि यूपी के औरैया में कानपुर हाइवे पर एक ट्रक और डीसीएम की टक्कर में 26 मजदूर काल के गाल में समा गए. इस घटना से हाहाकार मच गया.
विपक्ष सरकार पर हमलावर हो गया. योगी आदित्यनाथ ने जिले के अफसरों को सख्त निर्देश दिए कि अफसर किसी भी हालत में मजदूरों को ट्रकों पर सवार होकर या पैदल न जाने दें. अगर किसी जिले के बॉर्डर पर ऐसा पाया जाता है तो जिले का प्रशासन इसके लिए जिम्मेदार होगा.
इन निर्देशों के बाद प्रशासन ने सख्ती शुरू की और तमाम बॉर्डर पर मजदूरों को ट्रकों से उतारकर बसों में बिठाकर भेजने का काम शुरू किया, लेकिन यह भी ज्यादा नहीं चला. मजदूर सड़कों पर पैदल और ट्रकों में असुरक्षित तरीके से सफर करते रहे. इसपर विपक्षी पार्टियों ने सरकार को और घेरना शुरू कर दिया. अखिलेश यादव, मायावती समेत प्रियंका गांधी ने भी योगी सरकार को मजदूरों की अनदेखी के लिए जमकर कोसा.
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बसों को लेकर चली चिट्ठियां...
इसी बीच कांग्रेस ने अपनी बसें मुहैया करने की बात फिर से दोहराई. कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी की तरफ से बाकायदा एक चिट्ठी लिखकर गुजारिश की गई कि उन्हें 1000 बसें लेकर नोएडा और गाजियाबाद में फंसे प्रदेश के हजारों मजदूरों को उनके घरों तक पहुंचाने दिया जाए. दरअसल, यह ऐसा मौका है जब विपक्षी पार्टियां हजारों मजदूरों में अपने भविष्य का वोटर देख रही हैं. 2022 के विधानसभा चुनाव के लिए ये वोटर बड़े अहम साबित होने वाले हैं.
जानकारी के मुताबिक यूपी में प्रवासी श्रमिकों और बाहर रहकर काम करने वाले वोटरों की संख्या एक करोड़ के आसपास है, और यह वोट आने वाले विधानसभा चुनाव के लिए बेहद अहम साबित हो सकते हैं. लिहाजा कांग्रेस इस मौके को भी नहीं छोड़ना चाहती.
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उधर, योगी सरकार भी किसी भी कीमत पर यह नहीं दिखाना चाहती कि वह कोरोना संक्रमण काल में लड़ाई में कमजोर पड़ गई है. लिहाजा प्रियंका की चिट्ठी को पहले तो दरकिनार किया गया. बाद में उसमें कई खामियां निकालकर प्रदेश सरकार ने कांग्रेस को ही कटघरे में खड़ा कर दिया.
योगी सरकार का कांग्रेस पर पलटवार...
प्रदेश सरकार के उप मुख्यमंत्री दिनेश शर्मा ने प्रेस कॉन्फ्रेंस करके बताया कि कांग्रेस की तरफ से भेजी गई बसों की लिस्ट फर्जी है. उसमें तमाम गाड़ियों के रजिस्ट्रेशन स्कूटर और ई-रिक्शा के नाम पर हैं. कई गाड़ियों की फिटनेस गड़बड़ है और असल में 1000 गाड़ियां हैं कि नहीं यह भी नहीं पता है. लिहाजा सरकार कोरोना की इस लड़ाई में कांग्रेस के दिए झूठे बयान पर जांच के नाम पर नहीं बैठ सकती. उसके लिए मजदूरों को बचाना बेहद जरूरी है.
यानी सरकार ने साफ कर दिया कि कुछ भी हो कांग्रेस की इस पेशकश को मानकर वह कांग्रेस को मजदूरों के रूप में संजीवनी नहीं देना चाहती. और ना ही यह दिखाना चाहती है कि सरकार के हाथ से मामला निकल रहा है. अब इसी दांवपेच में बस के खेल में पूरा मामला फंसा हुआ है. सैकड़ों गाड़ियां रास्ते में रुकी हुई हैं कि कब उन्हें परमिशन मिले.
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कांग्रेस और सरकार के बीच चिट्ठी का भी खेल चल रहा है. कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी के निजी सचिव संदीप सिंह की तरफ से कई चिट्ठियों का आदान-प्रदान उत्तर प्रदेश के गृह सचिव अवनीश अवस्थी के साथ किया गया, जिसमें आरोप-प्रत्यारोप के बीच में यह कहा गया कि कांग्रेस बसों के साथ पूरी तरह से तैयार हैं.
उसे मदद के लिए परमिशन और परमिट दिया जाए, लेकिन हर चिट्टी के साथ सरकार की तरफ से कोई ना कोई ऐसा जवाब दिया जा रहा है जिससे कि ये बसें आगे ना बढ़ सकें यानी कि साफ है इस भीषण संकट के दौर में भी सियासत जोरों पर है और इन सबके बीच बेबस मजदूर मोहरा बना हुआ है.