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वेंकैया ने महाभियोग को समीक्षा के लिए राज्यसभा सचिव को भेजा

कांग्रेस ने 6 और विपक्षी दलों के साथ मिलकर चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा के खिलाफ महाभियोग प्रस्ताव राज्यसभा के सभापति को सौंपा है. इस बीच कांग्रेस के महाभियोग लाने के फैसले पर पार्टी के भीतर कई सवाल उठने लगे हैं.

राज्यसभा सभापति और उपराष्ट्रपति वेंकैया नायडू (PTI) राज्यसभा सभापति और उपराष्ट्रपति वेंकैया नायडू (PTI)
अजीत तिवारी/राहुल श्रीवास्तव
  • नई दिल्ली,
  • 21 अप्रैल 2018,
  • अपडेटेड 9:55 PM IST

कांग्रेस के नेतृत्व में विपक्षी पार्टियों द्वारा सीजेआई दीपक मिश्रा के खिलाफ लाए गए महाभियोग प्रस्ताव को राज्यसभा सभापति और उपराष्ट्रपति वेंकैया नायडू ने राज्यसभा के सचिव को सौंप दिया है. अब राज्यसभा सचिव महाभियोग के इस प्रस्ताव का अध्ययन करके उसकी समीक्षा करेंगे.

नियमों के मुताबिक राज्यसभा सदस्यों द्वारा दिए गए महाभियोग प्रस्ताव को सभापति द्वारा इसे स्वीकृति मिलने और राज्यसभा सदस्यों तक इसे पहुंचाने की प्रक्रिया से पहले सार्वजनिक नहीं किया जा सकता. साथ ही मामले को लेकर सदन के अंदर की कार्यवाही पर किसी भी अदालत में सुनवाई नहीं हो सकती.

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धारा 121 के तहत किसी भी जज के खिलाफ महाभियोग प्रस्ताव को संसद में रखे जाने तक सांसद उसके बारे में सार्वजनिक रूप से चर्चा नहीं कर सकते. वहीं लोकसभा के नियम (334 ए) के मुताबिक सदन के स्पीकर द्वारा प्रस्ताव को संसद में रखे जाने तक लोकसभा का कोई भी सांसद इसे सार्वजनिक तौर पर नहीं दिखा या चर्चा कर सकता है.

बता दें कि कांग्रेस ने 6 और विपक्षी दलों के साथ मिलकर चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा के खिलाफ महाभियोग प्रस्ताव राज्यसभा के सभापति को सौंपा है. इस बीच कांग्रेस के महाभियोग लाने के फैसले पर पार्टी के भीतर कई सवाल उठने लगे हैं.

हालांकि, यह 'दौर-ए-राहुल' की शुरुआत है तो कोई नेता खुलकर नहीं बोल रहा है, लेकिन इस बात की चर्चा तेज़ है कि हिंदुस्तान के इतिहास जो कभी नहीं हुआ ,वो कदम कांग्रेस ने उठाने का फैसला किया है.

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गौर हो कि इस प्रस्ताव के खिलाफ कांग्रेस के वरिष्ठ नेता मनीष तिवारी और लोकसभा में नेता विपक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे भी महाभियोग को लेकर खुले तौर से सहमत नहीं हैं. वहीं, प्रस्ताव पर पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह, पी चिदंबरम, वीरप्पा मोइली जैसे वरिष्ठ नेताओं के साइन नहीं होने पर भी बीजेपी ने कांग्रेस पर जमकर निशाना साधा.

क्‍या है महाभियोग?

महाभियोग (Impeachment) का इस्‍तेमाल सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट के जजों को हटाने के लिए किया जाता है. इसी प्रकिया के माध्‍यम से राष्‍ट्रपति को भी हटाया जा सकता है. महाभियोग प्रस्‍ताव तब लाया जाता है जब ऐसा लगे कि इन पदों पर बैठे लोग संविधान का उल्‍लघंन या दुर्व्‍यवहार कर रहे हों. अगर ऐसा हो रहा है तो महाभियोग का प्रस्‍ताव किसी भी सदन में लाया जा सकता है. इसका जिक्र संविधान के अनुच्‍छेद 62, 124 (4), (5), 217 और 218 में किया गया है.

महाभियोग की प्रक्रिया

महाभियोग प्रस्‍ताव की प्रकिया को बेहद जटिल माना जाता है. लोकसभा में इस प्रस्‍ताव को लाने के लिए 100 सांसदों के हस्‍ताक्षर चाहिए. वहीं, राज्‍यसभा में इसे लाने के लिए 50 सांसदों के हस्‍ताक्षर चाहिए होते हैं. अगर ये सदन में पेश होता है तो सदन के अध्‍यक्ष इस पर फैसला लेंगे. वो चाहें तो इसे स्‍वीकार कर लें या इसे खारिज भी कर सकते हैं.

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अगर अध्‍यक्ष महाभि‍योग प्रस्‍ताव को स्‍वीकार कर लेते हैं तो तीन सदस्‍यों की एक कमेटी आरोपों की जांच करेगी. इस कमेटी में सुप्रीम कोर्ट के एक जज, हाईकोर्ट के एक चीफ जस्‍ट‍िस और कोई एक अन्‍य व्‍यक्‍ति को शामिल किया जाता है.

अगर जांच कमेटी को आरोप सही लगते हैं तो ही महाभियोग प्रस्ताव पर संसद में बहस होगी. इसके बाद संसद के दोनों सदनों में इस प्रस्‍ताव का दो तिहाई बहुमत से पारित होना जरूरी है. अगर दोनों सदन में ये प्रस्ताव पारित हो जाता है तो इसे मंज़ूरी के लिए राष्ट्रपति के पास भेजा जाएगा. बता दें कि किसी भी जज को हटाने का अधिकार सिर्फ राष्ट्रपति के पास है.

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