
राज्यसभा चुनाव में मतदान के लिए राजनीतिक पार्टियों का व्हिप जारी करना संविधान सम्मत नहीं है. पार्टियां व्हिप जारी कर भी दें तो वो उल्लंघन करने के आरोप में किसी विधायक को अयोग्य साबित नहीं कर सकते.
चुनाव आयोग के आला अधिकारियों का कहना है कि सुप्रीम कोर्ट के आदेश के मुताबिक भी राज्यसभा चुनाव में व्हिप एप्लिकेबल नहीं है. राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति और राज्यसभा चुनाव में राजनीतिक दल व्हिप जारी करने का संवैधानिक प्रावधान नहीं है.
संविधान विशेषज्ञ डॉ हरिओम पंवार का कहना है कि संविधान में भी व्हिप केवल सदन के कामकाज के बारे में या फिर बिल पर पार्टी के रुख का समर्थन करने पर ही जारी किया जाता है. यानी सदन में होने वाले मत विभाजन में हिस्सा लेने और पार्टी लाइन पर मत देने के लिए व्हिप जारी होता है. राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति और राज्यसभा चुनाव इस व्हिप से ऊपर होते हैं.
वहीं संविधान विशेषज्ञ सुभाष कश्यप का कहना है कि संविधान राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति और राज्यसभा चुनाव में वोट करने को लेकर व्हिप जारी करने का हामी नहीं है. फिर भी पार्टियां अपने सांसदों और विधायकों पर नैतिक दबाव बनाने के लिए व्हिप जारी करती हैं. वो व्हिप भले जारी करें लेकिन इसके उल्लंघन के सिलसिले में पार्टी से निकालने जैसा कदम भी उठा सकती हैं. हालांकि, ऐसी स्थिति में सदस्यता खत्म नहीं की जा सकती.
राज्यसभा चुनाव के मतपत्र में इस बार नोटा का भी विकल्प होगा. 2014 से अब तक हुए लोकसभा, राज्यसभा, विधानसभा, विधान परिषद, स्थानीय निकायों के चुनाव में ये विकल्प अनिवार्य है. सिर्फ राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति चुनाव में ही नोटा का विकल्प नहीं होता.