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किसान की मौत बन गई तमाशा!

दिल्ली का जन्तर-मंतर, यानी वह दहलीज जहां से देश का ग़ुस्सा दिल्ली की सत्ता से फरियाद करता है. इसी दहलीज पर एक किसान नेताओं और लोगों की भीड़ के सामने आत्महत्या कर लेता है और बेशर्म राजनीतिक बयानबाजी का दौर चलने लगा.

aajtak.in
  • नई दिल्ली,
  • 23 अप्रैल 2015,
  • अपडेटेड 6:40 AM IST

दिल्ली का जन्तर-मंतर, यानी वह दहलीज जहां से देश का ग़ुस्सा दिल्ली की सत्ता से फरियाद करता है. इसी दहलीज पर एक किसान नेताओं और लोगों की भीड़ के सामने आत्महत्या कर लेता है और बेशर्म राजनीतिक बयानबाजी का दौर चलने लगा.

करीब 50 साल का किसान गजेंद्र सिंह राजस्थान के दौसा जिले से जंतर-मंतर पहंचा था. इस आस इस उम्मीद में कि दिल्ली उसके दर्द को समझेगी. उसके घर के बुझते चूल्हे को आग मिलेगी। तीन भूखे बच्चों को निवाला मिलेगा. मौसम की मार से बर्बाद हए फसल के एवज में मुआवजे का कुछ मरहम लगेगा. गरीबी से नाराज पिता फिर से घर वापस बुलाएंगे.

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इन्हीं सपनों और उम्मीदों को लिए वह बुधवार सुबह ही जंतर-मंतर पहुंच गया था. दोपहर की तपिश के बीच तब मंच पर मुख्यमंत्री केजरीवाल, डिपुटी सीएम मनीष सिसोदिया, और आप के तमाम खैर-ख्वाह उसी गजेंद्र जैसे किसानों के दर्द का हमदर्द बन कर खड़े थे। मौसम की मार का ठीकरा विरोधी सरकार पर फोड़ रहे थे. अपनी पीठ थपथपा रहे थे और बता रहे थे कि देखो दिल्ली के किसान हमसे नाराज नहीं हैं. हम उनकी देखभाल कर रहे हैं.

तब दोपहर के करीब डेढ़ बजे होंगे. केजरीवाल को अभी बोलना था. उससे पहले बाकी नेता रैली की जमीन कर रहे थे. जंतर-मंतर पर आर कार्यकर्ताओं और किसानों की अच्छी-खासी भीड़ थी. भीड़ के लिए पुलिस भी थी। तभी अचानक कुछ लोग क्या देखते हैं कि एक शख्स जंतर-मंतर पर ही किनारे लगे पेड़ों में से एक पेड़ पर चढ़ता है और अपनी ही पगड़ी का फंदा बना कर उसे गलें में डाल पेड़ से लटक जाता है. जंतर-मंतर पर हजारों लोगों के सामने एक किसान की ये लाइव खुदकुशी थी. देश में पहली बार किसी मुख्यमंत्री और उनके मंत्रीमंडल की आंखों के सामने ये लाइव खुदकुशी थी. हजारों कार्तकर्ताओं के सामने ये लाइव खुदकुशी की थी। दिल्ली पुलिस के दर्जनों जवानों की आंखों के सामने ये लाइव खुदकुशी थी.

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सब कुछ आंखों के सामने हुआ। सब कुछ आंखों के सामने होता रहा। वो मरता रहा। सब देखते रहे। उसने तो पेड़ से उतारे जाने से पहले ही आखिरी सांस ले ली थी. अस्पताल तो बस मौत का सर्टिफिकेट लेने की रस्म अदायगी भर के लिए भेजा गया था. पर वाह री अपनी सियासत और वाह रे अपने नेता। देश के जिन मरते किसानों के नाम पर रैली हो रही थी उसी रैली में एक किसान मर रहा था. बल्कि मर चुका था पर सियसात जारी थी. गजेंद्र सिंह की मौत के बाद अगले 74 मिनट तक मंच से नेता बोलते रहे. बोलते रहे और फिर बीच-बीच में जब शायद उनके दिलों ने कचोटा तो बताते रहे कि बस अभी भाषण खत्म कर यहां से सीधे अस्पताल ले जाएंगे उसे देखने.

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