
उत्तराखंड देश का एकमात्र राज्य है जहां पुलिसिंग की व्यवस्था अनोखी है. लगभग 58 फीसदी हिस्से खासकर पहाड़ी अंचल में यहां अब भी खाकी वाले नहीं दिखाई देते. सिविल पुलिस के विकल्प के तौर पर इन क्षेत्रों में राजस्व पुलिस तैनात है.
राजस्व पुलिस का मतलब है पटवारी, लेखपाल और कानूनगो से जो राजस्व वसूली के साथ ही पुलिस का काम काज भी देखते हैं. अपनी तरह की यह अनोखी व्यवस्था अंग्रेजों के समय से चली आ रही है. इस अनोखी पुलिस व्यवस्था को अब खत्म करने के आदेश हाइकोर्ट ने दिए हैं. इसे गांधी पुलिस व्यवस्था भी कहा जाता है.
हाथ में बिना लाठी-डंडे के तकरीबन गांधी जी की ही तरह गांधी पुलिस के जवान देश आजाद होने और राज्य अलग होने के बाद भी अब तक उत्तराखंड राज्य के पर्वतीय भूभाग में कानून-व्यवस्था का दायित्व संभाले हुए थे. लेकिन हाल में अपराध बढऩे के साथ बदले हालातों में राजस्व पुलिस के जवानों ने व्यवस्था और वर्तमान दौर से तंग आकर स्वयं इस दायित्व का परित्याग करने का अल्टीमेट देते रहे हैं.
1857 में जब देश का पहला स्वतंत्रता संग्राम लड़ा जा रहा था, अमूमन पूरे देश में उसी दौर में पुलिस व्यवस्था की शुरुआत हुई. उत्तराखंड के पहाड़ों के लोगों की शांतिप्रियता, सादगी और अपराधों से दूरी के कारण अंग्रेजों ने यहां पूरे देश से इतर 'बिना शस्त्रों वाली' 'राजस्व पुलिस व्यवस्था' शुरू की.
इसके तहत पहाड़ के इस भूभाग में पुलिस और भूमि-राजस्व संबंधी कार्य राजस्व लेखपालों को पटवारी का नाम देकर ही सौंप दिए गए. पटवारी और उनके ऊपर के कानूनगो व नायब तहसीलदार जैसे अधिकारी भी बिना लाठी-डंडे के ही यहां पुलिस का कार्य संभाले रहे.
पटवारी का दबदबा बयान करने वाली एक कहानी के अनुसार, कानूनगो के रूप में प्रोन्नत हुए पुत्र ने नई नियुक्ति पर जाने से पूर्व मां के चरण छूकर आशीर्वाद मांगा तो मां ने कह दिया, ''बेटा, भगवान चाहेंगे तो तू फिर पटवारी हो जाएगा.'' 1982 से पटवारियों को राजस्व पुलिस चौकी प्रभारी बना दिया गया, लेकिन वेतन तब भी पुलिस के सिपाही से कम था.
केवल एक हजार रु. के पुलिस भत्ते के साथ पटवारी इस दायित्व को अंजाम दे रहे थे. उनकी संख्या भी बेहद कम थी. स्थिति यह थी कि प्रदेश के समस्त पर्वतीय अंचलों के राजस्व क्षेत्रों की जिम्मेदारी केवल 1,216 पटवारियों के स्वीकृत पदों के सापेक्ष 730 पटवारी, मुट्ठीभर अनुसेवक, 150 राजस्व निरीक्षक यानी कानूनगो और कुछ चेनमैन संभालते रहे हैं.
लेकिन नई भर्ती न होने से सटवारी यानी चपरासी न के बराबर रह गए हैं. पटवारियों ने मई 2008 से पुलिस भत्ते सहित अपने पुलिस के दायित्वों का स्वयं परित्याग भी कर दिया था. इसके बाद थोड़ा-बहुत काम चला रहे कानूनगो के बाद 30 मार्च 2014 से प्रदेश के रहे सहे नायब तहसीलदारों ने भी पुलिस कार्यों का बहिष्कार कर दिया था, जिससे ग्रामीण क्षेत्रों में संकट पैदा हो गया.
4 जनवरी को पटवारी महासंघ ने उत्तराखंड हाइकोर्ट में एक याचिका दायर कर सामान काम के लिए समान वेतन और समान सुविधा कई मांग की है. पटवारियों का कहना है कि उनको जो एक सटवारी मदद के लिए मिलता था, वह भी अब कई क्षेत्रों में नहीं उपलब्ध है. राज्य के उपलब्ध 716 पटवारी पदों के सापेक्ष सटवारियों की संख्या केवल 175 रह गई है.
उत्तराखंड परिवर्तन पार्टी के अध्यक्ष पीसी तिवारी का कहना है कि पटवारियों की वजह से प्रदेश का नाम देवभूमि रह गया है. जहां रेगुलर पुलिस है वहां क्या गारंटी है कि उनकी वजह से अपराध नहीं होंगे.
पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत का कहना है कि हाइकोर्ट के आदेश का हम सम्मान करते हैं लेकिन सरकार को राज्य की विपक्षी पार्टियों और जनप्रतिनिधियों की बैठक बुलाते हुए उनके विचार और राज्य के राजस्व अधिकारियों के विचारों को हाइकोर्ट के सामने रखकर ही निर्णय लेना चाहिए. जबकि सत्तारूढ़ भाजपा के प्रवक्ता और विधायक मुन्ना सिंह चौहान का कहना है कि राजस्व पुलिस व्यवस्था पूरी तरह निष्प्रभावी साबित हो रही है.
ऐसे में बिना किसी अपराध निवारण के प्रशिक्षण के राजस्व पुलिस के भरोसे नहीं रहा जा सकता. हाइकोर्ट के आदेश के बाद कैबिनेट मंत्री एवं राज्य सरकार के प्रवक्ता मदन कौशिक ने कहा कि पर्वतीय क्षेत्रों में पुलिस थाने खोलने के संबंध में आए हाइकोर्ट के आदेश का अध्ययन किया जा रहा है. इसके बाद ही सरकार इस दिशा में आगे कदम बढ़ाएगी.
अब तक प्रदेश में कुल राजस्व पुलिस के 1,216 पद स्वीकृत हैं जबकि मात्र 710 राजस्व पुलिस पटवारी ही नियुक्त हैं, जिनमें महिला राजस्व पुलिस कर्मियों की संक्चया मात्र 20 है.
मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत सूबे की पुलिस व्यवस्था दुरुस्त करना चाहते हैं. हाइकोर्ट के आदेश के पालन में संसाधनों की कमी से वे कैसे निपटेंगे यह देखना होगा क्योंकि नई व्यवस्था लाने से सूबे का खर्च बढ़ेगा.