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बहुमुखी था वीर सावरकर का व्यक्तित्व, समाज सुधारक भी थेः उपराष्ट्रपति

उपराष्ट्रपति एम वेंकैया नायडू ने कहा है कि वीर सावरकर बहुमुखी व्यक्तित्व के धनी थे. वह स्वतंत्रता सेनानी के साथ लेखक, कवि, इतिहासकार, राजनेता, दार्शनिक और समाज सुधारक भी थे.

उपराष्ट्रपति वेंकैया नायडू (फाइल फोटोः ANI) उपराष्ट्रपति वेंकैया नायडू (फाइल फोटोः ANI)
aajtak.in
  • नई दिल्ली,
  • 16 नवंबर 2019,
  • अपडेटेड 9:15 AM IST

  • उपराष्ट्रपति ने वीके संपत की पुस्तक का किया विमोचन
  • कहा- भारत के विकास में सावरकर की दूर दृष्टि उल्लेखनीय

उपराष्ट्रपति एम वेंकैया नायडू ने कहा कि वीर सावरकर बहुमुखी व्यक्तित्व के धनी थे. वह स्वतंत्रता सेनानी के अलावा लेखक, कवि, इतिहासकार, राजनेता, दार्शनिक और समाज सुधारक भी थे. उपराष्ट्रपति 'Savarkar: Echoes from a Forgotten Past' पुस्तक का विमोचन करने के बाद कार्यक्रम को संबोधित कर रहे थे.

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उन्होंने कहा कि सावरकर जैसे शानदार और विवादास्पद व्यक्ति की जीवनी लिखना आसान नहीं है. समाचार एजेंसी एएनआई के अनुसार, उपराष्ट्रपति ने इसके लिए लेखक वीके संपत की सराहना की और कहा कि सावरकर के व्यक्तित्व के कई पहलू ऐसे हैं, जिन्हें लोग नहीं जानते. बहुत कम लोग जानते होंगे कि सावरकर ने देश में छुआछूत के खिलाफ एक सशक्त आंदोलन छेड़ा था. उन्होंने कहा कि सावरकर ने रत्नागिरी जिले में पतित पावन मंदिर का निर्माण कराया, जिसमें दलित समेत सभी हिंदुओं को प्रवेश की अनुमति थी.

'जाति रहित भारत की कल्पना करने वाले पहले शख्स'

उपराष्ट्रपति ने कहा कि वीर सावरकर जाति रहित भारत की कल्पना करने वाले पहले शख्स थे. उन्होंने भारतीय मूल्यों के प्रति चिंतनशील इतिहास के सही ज्ञान का आह्वान करते हुए कहा कि वह वीर सावरकर ही थे, जिन्होंने 1857 के विद्रोह को पहले स्वतंत्रता संग्राम का नाम दिया. सावरकर ने समाज की 7 बेड़ियां बताई थीं, जिनमें पहली कठोर जाति व्यवस्था थी. उपराष्ट्रपति ने कहा कि सावरकर ने इसे इतिहास के कूड़ेदान में फेंके जाने योग्य बताया था.

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'हर व्यक्ति तक वैदिक साहित्य पहुंचाना चाहते थे'

उपराष्ट्रपति ने कहा कि वीर सावरकर किसी एक जाति नहीं, बल्कि प्रत्येक व्यक्ति तक वैदिक साहित्य पहुंचाना चाहते थे. वह जाति आधारित व्यवसाय के खिलाफ थे और यह मानते थे कि इसे रुचि और दक्षता पर आधारित होना चाहिए. उन्होंने कहा कि सावरकर ग्लोबल मोबिलिटी में विश्वास रखते थे और भारतीय संस्कृति को विश्व के कोने-कोने तक पहुंचाना चाहते थे.

अंतरजातीय विवाह के समर्थक थे सावरकर

उपराष्ट्रपति ने कहा कि वीर सावरकर अंतरजातीय खानपान और अंतरजातीय विवाह के समर्थक थे. वह कहते थे कि धर्म हृदय में, आत्मा में है, पेट में नहीं. उन्होंने कहा कि भारत के विकास में उनकी दूर दृष्टि वास्तव में उल्लेखनीय है. सावरकर ने कहा था कि हम यूरोप से 200 साल पीछे हैं. भारतीय स्वतंत्रता सेनानियों को जिन असंख्य कष्टों का सामना करना पड़ा, उन्हें याद करते हुए प्रत्येक व्यक्ति से अपने जीवन में कम से कम एक बार सेल्युलर जेल जाने की अपील की थी.

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