
पहले हम सब सिर्फ आतंक के बारे में सुना करते थे लेकिन अब उसी आतंक को अपनी आंखों से लाइव देखते हैं. दरअसल बात चाहे आधुनिक हथियारों की हो या फिर तकनीक की, खतरनाक बात ये है कि आतंकवादी भी अब इन दोनों का भरपूर इस्तेमाल कर रहे हैं. वारदात इसी महीने की है. आतंकवादियों को एक पुलिस हैडक्वार्टर को उड़ाना था और साथ ही उस धमाके को उन्हें कैमरे में भी कैद करना है. लिहाजा पहले वो ड्रोन कैमरे को फिट करते हैं और उसके बाद धमाका.
रूंह कंपा देने वाला वीडियो
जिसने भी इस धमाके की तस्वीरें देखी, वो हिल गया. आतंकवादियों ने आत्मघाती हमले तो बहुत किए, बेगुनाहों का खून भी बहुत बहाया लेकिन अपने किसी हमले का ऐसा वीडियो शूट कर उसे अपनी वेबसाइट पर डालना और वो भी तालिबान जैसे आतंकवादी संगठन के लिए, ये बिल्कुल नई और चौंकानेवाली बात है.
जमीन से जमीन पर किया गया हमला
अफगानिस्तान के नवा जिले में पुलिस मुख्यालय पर किए गए इस हमले की इन तस्वीरों को पहली नजर में देख कर हर किसी ने इसे ड्रोन अटैक का वीडियो समझा. लेकिन हकीकत कुछ और थी. सच्चाई ये है कि ये आत्मघाती हमला जमीन से जमीन पर ही किया गया. जबकि उसकी तस्वीरें ड्रोन से ली गईं और वो भी बेहद पेशेवराना तरीके से.
तैयारी से लेकर हमले तक का वीडियो
इस वीडियो में हमले की तैयारी से लेकर धमाके तक को रिकॉर्ड किया गया है. वीडियो के शुरुआत में एक आत्मघाती हमलावर अपनी हम्वी गाड़ी के साथ नजर आता है. ये अफगानिस्तान के उसी हेलमंड प्रोविंस का एक गुमनाम ठिकाना है, जिस इलाके में इस वारदात को अंजाम दिया गया. हमलावर बारूद से भरी इस बख्तरबंद गाड़ी में बैठ जाता है. वो अपने साथियों को अलविदा कहकर रवाना हो जाता है.
अगली तस्वीर में हेलमंड के पुलिस हेडक्वार्टर का दूर से लिया गया बर्ड्स आई व्यू यानी विहंगम दृश्य है. थोड़ी ही देर में इन तस्वीरों में वो हम्वी गाड़ी भी नजर आती है, जिसे तालिबान का आत्मघाती हमलावर लेकर रवाना हुआ था. ये गाड़ी घुमावदार रास्तों से होती हुई सीधे पुलिस हेडक्वार्टर तक पहुंचती है और इसके बाद एक जोरदार धमाके के साथ पूरा का पूरा पुलिस हेडक्वार्टर ही आग के गोले में तब्दील हो जाता है. यानी आत्मघाती हमलावर अपनी हम्वी गाड़ी को डेटोनेट कर उसे उड़ाने में कामयाब हो चुका है.
जांच पूरी होने से पहले तालिबाने ने किया हमले का दावा
ये धमाका इतना जोरदार था कि धमाके की आवाज न सिर्फ सैकड़ों फीट ऊंचे ड्रोन कैमरे की माइक में साफ-साफ रिकॉर्ड हो जाती है बल्कि धमाके से पैदा हुए कंपन यानी थरथराहट को भी साफ महसूस किया जा सकता है. इसके साथ ही पुलिस हेडक्वार्टर से धूल और धुएं का जबरदस्त गुबार उठता है, जो देखते ही देखता हेलमंड के आसमान पर छा जाता है और पूरी वारदात को कैद कर रहा ड्रोन कैमरा भी उसकी चपेट में आ जाता है. तालिबान ने हेलमंड प्रोविंस के इस पुलिस हेडक्वार्टर में किए गए इस आत्मघाती हमले को इसी महीने की 3 तारीख को अंजाम दिया था लेकिन इससे पहले कि इस मामले की जांच किसी अंजाम तक पहुंची, इस हमले की ये तस्वीरें जारी कर उसने दुनिया को चौंका दिया.
मोसूल से भी जल्द हो जाएगा आईएसआईएस का खात्मा
इराक के मोसूल शहर में आईएसआईएस और इराकी फौज के दरम्यान आखिरी घमासान जारी है. आखिरी इसलिए क्योंकि अब तकरीबन पूरे इराक और सीरिया में आईएसआईएस के पांव उखड़ चुके हैं लेकिन मोसूल ही वो इकलौती जगह है, जहां आईएस अब भी हिचकियां ले रहा है. लेकिन मित्र देश, इराकी फौज और कुर्दिश फाइटरों की मानें तो अब ये हिचकियां भी चंद दिनों में बंद हो जाएंगी.
आखिरी जंग और पूरी तरह उखड़ जाएंगे ISIS के पांव
मोसूल यानी आईएसआईएस के उस आखिरी किले में सेंध लगाने में अब इराकी फौज, मित्र देश और कुर्दिश फाइटरों ने कामयाबी हासिल कर ली है. न सिर्फ कामयाबी हासिल कर ली है बल्कि आईएसआईएस के बेरहम जल्लादों को उनकी औकात भी बताने लगे हैं. इराक और सीरिया के इस पूरे के पूरे इलाके में अब ज्यादातर जगहों पर आईएसआईएस के पांव उखड़ चुके हैं. और अब ये मोसूल ही इकलौती जगह बची है, जहां इन आतंकवादियों के साथ फौज की आखिरी लड़ाई चल रही है.
आतंकियों पर जबरदस्त कहर बरपा रही फौज
हालत ये है कि अमेरिका की अगुवाई में मित्र देश यहां आईएसआईएस पर कहर बरपा रहे हैं. महज एक हफ्ते में इस इलाके में आतंकवादियों पर 32 हवाई हमले हुए हैं. आतंकवादियों से लड़ रहे फौजियों को 1700 नए अस्लहे सौंपे गए हैं, जिन्होंने आईएसआईएस के 136 बंकरों को नेस्तनाबूद कर दिया है जबकि आतंकियों की 18 सुरंगें और 26 कार बमों को बर्बाद कर दिया गया है.
आईएसआईएस से जंग में पिस लगे आम लोग
हालांकि इराकी सरकार और कुर्दिश लड़ाकों ने अब तक इस जंग में मरनेवालों का कोई सही-सही आंकड़ा जारी नहीं किया है लेकिन मित्र देश जिस तरह से यहां आतंकवादियों पर हवाई हमले कर रहे हैं, उसे देख कर अंदाजा लगाया जा रहा है कि आईएसआईएस का 'दि एंड' अब बिल्कुल करीब आ चुका है. वैसे तो फौज ने बहुत से छोटे-मोटे कस्बों और गांवों को आईएसआईएस के कब्जे से आजाद करा लिया है लेकिन इन हालात में सबसे बुरी हालत इस इलाके में रहने वाली महिलाओं और बच्चों की हैं, जिन पर अब एक-एक पल भारी पड़ रहा है. हजारों बेगुनाह लोग इस असमंजस में हैं कि अब वो अपना घर छोड़ कर जाएं या फिर आईएसआईएस के सफाए के बाद इत्मीनान से नई जिंदगी की शुरुआत करें. जबकि मोसूल की सड़कों पर अब भी हजारों बेघर लोग अपने-अपने घरों को लौटने के इंतजार कर रहे हैं, जो बीमारी और भूख से बुरी तरह घिरे हैं और वक्त बदलने का इंतजार कर रहे हैं.
बगदादी की तलाश में फौज
हालांकि फिलहाल आईएसआईएस से लड़ रही तमाम फौजें इस दुनिया के सबसे बड़े जल्लाद यानी अबु बकर अल बगदादी की तलाश में है. बगदादी को आखिरी बार इस शहर में देखे जाने की खबर है. ऐसे में कहने की जरूरत नहीं है कि जैसे ही बगदादी इन इन फौजों के हत्थे चढ़ता है या फिर इराकी फौज, मित्र देश या फिर कुर्दिश फाइटरों उसे निशाना बनाते हैं, आईएसआईएस का गेम ओवर होना तय है.
धर्म न बदलने पर मासूमों को उतारा मौत के घाट
इराकी शहर मोसूल से चंद किलोमीटर के फासले पर मौजूद है टाउन बर्टेला. इसाईयों के इस छोटे से शहर में आईएसआईएस ने सैकड़ों लोगों को सिर्फ इसलिए चुन-चुन कर मौत के घाट उतार दिया था क्योंकि वो अपना धर्म बदलने को तैयार नहीं थे. लेकिन अब आतंकवादियों की ये ज्यादती गुजरे कल की बात बन चुकी है. बर्टेला से इराकी फौज ने आतंकवादियों को खदेड़ दिया है और ऐसे में खंडहर बन चुके इस शहर के चर्च का घंटा एक बार फिर से घनघना उठा.
एक बार फिर से चर्च में गूंजने लगी घंटियां
ऊपरवाले के जिस घर में अब से दो साल पहले तक वचन और प्रार्थनाओं का सिलसिला चलता था. अब उसी घर में पोजिशन लिए फौजी कॉम्बिंग ऑपरेशन कर रहे हैं और इस हालात के लिए भी कोई और नहीं, बल्कि वही आईएसआईएस जिम्मेदार है, जिसने इराक और सीरिया की एक बड़ी आबादी के लिए जीना दुश्वार कर दिया है. ये और बात है कि आतंकवादियों के खिलाफी इराकी फौज, मित्र देश और कुर्दिश फाइटरों के जंग की ये वो आखिरी तस्वीर है, जिसके बाद मोसूल के नजदीक बर्टेला के इस चर्च को पूरी तरह से आजाद करवा लिया गया और पूरे दो साल बाद चर्च की घंटियां एक बार फिर प्रार्थनाओं के लिए घनघना उठी.
मोसूल से 14 किलोमीटर दूर इराक के इस इसाई बहुल कस्बे पर अगस्त 2014 से ही आईएसआईएस के आतंकवादियों का कब्जा था, जिन्होंने यहां रहने वाले तमाम इसाईयों के सामने बस दो ही विकल्प छोड़े थे. पहला आईएसआईएस की बात मान कर धर्म बदल कर मुसलमान हो जाना और दूसरा धर्म बदलने से इनकार कर बेमौत मारा जाना. जाहिर है बर्टेला में जहां आईएसआईएस की मनमानी का शिकार होकर बहुत से लोग मारे गए, वहीं बहुत से लोग ऐसे भी थे, जिन्होंने मजबूरी में जिंदा रहने के लिए अपना धर्म बदल लिया. लेकिन अब जैसे ही बाजी पल्टी और इराकी फौज ने इस शहर से आईएसआईएस के आतंकवादियों को मार भगाया, पूरे टाउन के साथ-साथ ये चर्च भी गुलजार हो गया. पूरे दो साल बाद इस चर्च की घंटियां बजीं और लोग एक बार फिर प्रार्थना के लिए यहां इकट्ठा हुए.
हालांकि फौज के इस लास्ट ऑपरेशन में जैसे ही चर्च की अंदर की तस्वीरें आम हुई, लोगों का मन खट्टा हो गया. आतंकवादियों ने चर्च को बुरी तरह बर्बाद कर दिया था. चर्च के अंदर जगह-जगह नफरत के सुबूत बिखरे थे. लेकिन गनीमत ये है कि अब ये सब कुछ गुजरे वक्त की बात है और इराक के दूसरे शहरों की तरह ही बर्टेला भी राहत की सांस ले रहा है. सूत्रों की मानें तो आमने सामने की इस जंग में सिर्फ बर्टेला में ही 80 आतंकवादियों को मौत की नींद सुला दिया गया जबकि ठीक बर्टेला की तरह ही फौज ने इसाईयों के एक और शहर हमदनिया को भी अब आतंकवादियों से आजाद करवा लिया है.
इराक के बाद सीरिया तक फैलाए थे पैर
इराक के एक छोटे से हिस्से में पहली बार आईएस ने सर उठाया था. फिर देखते ही देखते ये इराक के एक बड़े हिस्से में फैल गया. उसके बाद इसने इराक की सीमा लांघी और पड़ोसी मुल्क सीरिया तक जा पहुंचा. आईए आपको बताते हैं कि आखिर इराक में आईएस का जन्म क्यों और कैसे हुआ था? किसकी वजह से हुआ था और इसका जिम्मेदार कौन है?
ऐसे हुआ आईएसआईएस का जन्म
एक लंबी लड़ाई के बाद अमेरिका इराक को सद्दाम हुसैन के चंगुल से आजाद करा चुका था. पर इस आजादी को हासिल करने के दौरान इराक पूरी तरह बर्बाद हो चुका था और उसी बर्बाद इराक से 2011 तक अमेरिका अपनी सारी सेना को वापस बुला लेता है.
बगदादी ने जमाने शुरू की जड़ें
अमेरिकी सेना के इराक छोड़ते ही बहुत से छोटे-मोटे गुट अब अपनी ताकत की लड़ाई शुरू कर देते हैं. उन्हीं में से एक गुट का नेता था अबू बकर अल बगदादी. अल-कायदा इराक का चीफ. वो 2006 से ही इराक में अपनी जमीन तैयार करने में लगा था. मगर तब न उसके पास पैसे थे, न कोई मदद और न ही लड़ाके. जैसा कि उसके नाम से पता चलता है, बगदादी चूंकि खुद स्थानीय था, लिहाजा विदेशियों के इराक छोड़ते ही उसने इराक में अपनी जड़ें नए सिरे से जमाने का फैसला किया.
दरअसल अमेरिकी सेना 2011 में जब इराक से लौटीं तब तक वो इराकी सरकार को बर्बाद कर चुकी थी. सद्दाम मारा जा चुका था. इंफ्रांस्ट्रक्चर पूरी तरह से तबाह हो चुके थे और सबसे बड़ी बात ये कि वो इराक में पावर वॉकयूम यानी खाली सत्ता छोड़ गए थे. मगर संसाधनों की कमी के चलते तब बगददी ज्यादा कामयाब नहीं हो पा रहा था. हालांकि इराक पर कब्जे के लिए तब तक उसने अल-कायदा इराक का नाम बदल कर नया नाम रख लिया था आईएसआई. यानी इस्लामिक स्टेट ऑफ इराक.
बगदादी ने सद्दाम हुसैन की सेना के कमांडर और सिपाहियों को अपने साथ मिला लिया था. इसके बाद उसने शुरूआती निशाना पुलिस, मिलिट्री दफ्तर, चेकप्वाइंट्स और रिक्रूरीटिंग स्टेशंस को बनाना शुरू किया. अब तक बगदादी के साथ कई हजार लोग शामिल हो चुके थे. पर फिर भी बगदादी को इराक में वो कामयाबी नहीं मिल रही थी.
इराक से मायूस होकर अब बगदादी ने सीरिया का रुख करने का फैसला किया. सीरिया तब गृह युद्ध झेल रहा था. अल-कायदा और फ्री सीरियन आर्मी वहां के दो सबसे बड़े गुट थे जो सीरियाई राष्ट्रपति से मोर्चा ले रहे थे. पर पहले चार साल तक सीरिया में भी बगदादी को कोई बड़ी कामय़ाबी नहीं मिली. अलबत्ता इस दौरान उसने एक बार फिर से अपने संगठन का नाम बदल कर अब आईएसआईएस कर दिया था. इस्लामिक स्टेट ऑफ इराक एंड सीरिया.
फ्री सीरियन आर्मी के जनरल ने पहली बार सामने आकर दुनिया से अपील की थी कि अगर उन्हें हथियार नहीं मिले तो वो बागियों से अपनी जंग एक महीने के अंदर हार जाएंगे. इसी अपील के हफ्ते भर के अंदर ही अमेरिका, इजराइल, जॉर्डन, टर्की, सऊदी अरब और कतर ने फ्री सीरियन आर्मी को हथिय़ार, पैसे, और ट्रेनिंग की मदद देनी शुरू कर दी. इन देशों ने बाकायदा सारे आधुनिक हथियार, एंटी टैंक मिसाइल, गोला-बारूद सब कुछ सीरिया पहुंचा दिया. और बस यहीं से आईएसआईएस के दिन पलट गए.
दरअसल जो हथियार फ्री सीरियन आर्मी के लिए थे, वो साल भऱ के अंदर आईएसआईएस तक जा पहुंचे. क्योंकि तब तक आईएस फ्री सीरियन आर्मी में सेंध लगा चुका था और उसके बहुत से लोग उसके साथ हो लिए थे. साथ ही सीरिया में फ्रीडम फाइटर का नकाब पहन कर भी आईएस ने दुनिया को धोखा दिया. इसी नकाब की आड़ा में खुद अमेरिका तक ने अनजाने में आईएस के आतंकवादियों को ट्रेंनिंग दे डाली.
हथियारों का जखीरा अब जमा हो चुका था. 15 हजार के करीब लड़ाके भी साथ हो लिए थे. इसी के बाद जून 2014 में अचानक पहली बार आईएस की ऐसी तस्वीर दुनिया के सामने आती है और देखते ही देखते एक गुमनाम संगठन अगले कुछ महीनों में ही दुनिया का सबसे खतरनाक आतंकवादी संगठन बन जाता है.