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पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव में उन्हें मिली शानदार जीत की बधाई देने के लिए उनके पास सबसे पहला कॉल ठीक 10 बजे आया था जो प्रधानमंत्री का था. उस समय तक ज्यादातर समाचार चैनल केवल रुझान की दिखा रहे थे, नतीजे घोषित नहीं किए गए थे. लेकिन इतना तो साफ हो ही गया था कि ममता बनर्जी बंगाल में भारी बहुमत से जीत हासिल करने वाली हैं. उन्होंने अपने जाने-पहचाने तेजतर्रार अंदाज में अपनी आसान जीत की घोषणा कर दी थी. हालांकि एग्जिट पोल उनसे सहमत नहीं थे जिनका अनुमान था कि वे बहुत कम अंतर से जीत रही हैं और इस बार विपक्ष उनके लिए मुश्किल खड़ी करने वाला है.
इन अनुमानों ने ममता की लगातार चार रातों की नींद उड़ा दी थी. इस बीच वे रवींद्र संगीत सुनती रहीं और विवेकानंद साहित्य पढ़ती रहीं. 19 मई की सुबह, परिणाम वाले दिन, उन्होंने जैसे-तैसे दैनिक काम निबटाए और फिर कुछ देर अपनी मां की फोटो के सामने खड़ी रहीं. यह मिलन मौन लेकिन बेहद जरूरी होता है.
आखिरकार उन्हें चिंता करने की कोई जरूरत भी न थी. तृणमूल कांग्रेस की झोली सीटों से भर गई थी और पार्टी को 294 में से 211 सीटें हासिल हुई थीं. यह वाम दलों और कांग्रेस के गठजोड़ के लिए बड़ी ही शर्मनाक हार थी. यह गठजोड़ काफी बेमन से बना था ऐसे में यह लाजमी था. दोनों पार्टियां इस साझेदारी के भविष्य को लेकर जितने संशय में थीं, मतदाता भी उतने ही भ्रमित थे. जब तृणमूल की भारी विजय की तस्वीर साफ हो गई तो ममता ने कहा, ‘‘जनता समझदार है. कई झूठ बोले गए, षड्यंत्र किए गए लेकिन उन्होंने सच को पहचान लिया.’’
इसके बाद उनका फोन लगातार बजता रहा—अरुण जेटली उन्हें बधाई देना चाहते थे. उनके अलावा वेंकैया नायडू, अरविंद केजरीवाल, नीतीश कुमार, चंद्रबाबू नायडू, अखिलेश यादव, अमिताभ बच्चन और शाहरुख खान भी कतार में थे. सोनिया गांधी उन्हें दोपहर दो बजे के बाद ही फोन मिला पाईं और तब ममता अपने को रोक न सकीं. वे बोलीं, ‘‘राजीव जी मेरा बहुत सम्मान करते थे. लेकिन आपके फैसले से मुझे बहुत दुख पहुंचा. आप इतनी बड़ी गलती (वाम दलों से साझेदारी) आखिर कैसे कर सकती हैं?’’
ममता की जीत के पीछे उनकी मेहनत और पसीना था. उनकी सरकार ने जमीनी स्तर पर कितना काम किया है और उसका कितना असर पड़ा, यह देखने के लिए उन्होंने करीब 200 रैलियां कीं और 100 किलोमीटर का रास्ता पैदल ही नापा. उन्होंने लोगों से पूछा, ‘‘क्या आपको फायदे मिल रहे हैं, आप चुप क्यों हो?’’ जहां उन्हें लगता कि अधिकारियों ने अपना काम ठीक से नहीं किया है तो वे उन्हें सरेआम झड़प भी देतीं. तृणमूल के सांसद सुदीप बंदोपाध्याय कहते हैं, ‘‘व्यक्तिगत संपर्क, तेजी से निर्णय लेना, ब्लॉक स्तर के अधिकारियों के साथ संपर्क में रहना, ये सब उनके अच्छे प्रशासन का हिस्सा हैं.’’
उनके जुड़ाव का मतदाताओं ने सम्मान भी किया और इस पर भ्रष्टाचार और आरोपों का कोई असर नहीं पड़ा. उन्होंने मतदाताओं को कहा, ‘‘मैं मां हूं. मैंने तृणमूल को जन्म दिया है. 20, 30 या 50 लोगों के परिवार में यदि एक या दो लोग खराब निकल आते हैं तो इससे पूरे परिवार को तो दोष नहीं दिया जा सकता.’’
वैसे नारद स्टिंग में रिश्वत लेते कैद हुए तृणमूल नेताओं में से केवल एक को छोड़कर बाकी सभी नेताओं ने काफी आसान जीत हासिल की है. इस जीत पर करोड़ों रु. के शारदा घोटाले का साया भी नहीं पड़ा. ममता ने जीत के मौके को भुनाते हुए कहा, ‘‘हम ईमानदार राजनीति करते हैं. भ्रष्टाचार के आरोप तो बीजेपी, कांग्रेस, वाम दलों और एबीपी मीडिया की साजिश हैं.’’
वैसे ममता के विरोधी भी मानते हैं कि उनकी सरकार ने लोगों की मदद की है. वाम-कांग्रेस गठबंधन के प्रमुख चेहरे और ममता के कटु आलोचक कांग्रेसी नेता मानस भुइयां ने कहा, ‘‘व्यक्तिगत लाभ. चुनाव के नतीजे यह साबित करते हैं कि इस बार ‘मेरे समुदाय या मेरे राज्य को क्या मिल रहा है’ की जगह ‘मुझे क्या मिल रहा है’ की सोच हावी रही.’’
चुनाव विश्लेषक विश्वनाथ चक्रवर्ती कहते हैं, ‘‘ममता की नीतियां काफी प्रभावी रही हैं. खाद्य सुरक्षा योजना खाद्या साथी में लगभग 80 फीसदी जनता यानी 7.49 करोड़ लोगों को हर महीने 35 किलो चावल और 2 रु. प्रति किलो दर से गेहूं मिलता है. सत्तारूढ़ पार्टी अगर भरपूर भोजन दे रही है तो लोग अपने वोट किसी और को क्यों देंगे? ’’
इंडियन स्टेटिस्टिकल इंस्टीट्यूट में अर्थशास्त्र के प्रोफेसर अभिरूप सरकार कहते हैं, ‘‘उन्होंने लोगों की मूल जरूरत—बिजली, सड़क और पानी—को समझा है. 70 फीसदी मतदाता ग्रामीण इलाकों में रहते हैं और ग्रामीण लोग वोट जरूर देते हैं. उन्हें अपने इर्दगिर्द बदलाव होता महसूस होता है. दूरदराज के मिदनापुर इलाके में सुपर स्पेशियलिटी अस्पताल बन गया है जबकि कई व्यावसायिक प्रशिक्षण संस्थान भी खुल गए हैं.’’
ममता को भारी बहुमत मिलने का मतलब साफ है कि लोग उनसे इसी तरह की और योजनाओं की उम्मीद रखते हैं. अब उन्हें बेरोजगारी भत्ता देने के बजाए रोजगार सृजन के तरीके खोजने होंगे. लेकिन रोजगार की कमी तो राष्ट्रीय समस्या है. सरकार कहते हैं, ‘‘ग्रामीण गरीब तबके के लिए क्या किया गया है, यही वह सूत्र है जो भारत में चुनाव के नतीजे तय करता है. इस तबके के लिए किया गया काम ही ममता के लिए फायदेमंद साबित हुआ. ममता की जीत का श्रेय उनकी जन-समर्थक, किसान समर्थक और गरीब समर्थक नीतियों को जाता है. लगता नहीं कि वे अपने इस फॉर्मूले को बदलेंगी.’’
अगला एजेंडा निश्चित तौर पर ममता के कद को राष्ट्रीय स्तर का बनाना है. एक टीवी इंटरव्यू में वे पहले ही कह चुकी हैं कि 2019 के चुनाव में तृणमूल महत्वपूर्ण या शायद किंग मेकर की भूमिका में रहेगी. बंदोपाध्याय का कहना है कि अब उनकी नजर पश्चिम बंगाल की सभी 42 लोकसभा सीटें झटक लेने पर है. इसी क्रम में ममता ने तीसरे मोर्चे के संभावित नेताओं—नीतीश कुमार, लालू प्रसाद यादव, अखिलेश यादव, शरद यादव, शरद पवार और अरविंद केजरीवाल को अपने शपथ ग्रहण समारोह में आमंत्रित किया है. जीत के कुछ ही समय बाद उन्होंने कहा, ‘‘नीतीश कुमार और लालूजी के साथ हमारे अच्छे संबंध हैं. हम पारंपरिक रास्तों से हमेशा हटकर चलते हैं और नए संघीय मोर्चे की संभावनाओं को तलाशते हैं.’’
वाम दलों से गठबंधन टूटने पर उनके दरवाजे कांग्रेस के लिए भी खुले हैं. जीत ने उन्हें उदार बना दिया है. वे मुस्कराते हुए कहती हैं, ‘‘मैं उनकी अच्छी सेहत और लड़ने के लिए भरपूर ताकत की कामना करती हूं. मैं उन्हें मिठाई भेजूंगी.’’