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दिल्ली में इंसानियत ने सरेराह दम तोड़ दिया

‘अजब ये तेरे शहर का दस्तूर हो गया, हर आदमी इंसानियत से दूर हो गया.’ डेढ़ करोड़ की आबादी वाले दिल्ली शहर में एक नौजवान सड़क पर लहुलुहान पड़ा था और एक मददगार हाथ के लिए तड़प रहा था. इस दौरान उसके पास से सैकड़ों इंसान गुजरे, पर मदद का हाथ किसी ने नहीं बढ़ाया. यहां तक कि पुलिस भी उसके पास खड़ी थी, पर वक्त रहते मदद के दो हाथ उनके भी आगे नहीं बढ़े.

aajtak.in
  • नई दिल्ली,
  • 29 अगस्त 2014,
  • अपडेटेड 6:56 AM IST

‘अजब ये तेरे शहर का दस्तूर हो गया, हर आदमी इंसानियत से दूर हो गया.’ डेढ़ करोड़ की आबादी वाले दिल्ली शहर में एक नौजवान सड़क पर लहुलुहान पड़ा था और एक मददगार हाथ के लिए तड़प रहा था. इस दौरान उसके पास से सैकड़ों इंसान गुजरे, पर मदद का हाथ किसी ने नहीं बढ़ाया. यहां तक कि पुलिस भी उसके पास खड़ी थी, पर वक्त रहते मदद के दो हाथ उनके भी आगे नहीं बढ़े. और फिर उसकी मौत हो गई, असल में मौत सिर्फ उस नौजवान की नहीं बल्कि ‘दिलवालों की दिल्ली’ का दंभ भरने वाली राजधानी में इंसानियत की भी मौत हो गई.

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ईंट, सीमेंट और कंक्रीट का ये जंगल, कहने को तो शहर है, इसे दिल्ली कहते हैं. लेकिन इस शहर का दिल भी उतना ही पत्थर है जितनी यहां की बेजान इमारतें. यहां की पथरीली सड़कें भी शायद उतनी पथरीली नहीं होंगी, जितना ये शहर पत्थर दिल है.

उसकी उम्र मुश्किल से 20-22 साल होगी, उसकी मां ने भी उसे अपने आंचल तले पाल-पोस कर बड़ा किया होगा. आज उस मां का वह बच्चा आधे घंटे तक देश की राजधानी दिल्ली में बीच सड़क पर तड़प-तड़प कर मरता रहा, पर खुद को इंसान बताने वाला एक भी इंसान उसकी मदद को आगे नहीं आया. उस दौरान उस जगह से इंसानों की तमाम भीड़ गुजरी, तमाम इंसानों ने अपने जैसे ही एक इंसान को लाइव मरते हुए देखा. लेकिन किसी ने इतनी भी तकलीफ नहीं की कि एक मरते हुए इंसान को उठाकर अस्पताल पहुंचा दें.

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‘आपके लिए, आपके साथ सदैव’ का नारा देने वाली दिल्ली पुलिस भी पत्थर बन गई. हमेशा देर से पहुंचने वाली पुलिस हैरतअंगेज तौर पर सही वक्त पर मौके पर मौजूद भी थी. उसके ठीक सामने नौजवान पल-पल मर रहा था, लेकिन पुलिस इंसानों के लिए बनाए कानून को तो याद कर रही थी, पर जिस इंसान के लिए कानून बनाया गया उसी इंसान को ही भूल बैठी थी. इसीलिए मरते हुए शख्स की जान बचाने की बजाए वो अपने ही थाने के अंदर अपनी सीमा नापने के साथ-साथ मौके पर ही तफ्तीश में जुट गई थी. ये भूलकर कि सामने वाले की सांसें कभी भी उखड़ सकती हैं और उसे इस वक्त कानून की नहीं इंसानियत की जरूरत है, मदद की जरूरत है.

कोई भी मदद को आगे नहीं आया. लिहाजा, आधे घंटे तक पूरी इंसानियत को शर्मसार करने का ये सिलसिला यूंही चलता रहा और आखिरकार आधे घंटे बाद इस लड़के को भी यकीन हो चला कि यहां कोई उसकी मदद नही करने वाला. लिहाजा बड़ी मुश्किल से उसने खुद उठने की कोशिश की, लेकिन उठ नही पाया. बस मौत से अकेला जूझता रहा.

वक्त बीतता जा रहा था और खून जिस्म से निकलकर सड़क लाल करता जा रहा था. तब कहीं जाकर पुलिस वाले को लगा कि चलो अब इसकी मदद कर ही देते हैं. इसके बाद वो उसे गाड़ी में डालकर अस्पताल ले गए. पर तब तक बहुत देर हो चुकी थी, सारा खून सड़क पर ही बह चुका था. असल में अस्पताल वो नहीं उसकी लाश को भेजा गया था. एक भरे-पूरे शहर में मदद के दो अदद हाथ भी उसे मयस्सर नहीं हुए और उसने घिसटते-तड़पते उसी जगह दम तोड़ दिया था.

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अब सवाल ये है कि इस मौत के लिए जिम्मेदार कौन है? वो लोग जो मौत का तमाशा देखते रहे या वो पुलिस जो वक्त पर काम ना आई? वैसे सच्चाई तो ये है कि उस लड़के की मौत के लिए सिर्फ पुलिस को ही क्यों जिम्मेदार ठहराया जाए? क्या उन पत्थर दिल इंसानों की कोई गलती नहीं जो तड़पते हुए उस लड़के के पास से बस तमाशबीन की तरह गुजरते चले गए? अगर उस वक्त एक हाथ भी मदद को आगे आ जाता तो क्या पता आज भी वो अपनी मां के आंचल मे होता. पर अफसोस! ऐसा हो नहीं हो सका. इस पत्थर दिल शहर में हर साल ऐसे ना जाने कितने लोग यूं मर जाते हैं. उनमें से बहुत से लोगों को बचाया जा सकता है. बस जरूरत सिर्फ दो अदद मददगार हाथों की है. इसलिए अगली बार जब भी आपको सड़क पर कोई तड़पता दिखाई दे तो प्लीज मुंह मत मोड़िएगा.

दरअसल दक्षिण-पूर्वी दिल्ली के अंबेडकर नगर इलाके में बीच सड़क पर एक युवक का कत्ल हो गया और वहां मौजूद लोग तमाशबीन बने रहे. उसे सरेशाम चाकू मारा गया और मौके पर मौजूद लोगों के मुताबिक करीब एक घंटे तक राजू नाम का युवक तड़पता रहा, लोग उसे घेरकर खड़े थे. लेकिन दिलवालों की दिल्ली में उस बदकिस्मत को कोई ऐसा नहीं मिला जो उसे अस्पताल पहुंचा दे. जब तक अस्पताल पहुंचाया जाता उसने दम तोड़ दिया.

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अब उसके घर में मातम पसरा है. आखिर कौन थे राजू पर हमला करने वाले. क्यों राजू पर बीच सड़क पर जानलेवा हमला किया गया. घरवालों के अनुसार कोई लड़का राजू को लेकर गया था. मोमोज खाते वक्त कुछ लोगों का झगड़ा हुआ, राजू बीच-बचाव करने पहुंचा तो हमलावरों ने उस पर ही चाकू और कैंची से वार कर उसे लहुलूहान कर दिया. राजू वहीं गिरकर तड़पने लगा, मौके पर तमाशबीन लोग सिर्फ खड़े-खड़े घायल राजू को देखते रहे, किसी ने भी उसे अस्पताल पहुंचाने की कोशिश नहीं की. वो भी तब जब घटनास्थल से अस्पताल महज दो से तीन किलोमीटर दूर था.

पुलिस के मुताबिक स्थानीय लोगों ने कोई मदद नहीं की. जब तक पुलिसकर्मी सुरेश वहां पहुंचा तब तक पीसीआर भी पहुंच गई थी. उसकी तरफ से कोई लापरवाही नहीं हुई. वहीं इस पूरे मामले में पुलिस कमिश्नर ने ज्वाइंट सीपी को जांच के आदेश दे दिए हैं. राजू के कत्ल के सिलसिले में पुलिस ने आशू नाम के एक शख्स को गिरफ्तार भी कर लिया है. लेकिन लोगों को अब भी यही लग रहा है कि अगर राजू को समय से अस्पताल पहुंचा दिया होता तो उसकी जान बच सकती थी.

पुलिस भले ही अपनी दलीलें दे, जांच की बात करे लेकिन पुलिस के रवैये को लेकर कई अहम सवाल भी उठते हैं. इसके साथ ही सवाल उन लोगों पर भी उठते हैं जो घायल युवक को तड़पता देखने के बावजूद तमाशबीन बने रहे.

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